कॉन्ग्रेस पार्टी के मेनिफेस्टो के बारे में लिखने पर ‘भीखू म्हात्रे’ नाम के सोशल मीडिया यूजर को बेंगलुरु पुलिस ने गोवा में जाकर गिरफ्तार कर लिया। खास बात ये है कि ‘भिकू म्हात्रे‘ कॉन्ग्रेस पार्टी के उसी मेनिफेस्टो के बारे में बता रहे थे, जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी ने ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ जैसी ‘बड़ी-बड़ी’ लिखी हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में दावा किया है कि वो ‘मीडिया’, ‘सोशल मीडिया’, ‘बिना वजह गिरफ्तारी’ जैसी चीजों से लोगों की रक्षा करेगी। वो ‘जेल नहीं बेल’ को अधिकार बनाएगी। लेकिन ये सब कैसे?
कॉन्ग्रेस की जिन राज्यों में सरकारें हैं या फिर कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाले टूटे-फूटे गठबंधन इंडी अलायंस की, वहाँ सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक का दमन किया जा रहा है। कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार की पुलिस गोवा से ‘भीखू म्हात्रे’ को गिरफ्तार करती है, तो कॉन्ग्रेस की सहयोगी डीएमके की पुलिस की बिहार से, आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार की पुलिस यूपी से बाकायदा ‘गिरफ्तारी के लिए किडनैपिंग’ करती है, तो ममता बनर्जी की सरकार संदेशखाली मुद्दे की कवरेज करने मात्र से मीडिया कर्मियों पर दनादन मुकदमे लाद देती है। वैसे, कॉन्ग्रेस नीत महाविकास आघाड़ी की महाराष्ट्र सरकार ने पत्रकारों के खिलाफ क्या क्या कदम उठाए, वो किसी को याद दिलाने भर की जरूरत नहीं। अर्नब गोस्वामी के मामले में उसे कोर्ट से बुरी तरह लताड़ भी मिली और वो बाइज्जत सभी मामलों में बरी भी हुए।
इन सबके बावजूद कॉन्ग्रेस पार्टी की हिम्मत देखिए, वो मेनिफेस्टो में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ जैसे भारी भरकम शब्द का तो इस्तेमाल करती है, लेकिन भिकू म्हात्रे नाम से एक्स प्रोफाइल चलाने वाले को सिर्फ इसलिए कर्नाटक की बेंगलुरु पुलिस गिरफ्तार करती है, क्योंकि उन्होंने ‘कॉन्ग्रेस के मेनिफेस्टो में मुस्लिम शब्द के इस्तेमाल’ की बात जोर देकर कही, जिसे खुद कॉन्ग्रेस समर्थक नकार रहे थे। देखिए, कॉन्ग्रेस अपने मेनिफेस्टो में बेलगमा शक्तियों, कुर्की, जब्ती, गिरफ्तारी की सिर्फ ‘बात’ कैसे लिख रही है।
HT की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु में 29 अप्रैल 2024 को कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता ने साइबर क्राइम पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। ये शिकायत उनके किसी पोस्ट को लेकर थी, जिसमें सेक्शन 153(ए) और आईटी एक्ट की धारा 66(सी) के तहत केस दर्ज किया गया था। हालाँकि कहा ये जा रहा है कि वो ट्वीट भी डिलीट हो चुका है। इसके बावजूद बेंगलुरु पुलिस न सिर्फ गोवा पहुँची, बल्कि उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया।
दरअसल, उन्हें जिस ट्वीट को लेकर गिरफ्तार किया गया है, उसमें उन्होंने कॉन्ग्रेस के मेनिफेस्टो की बात कही है। बेंगलुरु पुलिस की एफआईआर में भी इस बात का जिक्र है, जिसमें उन्होंने लिखा है, ‘ये हर लिबरल और पिद्दी के मुँह पर मारो, जो ये कह रहा है कि कॉन्ग्रेस के मेनिफेस्टो में ‘मुस्लिम’ शब्द का जिक्र नहीं है। इसमें एससी/एसटी का भी जिक्र है।’ उन्होंने कॉन्ग्रेस के मेनिफेस्टो से जुड़ी सामग्री भी पोस्ट की थी। ये मामला उस बात से जुड़ा है, जिसमें कॉन्ग्रेस ने वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन की बात कही थी और उसमें इसे मुस्लिमों, एससी-एसटी को देने की बात थी। कॉन्ग्रेस और उसके समर्थक इस बात को नकार रही थी, जिसके बाक भिकू म्हात्रे ने मेनिफेस्टो का वो हिस्सा शेयर किया था, जिसमें मुस्लिमों और एससी-एसटी का जिक्र किया गया था। बस, इतना ही काफी था कर्नाटक की कॉन्ग्रेसी सरकार के लिए, और गोवा तक भेज दी बेंगलुरु पुलिस, करवा लिया भिकू म्हात्रे को गिरफ्तार…
बहरहाल, इस मामले में बीजेपी खुलकर भिकू म्हात्रे के साथ खड़ी हो गई है। बीजेपी ने कहा है कि वो भिकू म्हात्रे के साथ न सिर्फ खड़ी है, बल्कि उन्हें कानूनी सहायता भी प्रदान करेगी। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने कड़े शब्दों में कॉन्ग्रेस की निंदा की, तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बेंगलुरु के सांसद तेजस्वी सूर्या से बात कर उन्हें कानूनी सहायता देने की बात कही है। वहीं, खुद तेजस्वी सूर्या ने कहा है, कॉन्ग्रेस का कदम बेहद गलत है। हम (बीजेपी) कोर्ट और कोर्ट के बाहर भिकू म्हात्रे के साथ है और लड़ाई पूरी तरह से लड़ी जाएगी।
वैसे, ये पूरा कॉन्ग्रेस की उस मनोवृत्ति को दिखाता है, जिसमें वो न्याय, समानता, अधिकार, गरीबी, ओबीसी और जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें करती रहती है। राहुल गाँधी एक तरफ तो पूरे समुदाय को ही गालियों से नवाजते हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पर अभद्र टिप्पणियाँ करते हैं, वहीं दूसरी तरफ कोई कॉन्ग्रेस की बातों का ही समर्थन कर दे और वो कॉन्ग्रेस पार्टी को अपने खिलाफ जान पड़े, तो तुरंत कानूनी कार्रवाई करती है। जिन राज्यों में कॉन्ग्रेस की सरकारें हैं, वहाँ स्थानीय तौर पर विरोधियों के दमन की बातें आती हैं, तो जहाँ कॉन्ग्रेस की सरकारें नहीं हैं, वहाँ पुलिस भेजकर लोगों को गिरफ्तार करती है। भिकू म्हात्रे का मामला ऐसा ही है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार सिर्फ एक ही परिवार के पास है? बाकी लोगों के लिए इसका कोई मतलब नहीं, सिवाय इस बात से कि वो कॉन्ग्रेस को ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के नाम पर वोट दें और फिर कॉन्ग्रेस उन्हें ही कुचलती रहे।