Sunday, December 22, 2024
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‘एक दिन में मात्र 86 लाख लोगों को वैक्सीन, बेहद खराब!’: रवीश कुमार के लिए पानी पर चलने वाले कुत्ते की कहानी

भारत में पोलियो के विरुद्ध टीकाकरण 1985 में शुरू हुआ था। रवीश कुमार इसके 27 वर्ष बाद बने रिकॉर्ड की बात कर रहे हैं। जनवरी 2020 में भारत में कोरोना का पहला मामला केरल में आया था। मात्र 1 साल बाद भारत ने टीकाकरण शुरू कर दिया। विदेश से लाकर नहीं, स्वदेश में बना कर।

भारत में कोरोना का टीकाकरण पूरी रफ़्तार के साथ चल रहा है और जब से केंद्र सरकार ने राज्यों के हाथ से जिम्मेदारी ली है, तब से निर्बाध रूप से कार्य हो रहा है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के दिन सोमवार (जून 21, 2021) को कोरोना टीकाकरण का 157वाँ दिन था और इस दिन 86,16,373 लोगों को कोरोना वैक्सीन दी गई। वैक्सीनेशन का अभी जो चरण चल रहा है, इसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जून को की थी।

जहाँ मई 2021 में 7.9 करोड़ कोरोना वैक्सीन पूरे देश के लिए उपलब्ध था, जून में ये आँकड़ा 11 करोड़ हो गया है। राज्यों को पहले ही बता दिया गया था कि उन्हें कितनी वैक्सीन दी जानी है, जिससे उन्हें तैयारी करने में आसानी हुई। कल 15.42 लाख वैक्सीन डोज देने के साथ मध्य प्रदेश अव्वल रहा। कर्नाटक में 10.67 लाख और गुजरात में 5.02 लाख लोगों का 1 दिन में मुफ्त टीकाकरण हुआ

गौर करने वाली बात ये है कि इन तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। हालाँकि, रवीश कुमार ने 1 दिन में करीब 86 लाख लोगों के वैक्सीनेशन में भी नकारात्मकता खोज ली। रवीश कुमार ने इसकी तुलना फरवरी 2012 के एक दिन से की, जब 5 वर्ष से कम उम्र के 17 करोड़ बच्चों को एक दिन में पोलियो की वैक्सीन दी गई थी। इस अभियान को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने लॉन्च किया था।

दिल्ली मेट्रो से लेकर हर जगह विज्ञापन दिए गए थे। टीवी-रेडियो पर विभिन्न सेलेब्स के जरिए पोलियो टीकाकरण अभियान को लेकर पहले से ही विज्ञापनों का दौर चालू था। उस समय तक भारत सरकार पाल्स पोलियो कार्यक्रम और 12,000 करोड़ रुपए खर्च किए थे। खास बात ये है कि जनवरी 2011 के बाद से ही भारत में पोलियो का कोई केस नहीं आया था, जिसके एक साल बाद ये 17 करोड़ वाला रिकॉर्ड बना।

रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “दस साल बाद गोदी मीडिया के प्रोपेगंडा और करोड़ों रुपए के विज्ञापन के सहारे सरकार पूरा ज़ोर लगाती है और एक दिन में 86 लाख टीके ही लगा पाती है। हो सकता है यह संख्या कुछ और बढ़ कर एक करोड़ तक पहुँच जाए, तो भी यह संख्या कितनी मामूली है। पोलियो अभियान की आलोचना करने वाले इसके चरण की धूल भी नहीं छू सके। वो भी तब जब छह महीने से ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है।”

रवीश कुमार ने न सिर्फ इस अभियान को फ्लॉप बता दिया, बल्कि ये भी कहा कि भारत जैसे देश में एक दिन में टीकाकरण का ये बेहद ही खराब आँकड़ा है। साथ ही उन्होंने इस बात से भी आपत्ति जताई कि टीकाकरण के मामले में न्यूजीलैंड से तुलना हो रही है। न्यूजीलैंड से तुलना सरकार के समर्थक नहीं, जून 2020 में सबसे पहले रवीश कुमार ने ही की थी। अब जब उसकी जनसंख्या से डेढ़ गुना ज्यादा लोगों को 1 दिन में भारत में टीका लगा, तो बताने में क्या बुराई है?

कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर रवीश कुमार का प्रोपेगंडा

2 मई को 5 चुनावी राज्यों के नतीजे न कवर करने की बात कह कर भी अपने चैनल पर सुबह से चुनाव परिणाम चलाने वाले रवीश कुमार को तथ्यों से जवाब पाने से पहले ईसाई प्रचारक रॉबर्ट जॉनसन की एक कहानी सुननी चाहिए। चूँकि कहानी ईसाई प्रचारक की है, ‘मैग्सेसे अवॉर्ड’ विजेता को ये पसंद आएगी। संक्षेप में कहानी कुछ यूँ है कि एक दिन एक व्यक्ति अपने कुत्ते को लेकर शिकार पर गया। वहाँ झील के किनारे उसने चिड़ियों का शिकार शुरू किया। उसने जब एक चिड़िया को मार गिराया तो वो झील में गिर गई।

उसका कुत्ता दौड़ कर गया और झील से चिड़िया को उठा कर ले आया। जहाँ भी चिड़िया गिरती, कुत्ता झील में पानी पर चलते हुए जाता और उसे उठा लाता। दूसरे दिन वो व्यक्ति कुत्ते को लेकर फिर शिकार पर गया, लेकिन इस बार अपने पड़ोसी को भी साथ ले गया। उस दिन भी कुत्ते ने वही करामात दिखाई। जितनी भी चिड़िया गोली लगने के बाद गिरती, वो पालतू कुत्ता आराम से झील में पानी पर चलते हुए जाता और उसे उठा लाता।

शिकार ख़त्म होने के बाद जब सब लौटने लगे तो उस व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से पूछा, “क्या तुम्हें मेरे कुत्ते में कुछ खास लगा?” पड़ोसी ने कुछ देर सोचने के बाद बड़े गंभीर ढंग से जवाब दिया, “हाँ, तुम्हारे कुत्ते को तो तैरना ही नहीं आता है।” यही हाल रवीश कुमार का है। अगर कोई पानी पर चलने की कला में सिद्धहस्त हो जाए, तो रवीश उसकी आलोचना करने के लिए ये कहेंगे कि उसे तैरना ही नहीं आता है।

अब जरा तथ्यों पर आते हैं। भारत में पोलियो के विरुद्ध टीकाकरण 1985 में शुरू हुआ था। रवीश कुमार इसके 27 वर्ष बाद बने रिकॉर्ड की बात कर रहे हैं। 1999 तक 60% नवजात शिशुओं को पोलियो अभियान के अंतर्गत लाया जा सका था, 14 वर्षों में। इस अभियान में WHO, रोटरी इंटरनेशनल, UNISEF और अमेरिका के डिजीज कंट्रोल विभाग सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत के साथ मिल कर काम किया था।

एक और बात, रवीश कुमार किस तरह भ्रम फैला रहे हैं इसे देखिए। जनवरी 2021 में मोदी सरकार ने ‘पोलियो रविवार’ मनाया था और इस दौरान 3 दिन में 11 करोड़ बच्चों को पोलियो की वैक्सीन दी गई थी। ‘पोलियो रविवार’ के दिन 9.1 करोड़ बच्चों को वैक्सीन लगी। ये इस दशक का पहला ही पोलियो अभियान था। 7 लाख बूथ पर वैक्सीनेशन हुआ। कोरोना के बीच इस तरह का अभियान एक बहुत बड़ी सफलता है।

क्या आपने रवीश कुमार को मोदी सरकार की पीठ थपथपाते हुए सुना कि उसने एक दिन में 9.1 करोड़ बच्चों को पोलियो की वैक्सीन लगा दी? नहीं। भारत ने बहुत कम समय में कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ तैयारी की, खुद की टेस्टिंग व्यवस्था विकसित की, दुनिया भर को वैक्सीन दी और अपने देश 28 करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण कर दिया। क्या इसे रवीश कुमार उपलब्धि नहीं मानते?

जहाँ तक पोलियो की बात है, 1950 में ही पोलिश वायरोलॉजिस्ट हिलेरी कोप्रोव्स्की ने पहली पोलियो वैक्सीन का सफल प्रयोग किया था। अमेरिका में इसे अनुमति नहीं मिली, लेकिन कई देशों ने इसका प्रयोग किया। अमेरिका के मेडिकल रिसर्चर जॉन साल्क 1955 और पोलिश-अमेरिकन मेडिकल रिसर्चर जॉन सेबिन 1961 में वैक्सीन लेकर आए। भारत में पोलियो के खिलाफ टीकाकरण 1985 में शुरू हुआ, जॉन सेबिन की वैक्सीन के भी 24 वर्ष बाद।

कोरोना की वैक्सीन आने 24 महीने भी नहीं लगे। कोरोना वायरस के खिलाफ भारत में पहली वैक्सीन जनवरी 2021 में ही एक स्वास्थ्यकर्मी को लगी। जनवरी 2020 में भारत में कोरोना का पहला मामला केरल में आया था। इस तरह रवीश कुमार ने ये छिपा लिया कि पोलियो की वैक्सीन आने के 6 दशक बाद जो रिकॉर्ड बना और कोरोना वैक्सीन आने के 6 महीने बाद जो रिकॉर्ड बना, उसमें अंतर है। दूसरी बात, एक दिन में 9.1 करोड़ पोलियो वैक्सीन मोदी सरकार ने भी लगा दी।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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