Monday, November 18, 2024
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मुहर्रम पर उत्पाती-हमलावर-पाकिस्तान जिंदाबाद वाली भीड़ – OK है… तो सुअरिया मेला में हिंदुओं पर क्यों बरसी पुलिस की लाठी?

सुअर की बलि देना चाहते हैं तो पुलिस की लाठी खाइए... क्योंकि उस दिन मुहर्रम है, शांतिप्रिय लोगों के साथ सुअर-हराम वाली बात हो जाएगी। दही-हांडी से लेकर जलीकट्टू तक... कोर्ट के फैसलों को भी समझिए। क्या हिंदुओं के त्योहार इसीलिए हैं कि उनका अपमान किया जाए?

देश के विभिन्न हिस्सों से मुहर्रम पर निकाले गए जुलूस के दौरान हंगामे और झड़प की खबरें सामने आईं। कहीं पुलिस पर पथराव किया गया तो कहीं ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कुछ घटनाओं की जानकारी तो पदाधिकारी को भी नहीं है, तो कही पर कार्रवाई करने की बात कही जा रही है।

गुरुवार (अगस्त 19, 2021) को मध्य प्रदेश के उज्जैन में मुहर्रम के अवसर पर देश विरोधी नारे लगाने का मामला सामने आया। वहाँ भीड़ में कुछ युवकों ने देश विरोधी नारे लगाए और फिर पाकिस्तान जिंदाबाद चिल्लाने लगे। बताया गया कि भारी भीड़ के बीच गीता कॉलोनी में मुहर्रम का ताजिया उठ रहा था। इसी बीच देश विरोधी नारे लगे और युवक पाकिस्तान जिंदाबाद चिल्लाने लगे।

वहीं बिहार के समस्तीपुर में मुहर्रम का जुलूस निकालने के दौरान हुए हिंसक झड़प में लाठी चली, पत्थरबाजी की गई और साथ ही फायरिंग भी हुई। हैरत की बात यह है कि मौके पर कोई पुलिस बल तैनात नहीं थी और पुलिस अधिकारी को अभी तक इसकी कोई सूचना नहीं है।

बिहार के ही कटिहार जिले से भी दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है। पूर्णिया से इलाज कराकर लौट रहे परिवार पर मुहर्रम के जुलूस में शामिल कुछ लफंगों ने हमला कर दिया। मामला जिले के कोढ़ा थाना के मूसापुर चौक का है। NH-31 पर 20 अगस्त को प्रतिबंध के बावजूद मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। 

इसी दौरान, पूर्णिया से लौट रहा परिवार इस जुलूस में फँस गया। इस बीच कुछ लफंगों ने गाड़ी पर हमला बोला दिया। लाठी-डंडों से गाड़ी और गाड़ी सवार लोगों को निशाना बनाया गया। गाड़ी में महिलाएँ और बच्चे भी थे लेकिन भीड़ ने कुछ नहीं देखा। लोग लाठी-डंडों से वाहन पर वार करते रहे।

इस हमले में गाड़ी का ड्राइवर बुरी तरह से जख्मी हो गया। वहीं, परिवार के चार सदस्यों को गहरी चोटें आईं। गाड़ी में सवार लोगों से नकद और मोबाइल भी लूट लिया गया। पीड़ित परिवार जैसे-तैसे जान बचाकर वहाँ से निकल गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि मुहर्रम के जुलूस पर रोक के बावजूद जुलूस निकाला गया और भारी संख्या में लोग शामिल हुए। यह पुलिस प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है। बिहार के ही गोपीलगंज में भी प्रतिबंध के बावजूद जुलूस निकाला गया।

इसके अलावा नेपाल की ओर से अररिया जिले के जोगबनी के मटियरवा के रास्ते तजिया जुलूस के साथ नेपाली लोगों का झुंड भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर गया। हैरानी यह कि पुलिस को इसकी भनक भी नहीं लगी। सूचना मिलने पर मौके पर पहुँची पुलिस ने उसे रोकना चाहा तो जुलूस में शामिल लोगों ने सुरक्षाकर्मियों और पुलिस बलों पर पथराव कर दिया। इसमें कई पुलिसकर्मियों के चोटिल होने की बात कही जा रही है। 

प्रतिबंध के बावजूद नेपाल की ओर से जुलूस के भारत में प्रवेश कर जाने पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं और इसका उठना लाजिमी  भी है। सवाल यह है कि जब कोरोना को लेकर भारतीय क्षेत्रों में मुहर्रम पर तजिया जुलूस पर प्रतिबंध था तो फिर भारतीय क्षेत्र में नेपाल से होकर जुलूस कैसे प्रवेश किया। सीमा पर तैनात एसएसबी के अधिकारी कहाँ थे और घटना के बाद भी क्यों मूकदर्शक बने रहे। घटना के समय और बाद में अधिकारियों के पहुँचने के समय प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट मौके पर क्यों नहीं मौजूद थे।

दिलचस्प बात यह है कि सीमा पार से तजिया लेकर जुलूस देश में घुस जाता है, वहाँ पर पुलिस की नियुक्ति नहीं होती है, लेकिन मुजफ्फरपुर के देवरिया थाना क्षेत्र में सुअरिया मेला के आयोजन में पुलिस तैनात रहती है। सिर्फ तैनात ही नहीं रहती, वहाँ पर हिंदुओं के साथ ज्यादती भी की जाती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहाँ पर मुहर्रम पर ताजिया जुलूस व सुअरिया मेला के आयोजन को लेकर दो पक्षों में तनाव उत्पन्न हो गया। दोनों तरफ से सैकड़ों लोग वहाँ पर जमा हो गए। दोनों पक्ष के लोगों ने पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई करने का आरोप ​लगाया। 

स्थानीय लोगों ने पुलिस पर आरोप लगाया कि इन्होंने बलि के लिए सुअर लेकर जा रहे ग्रामीण के हाथों से सुअर को छीनकर भगा दिया। इसकी वजह से हिन्दू ग्रामीण आक्रोशित हो गए और पुलिस पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। ग्रामीणों ने पुलिस को वहाँ से भगाने के लिए उन पर पथराव करना शुरू कर दिया। इसके बाद पुलिस ने आक्रोशित ग्रामीणों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया, जिसमें एक दर्जन ग्रामीण घायल हो गए हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो पुलिस की तरफ से भीड़ को नियंत्रित करने के लिए चार राउंड हवाई फायरिंग भी की गई। 

हिंदुओं के त्योहार में पुलिस की ज्यादती की यह पहली घटना नहीं है। पिछले साल बिहार के मुंगेर में दुर्गा पूजा के बाद माता की प्रतिमा के विसर्जन के दौरान पुलिस बर्बरता की घटना सामने आई थी, बर्बरता के वीडियो सामने आए थे। ये वीडियो मुंगेर के दुर्गा पूजा समिति के कार्यकर्ताओं और भक्तों द्वारा झेले गए अत्याचार की गवाही दे रहे थे। माँ दुर्गा सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ किस तरह श्रद्धालुओं से विहीन, निर्जन सड़क पर अकेली पड़ी थीं – ये दृश्य किसी भी हिन्दू के कलेजे पर वार करने वाला था, इस सच्चाई से हर हिंदू को रूबरू होना चाहिए।

26 अक्टूबर 2020 की रात माँ दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन यात्रा पर मुंगेर पुलिस के लाठीचार्ज का वीडियो वायरल होने के बाद जिला प्रशासन की खासी आलोचना भी हुई थी। इस घटना पर एसपी लिपि सिंह ने दावा किया था कि प्रतिमा विसर्जन के दौरान असामाजिक तत्वों ने पुलिस पर पथराव किया और गोलीबारी की, जिसके बाद अपने बचाव में पुलिस ने कार्रवाई की। हालाँकि घटनास्थल पर मौजूद सीआइएसएफ़ (CISF) ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया था कि घटना में पुलिस की तरफ से बड़ी गलती हुई थी। इसके अलावा रिपोर्ट में यह बात भी कही गई थी कि 26 अक्टूबर को गोली पुलिस द्वारा ही चलाई गई थी। 

इस घटना ने पुलिसिया क्रूरता की एक अलग ही तस्वीर दिखाई थी। जब यह घटना हुई थी, उस समय लिपि सिं​ह मुंगेर की एसपी हुआ करती थीं। इस घटना के बाद उन्हें चुनाव आयोग ने हटा दिया था। उसके बाद से लिपि सिंह पर कार्रवाई को लेकर लगातार माँग भी उठती रही। जिसके बाद खबर आई कि बिहार सरकार ने पोस्टिंग की प्रतीक्षा में रही लिपि सिंह को सहरसा का एसपी बना दिया। वैसे अधिकारियों के तबादले या उन्हें जिले की कमान दिया जाना असामान्य बात नहीं है। लेकिन, इस मामले में जिस तरह पुलिसिया बर्बरता सामने आई थी, वैसे में सरकार उन अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से बच सकती थी, जिनकी भूमिका पर सीधे सवाल हैं। 

हमारे देश में अमूमन हिंदुओं के त्योहारों, मान्यताओं पर ही निशाना साधा जाता है। फिर वह चाहे होली हो, दिवाली हो, गणेश चतुर्थी हो या फिर रामनवमी। रामनवमी जुलूस और सावन में काँवड़ यात्रा के दौरान पुलिस काफी सक्रिय हो जाती है, वहीं मुहर्रम या बकरीद जैसे पर्व के दौरान तो आपको पुलिस की ‘कार्रवाई’ देखने को मिल ही जाती है।

क्या हिंदुओं के त्योहार इसीलिए बनाए गए हैं कि उनका इस कदर अपमान किया जाए? और यदि आप इस पर सवाल उठाते हैं तो आप ही कट्टर हिंदू हो जाएँगे और आप ही असहिष्णु भी। आखिर कब तक हम सहते रहें अपने देवी-देवताओं का मजाक? कब तक अपने ही त्योहारों पर हम इस तरह की उपेक्षा और बर्बरता को झेलते रहें और क्यों? जवाब है तो दीजिए नहीं तो चुप ही रहिए और ऐसे ही ‘सहिष्णु’ बने रहिए। 

ये प्रश्न सिर्फ हमारे-आपके त्योहारों तक सीमित नहीं है बल्कि यह प्रश्न है हमारी-आपकी सोच पर। अपनी संस्कृती को खोकर कोई भी समाज या राष्ट्र अपना सम्पूर्ण विकास नहीं कर सकता। इसलिए हिंदू-घृणा से सने लोगों ने, “अगर किसी राष्ट्र को या समाज को तोड़ना है, उसे बाँटना है तो उसकी जड़ पर यानी उसकी बरसों पुरानी संस्कृती, रीती-रिवाजों पर वार करना होता है” – वाली नीति अपनाई। दही-हांडी से लेकर जलीकट्टू तक… कोर्ट के फैसलों को भी समझिए। यह सोच हमारी-आपकी संस्कृति पर आघात करने के मकसद से है, इसे पहचानिए।

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