- 2 सितंबर 2015
- 5 दिसंबर 2016
- 9 जून 2024
3204 दिन। लगभग 9 साल। सीरिया, म्यांमार और भारत। यह कोई कविता नहीं है। ‘लिबरल’ मीडिया का घिनौना सच है। इस सच से जुड़ी है भारतीय राजनीति। घेरते हैं मोदी को, फँस जाते हैं खुद। मुस्लिम और मोदी करते-करते इंसानियत बेच देते हैं।
2 सितंबर 2015 को क्या हुआ था? 2 साल का एलन कुर्दी मर गया था। लेकिन मरते तो हर दिन सैकड़ों-हजारों बच्चे हैं। फिर एलन कुर्दी में ऐसा क्या था? क्यों उसका नाम-फोटो गूगल से लेकर सोशल मीडिया और मीडिया में छा गया? छा गया क्योंकि उसे छपवाया गया। छपवाने के पीछे सोची-समझी साजिश थी। इस्लामी-लिबरल साजिश।
सवाल यह है कि 2 साल के बच्चे की लाश से साजिश क्यों? करने वाले कौन लोग? फायदा किसे? एलन कुर्दी इस्लामी मुल्क सीरिया में पैदा हुआ। मुस्लिम परिवार का बच्चा था। उसके माँ-बाप को सीरिया छोड़ कर तुर्की भागना पड़ा। कारण – इस्लामी आतंकी। तुर्की क्या है? इस्लामी मुल्क है। लेकिन क्या मुस्लिम एलन कुर्दी और उसके परिवार को इस्लामी मुल्क तुर्की में जीने-खाने-फलने-फूलने की जगह मिली? नहीं। फिर क्या? तुर्की से भाग कर यूरोप में घुसने का प्लान। और इसी घुसने के प्रयास में मर गया 2 साल का एलन कुर्दी।
देश, समय, काल, पीड़ित, विलेन – सब कुछ इस्लाम से जुड़ा हुआ तो दोष किस पर मढ़ा जाए? साजिश इसी के लिए रची गई। एलन कुर्दी की लाश को ‘हीरो’ बनाया गया। गोरे यूरोपियन पर ‘शरणार्थी’ जैसे शब्दों से वार किया गया। तथाकथित लिबरल मीडिया ने 2 साल के बच्चे की लाश पर राजनीति की। यूरोप के नेता, लोग, इंस्टिट्यूशन सबको आत्मग्लानि वाले भाव से जोड़ा गया… वो जुड़ भी गए। साजिश सफल हुई। इस्लामी आतंक शब्द पीछे छूट गया। मुस्लिम शरणार्थियों से यूरोप की डेमोग्राफी बदलने लगी। महीने, 2-4 महीने पर लगभग हर यूरोपियन देश में इसके नतीजे समाचारों के रूप में देखने को हमें मिल ही जाती हैं।
सीरिया से भारत की हवाई दूरी लगभग 4200 किलोमीटर है। भाई-भतीजे वाला कोई संबंध भी नहीं है। फिर क्या वजह है कि 2 सितंबर 2015 की घटना को भारतीय राजनीति और ‘लिबरल’ मीडिया के घिनौने सच से मैंने जोड़ दिया? वजह है आरफा खानम शेरवानी नाम की एक औरत, जो खुद को पत्रकार कहती है, कुछ लोग मानते भी हैं।
3 सितंबर 2015 (मतलब 2 सितंबर के ठीक एक दिन बाद ही) को आरफा खानम शेरवानी का दिल रोता है 2 साल के एलन कुर्दी के लिए। वो एलन कुर्दी जो आरफा से 4200 किलोमीटर दूर पैदा हुआ। मरा और भी दूर। किसी तरह का सगा-संबंधी भी नहीं। Muslim Brotherhood वाली थ्योरी के अलावे कोई कनेक्शन नहीं। लेकिन सोशल मीडिया पर रोया ऐसा कि दुनिया खत्म होने वाली है, इंसानियत मर गई है।
अब 5 दिसंबर 2016 की बात। आरफा खानम शेरवानी एक ट्वीट करती है। फोटो एक मरे हुए बच्चे की होती है। फिर से वही लॉजिक। हर दिन इतने सारे मरते बच्चों के बीच में यही बच्चा क्यों? क्योंकि यह बच्चा होता है रोहिंग्या। रोहिंग्या मतलब म्यांमार के लोग। रोहिंग्या मतलब मुस्लिम।
मुस्लिम रोहिंग्या लोगों को उसके पड़ोसी मुस्लिम देश बांग्लादेश रखने को तैयार नहीं। गोली मारता है म्यांमार का सिपाही। दिल रोता है लेकिन आरफा का। शब्द गढ़े जाते हैं एलन कुर्दी के नाम पर। इसके पीछे की साजिश भी वही – रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए हर देश अपने दरवाजे खोल दे, शरणार्थी के नाम पर अपने-अपने जगह की डेमोग्राफी को छिन्न-भिन्न होने दे।
Muslim Brotherhood वाली थ्योरी के लिए 2 उदाहरण ऊपर हैं। लेकिन क्या यही Muslim Brotherhood की थ्योरी एक कदम आगे चल कर ‘इंसानी ब्रदरहुड’ तक पहुँच पाती है? देखते हैं एक और उदाहरण से।
टीटू मार दिया जाता है। 9 जून 2024 को। रियासी आतंकी हमले में। मारने वाले इस्लामी आतंकी। टीटू भी सिर्फ 2 साल का था, एलन कुर्दी की तरह। आरफा खानम शेरवानी क्या करती है? वो एक ट्वीट करती है। भारतीय राजनीति पर। वो पूछती है कि 293 सांसदों और 72 मंत्रियों में एक भी मुस्लिम क्यों नहीं? पढ़ने के बाद क्या यह ट्वीट 2 साल के बच्चे टीटू के लिए लिखा गया प्रतीत होता है? अगर नहीं, तो क्यों? क्योंकि टीटू के माता-पिता का नाम ममता और राजेंद्र था… इसलिए आरफा के की-बोर्ड से शब्द नहीं गढ़े गए।
293 MPs, 72 Ministers. Zero Muslims
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) June 9, 2024
Zero.
This is how the largest democracy of the world excludes its Muslims, by design.
2 साल का टीटू भारत में पैदा हुआ, भारतीय बच्चा था। वही देश, जो आरफा का भी है। वही देश, जिसमें पा रही सैलरी-कमाई से आरफा का घर चलता है। लेकिन आरफा की इंसानियत जागी किसके लिए – सीरियन एलन कुर्दी और रोहिंग्या मुस्लिम बच्चे के लिए। टीटू का हिंदू होना और उसका इस्लामी आतंकियों की गोली से मारा जाना, आरफा की इंसानियत को झकझोर नहीं पाया।
Muslim Brotherhood वाली थ्योरी पर धब्बा लग जाता, अगर आरफा टीटू के लिए रोती तो। क्योंकि हत्या इस्लामी आतंकियों ने की है। इसलिए लोकतंत्र, संसद, सांसदों/मंत्रियों की संख्या पर ट्वीट किया गया। टीटू की हत्या हुए 2 दिन हो चुके हैं। आरफा के सोशल मीडिया अकाउंट पर इसको लेकर चुप्पी है। और यह चुप्पी ही साजिश है।
आरफा अगर पत्रकार है, इसका मतलब 10वीं-12वीं और कम से कम स्नातक तो किया ही होगा। मतलब कम से कम 15 साल की पढ़ाई-लिखाई। उसके बाद भारत के संदर्भ में यह सवाल बेतुका है कि कितने सांसद/मंत्री मुस्लिम? इस सवाल में जरूर दम होता; अगर यह सवाल सीरिया, तुर्की, म्यांमार या बांग्लादेश से किया जाता। जिस भारत देश के 2 साल के बच्चे टीटू की हत्या पर इस्लामी मानसिकता की शिकार, Muslim Brotherhood के आइने से हर चीज को देखने वाली आरफा की इंसानियत नहीं जागी, उसे कोई हक नहीं कि वो भारत के संदर्भ में कोई भी सवाल पूछे… फिर भले ही आप पत्रकार हों या पागलखाने में चाँद-सितारे गिन इस्लाम का झंडा बुलंद करने का ख्वाब देखने वाली बुढ़िया!
PS: जहाँ-जहाँ इस्लामी देश लिखा है, उसकी डेमोग्राफी को लेकर लिखा गया है। मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं कि उस देश के संविधान ने देश को इस्लामी करार दिया है या लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष या ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ टाइप कुछ शब्द गढ़ा है। जेनरल नॉलेज और करेंट अफेयर्स की किताबों/अखबारों से यह ज्ञान मेरे लिए काफी है कि 80-90% मुस्लिम आबादी वाले इस्लामी देशों में आम जनता (खास कर अल्पसंख्यकों) की क्या स्थिति है।