गत फरवरी माह में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों में ‘कॉल फार जस्टिस’ संस्था की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने गृहमंत्री अमित शाह को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कि ऑपइंडिया द्वारा की गई ग्राउंड रिपोर्ट्स को आधार बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली में हुए इन हिन्दू विरोधी दंगों में 53 लोग मारे गए थे।
‘कॉल फार जस्टिस’ नामक संस्था की ओर से गठित ‘फैक्ट फाइंडिंग टीम’ ने गत शुक्रवार (मई 29, 2020) को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2019 में वर्षों से अनसुलझे तीन तलाक, आर्टिकल-370 और राम जन्मभूमि जैसे मुद्दों का हल निकलना कई कट्टरपंथी ताकतों को रास नहीं आया। जिसके बाद हिंसा का खेल हुआ।
इस फैक्ट फाइंडिंग टीम ने दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगे के पीछे पिंजरा तोड़, जामिया को-ऑर्डिनेशन कमेटी, पीएफआई आदि संगठनों का हाथ बताया है। इसमें इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इन कट्टरपंथी संगठनों ने साजिश के तहत दिल्ली को दंगों को आग में झोंका। साथ ही, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस नेताओं के सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) पर फैलाए झूठ ने आग में घी डालने का काम किया।
इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि दिल्ली में घटित हिन्दू-विरोधी दंगों के पीछे दो बड़े कारण – नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शन को 120 करोड़ की फंडिंग और बाहर से आए समुदाय विशेष के 7,000 लोग थे, जिनकी उम्र 15 से 35 साल की रही होगी।
एनजीओ ‘कॉल फॉर जस्टिस’ के सदस्यों ने ‘टुकडे-टुकडे गैंग‘, और ‘कट्टरपंथी समूह’ जैसे – पिंजरा तोड़, जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी, पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) और AAP के स्थानीय राजनेताओं को दोषी ठहराया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छानबीन में पता चला है कि एंटी सीएए प्रोटेस्ट की फंडिंग पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पार्टी ने की थी और नागरिकता कानून विरोधी प्रोटेस्ट के लिए PFI के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपए जमा होने से गहरी साजिश के संकेत मिलते हैं।
‘कॉल फार जस्टिस’ संस्था की फैक्ट फाइंटिंग टीम में मुंबई हाईकोर्ट के पूर्व जज अंबादास जोशी, पूर्व IPS विवेक दुबे, रिटायर्ड IAS एमएल मीना, एम्स के पूर्व डायरेक्टर तीरथ दास डोगरा, सामाजिक कार्यकर्ता नीरा मिश्रा, वकील नीरज अरोरा शामिल थे। इस संस्था के ट्रस्टी चंद्रा वाधवा ने बताया कि गृहमंत्री अमित शाह को यह रिपोर्ट सौंप दी गई है।
इस कमेटी में शामिल टीडी डोगरा ने अपने करीब चार दशक से अधिक के करियर में सीबीआई और दिल्ली पुलिस के लगभग सभी हाई प्रोफाइल मामलों में मदद की है जिनमें – इंदिरा गाँधी की हत्या, 2002 के गुजरात दंगे, इशरत जहाँ मुठभेड़, बटला एनकाउंटर और आरुषि तलवार हत्या जैसे मामले भी शामिल हैं।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील नीरज अरोड़ा, राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (NPA) और सीबीआई अकादमी के साथ साइबर लॉ और साइबर अपराध पर काम कर चुके हैं।
ऑपइंडिया की ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ हैं आधार
अरोड़ा ने कहा कि तथ्य-खोज रिपोर्ट द्वारा किए गए सभी दावे प्रामाणिक समाचार स्रोतों पर आधारित हैं, जिनसे पुष्टि की जा सकती है। साथ ही, शेखर गुप्ता की वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाईट ‘दी प्रिंट’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में सबसे ज्यादा बार समाचार वेबसाइट ‘ऑपइंडिया’ की ग्राउंड रिपोर्ट्स को आधार बनाया गया है, जिसे 70 पेज की रिपोर्ट में 20 बार वर्णित किया गया है।
यहाँ पर दी प्रिंट ने एक भूल अवश्य की है कि फैक्ट फाइंटिंग टीम द्वारा ऑपइंडिया की ग्राउंड रिपोर्ट्स का जिक्र तो किया गया है लेकिन 20 नहीं बल्कि 10 बार। ऑपइंडिया के ग्राउंड रिपोर्ट को परोक्ष रूप से झूठा बताने के चक्कर में ‘कंट्रोल एफ’ मारती वामपंथन यह भूल गई कि ऑपइंडिया कीवर्ड ‘यूआरएल’ में भी है, जिसके कारण वह 10 को 20 लिख गए।
यानी, यदि लिखा गया है कि ‘XYZ’ को गोली लगी। ‘XYZ’ मर गया। ‘XYZ’ का पोस्टमॉर्टम हुआ तो दी प्रिंट के अनुसार कुल तीन ‘XYZ’ मरे। लेकिन शेखर गुप्ता के नेतृत्त्व से ऐसी तथ्यात्मक गलतियों की उम्मीदें की जा सकती हैं।
सोशल मीडिया पर दी प्रिंट की रिपोर्टर ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट का जिक्र किए जाने को लेकर हैरानी भरे ट्वीट किए हैं। क्योंकि वामपंथी प्रोपेगेंडा मशीनरी के पास अब एक मात्र आखिरी रास्ता यही रह गया है कि वह आश्चर्य व्यक्त कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके।
Reporting: Among those who submitted the ‘fact-finding report’ to Amit Shah, blaming Tukde Tukde gang for the Delhi riots– a forensic expert who worked on Gujarat riots, Batla House, Ishrat encounter cases.
— Fatima Khan (@khanthefatima) June 2, 2020
The most cited website in the report? OpIndia. https://t.co/1YUZo4cC17
कारण यह है कि ‘ऑपइंडिया’ उन दो या तीन संस्थाओं में से एक थी, जिन्होंने फैसल फारूक की छत, ताहिर हुसैन की बिल्डिंग, क्षतिग्रस्त इलाकों में लगी आग, पीड़ितों के परिजनों के बयान आदि रिकॉर्ड कर लगातार ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी। हमारी लगातार और विस्तृत रिपोर्टिंग को गृह मंत्रालय को सौंपी गई फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने आधार बनाया है।
अब ऐसे में दी प्रिंट और उनके दल द्वारा महज ये लिख देने से कुछ साबित नहीं होता कि अमित शाह को सौंपे रिपोर्ट में ‘ऑपइंडिया’ का जिक्र बीस बार किया गया है या दस बार, बल्कि ‘दी प्रिंट’ जैसे प्रपंचियों के लिए बेहतर यह होता कि वो हमारे एक भी रिपोर्ट को झूठा साबित कर देते।
ऐसा नहीं है कि ऐसी कोशिशें नहीं की गईं, लेकिन ऑपइंडिया ने दिल्ली में हुए इन हिन्दू विरोधी दंगों का जो सच प्रत्येक पीड़ित के पास जाकर मीडिया में सामने रखा, उसकी संवेदनशीलता और उसकी वास्तविकता को झूठ साबित कर पाना वामपंथ के ‘दंगा साहित्यकारों’ के लिए नामुमकिन हो गया।
सत्य का वह पहलू, जिसे मीडिया अपनी हरकतों से छुपाते आता था, उसे ऑपइंडिया ने ग्राउंड रिपोर्ट्स में सामने रखा। यह ऑपइंडिया ही था, जिसने दिखाया कि हिंदू-विरोधी दंगों के दौरान किस घर की छत पर क्या था? हमने बताया कि अंकित शर्मा को ताहिर हुसैन के घर में कौन खींच कर ले गए। हमने बताया कि शादी वाले घर पर सिलिंडर को ब्लास्ट करने के इरादे से आग लगाई गई। छतों पर रखे पेट्रोल बम, एसिड की बोतलें और गुलेल बताती हैं कि वहाँ क्या हुआ था।
इन सभी तथ्यों को जाँच का आधार बनाए जाने पर एकदम स्पष्ट हो जाता है कि मीडिया के किस वर्ग को सबसे ज्यादा तकलीफ हो सकती है।