मोदीजी के ऊपर सबसे बड़ा आरोप क्या है?
…यही न कि, उन्होंने पीएम पद की गरिमा को गिरा दिया है। आइए, इसके कुछ बिंदुओं पर बात करते हैं।
भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा थी, है व रहेगी। होनी भी चाहिए। कम्बख्त, आज तक वही गरिमा तो थी, जिसका बोझ इतना अधिक था कि यह मरियल, अधनंगा, सड़ा-गला, भूखों का देश उठा रहा है।
पीएम पद की गरिमा ही तो थी, जो हमारे पहले प्रधानमंत्री ‘दुर्घटनावश हिंदू’ अपने अंग्रेज मित्रों को बुलवाकर संपेरों से मिलवाते थे।
उसी वक्त विक्रम साराभाई नाम के एक जीव भी थे, यह उनको याद नहीं आता था। यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी, कि चचा ने खुद को ही भारत-रत्न दे दिया था। नौसेना के जहाजों या युद्धक विमानों का उस गरिमा के चलते ही (दुष्) प्रयोग चचा ने ही तो शुरू किया था एवं यह प्रधानमंत्री पद की ही गरिमा थी कि भरी संसद में उन्होंने चीन के कब्जे पर कहा था कि किसी बंजर ज़मीन पर ही तो कब्ज़ा हुआ है, जिस पर घास भी नहीं उगती। तब, हमारे एक सांसद महावीर जी ने कहा था कि मेरा तो सिर भी गंजा है, तो इसे भी दुश्मनों को दे दीजिए।
भाई, ये पीएम पद की गरिमा का गुरुगंभीर दायित्व ही तो था कि सेना के लिए जीप खरीदने में घोटाला करने वाले आरोपित को तुरंत ही कैबिनेट मंत्री बना लिया चचा ने। यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी, कि अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाकर चचा ने वंशवाद का विषवृक्ष इस देश में बो दिया, एक सनकी, तानाशाह, विनाशकारी सोच की महिला को इस देश पर थोप दिया।
यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी, कि तथाकथित ‘लौह-महिला’ ने देश पर आपातकाल थोप दिया, हज़ारों को जेल में डाल दिया एवं अपने महा-अहंकारी, विक्षिप्त पुत्र के हाथ में सत्ता की वास्तविक कमान दे दी। यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी कि इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वालों को अकादमिक जगत में प्रतिष्ठित किया गया, ज्ञान की एकतरफा गंगा बहाई गई तथा दूसरे किसी भी किस्म के विचार को अछूत, सर्वथा विरुद्ध समझा गया।
यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी कि एक राष्ट्रपति को रात के 12 बजे उठाकर आपातकाल के आदेश पर हस्ताक्षर करवाए गए, अपने ड्राइवर, निजी देखभाल करने वाले कर्मचारियों को देश के उच्च पदों पर बिठाया गया, देश के सभी संसाधनों को एक परिवार की जागीर बना दिया गया, निठल्ले बेटों को जन्मदिन में आकाश दिखाने भारत सरकार के जहाजों का उपयोग किया, भिंडरावाले को पैदा किया एवं बाप की राह पर चलकर खुद को ही भारत-रत्न भी दे डाला।
पीएम पद की गरिमा का भार बहुत होता है, रे बाबा। तभी तो धोखे के लिए भी सही, दिखावे के लिए ही सही, न तो कैबिनेट की बैठक बुलाई गई, न ही कहीं से कोई राय ली गई, रातोंरात अचानक से विदेश में बैठे एक युवक को इस देश की कमान सौंप दी गई, जिसके पास पीएम पद की ‘गरिमा’ व ‘पारिवारिक शहादत’ के अलावा था, तो कुलीनता का घमंड, भारत से भयानक अपरिचय तथा इंडिया से असंभव प्यार।
यह पीएम पद की गरिमा ही तो थी, जिसने एक पेड़ के गिरने पर धरती को हिलाया एवं ‘मात्र’ 5000 सिखों को हलाक कर दिया था। पीएम पद की ‘गरिमा’ तभी तो है। यह पीएम पद की गरिमा ही थी, जिसने 400 से अधिक सांसद होने पर भी समुदाय विशेष को पर्सनल लॉ में कैद रहने दिया, शाहबानो मामले में ऐसा फैसला लिया कि आज समुदाय विशेष वाले 14वीं सदी की ‘अरबी भेड़’ बन कर रह गए हैं, यह पीएम पद की गरिमा ही थी जिसने बोफोर्स में दलाली खाई, यह पीएम पद की गरिमा ही थी कि हजारों की मौत के जिम्मेदार भोपाल-गैस कांड के आरोपित को बाकायदा सरकारी कार एवं विमान से देश से भाहर भगाया गया।
…एंड, लास्ट बट नॉट द लीस्ट, वह पीएम पद की गरिमा ही तो है, जो 2002 से 2014 तक एक राज्य के मुख्यमंत्री को हत्यारा, नरसंहारक, मौत का सौदागर, खून बेचने वाला, आदि-अनादि कौन सी गाली नहीं दी गई।
2014 से वह व्यक्ति देश का पीएम है, लेकिन एक मंदबुद्धि, नशेड़ी, पागल उसे बिना किसी सबूत के चोर कह रहा है, उस पीएम को इतनी गालियाँ दी गईं कि गालियों का शब्दकोश भी शर्मिंदा हो जाए, लेकिन उस व्यक्ति ने जब एक तथ्य मात्र कह दिया, तो लुटियंस के पालतू शर्मिंदा हो गए।
सही बात है, आखिर प्रधानमंत्री पद की ‘गरिमा’ का सवाल है…
— व्यालोक पाठक
लेखक सीरीज में लिखते हैं। नीचे पढ़ें उनका हर एक पोस्ट:
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