Monday, November 18, 2024
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‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’: वैश्विक स्तर पर हिंदू घृणा की खेती, कनाडा की घटना पहली उपज

हिंदुओं के विरुद्ध यदि वैश्विक माहौल बनाने या साजिश करने के पीछे के कारण साफ़ हैं। कॉन्फ्रेंस के लिए 11 सितंबर का चुना जाना भी केवल संयोग नहीं है। यह उस सोच के तहत किया गया प्रयास है जिसमें कुछ हिंदू विरोधी लोग और संस्थाएँ मिलकर उन तथ्यों पर चूना पोत देना चाहते हैं जिसके लिए 11 सितंबर का दिन अमेरिका में याद किया जाता है।

कनाडा में हिंदुओं के खिलाफ हेट क्राइम की एक घटना 11 सितंबर को हुई जिसमें एक हिंदू परिवार को हिंसा का सामना करना पड़ा। मिसिसागा में बारबर रोड के एक पार्क में हिंदू आस्था से जुड़े एक सामाजिक कार्यक्रम के आयोजन के दौरान दो युवकों ने परिवार के साथ मारपीट और पत्थरबाजी की। हालाँकि प्रशासन ने तुरंत आवश्यक कदम उठाए पर हिंदुओं के खिलाफ पिछले कुछ समय से बढ़ती हिंसा चिंता का विषय है। वैसे तो किसी धार्मिक आस्था का पालन करने वालों के विरुद्ध सामाजिक हिंसा पश्चिमी देशों के लिए कोई नई बात नहीं है पर हाल के महीनों में हिंदुओं के खिलाफ ऐसी घटनाएँ बढ़ी हैं। कुछ घटनाएँ ऊपर से देखने में सामान्य अपराध भले ही लगें पर उनकी विवेचना की जाए तो वे सामान्य अपराध से आगे की बात लगती है।

कनाडा में भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है। हिंदू विरोधी हिंसा की ऐसी घटनाएँ पिछले वर्ष केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में ‘किसानों’ के विरोध के साथ और अधिक दिखाई देने लगी है। हाल के महीनों में हिंदुओं के विरुद्ध योजनाबद्ध तरीके से केवल दुष्प्रचार ही नहीं किया जा रहा है बल्कि तमाम आयोजनों में हिंदुओं पर शारीरिक हमले भी देखे गए। ऐसी कुछ घटनाओं में खालिस्तान समर्थकों का भी हाथ देखा गया। हिंदुओं के विरुद्ध माहौल बनाने में इन्होने प्रमुख भूमिका निभाई है। ऐसा नहीं कि यह भूमिका केवल जमीन पर दिखाई दी है। हिंदुओं के प्रति खालिस्तान समर्थकों का अपमानजनक व्यवहार सोशल मीडिया पर खालिस्तानी डिस्कोर्स का एक प्रमुख अंग रहा है।

भारत से बाहर रहने वाले खालिस्तान समर्थक अभियान चलाकर प्रवासी हिंदुओं का जगह-जगह विरोध करते रहे हैं और उनके विरुद्ध हिंसा को भड़काने की कोशिश करते भी दिखाई दिए हैं। यही कारण है कि बढ़ती हिंसा को लेकर हिंदुओं की कुछ संस्थाओं ने न केवल विरोध किया बल्कि सरकार को ज्ञापन भी दिए। कुछ खालिस्तानी समर्थक अपने मोदी विरोध में इतने अंधे हो गए हैं कि उन्हें हर हिंदू मोदी का समर्थक लगता है। कनाडा के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएँगे कि वहाँ की संसद में भी परोक्ष और अपरोक्ष रूप से ऐसे लोगों की मौजूदगी है। इसी वर्ष मार्च में खालिस्तान समर्थक एक सांसद के रिश्तेदार के खिलाफ कानूनी जाँच भी हुई थी क्योंकि भारतीयों द्वारा निकाले गए तिरंगा यात्रा में हिंदुओं पर हमला करते हुए उनका एक वीडियो वायरल हुआ था।

हिंदुओं के विरुद्ध बढ़ते हेट क्राइम में खालिस्तान समर्थकों के अलावा और भी लोगों का हाथ रहा है। हाल ही में हुए डिस्मैंट्लिंग ग्लोबल हिंदुत्वा कॉन्फ्रेंस के प्रचार की भी हिंदू विरोधी माहौल बनाने में खासी भूमिका रही है जिसका प्रभाव शायद भविष्य में दिखाई दे। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आनेवाले समय में इस कॉन्फ्रेंस से निकलने वाले स्वरों का हिंदुओं के विरुद्ध बन रहे माहौल को भड़काने में भूमिका रहेगी। इस कॉन्फ़्रेन्स में अकादमिक डिस्कोर्स के नाम पर चाहे जो बताया या कहा जाए, सच यही है कि यह मूलतः हिंदुत्व और हिंदुओं के विरुद्ध एक ग्लोबल प्रॉपेगैंडा है जिसका उद्देश्य विश्व भर में हिंदुओं के विरुद्ध माहौल बनाना है।

यह बात कॉन्फ्रेंस में कही गई बातों से साफ़ झलकती है। हिंदुत्व और हिन्दुइज़्म के बीच अंतर बताने से शुरू हुआ एक डिस्कोर्स अंत में दोनों को एक बताता हुआ देखा गया। वैसे भी अब हिंदू यह समझता है कि हमारे मीडिया या बुद्धिजीवियों द्वारा हिंदुत्व को हिन्दुइज़्म से अलग बताने की साजिश और उसके उद्देश्य का पर्दाफाश हो चुका है। इस कॉन्फ्रेंस के पीछे आयोजकों की मंशा साफ झलक रही है। कभी हास्यास्पद तथ्य तो कहीं सच का हवाला देकर हिंदुओं के विरुद्ध खड़े किये गए इस तथाकथित एकेडेमिक डिस्कोर्स में जिन्हें विद्वान बनाकर पेश किया गया उनके बारे में भी पूरी दुनियाँ को पता है। ऑड्री ट्रस्की हो या कविता कृष्णन, हिंदुत्व के इन विरोधियों के विचार, इनकी राजनीति और इनके प्रॉपगैंडा और उनके उद्देश्य अब हिंदुओं से छिपे नहीं हैं। हाँ, उन्हें हिंदुओं के बीच और व्यापक स्तर पर फैलाने की आवश्यकता हमेशा रहेगी।

हिंदुओं के विरुद्ध यदि वैश्विक माहौल बनाने या साजिश करने के पीछे के कारण साफ़ हैं। कॉन्फ्रेंस के लिए 11 सितंबर का चुना जाना भी केवल संयोग नहीं है। यह उस सोच के तहत किया गया प्रयास है जिसमें कुछ हिंदू विरोधी लोग और संस्थाएँ मिलकर उन तथ्यों पर चूना पोत देना चाहते हैं जिसके लिए 11 सितंबर का दिन अमेरिका में याद किया जाता है। हिंदुत्व को वैश्विक खतरा बताने के पीछे सोच यह है कि इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रही दुनियाँ को एक बनावटी डिस्कोर्स थमा कर उसे किसी और रास्ते पर लगा दिया जाए ताकि पहले से चल रही तमाम भ्रांतियों की रक्षा की जा सके। यह सोच और प्रोपेगेंडा से उपजी स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक हिंदुओं की सतर्कता आज की ही नहीं भविष्य की भी आवश्यकता है।

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