जो इंडिया टुडे आज ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के नाम पर लगातार झूठ फैला रहा है और जेएनयू के वामपंथी छात्रों के बचाव के लिए सारे पैंतरे आजमा रहा है, उसी ‘इंडिया टुडे’ ने आज से लगभग 40 साल पहले जेएनयू को ब्लैक होल करार दिया था। पत्रिका ने सम्भावना जताई थी कि अगर स्थितियाँ नहीं बदलीं तो ये ब्लैक होल बन जाएगा। पत्रिका ने लिखा था कि 12 वर्षों में 100 करोड़ रुपए डकारने के बावजूद जेएनयू अकादमिक कुचक्र, वैचारिक कलह और छात्रों की अराजकता का गढ़ बन गया है। दरअसल, नवंबर 1980 में जेएनयू के छात्र राजन जी जेम्स ने तत्कालीन कार्यकारी कुलपति को अपशब्द कहे थे, जिसके बाद उसे निष्काषित कर दिया। इसके बाद ही सारा बवाल शुरू हुआ था।
इसके बाद 46 दिनों तक यूनिवर्सिटी को बंद रखा गया। ‘इंडिया टुडे’ ने तब फरवरी 1981 के संस्करण में जेएनयू के वामपंथी नेताओं की आलोचना करते हुए लिखा था कि यूनिवर्सिटी को एक अराजक स्थान के रूप में तब्दील कर दिया गया है, जिसके लिए ख़ुद को बुद्धिजीवी मानने वाले लोग जिम्मेदार हैं। ‘इंडिया टुडे’ ने तब वामपंथियों की नारेबाजी को पतनशील और बिना सिर-पैर वाला बताया था। पत्रिका ने लिखा था कि इस अराजकता के जरिए वामपंथी यहाँ अपना पाँव जमाना चाहते हैं।
उस घटना को कवर करने जब ‘इंडिया टुडे’ का पत्रकार जेएनयू पहुँचा था, तब उसने पाया था कि यूनिवर्सिटी की दीवारें चुनावी पोस्टरों और नारों से भरी हुई थीं। तब हज़ार एकड़ में फैले जेएनयू में 2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष सिर्फ़ मेंटेनेंस के लिए दिए जाते थे। एक बात और ग़ौर करने लायक है कि इस यूनिवर्सिटी पर उन्हीं इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में ताला लगाया गया था, जो कभी इसकी चांसलर हुआ करती थीं। इस यूनिवर्सिटी को क्या नहीं मिला? वित्त व अन्य संसाधनों के साथ-साथ दुनिया में सबसे बेहतर छात्र-शिक्षक अनुपात को सुनिश्चित किया गया। प्रति 10 छात्रों पर एक शिक्षक का अनुपात उस समय कहीं भी नहीं था।
वहाँ के छात्रों द्वारा फैलाई गई अराजकता का माहौल ये था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जेएनयू के कुलाधिपति के पद से किनारा कर लिया था। ‘इंडिया टुडे’ ने तब आश्चर्य जताया था कि ये कैसी यूनिवर्सिटी है, जहाँ मात्र एक अराजक छात्र भी महीनों तक पूरे विश्वविद्यालय का कामकाज ठप्प कर के रख सकता है। उस समय एक प्रोफेसर ने ही कहा था कि जिस यूनिवर्सिटी के बारे में ये चर्चा थी कि ये भारत का हार्वर्ड बनेगा, वो यूनिवर्सिटी एक ब्लैक होल बनने की और अग्रसर है। एक प्रोफेसर का कहना था कि ये यूनिवर्सिटी जन्म से ही परिवारवाद, भ्रष्टाचार, नेतृत्वविहीनता, अराजकता और गुटबंदी से जूझ रही है।
कई विशेषज्ञों का तब मानना था कि जेएनयू के प्रोफेसरों का राजनीतिक रुझान रखना यूनिवर्सिटी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। तब भी जेएनयू छात्र संगठन की कमान वामपंथियों के पास ही थी। एसएफआई ही सभी महत्वपूर्ण पदों पर काबिज थी। एक प्रोफेसर ने कहा था कि जिस तरह से मार्क्सवादी अन्य छात्रों से लड़ते रहते हैं, उससे पता चलता है कि यहाँ किसी को भी ‘मजदूरों और सत्ता के बीच संघर्ष’ और ‘शोषण’ की परिभाषा तक नहीं पता है।
#JNU has a long history of #Left-instigated violence. Here’s what @IndiaToday magazine (not TV) reported in its Feb 15, 1981 issue on the “black hole” JNU had become. It was even closed down from Nov 1980 to Jan 1981 due to student violence. Read!! https://t.co/W7JtUhDXwh
— Minhaz Merchant (@MinhazMerchant) January 10, 2020
निष्काषित किए गए छात्र जेम्स त्रावणकोर के एक ईसाई परिवार से आते थे, जहाँ पादरियों व ननों का दबदबा था। वो केरल में ट्रेड यूनियनों पर पीएचडी कर रहे थे। ‘इंडिया टुडे’ ने उन्हें एक नासमझ बड़बोला करार दिया था, जो हमेशा उतावलेपन में रहता था। जेम्स ने कुलपति के दफ़्तर के बाहर नारेबाजी करते हुए अपशब्द कहे थे। उन्हें सस्पेंड किए जाने के अगले दिन बाद से ही धरना-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। बाद में गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के कुलपति को जाँच के लिए भेजा गया था, जिन्होंने जेम्स सहित 6 छात्रों को 2 साल तक निष्काषित करने का फ़ैसला लिया।
इसके बाद जेम्स ने कुछ लड़कियों को आगे कर के उनके साथ आमरण अनशन शुरू कर दिया। छात्राओं की तबियत ख़राब होने के बाद प्रदर्शनकारियों को वहाँ से हटाया गया। इसके लिए पुलिस को एक्शन लेना पड़ा। जहाँ आज जेएनयू के छात्रों द्वारा पीएचडी के किए अजीबोगरीब विषयों को चुनने की ख़बरें आती हैं, उस समय भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। ‘इंडिया टुडे’ ने ही स्वीकारा था कि पीएचडी छात्रों ने रिसर्च के लिए अधिकतर संदिग्ध विषय चुन रखे हैं। सभी प्रोफेसरों को उनके वेतन का मात्र 10% ख़र्च करने पर सारी सुख-सुविधाओं वाले फ्लैट्स वगैरह मिलते थे।
‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट से न सिर्फ़ ये पता चलता है कि जेएनयू हमेशा से विवादों में रहा है, बल्कि ये भी सिद्ध हो जाता है कि पठन-पाठन की जगह अराजकता यहाँ शुरू से ही हावी रही है। वही नारेबाजी, वही फालतू वाद-विवाद, नेताओं के साथ संघर्ष, प्रोफेसरों द्वारा छात्रों को बहकाना और वामपंथियों द्वारा माहौल बिगाड़ना, ये सब जेएनयू में हमेशा से रहा है। ये आश्चर्य वाली बात है कि कभी जेएनयू की सच्चाई बाहर लाने वाले और यूनिवर्सिटी को जी भर ‘गालियाँ’ देने वाले ‘इंडिया टुडे’ ने अब वामपंथियों को बचाने का ठेका ले रखा है।
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