हाल ही में सम्पन्न हुए मंगलुरु लिट फेस्ट में न्यूज़ एजेंसी ANI की संपादक स्मिता प्रकाश से पूछे गए एक सवाल के जवाब ने वहाँ उपस्थित पत्रकार बरखा दत्त को असहज कर दिया।
Someone at the @mlrlitfest #MlrLitFest #MangaluruLitFest asked a hypothetical question to @SmitaPrakash about journalists brokering ministerial berths.
— Abhinav Agarwal (@AbhinavAgarwal) December 1, 2019
cc @ARanganathan72 pic.twitter.com/vFwlIKiKgh
कार्यक्रम में मौजूद दर्शकों में से एक ने प्रभावशाली पत्रकारों और लॉबिस्टों के बीच नापाक गठजोड़ के बारे में एक सवाल पूछा, जो नीरा राडिया टेप प्रकरण की याद दिलाता है। इस टेप से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान सक्रिय पत्रकारों और लॉबिस्टों के गिरोह की साँठगाँठ सामने आई थी। दर्शकों में से एक ने स्मिता प्रकाश से पूछा,
“हम मीडिया के झुकाव और नियोक्ताओं के बारे में बात कर रहे हैं। आप एक मीडिया हाउस की बॉस हैं। यदि आपका कोई पत्रकार या रिपोर्टर लॉबिस्टों से सॉंठगॉंठ कर सरकार में कौन से मंत्रालय किसे मिले, यह तय करने लगे तो आप क्या करेंगी? क्या आप उसे नौकरी से निकाल देंगी?”
इस सवाल के जवाब में स्मिता प्रकाश ने बताया कि कैसे बतौर संपादक किसी कर्मचारी को बर्खास्त करना अब आसान नहीं रहा। साथ ही उन्होंने कहा कि उनकी संस्था में इस तरह के लोग काम नहीं करते। उन्होंने कहा, “सबसे पहले तो मैं यह बात साफ़ कर देना चाहती हूँ कि हम फिक्सिंग, लॉबिंग, पोजिशनिंग… जैसे काम नहीं करते और मुझे नहीं लगता कि जो लोग मेरे साथ काम करते हैं, उनमें से कोई भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल है।” इस दौरान बरखा दत्त भी मंच पर मौजूद थीं।
स्मिता प्रकाश ने कहा, “अब आप देख सकते हैं कि पत्रकार किताबें लिख कर बता रहे हैं कि कैसे वे भारत-पाकिस्तान के वार्ता को प्रभावित कर रहे थे। वे बता रहे हैं कि मैंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री से कहा कि आपको बस सेवा शुरू करनी चाहिए। मैंने पाकिस्तान के पूर्व जनरल से कहा कि आपको अब बातचीत शुरू करनी चाहिए। वास्तव में, अब वे खुलकर सामने में आ रहे हैं।”
उन्होंने कहा,
” जिन्हें पत्रकारिता में 40-50 साल का अनुभव प्राप्त है, उन्हें लगता है कि उन्होंने ऐसा देश की भलाई के लिए किया। लेकिन या तो आप पत्रकार होते हैं और घटना की रिपोर्ट कर रहे होते हैं या आप दलाल होते हैं, चाहे आप किस भी तरह से अपने काम को महिमामंडित करें। तथ्य यह है कि आप पत्रकार नहीं हैं, आप दलाल हैं।”
बता दें कि राडिया टेप सामने आने के बाद देश को पता चला था कि कैसे नैरेटिव सेट किया जाता है। कैसे कैबिनेट बर्थ के लिए बातचीत होती है। पत्रकारों और नेताओं के बीच का नापाक गठजोड़ कैसे काम करता है। साथ ही घोटाले को छिपाने के लिए कैसे राजनीतिक षड्यंत्र रचे जाते हैं। सब कुछ इस टेप से उजागर हो गया था।
इस मामले के जो मुख्य किरदार थे उनमें से कुछ चेहरे अचानक गायब हो गए। कुछ अन्य ने टेप के साथ छेड़छाड के आरोप लगा कर ख़ुद का बचाव किया।
2009 के आम चुनावों में कॉन्ग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। लेकिन सरकार बनाने के लिए उसे DMK के समर्थन की ज़रूरत थी। DMK ने इसके बदले कुछ खास मंत्रालय की मॉंग रखी। राडिया टेप में इस संदर्भ में लॉबिस्ट नीरा राडिया और पत्रकार बरखा दत्त के बीच हुई बातचीत दर्ज थी। इससे पता चला कि कैसे DMK के ए राजा को तब कॉन्ग्रेस ने आईटी और दूरसंचार मंत्रालय सौंपा था। बाद में ए राजा स्पेक्ट्रम को मनमाने ढंग से आवंटित करने के गंभीर आरोप लगे थे।
ऐसा पहली बार नहीं है जब बरखा दत्त को सार्वजनिक मंच पर अपना चेहरा छिपाना पड़ा। एनडीटीवी पर उनका एक शो आता था ‘द बक स्टॉप हियर’। कुछ साल पहले इसके एक एपिसोड में भ्रष्टाचार और लोकपाल पर बहस के दौरान बरखा ने स्वामी अग्निवेश से भ्रष्टाचार के आरोपित नेताओं के इस्तीफे को लेकर सवाल किए।
जवाब में स्वामी अग्निवेश ने कहा कि वह खुद इस तरह के मामलों में फॅंसी है। क्या कोई पत्रकार खुद को क्लीनचिट देकर शो की मेजबानी कर सकता है? उन्होंने बरखा से पूछा था कि क्या इस तरह के पत्रकार को इस्तीफा देना चाहिए?