नक्सल प्रभावित इलाकों को सड़क से जोड़ने की दिशा में सरकार रोड कनेक्टिविटी कार्यों को गति देने में जुटी है। ऐसे में खबर है कि राज्य सरकारों व निर्माण एजेंसियों को सुरक्षाबलों की मदद से निर्माण कार्य तेज करने को कहा गया है।
रिपोर्ट बताती हैं कि रोड कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के तहत अब तक मंजूर किए गए 9338 किलोमीटर सड़क में से महज 1796 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य पूरा है।
गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार रोड रिक्वायरमेंट प्लॉन (RRP1) के तहत जो काम 2009 में शुरू हुआ था उसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिली है। इसके मुताबिक 5422 किलोमीटर लंबाई की सड़कें बनाई जानी थीं। इनमें से 4946 किलोमीटर का काम अब तक पूरा हुआ है। प्रोजेक्ट में तेलंगाना ने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया है वहीं छत्तीसगढ़ में कुछ काम शेष है।
इसके अलावा 2016 में शुरू हुए सड़क संपर्क प्रोजेक्ट के तहत भी काम चल रहा है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। जिसके कारण संबंधित पक्षों से ऐसी देरी का कारण पूछते हुए उन्हें काम तेज करने को कहा गया है। गृह मामलों की पार्लियमेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने भी इस धीमी गति पर जवाब भी माँगा है।
सरकारी वेबसाइट के अनुसार, इस स्कीम को सरकार ने 28 दिसंबर 2016 में शुरू किया था ताकि नक्सल प्रभावित इलाकों की रोड कनेक्टिविटी बेहतर की जा सके। इसके तहत 5412 किमी रोड और 126 ब्रिज तैयार होने थे, जिसमें लागत 11,725 करोड़ रुपए की आती। इस संबंध में 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि इस योजना को पूरा करने के लिए 5,065 किमी के लिए रकम सैंक्शन की गई थी, इसमें से 845 किमी का काम पूरा हो गया है जिसमें लागत 645 करोड़ आई है।
गृह मंत्रालय की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना के तहत अब तक 9,338 किमी सड़क की लंबाई को मंजूरी दी गई है। इनमें से 1,796 किमी लंबी सड़कें पूरी हैं।
गौरतलब है कि रोड रिक्वायरमेंट प्लॉन और RCPLWE रोड नेटवर्क सुधार में दो बड़ी स्कीमें हैं। RRP1 की शुरुआत 2009 में 8 नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए हुई थी। ये राज्य- आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश हैं।
मीडिया रिपोर्ट कहती है कि आज हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट जो नक्सल इलाकों में लंबित हैं उनके पीछे कई जगह नक्सल का असर है तो कई जगह जरूरी समन्वय की कमी है। सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में गर्मियों में सघन अभियान चलाने का मन बनाया है। ऐसे में केंद्र व राज्य की सरकारों के साथ निर्माण एजेंसियों के सामने बड़ा लक्ष्य है।