पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हुए भयावह आतंकी हमले के बाद देश के हर नागरिक के भीतर एक बेचैनी है। हर कोई चाहता है कि जवानों के बलिदान का बदला पाकिस्तानी आतंकियों से जल्द से जल्द लिया जाए। देश का माहौल इस समय जितना संवेदनशील है उसमें लोगों की भावानाओं को आहत करने से ज्यादा खतरनाक कुछ भी नहीं है।
इस बात को अच्छे से जानने के बाद भी पुलवामा हमले से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाएँ हमारे सामने आई, जिसमें केवल भारत को चोट पहुँचाने की मंशा निहित दिखी। सोशल मीडिया के ज़रिए ऐसे लोगों का खुलासा हुआ, जो पाकिस्तान और आतंकियों के समर्थन में खड़े दिखाई दिए। कहीं पर How’s the jaish जैसी पोस्ट देखने को मिली, तो कहीं इस हमले को वैलेंटाइन डे का तोहफा बताया गया। जवानों को श्रद्धांजलि दी जाने वाली पोस्ट पर घर के दीमकों ने ‘हाहा’ वाले रिएक्शन तक दे दिए। यह टुच्ची घटनाएँ सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि भारत में रहकर कई जगह पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए गए और विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कश्मीरी छात्राओं द्वारा पत्थरबाजी भी की गई।
ज़ाहिर है राष्ट्रवाद की भावनाओं को इस कदर आहत करने वाले यह सब कार्य प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तानियों का या फिर आतंकियों के नहीं हैं। यह हमारे ही लोग है जिनकी सुरक्षा के लिए तैनात जवानों ने अपनी जीवन बलिदान कर दिया। यह कश्मीर के कुछ स्थानीय लोग हैं जिनके द्वारा ऐसी ओछी हरकतें की जा रही है। ये वही लोग हैं जो अपनी शिक्षा और रोज़गार के लिए कश्मीर के बाहर शेष भारत आश्रित हैं लेकिन नारों में पाकिस्तान जिंदाबाद बोलते हैं।
देश के ख़िलाफ़ हो रही ऐसी घटनाओं पर जब लोगों ने कानूनी रूप से कड़े कदम उठाने शुरू किए। तो, कश्मीर से शांति दूतों (महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला) द्वारा शांति संदेश भेजा गया कि पुलवामा में जो हुआ वो कश्मीर के मुस्लिमों द्वारा नहीं किया गया है बल्कि पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किया गया है। इसलिए कश्मीर के लोगों के साथ भारत के राज्यों में बदसलूकी न की जाए। महबूबा का कहना है कि इससे घाटी के लोगों में गलत संदेश जा रहा है और अपनों के साथ होते ऐसे रवैये को देखकर कश्मीर के युवक अपने भविष्य को कभी भी घाटी के बाहर नही देख पाएँगे।
कश्मीर के अलगाववादी मानसिकता वाले नेताओं ने अपनी अपील में सौहार्द की अपेक्षा सिर्फ़ उन लोगों से की है जो कुछ कश्मीरियों की ऐसी हरकतों पर एक्शन ले रहे हैं। इनकी अपील उनसे बिलकुल नहीं है जो सोशल मीडिया पर आतंकी हमले को भारत के ऊपर जैश की सर्जिकल स्ट्राइक बताकर जवानों के बलिदान पर हँस रहे हैं और जश्न मना रहे हैं।
केंद्र सरकार को सलाह देने वाले ये वही अलगाववादी नेता हैं जो मुस्लिमों का विक्टिम कार्ड खेलकर अपनी राजनीति की ज़मीन तैयार करते हैं लेकिन सुरक्षाबलों पर होने वाली पत्थरबाजी और अराजक तत्वों पर अपनी चुप्पी साध लेते हैं। देश में सुरक्षा के लिहाज़ से उठाए कदमों पर आहत हुए यह वही लोग हैं जिनके पिता (फारूख अब्दुल्ला) के घर में एक अंजान आदमी के घुस आने से इन्हें इतना खतरा महसूस हुआ कि मौक़े पर ही उसे गोलियों से भून दिया गया था। और उस पर ट्वीट कर बाकायदा उमर अब्दुल्ला ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी।
I am aware of the incident that took place at the residence my father & I share in Bhatindi, Jammu. Details are sketchy at the moment. Initial reports suggest an intruder was able to gain entry through the front door & in to the upper lobby of the house.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 4, 2018
उमर अब्दुल्ला की शांति वाली धरातल पर बात किया जाए तो हो सकता था कि वो शख्स जो उमर के पिता के घर में घुसा, कोई भटका हुआ नौजवान हो, जो न जाने उनके घर में किन वजहों से घुसा हो। तथाकथित शांति चाहने वाले कश्मीर के नेता चाहते तो उसके लिए कुछ न कुछ करते या उसे समझाते ताकि अन्य भटके नौजवानों पर भी सौहार्द का संदेश जाए लेकिन उसे गोली मारना ही क्यों बेहतर समझा गया ? शायद इसलिए क्योंकि फारूक को उस अंजान व्यक्ति से खतरा हो सकता था।
सोचने वाली बात है कि केवल एक अंजान व्यक्ति के फारूक अब्दुल्ला के घर में घुसने के कारण उन्हीं नेताओं ने हिंसा को सर्वोपरि समझा। लेकिन देश की बात आते ही सौहार्द की माँग जग गई। आज देश में उन लोगों के लिए सख्ती न करने की बात की जा रही है जो देश की भावनाओं को न केवल आहत कर रहे हैं बल्कि देश के ख़िलाफ़ खड़े होकर देशद्रोही होने का सबूत भी दे रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी होने का आशय यह तो बिलकुल नहीं है कि आप उसी देश की भावनाओं के खिलाफ़ इसका इस्तेमाल करें जहाँ पर आपको इसको प्रयोग करने का अधिकार दिया गया है।
इसके अलावा रही बात कश्मीरियों की सुरक्षा की तो केंद्र सरकार वहाँ पर बैठे तथाकथित नेताओं से ज्यादा ध्यान कश्मीर के लोगों का रख रही है। वो सुरक्षा का ही ख्याल रखा जा रहा था जो CRPF ने अपने 44 जवानों को खो दिया। सुरक्षा के लिहाज से ही वहाँ पर भटके नौजवानों को सही रास्ते पर लाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। यह सुरक्षा की ही वजह है कि आतंकी हमले का शिकार होने के बावजूद भी कश्मीरियों के लिए सेना ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया है कि वो किसी भी संकट में फँसे कश्मीरियों की मदद के लिए तत्पर हैं।