2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम 2 नेताओं के लिए एकदम वैसा रहा, जिसकी खोज में वो वर्षों से थे। ये दोनों नेता हैं TDP के चंद्रबाबू नायडू और JDU के नीतीश कुमार। एक आंध्र प्रदेश में राज करता रहा है, दूसरा बिहार में। आंध्र प्रदेश से निकल कर तेलंगाना अलग राज्य बना, हैदराबाद भी वहाँ चला गया। बिहार के लिए शुरू से विशेष राज्य का दर्जा माँगा जाता रहा है। ऐसे में Kingmaker वाला जो किरदार हर खेमे में घूम-घूम कर नीतीश बाबू और चंद्रबाबू खोज रहे थे, वो आखिरकार उन्हें मिल गया है।
सबसे पहले आँकड़े समझ लेते हैं। NDA को 292 सीटें प्राप्त हुई हैं, वहीं I.N.D.I. गठबंधन को 234 सीटें। इस तरह से NDA जहाँ बहुमत से 20 सीटें अधिक लेकर आया है, वहीं I.N.D.I. गठबंधन बहुमत से 38 सीटें पीछे रह गया है। NDA में भाजपा के पास 240 सीटें हैं, ऐसे में उसे अपने सहयोगियों की 32 सीटों की आवश्यकता होगी। TDP की 16 सीटें हैं और JDU की 12, इन दोनों को मिला कर BJP+ 268 सीटों तक पहुँच रहा है। फिर भी उसे 4 सीटों की आवश्यकता पड़ेगी।
NDA में शामिल शिवसेना (शिंदे गुट) के पास 7 और चिराग पासवान की RLJP के पास 5 सीटें आई हैं। ऐसे में इन दोनों में से किसी एक को भी जोड़ दें तो भाजपा 3 दलों को साथ लेकर आराम से बहुमत प्राप्त कर रही है। लेकिन, फ़िलहाल ये दिख रहा है कि ये चारों पार्टियाँ मजबूती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी हैं। ये 4 दल मिला कर ही भाजपा गठबंधन के पास 280 सीटें हो जा रही हैं। जबकि उसके पास अन्य दलों की 12 स्टिरिक्त सीटें भी हैं।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू: NDA के Kingmaker
तो ये थी आँकड़ों की बात। अगर भाजपा के लिए सबसे ख़राब परिदृश्य की बात करें तो TDP या JDU में से कोई एक निकल भी जाती है तो भी NDA बहुमत के पार रहेगा आराम से। लेकिन हाँ, अगर दोनों दल चले जाते हैं तो फिर बहुमत के लिए लाले पड़ सकते हैं। ऐसी अटकलें I.N.D.I. गठबंधन वाले लगाते हुए भले ही कितने ही अतरंगी सपने देख लें, ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है। आइए, अब बात करते हैं कैसे चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के लिए ये सबसे मुफीद परिणाम हैं।
आंध्र प्रदेश में इस लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हुए हैं। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी 175 में से 135 सीटें जीतते हुए अकेले दम पर बहुमत के पार पहुँच गई है। उसके साथ अभिनेता पवन कल्याण की ‘जनसेना पार्टी’ है ही जिसने 21 सीटें जीती हैं और गठबंधन साथी भाजपा को भी 8 सीटें प्राप्त हुईं। उधर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, बीच के 9 महीने को छोड़ दें तो लगातार पिछले 19 वर्षों से। जून 2013 तक वो भाजपा के साथ रहे थे, फिर राजद के साथ चले गए।
Why Chandrababu Naidu and Nitish Kumar will stick with the BJP?
— TIMES NOW (@TimesNow) June 5, 2024
Watch as @Navikakumar gets the explosive details & decodes the TDP-JDU number game.#TDP #JDU #NDA pic.twitter.com/ujSTw8srxp
नवंबर 2015 से लेकर जुलाई 2017 तक उन्होंने राजद के साथ गठबंधन में सरकार चलाई, फिर अगस्त 2022 तक भाजपा के साथ रहे। उसके बाद वो फिर से डेढ़ साल के लिए RJD के साथ गए, अब वो फिर से भाजपा के साथ हैं। इस तरह से नीतीश कुमार इस खेमे से उस खेमे तक लगातार अपनी मुख्य भूमिका की तलाश में घूमते रहे, जो उन्हें अब तक मिला नहीं था। आइए, एक-एक कर के देखते हैं कैसे चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को मनचाही चीजें मिल गई हैं।
चंद्रबाबू नायडू: 2019 में विपक्षी एकता के सूत्रधार
सबसे पहले बात करते हैं चंद्रबाबू नायडू की। आपको याद होगा, 2019 लोकसभा चुनाव से कुछ महीनों पहले तक वो NDA में ही हुआ करते थे। 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ मिल कर लड़ा था। उन्हें 16 सीटें प्राप्त हुई थीं। उन्होंने राज्य में सरकार भी बनाई और मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, इतना कुछ मिलने के बावजूद उनमें विपक्षी एकता बनाने की चूल घुस गई और उन्होंने राज्य-राज्य का दौरा करना शुरू कर दिया, मार्च 2018 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आंध्र प्रदेश के साथ अन्याय का आरोप लगाते हुए गठबंधन को अलविदा कह दिया।
चंद्रबाबू नायडू हमेशा से किंगमेकर की भूमिका में आना चाह रहे थे, जो उन्हें मिल नहीं रही थी NDA में क्योंकि भाजपा बहुमत से 10 अधिक सीटें जीत कर सत्ता में थी और मोलभाव की टेबल पर सब कुछ उसके पक्ष में था। 2019 में चंद्रबाबू नायडू ने विपक्षी एकता के सहारे फिर से किंगमेकर बनने की सोची। यहाँ तक कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल जाकर खड़गपुर में वहाँ की CM ममता बनर्जी तक के साथ रैली की थी, फिर राहुल गाँधी के साथ दिल्ली में मुलाकात कर मतगणना से 2 दिन पहले होने वाली विपक्षी बैठक को लेकर मंथन किया था।
इस तरह वो खुद को अपोजिशन यूनिटी के फ्रंट में रख रहे थे। तब भी लगभग 21 पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ एकता दिखाते हुए बैठक की थी। हालाँकि, KCR जैसे नेता तब तीसरे फ्रंट के गठन में भी लगे हुए थे। चंद्रबाबू नायडू ने तब अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की थी। हालाँकि, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में 16 से मात्र 3 सीटों पर सीमट गई। उसे 12 सीटों का नुकसान हुआ। राज्य की सरकार भी उनके हाथ से जाती रही।
कहाँ TDP की आंध्र प्रदेश विधानसभा में 102 सीटें थी, कहाँ TDP सीधा 23 पर आ गई। जगन मोहन रेड्डी की YSRCP ने उन्हें पटखनी दे दी, जिसका बदला उन्होंने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में लिया है। चंद्रबाबू नायडू जानते हैं अमरावती को बतौर आंध्र प्रदेश की राजधानी विकसित करने की उनकी योजना में केंद्र सरकार के साथ सहयोग आवश्यक होगा, क्योंकि हैदराबाद नए राज्य के गठन के बाद तेलंगाना में चला गया। उनके साथ गठबंधन में अभिनेता पवन कल्याण भी हैं, जिनके PM नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते हैं।
नीतीश कुमार: I.N.D.I. गठबंधन उन्हीं की देन
अब ज़रा बात कर लें, नीतीश कुमार की जो ‘सबके हैं’। उन्हें भाजपा भी साथ लेती है और राजद भी, लेकिन दोनों के ही समर्थक उन्हें ‘पलटूराम’ भी कहते हैं। ऊपर हम चर्चा कर चुके हैं कि कैसे वो दोनों दलों के साथ सरकार बना चुके हैं। नीतीश कुमार तो Kingmaker बनने के लिए 2013 से ही प्रयास कर रहे हैं, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के खिलाफ पहली बार भाजपा का साथ छोड़ा था, 1998 से ही ये गठबंधन चला आ रहा था।
नीतीश कुमार ‘दबाव की राजनीति’ के विशेषज्ञ हैं और इसी के सहारे वो पिछले 19 वर्षों से सत्ता में टिके हुए हैं। बिहार एक गरीब राज्य है, जहाँ पलायन मुख्य समस्या है। अपराध पर तो अंकुश लगा, लेकिन हर जिले के जो उद्योग-धंधे चौपट हुए वो आज तक नहीं सुधर पाए। रोजगार नहीं है, भ्रष्टाचार हावी है, शिक्षकों पर KK पाठक का कहर चल रहा है, शिक्षा-स्वास्थ्य की व्यवस्था चरमराई हुई है, जातिवाद चरम पर है और राजद आग लगाने की राजनीति में माहिर है।
अभी जिस I.N.D.I. गठबंधन को आप देख रहे हैं, वो नीतीश कुमार का ही बनाया हुआ है। पटना, बेंगलुरु और मुंबई में जो इसकी पहली 3 बैठकें हुई थीं, नीतीश कुमार उसका मुख्य हिस्सा रहे थे और ये उनकी पहल पर ही हुआ था। चेन्नई में MK स्टालिन और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से लेकर लखनऊ में अखिलेश यादव और ओडिशा में नवीन पटनायक तक से उन्होंने मुलाकात की। जब गठबंधन बन जाने के बाद कॉन्ग्रेस ने इसे हाईजैक कर लिया, नीतीश कुमार इससे चलते बने।
नीतीश कुमार का 2025 के बाद भविष्य क्या होगा, ये भी अभी स्पष्ट नहीं है। 2025 के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं और जिस तरह से तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD का ग्राफ बढ़ रहा है, नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा, चिराग पासवान की RLJP, जीतन राम माँझी और उपेंद्र कुशवाहा का साथ उनके लिए काम का है। नीतीश कुमार को NDA गठबंधन में अब वो मिल रहा है, जिसकी उन्हें वर्षों से चाह थी। प्रधानमंत्री पद अब भी क्षेत्रीय दलों के लिए दूर की कौड़ी है क्योंकि स्थिति 1996 वाली नहीं है, ऐसे में किंगमेकर कहलाने का जो उनका अपना था, वो पूरा हो रहा है।