अखबार के नाम पर ट्रोल खबरें चलाने वाला द टेलीग्राफ इस समय बेहद भयभीत है। कारण लक्षद्वीप के पेड़ों के तने पर हुई रंगाई है।
हिंदी में कहावत है, पीलिया के मरीज को सब पीला दिखता है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति चीजों को वैसे ही देखता है जैसे उसके दिमाग ने पहले से सोचा हुआ है।
यही कारण है कि जब लक्षद्वीप प्रशासन ने पेड़ों को सफेद और लाल से रंगवाया तो टेलीग्राफ उसमें अपने मन से ‘भगवा’ रंग देखकर रोने लगा। टेलीग्राफ ने मुस्लिम बहुल इलाके में इसे ‘संघ परिवार’ का ‘एजेंडा’ करार दिया और सोचा कि ये भयानक हरकत तो एक द्वीप को ‘दूसरा कश्मीर’ बना देगी।
कॉन्ग्रेस नेता थाहा मल्लिका (Thaha Mallika) ने द टेलीग्राफ को बताया कि पूरे भारत में बहुत सारे पेड़ ऐसे लाल रंग में रंगे हुए हैं, लेकिन यह ‘रंग के चुनाव’ (जो वास्तव में ईंट जैसा लाल रंग है और मल्लिका को उसमें भगवा दिखता है।) का एक ‘उद्देश्य’ है कि इससे वह इस द्वीप की आबादी को भड़काएँ।
कॉन्ग्रेस नेता के अनुसार सामान्य परिस्थतियों में पेड़ का रंग मायने नहीं रखता, लेकिन ‘पटेल के एजेंडे’ के कारण लोग रंग के चुनाव से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह केसरिया रंग से पेड़ों को रंग देना बिलकुल गलत है वो भी तब जब कोविड के कारण लोग घरों में बैठे हुए थे।
हकीकत में द टेलीग्राफ में यह घटिया लेख केरल विधानसभा में लक्षद्वीप प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा को वापस बुलाने के लिए पारित किए गए प्रस्ताव के बाद सामने आया है। जिसे विपक्ष ने समर्थन दिया। इनकी समस्या ये है कि संघ परिवार लक्षद्वीप के उन लोगों पर अपने एजेंडा थोपने का प्रयास कर रही है जो महात्मा गाँधी की प्रतिमा भी नहीं लगने देना चाहते थे वो भी अनकहे शरीयत कानून के कारण। समझ रहे हैं आप, एक बुत किसी की धार्मिक भावनाएँ आहत कर सकता है!
पिनराई विजयन इस मामले में पहले हैं जिन्होंने लाल को केसरिया बताने की गलती की और बताया कि अब नारियल के पेड़ भी केसरिया रंग से रंगे जा रहे हैं। विजयन का इस तरह अपनी पार्टी के रंग को न पहचान पाना हास्यास्पद होता अगर भगवा पर निशाना साधने का अर्थ हिंदुओं से घृणा नहीं होती। आज निश्चित तौर पर भगवाकरण सभी हिंदुओं के लिए एक व्यंजना है।
अब पहली बात तो यही है कि पेड़ों का रंग केसरिया नहीं बल्कि लाल और सफेद है।
ऊपर देखें तो पता चलेगा कि दाएँ वाला केसरिया है और बाएँ वाला केसरिया नहीं है। तो दूसरी बात ये कि आखिर कौन सी आबादी इन रंगों को देख नाराज होगी। क्या ये बयान ये नहीं बताता कि वहाँ के लोग कितने सहिष्णु हैं कि वो एक रंग मात्र से भड़क जाते हैं।
तीसरा, सबसे महत्तवपूर्ण, फुटपाथ के पेड़ों पर इस तरह लाल और सफेद रंग से रंगाई दशकों से होती आ रही है। इसे निगम जैसे प्रशासनों द्वारा किया जाता है। पेड़ के तने को सिनोपिया (गेरू) और चूने की मदद से रंगा जाता है।
इसका सबसे महत्तवपूर्ण कारण होता है कि पेड़ को कीड़े-मकौड़ों से बचाया जा सके। उन पर रंग का कोट होता है ताकि फंगस न लगे। वहीं सफेद रंग एक रिफ्लेक्टर के तौर पर मेन रोड और हाईवे पर काम करता है। कई बार फफूंद नाशकों (फंगीसाइड्स) और कीटनाशकों (इंसेक्टीसाइड्स) को फफूंद जनित रोगों (फंगल डिसीज) से बचाने के लिए पेंट के साथ मिलाया जाता है।
इसलिए, इस मसले पर टेलीग्राफ हो सकता है आज जागा हो, लेकिन लोगों ने सालों से फुटपाथ के पेड़ों को ऐसे रंगों में देखा है। कई बार इन्हें इसलिए भी रंगा जाता है कि लोगों को पता चले कि रंगे हुए पेड़ संरक्षित हैं और उन्हें बिना सक्षम प्राधिकारी को सूचना दिए काटा नहीं जा सकता।