पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून एक ऐसा ख़तरनाक हथियार बन कर उभरा है, जिसका दुरूपयोग कर वहाँ का हर आदमी किसी दूसरे धर्म के लोगों से हुई निजी प्रतिद्वंदिता या लड़ाई-झगड़े को इस्लाम बनाम अन्य का रूप दे सकता है। पाकिस्तानी हिन्दुओं व सिखों की बात करने के साथ-साथ हम पाकिस्तानी ईसाईयों की भी बात करेंगे, जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैं और इस्लामिक क़ानून की गलत धाराओं का शिकार होते रहे हैं।
अगर हम पाकिस्तान का इतिहास और अल्पसंख्यकों की बात करें तो आज़ादी के दौरान गुज़रे कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो पाकिस्तान में ये स्थिति तब नहीं थी, जो आज है। 1971 में पाकिस्तान खंडित हुआ और भारत की मदद से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाक सेना के बर्बर अत्याचार से मुक्ति मिली। पाकिस्तान में रह रहे बाकी अल्पसंख्यक भी वहाँ से निकल लिए। जो बचे-खुचे रह गए, उनकी रक्षा करने में भी वहाँ का शासन असमर्थ साबित हुआ और उन पर अत्याचार और बढ़ते चले गए। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि 1971 के बाद का जो पाकिस्तान है, वहाँ अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं बची और तरह-तरह के नियम-क़ानून बना कर उन्हें प्रताड़ित करना तेज़ कर दिया।
पाकिस्तान में ईसाईयों की स्थिति समझने के लिए हमें लगभग 6 वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। 22 सितंबर 2017 को पेशावर के क्वेटा स्थित ऑल सेंट्स चर्च में इस्लामिक आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया। यह कोई छोटा-मोटा हमला नहीं था। इसमें 127 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और 250 से भी अधिक गंभीर रूप से घायल हुए। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी तालिबान ने ली थी। ये पाकिस्तान में ईसाईयों पर हुए सबसे ख़ूनी हमलों में से एक है। आतंकियों ने दावा किया कि ईसाईयों व अन्य धर्मों के लोगों पर ऐसे आतंकी हमले होते रहेंगे क्योंकि पाकिस्तानी इसे मुस्लिमों के दुश्मन हैं। बाद में इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी समूह जुंदाल्ला से तालिबान ने पल्ला झाड़ लिया। इस हमले के बाद कई पाकिस्तानी ईसाईयों ने डर के मारे चर्च जाना ही छोड़ दिया। इस हमले के बाद भी ऐसे कई हमले हुए।
Frank John, a Pakistani Christian & Chairman, Drumchapel Asian Forum: Every Christian in Pakistan is unhappy with 295C(blasphemy law) because we always remain in fear of its misuse. If we have any altercation with any person, they put us under 295C. It’s a dangerous law. #Geneva
— ANI (@ANI) March 16, 2019
आज से ठीक 4 वर्ष पहले 15 मार्च 2015 में लाहौर स्थित रोमन कैथोलिक चर्च पर आतंकी हमला हुआ। हमेशा की तरह ये हमले इस्लामिक चरमपंथी आतंकियों द्वारा किए गए थे। मजे की बात तो यह कि इस हमले के आरोप में गिरफ़्तार तालिबानियों के भारत से कनेक्शन बताए गए। कहा गया कि उन्हें भारत से वित्तीय सहायता मिली थी। भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता की स्थिति यह है कि यहाँ बलात्कार के आरोपी पादरी को भी भीड़ द्वारा सर-आँखों पर बिठाया जाता है और उस पर आरोप लगाने वाली ननों पर चर्च कार्रवाई करता है (जो कि गलत है)। पाकिस्तान में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों की यह एक बानगी भर है। असली अत्याचार तो उन पर हो रहा है जो मरने से पहले भी हज़ार बार मरते हैं। पाकिस्तान के 2% ईसाई वहाँ की जनसंख्या का एक बहुत ही छोटा भाग हैं। प्रतिशत के मामले में भारत में सिखों की जनसंख्या (1.7%) इस से कम है। भारत में सेना से लेकर शासन तक सिखों का अहम योगदान रहा है और वे लगभग सभी विभागों में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काबिज़ हैं।
वैसे, इस मामले में भारत और पाकिस्तान की तुलना बेमानी है। जहाँ भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है वहीं ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान’ एक इस्लामिक देश है जो सभी धर्मों को स्वतन्त्रता देने का झूठा दावा करता रहा है। पाकिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसका बँटवारा मज़हब के आधार पर हुआ था। अभी-अभी ख़बर आई है कि इस्लामिक नियम-कानूनों की आड़ में पाकिस्तान में धीरे-धीरे अल्पसंख्यकों को साफ़ किया जा रहा है। यूरोप में रह रहे पाकिस्तानी ईसाईयों ने पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून की आड़ में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकर घर की लड़कियों को ईशनिंदा क़ानून की आड़ में अपहृत कर के इस्लाम में धर्मान्तरण कर दिया जाता है। आर्टिकल 295C के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराते हुए उन्होंने बताया कि व इस से नाख़ुश हैं क्योंकि इसका बड़े तौर पर दुरूपयोग हो रहा है। उन्होंने इसे एक ख़तरनाक क़ानून करार दिया।
प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों ने कहा कि पाकिस्तान में ईसाईयों का धीमे-धीमे नरसंहार किया जा रहा है। उनका यह डर बेजा नहीं है। ‘United States Commission On Religious Freedom’ की वार्षिक रिपोर्ट 2018 में भी कहा गया है कि पाकिस्तान में नॉन-मुस्लिमों के घर की लड़कियों व महिलाओं का जबरन धर्मान्तरण एक आम बात है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धारा 295 व 298 के अंतर्गत ईशनिंदा के तहत अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। अकेले 2011 से 2017 के बीच 100 से अधिक लोगों पर ईशनिंदा के तहत कार्रवाई की गई और उनमे से 40 ऐसे हैं, जिन्हे मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है।
ये लोग जेल में बंद न्यायालय अंतिम वर्डिक्ट का इन्तजार करते रहते हैं। अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि पड़ोसी के साथ हुए झगड़े, कार्यस्थल पर हुए झगड़ों से लेकर निजी लड़ाई तक में ईशनिंदा का दुरूपयोग किया जाता है। कई मामलों में तो मुद्दे को अदालत तक पहुँचने ही नहीं दिया जाता, भीड़ ही निर्णय ले लेती है। ऐसे मामलों में भीड़ का निर्णय मृत्युदंड होता है। मॉब लॉन्चिंग की इन घटनाओं में बेचारे अल्पसंख्यक मारे जाते हैं। ईशनिंदा का मामला होने के कारण सरकार भी दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने से डरती है।
Pakistan: Nearly 200 Christians are being held on blasphemy charges: Expect the West to do nothing, say nothing, to save these Christians and religious minorities, so cowed are they. https://t.co/MIXXDoGWZq pic.twitter.com/zdI0vtiaiG
— Pamela Geller (@PamelaGeller) January 30, 2019
अब हम आपको ईशनिंदा क़ानून के उस पहलू से परिचित कराने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान के पिछड़ेपन का भी कारण बनता जा रहा है। इसकी पूरी प्रक्रिया को यूँ समझिए। मुस्लिम समाज में तीन तलाक़, बालविवाह, धर्मान्तरण से लेकर कई सामाजिक कुरीतियाँ हैं। पाकिस्तान की सेना आतंकियों के साथ मिल कर कई साज़िशें रचती रहती है। हर समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो गलत के ख़िलाफ़ आवाज उठाते हैं। समाज में ऐसे भी जागरूक व्यक्ति होते हैं जो अपनी सेना या सरकार को गलत रास्ते पर चलते देख उन्हें सचेत करते हैं। ये कार्य सामाजिक आंदोलन चला कर किए जाते हैं, डिजिटल मीडिया द्वारा ब्लॉग लिख कर किए जाते हैं या न्यूज़ चैनलों पर अपनी राय रख कर भी किए जा सकते हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि पाकिस्तान में ऐसे समाजसेवियों या जागरूक व्यक्तियों के साथ क्या किया जाता है? उन पर ईशनिंदा का क़ानून थोप कर उन्हें ही समाज से अलग-थलग कर दिया जाता है। अमेरिका की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र करते हुए कहा गया है कि ऐसे व्यक्तियों के पास पाकिस्तान छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचता, भले ही वे अदालत से निर्दोष ही क्यों न साबित हो गए हों।
अगर आपको इस बारे में कोई भी शक हो तो एक उदाहरण लेते हैं, जिसके बाद आपको पूरा माजरा समझ में आ जाएगा। जुनैद हफ़ीज़ पाकिस्तान के एक प्रोफेसर हैं। मुल्तान स्थित बहाउद्दीन जकारिया यूनिवर्सिटी में महिलाधिकारों को लेकर एक सम्मलेन आयोजित करने की सजा उन्हें ईशनिंदा क़ानून का आरोपित बनाकर दी गई। इसका अर्थ यह हुआ कि पाकिस्तान के शैक्षणिक संस्थान भी इस से अछूते नहीं हैं। आधुनिक विचारों व प्रगतिशील कार्यों के लिए वहाँ कोई जगह नहीं है। जुनैद हाफिज के वकील राशिद रहमान को उनके दफ़्तर में ही मार दिया गया। जब पाकिस्तान में मानवाधिकार की बात करने वाले मुस्लिमों व सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पर भी ईशनिंदा क़ानून थोप दिया जाता है तो अल्पसंख्यकों की हालत आप समझ ही सकते हैं। इसी तरह छात्र समाजिक कार्यकर्ता मशाल ख़ान को दिन-दहाड़े मार डाला गया। उन्हें मारने वाले कोई आतंकी नहीं थे बल्कि छात्रों व यूनिवर्सिटी प्रशासन की भीड़ थी।
“There were about a dozen reported cases of blasphemy between 1927 and 1986, but there have been more than 4,000 since then, when the laws were reinforced.”
— Abid Hussain (@abidhussayn) November 3, 2018
आशिया बीबी मामले के बारे में आपको पता ही होगा। आठ वर्षों तक झूठे ईशनिंदा के आरोप में जेल में बंद अपनी रिहाई का इन्तजार कर रही इसे महिला आशिया को पाकिस्तानी अदालत ने फाँसी की सज़ा सुनाई थी। आम झगड़े का मामला ईशनिंदा बन गया और उनकी ज़िंदगी का लगभग एक दशक बर्बाद हो गया, प्रताड़ना झेलनी पड़ी सो अलग। उनकी तरफ से बोलने पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज़ भाटी और पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की ह्त्या कर दी गई। ईशनिंदा क़ानून का कुचक्र इतना व्यापक है कि पाकिस्तान सरकार के मंत्री और राज्यपाल तक को नहीं छोड़ा गया। शाहबाज़ भाटी पाकिस्तान के तत्कालीन मंत्रिमंडल में एकमात्र ईसाई सदस्य थे। वे पाकिस्तान के पहले अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे। जब बड़े-बड़े पदों पर बैठे नेताओं तक की हालत यह है तो आम ईसाईयों की व्यथा समझी जा सकती है।
Eighth anniversary of Shahbaz Bhatti assassination, Christian minister who died raising voice for #AsiaBibi and her family. He remains one of the many victims of Pakistan’s #blasphemy laws. Pakistani government is yet to bring to justice Bhatti’s killers. pic.twitter.com/dufcy48YhA
— Naila Inayat नायला इनायत (@nailainayat) March 2, 2019
बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान में अधिकतर ईसाई वही लोग हैं जिन्हे ब्रिटिश राज के दौरान धर्मान्तरित किया गया था। उस दौरान ग़रीब हिन्दुओं को ईसाई बनाना आसान हुआ करता था। जाती प्रथा की आड़ में अपनी सरकार के बैनर तले मिशनरीज ने निर्धन हिन्दुओं को ईसाई बनाया। लेकिन, तब भी उनकी सामाजिक हालत वही रहीव् आज भी पाकिस्तान स्थित पंजाब में अधिकतर ईसाई ग़रीब हैं और मज़दूरी कर के अपना घर-परिवार चलाते हैं। ब्रिटिश राज के समय गोवा से कराँची आकर बेस ईसाई ज़रूर अमीर है लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है। पाकिस्तान के सेंट्रल पंजाब स्थित गोजरा शहर में कई ईसाईयों के घर जला डाले गए। 50 के आसपास घरों में आग लगा दी गई जिनमे महिलाएँ व बच्चे मारे गए थे। पुलिस भी आतताइयों का ही साथ देती है।
Also note that when 25 convicts in #MashalKhan case who were given 3yr jail terms applied for suspension of their sentences and for them to be released on bail the prosecution which works under KP Govt did not object to same. Mashal’s family didn’t have notice of his hearing pic.twitter.com/DFmE9qHr4F
— M. Jibran Nasir (@MJibranNasir) March 14, 2019
ख़ुद पाकिस्तान के तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज़ भाटी ने कहा था कि उन्होंने घटना के कुछ दिन पहले ही गोजरा शहर पहुँच कर स्थानीय प्रशासन से ईसाईयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था। साथ ही उन्होंने स्थानीय पुलिस पर हत्यारों का साथ देने का भी आरोप लगाया। इन घटनाओं का सीधा अर्थ यह निकलता है कि आप पाकिस्तान में चाहे जहाँ भी रहें, अगर आप अल्पसंख्यक हैं तो आपको इस्लामिक कट्टरपंथियों का कोपभाजन बनना पड़ेगा। इसी तरह 2005 में फैसलाबाद में ईसाई विद्यालयों व चर्चों को जला दिया गया था। ईसाई पाकिस्तान में न चर्च में सुरक्षित हैं और न घर में। उनके बच्चे स्कूलों में भी सुरक्षित नहीं हैं। एक ईसाई चैरिटी के 6 कार्यकर्ताओं को उनके दफ़्तर में ही मार डाला गया।