ये आलेख समर्पित है उन सैकड़ों औसत पम्पलेट बुद्धिजीवियों को जो प्रचार के पर्चे पढ़कर खुद को “भारतीय प्रगतिशील बुद्धिजीवी” घोषित करना चाहते हैं, मगर अफ़सोस कि न तो वो प्रगतिशील हैं, न बुद्धिजीवी, और भारतीय तो हरगिज़ नहीं!
ये चुनाव अभियान ऐसे औसत बुद्धिपिशाचों के योगदान के बिना सफल नहीं हुआ होता। उनके जहर बुझे वचनों के बिना जनमानस को ये याद दिलाना मुश्किल होता कि एक आम नागरिक भारतीयता के पक्ष में खड़ा होता है।
आइये उन दस सरल (किन्तु महत्वपूर्ण) कदमों को देखें जिनके जरिये आप खुद को एक “प्रगतिशील बुद्धिजीवी” के तौर पर पेश कर सकते हैं:
1) जब भी आपको कोई ऐसी ‘पोस्ट’ या लेख दिखे जिसमें ‘हिन्दू’ या ‘हिंदुत्व’ शब्द का उल्लेख सकारात्मक रूप में हुआ हो, उसे फ़ौरन ‘जहरीला’ और ‘घृणित’ घोषित करें। लेख के सन्दर्भ से आपके उद्गार का कोई लेना देना नहीं। लगातार और पूरे मनोयोग से ‘हिंदुत्व’ के प्रति अपनी ‘घृणा’ को प्रकट करते रहें। इसके लिए आप छद्म तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं, या खुलकर भी सामने आ सकते हैं। साथ ही ये कहना न भूलें कि आपके कई ‘हिन्दू’ मित्र भी हैं और आप हिन्दुओं का सम्मान करते हैं।
2) जब भी किसी चर्चा में मौका मिले ‘गुजरात 2002’ का उल्लेख अवश्य करें। भले ही वो चर्चा कांगो बेसिन के वानर प्रजातियों के प्रजनन के तरीकों पर हो! चर्चा के विशेष नियम को हमेशा याद रखें, सभी दंगे बराबर होते हैं लेकिन गुजरात दंगे दूसरे दंगो से ज्यादा बराबर हैं।
3) जिस भी माध्यम से संभव हो मोदी के बारे में अवश्य लिखें- “नरभक्षी”, “आदमखोर”, “हत्यारा”, “फासिस्ट”, “तानाशाह” जैसे शब्दों का खुलकर प्रयोग करें। मोदी विरोधी सभी बैठकों और व्याख्यानों में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें। पूरे जोशो खरोश से गुजरात के कुपोषित बच्चों की बात करते हुए प्लेट से भुने हुए काजू को ग्लास में मौजूद मुफ्त की व्हिस्की के साथ उदरस्थ करते जाएँ।
4) बीच-बीच में ‘सेक्युलर हिन्दुओं’ के विषय में अच्छी तरह तैयार की गयी अपनी पंक्तियों का छौंक लगाएँ और उनके अहंकार को सहलाते रहें। अपने आप को एक ‘प्रगतिशील मानवतावादी’ सिद्ध करने हेतु यह अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण के लिए आप “भारत अपने सर्वसमावेशी हिन्दुओं के कारण ही धर्मनिरपेक्ष है” जैसे वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं।
5) चर्चा के विषय से इतर बीच-बीच में दार्शनिक ज्ञान अवश्य बघारें। जरूरत के हिसाब से नास्तिक की अलग-अलग श्रेणियों यथा ईश्वरद्रोही, ईश्वर को न मानने वाला या सिद्ध होने पर ईश्वर को मान लेने की श्रेणी में कूद-फांद करते रहें, लेकिन साथ ही ये बताएँ कि आप आध्यात्मिक रुझान के हैं किन्तु धार्मिक नहीं, चाहे इसका जो भी अर्थ लिया जाए। अगर आप हिन्दी जैसी भाषा में बात कर रहे हों तो ‘ईश्वर’ या ‘भगवान’ जैसे शब्दों के प्रयोग से बचें। उनके बदले हमेशा ‘ऊपरवाला’ या फिर ‘खुदा’ शब्द का इस्तेमाल करें।
6) जब भी मौका मिले तो चीख-चीख कर सबको बताएँ कि आप ज़ात-पात के बन्धनों से पूरी तरह मुक्त हैं, लेकिन लाभ की संभावना होने पर धीरे से अपनी ज़ात बताने से न चूकें। चतुराई भरे इस्तेमाल से, बहसों में, ये एक महत्वपूर्ण औजार सिद्ध हो सकता है। इससे हिन्दुओं के बीच खाई बनाने में कई बार सफलतापूर्वक परखा जा चुका है।
7) चुन-चुन कर कश्मीर में सेना द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के पोस्ट लिखें और साझा करें। पीड़ित कश्मीरी युवाओं पर घड़ियाली आँसू बहाते समय आरोपों के सच्चे-झूठे होने की चिंता कतई न करें। ध्यान रहे इस पूरे प्रयास में कश्मीरी पंडितों का जिक्र गलती से भी न आ पाए।
8) जब कोई तर्क न चलता दिखे और सारे सफ़ेद झूठ पकड़े जाएँ तो “फासीवादी संघी” होने का आरोप अपने विरोधी के मुँह पर दे मारें। आरोप के झूठे होने या सिद्ध न हो सकने की कोई परवाह करने की आवश्यकता नहीं है। ये केजरीवाल सिद्धांत है जिसमें बार-बार एक ही आरोप मढ़ने से, कभी न कभी, उसके सच मान लिए जाने की संभावना रहती है। इसके भी न चलने पर आप विरोधी को टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी का एजेंट घोषित कर सकते हैं।
9) ढंग के कपड़ों में थोड़ा निवेश करें। अगर आप पुरुष हैं तो फैबइंडिया का एक मुड़ा-तुड़ा सा कुर्ता आपके पास होना ही चाहिए। अगर फ्रेंच कट दाढ़ी रख सकें तो अति उत्तम। अगर आपके दिमाग का आकार शुतुरमुर्ग जितना भी हो तो हुलिए से आपके बुद्धिजीवी दिखने की संभावना काफी बढ़ जाती है। बालों को रंगना भी छोड़ दें, उनमें थोड़ी सफेदी दिखने दें। अगर आप स्त्री हैं तो सूती हथकरघा की साड़ियों को बेरंगे-बेडौल ब्लाउज के साथ पहनें। आपकी बिंदी का आकार कम से कम थाली जितना होना चाहिए। आँखों में कम से कम किलो भर काजल-कोह्ल लगाना कभी न भूलें। ध्यान रहे कि आपको नेवले या उदबिलाव जैसा दिखना है। बालों में सफेदी भी दिखती रहे तो और अच्छा रहेगा।
10) जब आप तर्कपूर्ण बहस में असमर्थ हो जाएँ, जैसा कि हर बहस में होगा ही, तो अपने विरोधी से बात करने से ही इनकार कर दें। कहें कि आप चमचों/भक्तों/ट्रोल से बात करने में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते क्योंकि उनकी “सांप्रदायिक सोच” से आपकी “भावना बेन” आहत हो जाती है।
— प्रस्तुत लेख शैफाली वैद्य की मूल फेसबुक पोस्ट से लिया गया है। अनुवाद आनंद कुमार ने किया है।