Saturday, November 23, 2024
Homeविचारमीडिया हलचलविनोद दुआ को कैसे याद करूँ... पाखंड हुआ नहीं जाता और गोधरा में जलाए...

विनोद दुआ को कैसे याद करूँ… पाखंड हुआ नहीं जाता और गोधरा में जलाए गए रामभक्त भी याद आ रहे

हम जैसे लोग जिन्होंने विनोद दुआ को दूरदर्शन पर देख उनके साथ खुद को जोड़ा था, आज इस उलझन में हैं कि उन्हें याद कैसे करें। क्योंकि हम मरने के बाद भी उस शख्स के साथ कोई पाखंड नहीं करना चाहते जिसकी पूरी जिंदगी ही पाखंड रही हो।

2021 के 4 दिसंबर को विनोद दुआ चले गए। दुनिया छोड़कर। यह सत्य है। पिछली बार की तरह कोई अफवाह नहीं कि ऑपइंडिया को उनकी मौत का फैक्टचेक करना पड़े।

बेटी मल्लिका दुआ ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर भी बताया है कि अब उनके पिता नहीं रहे। उन्होंने लिखा है, “अब उनके माता-पिता स्वर्ग में साथ-साथ घूमेंगे, भोजन पकाएँगे और संगीत का आनंद लेंगे।” उनके निधन को लेकर सोशल मीडिया में भी संदेशों का ताँता लगा है।

मुझे पता नहीं विनोद दुआ ‘स्वर्ग’ जैसी किसी अवधारणा में यकीन रखते थे भी या नहीं। लेकिन यह तो तय है कि हर किसी की अपनी ​शख्सियत होती है। वे अपने जीवन कर्म से तय करते हैं कि उन्हें कैसे याद किया जाए। इस लिहाज से भी विनोद दुआ ने अगस्त 2018 की एक तारीख को खुद एक ऐसी लाइन खींच दी थी कि यह तय करना मुश्किल हो रहा कि उन्हें कैसे याद किया जाए। उन्होंने कहा था, “हमारे यहाँ एक बहुत बड़ा पाखंड होता है, दिखावा होता है कि जो दिवंगत हो जाए, जो इस दुनिया में न रहे, जिसका देहांत हो जाए, उसको अचानक से महापुरुष बना दिया जाता है। फिर जिस तरह से श्रद्धांजलियाँ दी जाती है, ये समझा जाता है कि दिस इज पॉलिटिकली करेक्ट टू प्रेज अ पर्सन आफ्टर ही इज गोन।”

अब इसे पाखंड कहूँ या विडंबना दुआ को भी इस तरह की श्रद्धांजलि खूब पड़ रही। दुखद यह है कि उनकी इस ‘ईमानदारी’ का सम्मान उनके लिबरल-सेकुलर मित्र भी नहीं कर रहे। पर मैंने तय किया कि विनोद दुआ की ‘ईमानदारी’ का सम्मान किया जाए।

यही कारण है कि डेरा इस्माइल खान से आया एक बच्चा जिसका बचपन दिल्ली की शरणार्थी कॉलोनी में गुजरा, जो एक सामान्य बैंककर्मी का बेटा था, जिसका कथित तौर पर शुरुआती दिनों में कोई गॉडफादर नहीं था, जो इस देश में टीवी पर आकर समाचार बाँचने वाले शुरुआती लोगों में था, जो स्वीकार करता था कि गर्वनमेंट स्कूल में पढ़े होने के कारण उसकी अंग्रेजी में प्रवाह नहीं है… मैं उसे एक सेल्फ मेड इंसान के तौर पर याद नहीं कर पाता। क्योंकि फिर मुझे उतनी ही ईमानदारी से फिल्मकार निष्ठा जैन के आरोप याद आ जाते हैं। जिन्होंने दुआ पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। जिन्होंने लिखा था, “…विनोद दुआ के चेहरे से ऐसा लगा कि वे मुझे देखकर लार टपका रहे हैं।”

मुझे वह विनोद दुआ याद आने लगते हैं जिन पर मीटू कैंपेन के दौरान लगे आरोप की जाँच के लिए द वायर ने जो कमिटी बनाई थी, उसके सामने वह आरोप लगाने वाली फिल्मकार का सामना करने से इनकार कर देते हैं। आखिर में वायर कमिटी ही भंग कर देती है। मुझे विनोद दुआ ऐसे बुजदिल, भगोड़े लगने लगते हैं जो अपनी जिंदगी के कुछ पन्नों को छिपा लेना चाहते हों।

मुझे वो विनोद दुआ भी झूठे लगने लगते हैं जो विभाजन की बर्बरता को यह बताकर खारिज करते रहे कि हमने ऐसी कोई प्रताड़ना नहीं देखी, क्योंकि डेरा इस्माइल खान में भी मेरा परिवार समृद्ध नहीं था। ऐसा लगने लगता है कि दुआ जीवनभर एजेंडे के तहत इसे दुहराते रहे ताकि इस्लामी कट्टरपंथियों की बर्बरता छिपी रहे। वह बर्बरता जिसके कारण कई बेटियों ने कुएँ में कूद अपनी लाज बचाई थी। न जाने कितनों का बलात्कार हुआ। कितने काट डाले गए। कितने धर्मांतरण को मजबूर किए गए… ऐसा लगने लगता है कि बर्बरता को समृद्धि से जोड़ दुआ पूरी जिंदगी इन जख्मों का मजाक बनाते रहे।

जब मैं उन्हें ‘वरिष्ठ पत्रकार’ के तौर पर याद करने की कोशिश करने लगता हूँ तो मुझे वे तमाम एकतरफा टिप्पणियॉं याद आने लगती हैं जो उन्होंने स्टूडियो में बैठकर किए। मुझे गोधरा में ट्रेन में जलाकर मार डाले गए राम भक्तों के प्रति उनका उपहास याद आने लगता है। समझ नहीं आता कि वो कैसा ‘वरिष्ठ पत्रकार’ रहा होगा जिसे मौत तभी रुलाती थी, जब वह ऐसे लोगों की हो जिन्हें जमीन में दफन होना है। उसे जलाकर मारे गए राम भक्तों की मुखाग्नि याद नहीं रहती।

निजी जीवन में विनोद दुआ कैसे थे, यह उन्हें करीब से जानने वाले ही बता सकते हैं। वे पिता कैसे थे, यह बताना मल्लिका का एकाधिकार है। वे सहयोगी कैसे थे, यह उनके साथ काम करने वाले ही बता सकते हैं। लेकिन, हम जैसे लोग जिन्होंने विनोद दुआ को दूरदर्शन पर देख उनके साथ खुद को जोड़ा था, आज इस उलझन में हैं कि उन्हें याद कैसे करें। क्योंकि हम मरने के बाद भी उस शख्स के साथ कोई पाखंड नहीं करना चाहते जिसकी पूरी जिंदगी ही पाखंड रही हो।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के ने की मंदिर में शादी, अब्बू ने ‘दामाद’ पर ही करवा दी रेप की FIR: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने...

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक हिन्दू युवक को मुस्लिम लड़की से शादी करने के आधार पर जमानत दे दी। लड़के पर इसी लड़की के अपहरण और रेप का मामला दर्ज है।

कॉन्ग्रेस प्रवक्ता ने दिखानी चाही PM और गौतम अडानी की तस्वीर, दिखा दी अडानी और रॉबर्ट वाड्रा की फोटो: पैनलिस्ट ने कहा, ये ‘जीजा...

शो में शामिल OnlyFact India के संस्थापक विजय पटेल ने मजाक में कहा, "यह फोटो मोदी जी के साथ नहीं, जीजा जी (राहुल गाँधी के बहनोई) के साथ है।"
- विज्ञापन -