बिहार में आरक्षण को 75% करने वाला बिल गुरुवार (9 नवंबर 2023) को बिहार विधानसभा में पारित हो गया। इस बिल के तहत बिहार में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), EBC और EWS के आदि मिलाकर आरक्षण की मौजूदा सीमा 50% को बढ़ाया गया है।
हालाँकि, इसे लागू कैसे किया जाएगा, इस को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस अधिनियम को लागू करने की राह में कई दिक्कतें हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय की है। इसके ऊपर आरक्षण को बढ़ाना संवैधानिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।
बिहार में अब आरक्षण की सीमा 75% होगी
अब तक पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को 30 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था, लेकिन नए कानून के तहत इस वर्ग को 43 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसी तरह, पहले अनुसूचित जाति (SC) वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण था, अब 20 प्रतिशत मिलेगा।
अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग को पहले एक प्रतिशत आरक्षण था, जो बढ़कर दो प्रतिशत हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए दी गई 10 प्रतिशत आरक्षण की सीमा बनी रहेगी। इस तरह से कुल आरक्षण की सीमा अब 75 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है।
आरक्षण संशोधन विधेयक बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से पास। pic.twitter.com/8FfjwPAYOo
— News18 Bihar (@News18Bihar) November 9, 2023
सर्वसम्मति से पास हुआ प्रस्ताव
बिहार सरकार के प्रस्ताव का विपक्ष ने भी समर्थन किया है। इस तरह से ये विधेयक सर्वसम्मति से पास हुआ है। हालाँकि, सरकार को आरक्षण 75% करने वाले अधिनियम को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए अनुमति लेनी होगी।
अगर इतिहास को देखें तो कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्य सरकारों की इस तरह की अपील को खारिज कर दिया है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसी सरकारों को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के चलते अपने राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने वाले कदम को वापस खींचना पड़ा था।
दरअसल, 1992 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इंदिरा साहनी केस के फैसले में तय किया था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है। मंडल कमीशन की सिफारिश पर अमल के फैसले के खिलाफ इंदिरा साहनी की अपील पर यह फैसला आया था।
फिलहाल तमिलनाडु ही देश का ऐसा इकलौता राज्य है, जहाँ 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी फैसले के आधार पर मराठा और जाट आरक्षण को 50 फीसदी की सीमा को लाँघने वाला बताकर खारिज कर दिया था।
इस राज्यों को झटका दे चुका है सुप्रीम कोर्ट
आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के गुस्से का शिकार कई राज्य हुए हैं। इसमें आंध्र प्रदेश भी शामिल है। आंध्र प्रदेश में साल 1986 में आरक्षण को बढ़ाने का फैसला हुआ था, लेकिन साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।
महाराष्ट्र की बात करें तो राज्य में मराठा आरक्षण की माँग लंबे समय से हो रही है। साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था, लेकिन जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये आरक्षण घटाकर शिक्षा में 12 प्रतिशत और नौकरी में 13 प्रतिशत कर दिया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। हालाँकि अब भी राज्य में ईडब्ल्यूएस कोटे को मिलाकर 62 प्रतिशत आरक्षण है, जो तय सीमा से 2 प्रतिशत ज्यादा है।
मध्य प्रदेश में साल 2019 में राज्य सरकार की नौकरियों में 73 प्रतिशत का आरक्षण लागू किया गया था। हालाँकि, इस पर पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड जैसे राज्यों में भी आरक्षण का मामला लंबित है।
आरक्षण लागू कराने का एक रास्ता तो है, लेकिन…
हालाँकि, आरक्षण को लागू कराने का एक रास्ता नीतीश कुमार की सरकार के पास है, लेकिन क्या उस रास्ते पर चलकर नीतीश कुमार की सरकार सफल हो पाएगी? दरअसल, संविधान की नौंवी अनुसूची में केंद्रीय और राज्यों के कानूनों की एक लिस्ट है, जिसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
संविधान की नौंवी अनुसूची को पहले संविधान संशोधन के जरिए 1951 में जोड़ा गया था। संविधान के अनुच्छेद 31ए और 31बी के तहत इसमें शामिल कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण हासिल है। हालाँकि अगर कोई भी कानून मूल अधिकारों का हनन करेगा तो कोर्ट उसे रद्द भी कर सकती है।
तमिलनाडु सरकार ने इसी व्यवस्था को अपनाकर राज्य में 69 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इससे संबंधित एक विधेयक विधानसभा में पास कराकर उसे संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ने इस आग्रह को मान लिया था।
बिहार सरकार ने जारी किए जाति आधारित जनगणना के आँकड़े
बता दें कि मंगलवार (7 नवंबर, 2023) बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आँकड़ों के बाद विधानसभा के पटल पर पूरे बिहार की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का आँकड़ा रखा। इसके मुताबिक, बिहार में कुल 2 करोड़ 76 लाख 68 हजार 930 परिवार हैं, जिसमें से 94 लाख 42 हजार 786 परिवार गरीब हैं।
ये कुल परिवारों का 34.13 प्रतिशत आँकड़ा है। इस गणना के हिसाब से बिहार में सामान्य वर्ग के कुल 43 लाख 28 हजार 282 परिवार हैं, जिसका 25 प्रतिशत से अधिक हिस्सा गरीबी में जीवनयापन कर रहा है।