लुटियन के लुटेरों ने कभी इतना खतरा महसूस नहीं किया, जितना खतरा उनको अब महसूस हो रहा है। उनका यहाँ होना सिर्फ विरोध के लिए था, नकारात्मकता फैलाने के लिए था, लोगों को धोखे के जाल में उलझाने के लिए था और वो बने थे सिर्फ विश्वासघात के लिए। लेकिन, आज वही लुटेरे जो कुछ सालों पहले “एलीट” कहलाते थे, आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
लुटियन के एलीट क्लास की मानसिकता के ऊपर और उनके अस्तित्व की लड़ाई के ऊपर ये श्रृंखला नंदिनी जी ने अप्रैल 4, 2019 को लिखी थी जब चुनाव शुरू नहीं हुए थे। उन्हीं के शब्दों को आपके सामने पेश करने की कोशिश कर रहा हूँ, जिस से बाकी लोग भी इसको पढ़ सकें और जान सकें कि जिनको हम अपना देवता बनाए बैठे थे, वो बुत ही निकले।
बात 2006 की है जब अपने खानदान के नाम को भुनाते हुए और नौकरशाही की सीढ़ियों को अपने नाम के सहारे चढ़ते हुए ये ‘साहब’ के हुजूम के सामने एक सभा में घोषणा करते हैं कि “भारत जैसा अद्भुत कोई देश नहीं है”। आप जान कर हैरान रह जाएँगे कि जिस कारण से उन साहब ने अपनी मातृभूमि की प्रशंसा की थी उसका देश की संस्कृति, विविधता, इतिहास, कला, वास्तुकला, व्यंजनों से कोई लेना-देना नहीं था।
किन्तु जो कारण उन्होंने बताए थे और उन कारणों को सुनकर सभागार में जो अट्टहास लगे थे वो सालों दर साल मेरे कानों में गूँजते रहे। उन साहब का कहना था कि “भारत जैसा अद्भुत कोई देश नहीं है” क्योंकि “सिर्फ पाक और बांग्लादेश ही ऐसे देश हैं जहाँ के राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों के बंगले मेरे बंगले समान हैं।“ साहब के कुछ अन्य बोल:
“मेरी घर की तरफ़ आने-जाने वाले रास्ते साफ-सुथरे हैं, फुटपाथों के आसपास पेड़ लगे हैं और बिजली निर्बाध है।”
“सिर्फ भारत में ही आपको नौकरानियों, मालियों, ड्राइवरों की कमी महसूस नहीं होती क्योंकि यहाँ पर लेबर “चीप” है। (और भगवान करे ये लेबर हमेशा ही “चीप” रहे, ऐसा उनका कहना था।)
साहब ने एक ठहाका और लगाया और अपने भाषण में इन शब्दों को जोड़ा:
“किस देश में आप सीधे पुलिस आयुक्त को फोन कर सकते हैं? किस देश में अपनी ससुराल जाने वाले रास्ते को वन वे ट्रैफिक में तब्दील करा सकते हैं क्योंकि आपके ससुर साहब को भारी ट्रैफिक से आने-जाने में तकलीफ होती थी?अद्भुत है ये देश जहाँ आप एक राज्य के सीएम से एक फ्लाईओवर की योजना को रोकने का अनुरोध कर सकते हैं जो कुछ आलीशान घरों की सुन्दरता में आड़े आ रहा था। और हाँ, किस और देश में आप एक प्राइवेट क्लब के मालिक को फोन करके धमका सकते हैं कि अगर आपकी सदस्यता तुरंत स्वीकृत नहीं हुई तो आपके घर पर एक्साइज वालों की रेड डाल दी जाएगी ?”
साहब का सवाल था कि किस देश में आप एक संरक्षित क्षेत्र में सभी पर्यावरण कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए एक शानदार आलीशान घर का निर्माण कर सकते हैं? है कोई और देश जहाँ बैन किया हुआ जानवर का माँस आपको मात्र 5 मिनट में एक फोन कॉल पर हाज़िर हो जाता है?
साहब अपनी ‘Luxuries’ का बखान करते हुए पूछते हैं कि क्या है कोई ऐसा देश जहाँ आपकी नालायक औलादों को आप देश के सबसे शानदार विद्यालयों में या फिर उच्च कोटि के आईवी लीग कॉलेजों और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में लायक छात्रों को पीछे छोड़ते हुए शीर्ष स्थानों पर पहुँच सकते हैं? साहब ये सब बोल रहे थे, तभी वहाँ पर किसी ने उनसे पूछा था कि उस आम आदमी का क्या जिसके पास मूल सुविधाएँ तक हासिल नहीं? आम जनता का क्या?
उनका जवाब था, “मेरा ड्राइवर कहता है (ये आपको मैं बता दूँ कि मैंने उस वक़्त पहली बार ये ‘ड्राइवर का सिद्धांत’ के बारे में सुना और सीखा था, जो आगे चलकर हर किसी ने इस्तेमाल किया) छोटे शहरों और गाँवों में हमारे लोग बड़े खुश हैं, क्योंकि वो सभी जात-पात के मसलों में उलझे हुए हैं और वे अपने जीवन में जो भी छोटा-मोटा मिला है, उन चीज़ों के लिए आभारी हैं।”
साथ ही कुछेक सालों में होते रहने वाले दंगे उनको ये अहसास कराते रहते हैं कि उनके पास जो भी है वो कितना कीमती है। जब आपका स्वयं का जीवन खतरे में होता है तो आप मूर्ख ही होंगे जो टूटी-फूटी सड़कों और कूड़े के बारे में चिंतित होंगे। अभी पिछले दिनों इन साहब से फिर मुलाकात हुई और मैंने जानना चाहा था कि भावी आम चुनाव 2019 पर उनके विचार क्या थे?
उनका कहना था; “उनका गैंग और उनके मालिकान इस बार पूरी जान लगा देंगे कि सत्ता का परिवर्तन हो कर रहे। आखिर वो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी जो 5 साल से किसी और के हाथ में है, वो उसको इस बार नहीं हाथ से नहीं जाने देंगे। बहुत दुखी होकर उनका कहना था कि पिछले 5 साल बेहद मुश्किल से भरे थे और दुबारा एक और पाँच साल का मतलब सिर्फ क़यामत ही होगा।”
मुझे समझ आ गया था कि इस बार हमला 2014 से बड़ा होगा, हताशाओं से भरा होगा, अभद्रता की सीमाओं को तोड़ दिया जायगा। याद रहे कि ये लेख 2019 के चुनाव से पहले लिखा गया था और जैसा आप देख रहे हैं कि वही हो रहा है। लेकिन, साथ ही मुझे ये भी शक नहीं कि यह एक युग का अंत है और उस अंधे युग की समाप्ति को अंधे भी देख सकते हैं।
ये तो था नंदनी जी की ट्वीट श्रुंखला के कुछ अंशों का हिंदी में रूपांतरण। और अब आता हूँ मैं अपनी बात पर।
चायवाला मोदी वापस आएगा- ऐसा उन महाशय ने कहा था! मोदी जी वापस आए और साथ ही शुरू हुआ पूर्व नियोजित हमला। अगर आपको लगता है कि सरकार आँखें मूँदे बैठी थी तो आप शायद कुछ ज्यादा सोच रहे हैं। सब कुछ वही हो रहा है, कहीं स्केल बड़ा है कहीं स्केल छोटा पर हमलों की उम्मीद थी और सरकार की तैयारी भी पूरी थी।
ये ज़रूरी नहीं कि आपको हमेशा दिखे कि रोकथाम कहाँ और कैसे हो रही है। आपको दिल्ली की ये आग दिख रही है जो शायद कई सालों बाद भड़काई गई एक आग है पर आपको वो आग नहीं दिख पाई होगी जिनको पश्चिमी उत्तरप्रदेश में, मुंबई के इलाकों में, मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में और भी कई “ख़ास इलाकों” में भड़कने से पहले ही बुझा दिया गया।
ये जिस सरकार की आपको नाकामी दिख रही है ये वही सरकार है जिसने कश्मीर में अभूतपूर्व विपरीत परिस्थितियों में अपनी मर्ज़ी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिलने दिया। वही मोदी हैं, वही अमित शाह हैं। बस आप अपना धैर्य खो बैठे हैं और विपक्ष के अजेंडे में उलझ कर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं।
वो चाहते हैं कि आप हिंसा की बात करें, वो चाहते हैं कि आप कानून को हाथ में ले जिस से उनके किए गए कामों को एक कारण मिल सके। क्यों करना है आपको राणा अयूब की ट्वीट को कोट और जवाब देना है? क्यों आपको स्वरा को गद्दार कहना है? राजदीप को क्यों गाली देना है आपको?
सोशल मीडिया पर इन की रोकथाम नहीं होगी। अगर करना है आपको रोकथाम तो करिए ब्लॉक इन सभी को और इनको जवाब देना बंद कीजिए। आप इनकी ऑडियंस हैं, और अगर ऑडियंस नहीं आएगी सिनेमा हॉल में तो पिक्चर तो फ्लॉप होगी ना ?
आखिर में एक निवेदन यहाँ उपस्थित महिलाओं से जो इस नकरात्मकता में उलझी हुई हैं। आप सुबह उठ कर सीधे यहाँ आती हैं और स्वरा एंड गैंग को गालियाँ देने और कोसने लग जाती हैं। एक घंटे बाद आप जब अपनी रिट्वीट और लाइक देख कर खुश होकर अपने बच्चे के लिए कुछ कह रही होती हैं या पति से, पिता से या किसी भी पारिवारिक सदस्य से बातचीत कर रही होती हैं तो आप के अंदर उसी एक घंटे का ज़हर घुला हुआ होता है। नफरत की आग लिए आप दिन भर घूम रहे होते हैं।
धर्म आपका कोई भी हो, नफरत आपके अंदर की सिर्फ आपको ही जलाएगी। आज तक दंगों में जितने भी लोग मारे गए वो ज़मीन पर मौजूद थे अपने अंदर नफरत लिए और नफरत भड़काने वाले टाइप कर रहे थे कहीं दूर बैठे हुए। मुझे कल से लोग डीएम (मैसेज) में आकर सेक्युलर बोल रहे हैं, कोई आपिया बोल रहा है कोई संघी।
बोलते रहिए, सेक्युलर होना गलत नहीं है अगर आप वो सेक्युलर हैं जिसके मायने वो नहीं होते जो आप मानते हैं, बल्कि वो होते हैं जो आपने असलियत में ना पढ़ा और ना होते हुए देखा। इस उम्मीद के साथ आपसे विदा कि जब यहाँ मुस्कराहट वापस आएगी तो मैं भी आ जाऊँगा।