Friday, April 26, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्दे70000 'बेचारे शांतिदूत' असम से उड़नछू, पत्रकारिता का समुदाय विशेष अब देगा जवाब?

70000 ‘बेचारे शांतिदूत’ असम से उड़नछू, पत्रकारिता का समुदाय विशेष अब देगा जवाब?

मामला यह है कि कोर्ट ने असम सरकार से पूछा था कि अब तक उसने कितने घुसपैठियों को पहचान कर निर्वासित कर दिया है। जवाब में सरकार ने आधा-तिहा शपथपत्र दिया, जिसमें एक बात इन 70,000 के लापता होने की भी है।

असम में जब एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) का पहला ड्राफ्ट जारी हुआ तो भावनाओं और सहानुभूति का ऐसा सैलाब उमड़ा कि लगा मानों असम की सारी नदियों को मिलाकर भी उतना पानी नहीं होगा, जितना वामपंथी-(छद्म) उदारवादी गिरोह की आँखों से बह रहा था।

बात ही कुछ ऐसी थी- 40 लाख “यूनेस्को-सर्टिफाइड सबसे शांतिप्रिय मज़हब” के बाशिंदों को दरिंदे मोदी ने दरबदर करने की साजिश की थी! और संयुक्त राष्ट्र भी चुप बैठा था!! इसीलिए मजबूरन पत्रकारिता के समुदाय विशेष को रुदाली की तलवार भाँजते हुए फासिस्टों से लड़ना पड़ा…

इस दारुण कथा को जरा फ़ास्ट-फॉरवर्ड कर 2019 में आते हैं जहाँ असम सरकार सुप्रीम कोर्ट को यह बता रही है कि उनमें से 70,000 लोग उसे गच्चा देकर गायब हो चुके हैं, और सरकार उन्हें तलाश नहीं पा रही है- और यह संख्या आधी-अधूरी ही है क्योंकि यह जिस शपथ पत्र से आई है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने नाकाफी और कोरम पूरा करने वाला बताया है।

(एक वाक्य में मामला यह है कि कोर्ट ने असम सरकार से पूछा था कि अब तक उसने कितने घुसपैठियों को पहचान कर निर्वासित कर दिया है। जवाब में सरकार ने आधा-तिहा शपथ पत्र दिया, जिसमें एक बात इन 70,000 के लापता होने की भी है।)

अब जरा सोचिए- 70,000 की संख्या अपने आप में डरावनी है, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे अधूरा माना है। तो असली संख्या क्या होगी? 40 लाख लोगों को एनआरसी मामले में अपनी नागरिकता साबित करने की नोटिस जारी हुई थी। उनमें से 15% को भी मान लें तो यह संख्या है 6 लाख। आधा भी कर दें तो 3 लाख। और जरा कम कर दें तो 2 से 2.5 लाख।

2 से 2.5 लाख जो इस देश के नागरिक नहीं हैं, जिनकी इस देश में शुरुआत ही एक अपराध (घुसपैठ) से हुई, और जो चेन छिनैती और एटीएम डकैती से लेकर 1993 के बम धमाके और कश्मीर में पत्थरबाजी या दंतेवाड़ा की तरह सैनिकों की बस पर घात लगाकर हमला तक चाहे जो गुनाह करें, उन्हें मौका-ए-वारदात पर पकड़ने के अलावा उनकी कोई पहचान नहीं हो सकती।

कितना गंभीर है यह खतरा

2 से 2.5 लाख लोग जिन्हें पता है कि इस देश में उनकी कोई पक्की पहचान नहीं है और इसलिए वे जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र हैं बशर्ते बस वे मौका-ए-वारदात पर पकड़े जाने से बच निकलें। इस वाक्य को बार-बार, तब तक पढ़िए जब तक इसका पूरा भावार्थ आपकी कनपटी की नसों में टपकन न बन जाए

आप कह सकते हैं कि क्या सबूत है कि वह ऐसा करेंगे ही। बिलकुल कहिए- और सबूत भी देखिए। इस लिंक पर जाइए। 1974 में एक महिला परफॉरमेंस आर्टिस्ट ने स्टूडियो के कमरे में खड़े होकर यह घोषणा की कि अगले 6 घंटे तक आगंतुक उसके शरीर के साथ कुछ भी कर सकते हैं- वह क़ानूनी कार्रवाई नही करेंगी। और लोगों ने जो-जो किया, वह यहाँ लिखा नहीं जा सकता- आप खुद पढ़ लीजिए। नहीं पढ़ना चाहते तो 6 घंटे बाद के उसके अनुभव यह थे, “मैं बलात्कृत महसूस कर रही हूँ, लोगों ने मेरे कपड़े फाड़ दिए, शरीर में गुलाब के काँटे घोंपे, सर पर बन्दूक तानी…”

कहने का तात्पर्य है कि कानून का डर ही है, जिससे इंसान के अंदर बैठे जानवर को क़ाबू में किया जा सकता है। जब कोई गुनाह करता है तो वो क़ानून का डर ही होता है जो उसे हर पल सताता है कि न जाने कब उसके दरवाज़े पर दस्तक होगी और पुलिस उसे पकड़ कर ले जाएगी। गुनहगार को पकड़ने की क़वायद में उसके सभी दस्तावेज़ों की खोजबीन शुरू हो जाती और अंतत: क़ानून के हाथ दोषी के गिरेबान तक पहुँच ही जाते हैं।

उस महिला कलाकार ने यही डर हटा कर देखा तो लोगों ने उसकी दुर्गति कर दी। और यही डर उन 70,000/ 2.5 लाख लोगों में से शायद अब ख़त्म हो चुका होगा।

इन लोगों के हिमायती लेंगे इनके गुनाह की जिम्मेदारी?

वापस आते हैं पत्रकारिता के समुदाय विशेष पर। इसलिए कि यही सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक इस समूह के अधिवक्ता बन जाते हैं। और इसलिए बन जाते हैं क्योंकि यह घुसपैठिए ‘समुदाय विशेष’ से होते हैं।

अपनी “पर्सनल स्पेस”, “माह लाइफ, माह चॉइस” का गाना गाने वालों को रोहिंग्याओं और बंगलादेशियों के इस देश की “boundary violation” में कोई खोट नहीं दिखता, और अगर गलती से कभी कोई सरकार कहीं से जूते खाकर आए कुछ हिन्दुओं की ओर नागरिकता का राग गाए तो उसमें ‘थाम्पलदयिकता फैल लई ऐ’ का खटराग बजाने का मुहूर्त दिख जाता है

‘बेचारे रोहिंग्या’ का narrative बुनने वाले ‘विद्वज्जन’ इन 2.5 लाख ‘अदृश्य’ अवैध अप्रवासियों के द्वारा अगर कोई गुनाह किया जाता है तो उसकी गठरी अपने सर बाँधेंगे?

यह बिलकुल संभव है कि सारे-के-सारे 2.5 लाख /70,000 गायब अप्रवासी आपराधिक न हों- हो सकता है 10 से भी कम अपराधी हों।

पर अगर 5 अपराधी भी कानून से केवल इसलिए बच निकलें कि अपने राजनीतिक आकाओं के वोट बैंक को खाद-पानी देने के लिए उन्हें संरक्षण दिया गया तो यह कहाँ का न्याय है? या शायद ‘समुदाय विशेष’ (चाहे वह पत्रकारिता का हो या समाज का) के अन्याय अन्याय नहीं, अल्लाह का प्रसाद हैं जिन्हें श्रद्धा-भक्ति से ग्रहण कर लेना हिन्दू समाज की नियति है…

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘मुस्लिमों का संसाधनों पर पहला दावा’, पूर्व PM मनमोहन सिंह ने 2009 में दोहराया था 2006 वाला बयान: BJP ने पुराना वीडियो दिखा किया...

देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 लोकसभा चुनावों के समय 'मुस्लिमों का देश के संसाधनों पर पहला हक' वाला बयान दोहराया था।

चाकू मारो, पत्थर मारो, मार डालो… गुजरात में मुस्लिम भीड़ ने मंदिर के नीचे हिंदू दुकानदार पर किया हमला, बचाने आए लोगों को भी...

गुजरात के भरूच में एक हिंदू व्यापारी पर मुस्लिम भीड़ ने जानलेवा हमला किया। इस दौरान उसे चाकू से मारने की और उसकी दुकान में आग लगाने की कोशिश भी हुई।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe