उत्तराखंड में चल रहे ‘मजार जिहाद’ पर बुलडोजर चलने लगा है। देहरादून और पौढ़ी जिलों के जंगलों में बने 15 मजारों को ध्वस्त कर दिया गया है। हाल ही में वन विभाग की जमीन पर बनी 17 मजारों को चिह्नित किया गया था। लेकिन, कार्रवाई के दौरान दस्तावेज दिखाए जाने के बाद दो मजारों को फिलहाल छोड़ दिया गया है।
रिपोर्टों के अनुसार दो दिन पहले गुपचुप तरीके से वन विभाग ने ये कार्रवाई की। टीम टीन-टप्पर, लोहा, ईंट, गारा सब उठाकर ले गई। इस दौरान किसी प्रकार के विरोध की खबर नहीं है। देहरादून वन प्रभाग के डीएफओ नीतिश मणि त्रिपाठी ने कार्रवाई की पुष्टि की है। पौढ़ी में वन विभाग की जमीन पर बने मकबरे को भी हटा दिया गया है। यहाँ पीर बाबा मकबरे के टीन शेड निर्माण के लिए विधायक निधि से दो लाख रुपए स्वीकृत किए जाने की बात भी सामने आई थी।
रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में राज्य के अन्य जिलों में भी बनाए गए अवैध मजारों पर कार्रवाई होगी। अमर उजाला ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कई मजार तो फॉरेस्ट रेंज चौकी के नजदीक भी बना दिए गए हैं। इसको लेकर नैनीताल हाई कोर्ट भी कई बार राज्य सरकार और वन विभाग को फटकार लगा चुका है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुछ महीनों पहले ऐसे मजारों पर कार्रवाई की बात कही थी। दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया था कि राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह मजार उग आए हैं, जबकि पहाड़ी वन संरक्षित और आरक्षित हैं। वयोवृद्ध संत स्वामी दर्शन भारती ने ऑपइंडिया को बताया था कि उत्तराखंड में 37 साल पहले एक मस्जिद तक नहीं थी। लेकिन अब राज्य में दो हजार से अधिक अवैध मजार होने का अनुमान है।
ऑपइंडिया ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में भी इसी तरह की ‘घुसपैठ’ देखी थी। जंगल में कई मजार मिली थी। भले ही इस पार्क के भीतर किसी को रहने की अनुमति नहीं हो, लेकिन प्रवेश करने के करीब 1 किलोमीटर बाद ही हमने पहली मजार देखी थी। यह मजार सड़क से एकदम सटा कर बनाई गई थी। इस पर बाकायदा रंग रोशन किया गया था और चादर भी चढ़ाई गई थी। गौर करने की बात यह है कि इस जगह पर गाइड ने हमें वाहन से उतरने से मना कर दिया क्योंकि इलाका बाघों का क्षेत्र माना जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर इस मजार पर रंग-रोशन कौन करता होगा?