भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमणा ने न्यायमूर्ति यूयू ललित के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के रूप में की है। जस्टिस रमणा 26 अगस्त को रिटायर्र होंगे वाले हैं। ऐसे में अगर जस्टिस रमणा की सिफारिश मान ली जाती है तो जस्टिस उदय उमेश ललित देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बन जाएँगे। हालाँकि, जस्टिस यू यू ललित के अगला सीजेआई नियुक्त होने पर उनका कार्यकाल तीन महीने से भी कम का होगा, क्योंकि वे इसी साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने आज यू. यू. ललित के नाम की सिफारिश उनके उत्तराधिकारी के रूप में की। जस्टिस ललित 49वें भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 4, 2022
मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना इसी महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं। pic.twitter.com/hJkbtEfSUg
कौन हैं जस्टिस उदय उमेश ललित
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू यू ललित ऐसे कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें तत्काल ‘तीन तलाक’ के माध्यम से तलाक देने की प्रथा अवैध घोषित करना भी शामिल है। वहीं बता दें कि यदि जस्टिस ललित CJI नियुक्त किया जाता है, तो न्यायमूर्ति ललित ऐसे दूसरे CJI बन जाएँगे, जिन्हें बार से सीधे शीर्ष अदालत की बेंच में पदोन्नत किया गया था। न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त 2014 को जो एक प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता से सीधे सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वह तब से शीर्ष अदालत के कई ऐतिहासिक निर्णयों में शामिल रहे हैं। वहीं जस्टिस एस एम सीकरी, जो जनवरी 1971 में 13वें CJI बने, वे मार्च 1964 में सीधे शीर्ष अदालत की बेंच में पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे।
जिन जस्टिस ललित को मुख्य न्यायधीश चुनने के लिए वर्तमान चीफ जस्टिस एन वी रमणा ने उनके नाम की सिफारिश कानून मंत्रालय को की है। जस्टिस यूयू ललित इस समय एन वी रमणा के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज हैं। उनका जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ था। जस्टिस उदय उमेश ललित महाराष्ट्र के जाने-माने वकील रह चुके हैं। 1983 से उन्होंने वकालत शुरू की थी। दिसंबर, 1985 तक उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालात की प्रैक्टिस की। फिर दिल्ली आ गए। यूयू ललित साल 1986 से साल 1992 तक पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम कर चुके हैं।
न्यायमूर्ति ललित के कुछ अहम निर्णय
जस्टिस यूयू ललित क्रिमिनल लॉ के स्पेशलिस्ट हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी 2G मामलों में CBI के पब्लिक प्रोसिक्यूटर के रूप में ट्रायल्स में हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने दो कार्यकालों के लिए सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस ललित ने कई बार खुद को हाई-प्रोफाइल मामलों से अलग कर लिया। साल 2014 में उन्होंने याकूब मेनन की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस याचिका में 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में मेनन की मौत की सजा को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की माँग की गई थी। साल 2015 में उन्होंने 2008 के मालेगाँव विस्फोटों में निष्पक्ष सुनवाई की माँग करने वाली याचिका पर खुद को सुनवाई से अलग कर लिया क्योंकि उन्होंने पहले एक आरोपित का बचाव किया था। साल 2016 में उन्होंने आसाराम बापू के मुकदमे में अभियोजन पक्ष के एक प्रमुख गवाह के लापता होने की जाँच की माँग करने वाली याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार के पास केरल में ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार है।