Friday, November 22, 2024
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भारतीय राजनीति का ‘न्यू नॉर्मल’ है सनातन धर्म को गाली देना… उदयनिधि, खड़गे, स्वामी और चंद्रशेखर विपक्ष के इसी प्रयोग का हिस्सा, I.N.D.I.A. में नेतृत्व का यही पैमाना

दयनिधि स्टालिन की बात करें तो खुद को नास्तिक बताते रहे हैं, लेकिन दिसंबर 2022 में उन्होंने खुद को न सिर्फ 'गर्वित ईसाई' करार दिया था बल्कि ये तक कहा था कि संघी ये जान कर जलेंगे। अब वो सनातन धर्म के खात्मे के मंशे से होने वाले कार्यक्रमों में सनातन धर्म को भला-बुरा कह रहे हैं।

अब तक आपने ये खबर पढ़ ली ही होगी कि तमिलनाडु के DMK नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को खत्म करने की बात की है। उन्होंने इसे डेंगू-मलेरिया करार दिया। उदयनिधि स्टालिन DMK के प्रथम परिवार से आते हैं। उनके दादा करुणानिधि 1969-2011 के बीच 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। DMK की स्थापना की। आज उदय के पिता और करुणानिधि के बेटे MK स्टालिन राज्य के मुख्यमंत्री हैं। उस सरकार में उदयनिधि युवा एवं खेल मामलों के मंत्री हैं। साथ ही वो DMK की यूथ विंग के सेक्रेटरी भी हैं। अभिनेता भी रहे हैं, अब फिल्म निर्माता हैं।

कुल मिला कर सीधे शब्दों में कहें तो उदयनिधि स्टालिन DMK का भविष्य हैं, 71 वर्ष के हो चुके उनके पिता उन्हें इसके लिए तैयार भी कर रहे हैं। करुणानिधि का साम्राज्य लंबा-चौड़ा है। 50 वर्षों से भी अधिक समय में उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से लेकर उद्योग तक में अच्छी तरह सेट किया था। परिवार के लोग सांसद-विधायक से लेकर मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक रहे हैं। तमिलनाडु का ‘सन ग्रुप’ भी इसी परिवार का है। इसके मालिक दयानिधि मारन, करुणानिधि के भांजे के बेटे हैं।

अगर कोई बड़ा से बड़ा नेता भी इस्लाम या ईसाई मजहब को लेकर कोई बयान दे दे, तो उसे निकालने में कोई भी पार्टी देती नहीं करेगी। लेकिन, इन पार्टियों में सुप्रीमो परिवार के लोग भी हिन्दू धर्म को खुलेआम गालियाँ बकते हैं क्योंकि यही उनके लिए सॉफ्ट टारगेट है और अपने वोट बैंक को एकजुट करने का तरीका भी। अगर दंगे भड़क जाएँ, तो ये नेता उस पर अपनी सियासत की रोटियाँ सेंकेंगे। इसीलिए, हिंसा भी कोई रास्ता नहीं है। हिंसा का रास्ता तो उनका है जिनके खौफ के कारण उनकी जरा सी भी नाराज़गी नहीं मोल ले सकते।

तमिलनाडु की हिन्दू विरोधी द्रविड़ राजनीति का भविष्य उदयनिधि स्टालिन

अब वापस आते हैं उदयनिधि स्टालिन के बयान पर। ये हो सकता है कि उनके बयान को पहली बार राष्ट्रीय चर्चा मिल रही हो, लेकिन द्रविड़ नेताओं द्वारा हिन्दू धर्म को लेकर इस तरह की बयानबाजी नई नहीं है। तमिलनाडु में पेरियार और अन्नादुरई को द्रविड़ राजनीति का जनक माना जाता है। ब्राह्मणों को गाली देकर खुद को लोकप्रिय बनाने वाले पेरियार को भारत की आज़ादी भी पसंद नहीं थी, क्योंकि उसका मानना था कि अंग्रेज ब्राह्मण-बनियों के साथ में सत्ता सौंप कर जा रहे हैं। तभी उसके अनुयायियों ने 15 अगस्त, 1947 को ‘शोक दिवस’ मनाया था।

इतना ही नहीं, उसने दक्षिण भारत को अलग देश की मान्यता देने के लिए भारत को खंडित कर ‘द्रविड़नाडु’ बनाए जाने की माँग भी की थी। वहीं तमिल सिनेमा को पहली बार राजनीतिक प्रोपेगंडा के रूप में इस्तेमाल करने वाले अन्नादुरई भी पेरियार के ही चेले थे, लेकिन अलग देश के मुद्दे पर उनकी अपने ही मेंटर से ठन गई थी। वो तमिलनाडु के सीएम बनने वाले पहले द्रविड़ नेता थे। उनके नाम पर ही अभिनेता MGR ने AIADMK बनाई। द्रविड़ राजनीति का एक अहम हिस्सा हिन्दू विरोध बन गया।

तमिलनाडु में DMK और कॉन्ग्रेस एक साथ मिल कर सरकार चला रही हैं। नए विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में भी DMK सुप्रीमो एमके स्टालिन को कोऑर्डिनेशन कमिटी में रखा गया है। नीतीश कुमार जब विपक्षी एकता की पहल कर रहे थे, तब वो चेन्नई भी गए थे उनसे मिलने। इसी तरह उनके जन्मदिन के कार्यक्रम में भोज खाने के लिए बिहार के उप-मुख्यमंत्री व राजद नेता लालू यादव भी मौजूद थे। कॉन्ग्रेस पार्टी ने उदयनिधि स्टालिन के बयान की कोई निंदा नहीं की है। शायद कॉन्ग्रेस की भी यही रणनीति हो।

सनातन धर्म को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर चुके हैं गलतबयानी

इसकी आशंका इसीलिए भी व्यक्ति की जा सकती है, क्योंकि पार्टी में मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। खड़गे का एक बयान देखिए, “…और ऐसे मोदीजी को और शक्ति मिलेगी देश में, तो समझो फिर इस देश में सनातन धर्म और RSS की हुकूमत आएगी।” उन्होंने 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ये बयान दिया था। मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके मंत्री बेटे प्रियांक खुद को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। खुद को बीआर आंबेडकर का फॉलोवर बताते हैं।

वैसे तो बौद्ध धर्म सनातन का ही एक अंग है, लेकिन आजकल एक ‘नवबौद्धों’ की टोली सामने आई है जो हिन्दू धर्म को गाली देने को ही बौद्ध धर्म मानती है। जबकि रामायण से लेकर हिन्दू पुराणों की अन्य कथाएँ भी बौद्ध धर्म में अलग-अलग रूपों में मिल जाती हैं। मलिकार्जुन खड़गे को इन्हीं ‘नवबौद्धों’ में गिना जा सकता है। खुद राहुल गाँधी के सोशल मीडिया हैंडलों को देख लीजिए, वहाँ आने वाली रामनवमी-जन्माष्टमी की शुभकामनाओं में श्रीराम-श्रीकृष्ण की तस्वीर रहती ही नहीं है। ऐसे में एक हिन्दू विरोधी को पार्टी का कमान देना आश्चर्यजनक नहीं था।

वहीं उदयनिधि स्टालिन की बात करें तो खुद को नास्तिक बताते रहे हैं, लेकिन दिसंबर 2022 में उन्होंने खुद को न सिर्फ ‘गर्वित ईसाई’ करार दिया था बल्कि ये तक कहा था कि संघी ये जान कर जलेंगे। अब वो सनातन धर्म के खात्मे के मंशे से होने वाले कार्यक्रमों में सनातन धर्म को भला-बुरा कह रहे हैं। उनकी पत्नी कीरुतिगा ईसाई हैं। 2020 में उनकी बेटी की तस्वीर भगवान गणेश की प्रतिमा के साथ आ गई थी, जिसके बाद उदयनिधि स्टालिन को सोशल मीडिया पर सफाई देनी पड़ी थी कि वो और उनकी पत्नी नास्तिक हैं।

सोचिए, विशाल संरचनाओं और समृद्ध कलाकृतियों के लिए जाने जाने वाले तमिलनाडु में हिन्दू विरोध की भावना कैसे कूट-कूट कर भर दी गई है। वही तमिलनाडु, जहाँ का तंजावुर मंदिर 80 टन के पत्थर वाले शिखर के कारण लोकप्रिय है। जहाँ रामेश्वरम में श्रीराम ने शिव की पूजा की। जहाँ मीनाक्षी मंदिर देवी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, जहाँ आदि कुम्बेश्वरर मंदिर चोल साम्राज्य की महिमा की याद दिलाता है। वही तमिलनाडु, जहाँ का राजगोपालस्वामी मंदिर वैष्णव पंथ का एक अहम स्थल के रूप में जाना जाता रहा है।

वो तमिलनाडु, जहाँ चल-पंड्या-पल्लव-चेरा राजाओं ने एक से बढ़ कर एक मंदिर बनवाए और शिव, विष्णु, देवी को अपना इष्ट माना – आखिर वहाँ की स्थिति ऐसी कैसे हो गई? क्या एक प्रकार की साजिश चल रही है कि पूरे देश में लोग हिन्दुओं से घृणा करने लगें, सनातन धर्म को गालियाँ बकने लगे? क्या देश की राजनीति में ये एक ‘नया नॉर्मल’ है, स्थापित किया जा रहा है? अब तक तो यही लगता है। सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे और उदयनिधि स्टालिन ही नहीं, कुछ और नेताओं को भी देख लीजिए।

सनातन धर्म को गाली देने वाले बयान अब ‘न्यू नॉर्मल’

हाल के दिनों में सबसे ज़्यादा चर्चा में रहने वाले नेताओं में समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य भी हैं, जिन्होंने तुलसीदास और रामचरितमानस के लिए बार-बार विवादित शब्दावली का इस्तेमाल किया। अब उन्होंने कह दिया है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं है, ये ब्राह्मण धर्म है। उन्होंने हिन्दू धर्म को धोखा बता दिया। इसी तरह, बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव जो प्रोफेसर होने के बावजूद विधानसभा में शब्दों को ठीक से नहीं बोल पाते, उन्होंने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में छात्रों के मन में रामचरितमानस को लेकर ज़हर भरा।

विपक्षी बैठक में शामिल होने मुंबई पहुँचीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तिलक लगवाने से इनकार कर दिया। कुछ दिनों पहले उन्होंने नज़रुल इस्लाम को महाभारत का लेखक बताया था। जैसा कि आचार्य प्रमोद कृष्णम् ने कहा है, सच में ऐसा है कि नेताओं में खुद को हिन्दू विरोधी दिखाने की एक होड़ सी लग गई है। शायद विपक्षी गठबंधन का नेता बनने के लिए यही योग्यता तय की गई हो। इसी पैमाने पर नापा जाए सबको। अब देखना ये है कि हिन्दू विरोध का ये क्रम कहाँ जाकर रुकता है।

बात बस इतनी सी है कि सनातन धर्म को लेकर जो-जो बातें कही गईं, इस्लाम या ईसाई के लिए मुँह तक खोल देने पर ईशनिंदा का आरोप लग जाता है। भाजपा नेता नूपुर शर्मा ने उद्धरण भर दे दिया तो राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल तेली और महाराष्ट्र के अमरावती में उमेश कोल्हे का ‘सर तन से जुदा’ कर दिया गया। नूपुर शर्मा 1 वर्ष से भी अधिक समय से अपने घर में कैद हैं। पंजाब में ‘बेअदबी’ के आरोप में हत्याएँ हो चुकी हैं। बाइबिल के एक शब्द का कॉमेडी में जिक्र करते पर फराह खान, रवीना टंडन और भारती सिंह जैसी फ़िल्मी हस्तियों को वेटिकन के पादरी से मिल कर माफ़ी माँगनी पड़ी थी।

हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का बेजा फायदा उठाया जा रहा है। अगले साल के शुरुआत में राम मंदिर में पान प्रतिष्ठा होनी है और मंदिर का उद्घाटन होना है, ऐसे में देखना है कि नेता इसे किस स्तर तक ले जाते हैं। अब सब हिन्दुओं के ऊपर है। अगर राम मंदिर के लिए देश भर में वैसा माहौल बनता है कि विपक्षी नेता भी कोट के ऊपर जनेऊ पहनने को मजबूर हो जाएँ, तो शायद हो सकता है बयानबाजी का ये दायर थम जाए। लेकिन, उससे पहले ये ‘नया नॉर्मल’ है, इसकी आदत डाल लीजिए। बयानबाजी करने वालों का कद ऐसा है कि उनका कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता फ़िलहाल।

कानून इसीलिए ऐसे नेताओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि हिन्दू धर्म को गाली देना न तो इसकी नज़र में कोई अपराध है और दूसरी बात ये कि इन नेताओं को वकीलों की फ़ौज करने में समय भी नहीं लगता। दूसरा कारण – पैसों और रसूख के मामले में ये इतने प्रभावी हैं कि इनके पीछे हजारों लोग हैं। इसीलिए, कानून-पुलिस नहीं, हिन्दुओं की सामूहिक एकता ही इनकी अप्रासंगिकता का कारण बन सकती है। जो इनके साथ हैं, वो तभी दूर होंगे जब उन्हें लगेगा कि इनकी करतूतें गलत हैं। वरना पुलिस को आदेश यही लोग देते हैं, इनका पुलिस क्या करेगी?

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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