ईरान, इराक और अफगानिस्तान तो पहले ही कब्जा चुके थे। बांग्लादेश और पाकिस्तान उन्होंने हमारे सामने कब्जाया। राजनीति के द्वारा कब्जाया। और महा ह$मी उस मोहनदास करमचंद गाँधी ने सत्यानाश कर दिया। नाथूराम गोडसे जी को नमस्कार है, मार डाला उस ह$मी को।
यह वह बयान है जिसको लेकर कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी हुई। यह बात उन्होंने रायपुर की उस धर्म संसद में कही थी जिसके आयोजकों में कॉन्ग्रेसी शामिल हैं। रायपुर पुलिस ने उन्हें 30 दिसंबर 2021 को मध्य प्रदेश के खजुराहो से गिरफ्तार कर लिया। वो भी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना। यह हम नहीं कह रहे। यह संवैधानिक तरीके से चुनी गई मध्य प्रदेश सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, “कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी छत्तीसगढ़ पुलिस ने जिस तरीके से की है, वह संघीय मर्यादा के खिलाफ है। कॉन्ग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार को इंटरस्टेट प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था। मध्य प्रदेश के डीजीपी को छत्तीसगढ़ के अपने समकक्ष से बात कर गिरफ्तारी के तरीके पर विरोध जताने और स्पष्टीकरण लेने के निर्देश दिए हैं।”
सवाल गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रियाओं के पालन नहीं होने का ही नहीं है। यह भी नहीं है कि कालीचरण महाराज ने जिन शब्दों का इस्तेमाल क्या, वह किया जाना चाहिए था या नहीं। सवाल उन विचित्रताओं का है जो हिंदू ऐसे हर मामले में दिखाते हैं। उन्हें मुहम्मदवाद के खतरे से भी लड़ना और वामपंथियों की वाहवाही भी लेनी है। उन्हें पैगंबर को मानने वाले कट्टरपंथियों की हिंसा को लेकर चिंता भी दिखानी है और लिबरलों की नजर में सहिष्णु दिखने के लिए गाँधी को ‘पैगंबर’ भी बनाना है।
कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी छत्तीसगढ़ पुलिस ने जिस तरीके से की है वह संघीय मर्यादा के खिलाफ है। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार को इंटरस्टेट प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था।@DGP_MP को छग DGP से बात कर गिरफ्तारी के तरीके पर विरोध जताकर स्पष्टीकरण लेने के निर्देश दिए है। pic.twitter.com/pWYXDlFvgm
— Dr Narottam Mishra (@drnarottammisra) December 30, 2021
क्या यह विचित्र नहीं है कि इस देश में हिंदू अराध्यों को गाली दी जा सकती है, उनके मंदिरों पर हमला किया जा सकता है, उनके देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ी जा सकती है, हिंदुओं के नरसंहार के लिए कहा जा सकता है, देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात हो सकती है… लेकिन गाँधी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, गोडसे को नमस्कार नहीं कहा जा सकता।
गाँधी कोई पवित्र गाय नहीं हैं। हमारी परंपरा भी किसी को पवित्र गाय मानने की नहीं रही है। गर्भावस्था में सीता का परित्याग करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम से भी सवाल करने की इस समाज को स्वतंत्रता रही है। भगवान राम को पूजने वाले मैथिल उस विवाह पंचमी (जिसे विवाह के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है) को अपनी बेटियों की शादी नहीं करते और इसे भगवान राम की आलोचना के तौर पर ही देखा जाना चाहिए, उनके जीवन चरित्र पर सवाल ही माना जाना चाहिए कि विवाह पंचमी को ब्याही गई सीता को हुए कष्ट ने इस तिथि को ही त्याज्य बना दिया। फिर गाँधी पर सवाल क्यों नहीं पूछे जा सकते? क्या यह मान लिया जाए कि गाँधी राम से भी बड़े हैं? या फिर केवल इसलिए चुप रहना चाहिए क्योंकि गाँधी के लिए मीठा-मीठा कहने से सियासी फायदे होते हैं, वामपंथी-लिबरल गैंग से सर्टिफिकेट मिलना आसान हो जाता है?
गाँधी पर सवाल करना उनके योगदान को खारिज करना नहीं है। यह हमारा साक्षात्कार उस सत्य से कराता है जिसके कारण हमारे राष्ट्र का विभाजन हुआ। जिसने इस देश में मुस्लिम तुष्टिकरण के बीज बोए। जिसने इस देश के एक प्रधानमंत्री को यह कहने की हिम्मत दी कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। जिसने कट्टरपंथियों को ‘पैगंबर बिल’ के लिए प्रदर्शन की आजादी दी। आजाद मैदान में बलिदानियों का अपमान करने की आजादी दी। यह कहने की आजादी दी कि 15 मिनट दो फिर देखो तुम्हारा क्या होता है। एक हिंदू महिला से शादी करने वाले मुस्लिम अभिनेता को गृहयुद्ध की धमकी देने की आजादी दी।
इसलिए गाँधी पर सवाल जरूरी हैं। बार-बार सवाल किए जाने चाहिए। आंबेडकर जैसे उनके समकालीनों ने भी उन पर सवाल उठाए थे। कालीचरण महाराज जैसों के सवाल केवल कुछ शब्द बीप कर खारिज नहीं किए जा सकते।
हिंदुओं को तय करना ही होगा, जब पैगंबर को मानने वाले कट्टरपंथियों ने पूरी दुनिया को इतना हिंसक बना रखा है तो और ‘पैगंबर’ पैदा कर वे क्या करेंगे? इस ‘पैगंबरवाद’ को आज नहीं रोका गया तो कल को किसी कालीचरण महाराज का गला उसी तरह रेत दिया जाएगा, जैसे कमलेश तिवारी तक का रेता गया। ध्यान रखिएगा जैसे गाँधी को गोली मारने से गोडसे की देशभक्ति खत्म नहीं होती, उसी तरह ‘ह$मी’ की आड़ में सवालों को दबाया नहीं जा सकता।