मध्य प्रदेश और गुजरात में भाजपा की जीत बहुत कुछ कहती है। इसमें सबसे पहली बात तो ये है कि कृषि कानूनों पर कॉन्ग्रेस ने जो विरोध प्रदर्शन किया था और किसानों को उकसाया था, वो पूरी तरह फेल रहा। मध्य प्रदेश उन राज्यों में से है, जहाँ सबसे ज्यादा गेहूँ की खेती होती है। वहाँ की 28 सीटों में से 20 भाजपा के खाते में जाती दिख रही है और इससे स्पष्ट है कि कृषि कानूनों के अंतर्गत किसानों को केंद्र सरकार ने कहीं भी अपनी फसल बेचने की छूट दी थी, उससे वो खुश हैं।
सबसे पहले तो बाते करते हैं कि कैसे कॉन्ग्रेस ने मध्य प्रदेश के किसानों को गुमराह करने का प्रयास किया। सितम्बर में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में कृषि कानूनों को लेकर राजनीति शुरू की। उन्होंने इसे किसान विरोधी बिल करार दिया और कहा कि ये इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज होगा। उन्हें लगता था कि मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार राज्य में इसे स्वीकार करने में असहज होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
तभी तो उन्होंने सीएम से जवाब माँगा कि मध्य प्रदेश की सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करे। हालाँकि, वहाँ की भाजपा सरकार खुल कर इस बिल के समर्थन में आई और कृषि मंत्री कमल पटेल खुल कर इसके समर्थन में सामने आए और कहा कि इससे किसानों को स्वतंत्रता मिलेगी और ‘असंभव को संभव करने वाले मोदी’ ने किसान हित में ये कदम उठाया है। अकाली दल के राजग से अलग होने और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बाद विरोध ने जोर पकड़ा।
राहुल गाँधी ने पंजाब में जाकर ट्रैक्टर रैलियाँ की। इधर मध्य प्रदेश में भाजपा कृषि कानूनों के फायदों को लेकर किसानों तक जाने में सफल रही। ग्वालियर-चम्बल बेल्ट में गेहूँ और धान बड़ी मात्रा में होते हैं। चम्बल के बीहड़ के क्षेत्रों को भी कृषि के लिए उपयुक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है। ऐसे में अगर कृषि कानूनों से किसानों को सचमुच में यहाँ नुकसान हुआ होता तो वो भाजपा को वोट नहीं देते और नाराजगी जताते।
ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ है और उन्होंने ही कॉन्ग्रेस छोड़ कर कई मंत्रियों-विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामा था, इसीलिए ये चुनाव उनकी विश्वसनीयता के लिए भी परीक्षा का विषय था। उनकी सभाओं में लगने वाले ‘महाराजा-महाराजा’ के नारे क्या वोटों में तब्दील होंगे, ये उन्हें देखना था। उन्होंने कई रैलियाँ की और युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक से संपर्क साधा और उन्हें विश्वास में लिया।
आइए, कुछ ही दिनों पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू को देखते हैं, जिसमें कैसे उन्होंने कृषि को ही मुद्दा बनाया था और गिनाया था कि कैसे केंद्र और राज्य सरकार ने किसानों के लिए कई अहम फैसले लिए। ज्योतिरादित्य सिंधिया को पता था कि कॉन्ग्रेस किसानों को गुमराह करने में लगी हुई है, तभी उन्होंने TOI के रोहन दुआ से बात करते हुए ‘सीएम किसान सम्मान निधि’ की बात की थी।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ के तहत किसानों को प्रतिवर्ष 6000 रुपए देने का निर्णय लिया। जहाँ पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ये रुपए भी किसानों तक न पहुँचाए जाने और केंद्र को किसानों के नाम न मुहैया कराने के आरोप ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कॉन्ग्रेस सरकार पर लग रहा है, चौहान सरकार ने इस धनराशि में 4000 रुपए सालाना अपनी तरफ से जोड़ा और किसानों के लिए 10,000 रुपए प्रतिवर्ष का इंतजाम किया।
सिंधिया ने इसी की चर्चा की थी। इसके बाद सिंधिया ने गिनाया कि कैसे शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने किसानों से 1.3 लाख मीट्रिक टन गेहूँ का क्रय किया है। अब मध्य प्रदेश के ‘Wheat Belt’ में गेहूँ के खरीदने की बात तो असर करेगी ही। क्या कृषि कानूनों, पीएम-सीएम किसान सम्मान निधि और गेहूँ का सरकारी क्रय – ये तीनों मुद्दे भाजपा के पक्ष में गए? ताज़ा चुनाव परिणाम तो यही कह रहे हैं।
If #AgricultureBill was bad #BJP would’ve failed in MP. The big wheat belt of India. So also in Gujarat – with strong farm lobby.#ByPollResults https://t.co/9tcx6chhiB
— Ratan Sharda 🇮🇳 (@RatanSharda55) November 10, 2020
अगर भाजपा के वोट प्रतिशत की बाते करें तो ये मध्य प्रदेश उपचुनाव में 50% के भी पार दिख रहा है, जो बताता है कि उसे जनता का भी बहुमत मिल रहा है। राहुल गाँधी ट्रैक्टर में सोफा लगा कर विरोध करते दिखे थे। चुनाव प्रचार के दौरान मौके पर चौका मारते हुए चौहान ने इसे उठाया। उन्होंने तंज कसा कि राहुल गाँधी को ये तक नहीं पता कि प्याज को जमीन के भीतर उगाया जाता है या फिर जमीन के अंदर। उन्होंने जनता को ये बताने का प्रयास किया कि राहुल को कृषि के बारे में कुछ नहीं पता।
मध्य प्रदेश के लोग किसानों की कर्जमाफी के कॉन्ग्रेस के वादे को भुगत चुके थे, इसीलिए उन्होंने राहुल गाँधी पर भरोसा नहीं रहा। जिस तरह से कई किसानों को बिना कर्ज लिए कर्जमाफी के मैसेज आ गए तो कइयों के हजारों में मात्र एकाध रुपए माफ़ हुए, जिस तरह से तत्कालीन ‘सुपर सीएम’ दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ही इस मुद्दे पर धरने पर बैठ गए – उसने राज्य के किसानों के मन से सारे संशय को मिटा दिया।
हाँ, एक और बात याद रखने वाली ये है कि देश के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री मध्य प्रदेश के हैं और उसी ग्वालियर क्षेत्र से आते हैं, जहाँ चुनाव हुए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने में उनकी भी भूमिका थी। वो पहले ग्वालियर से और फिर मोरेना से सांसद चुने गए। इसीलिए, ये उनके लिए भी प्रतिष्ठा का विषय था कि उनके क्षेत्र में किसान मोदी सरकार पर पूरा विश्वास जताएँ और हुआ भी यही।
गुजरात में भाजपा क्लीन-स्वीप कर रही है और मोदी-शाह के गृह राज्य में हुए उपचुनाव में उसे 8 की 8 सीटें मिलती दिख रही हैं। कृषि कानूनों को लेकर कॉन्ग्रेस ने वहाँ भी जम कर गेम खेला, क्योंकि उन्हें लगता था कि पिछले चुनाव में जिस तरह का करीबी मुकाबला हुआ था और मीडिया ने दावा किया था कि मोदी-शाह को गुजरात की जनता ने ‘डराया’ है, उसे ध्यान में रखते हुए गुजरात में कृषि कानूनों का मुद्दा उठाना उनके लिए ठीक रहेगा।
सितम्बर के अंतिम हफ़्तों में गुजरात में विरोध प्रदर्शन तेज़ किया गया, ताकि किसानों को बरगलाया जा सके। भाजपा पर किसानों की आवाज़ दबाने के आरोप लगाते हुए राज्यपाल को ज्ञापन दिए गए। अहमदाबाद में विरोध प्रदर्शन किया गया। गुजरात विधानसभा ने भी कृषि बिल पारित किया था, इसीलिए राज्य सरकार को भी किसान विरोधी बता कर दुष्प्रचारित किया गया। गुजरात कॉन्ग्रेस के लिए ये कदम बैकफायर कर गया। कृषि कानूनों का विरोध मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस को ले डूबा।
कॉन्ग्रेस को अभी ऐसे कई परिणाम देखने हैं क्योंकि उसने असहिष्णुता और राफेल से लेकर सीएए और कृषि कानूनों तक जो भी मुद्दे उठाए हैं, भाजपा जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि ये उनके लिए सही है और कॉन्ग्रेस सिर्फ मोदी का विरोध करने के लिए उनका विरोध करने लगी। जनता को बार-बार की ये अराजकता पसंद नहीं आई और उसने इन प्रयासों को पूरी तरह नकार दिया है, ऐसा अभी लगता है।
ज्ञात हो कि इन तीनों बिलों ने 5 जून 2020 को ही अधिनियम का रूप ले लिया था, लेकिन तब से लेकर संसद में लाए जाने तक किसी भी राजनीतिक दल, किसान संगठन अथवा राज्य सरकार ने कोई विरोध नहीं जताया। क्यों? क्योंकि राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक पतन होने वाली पार्टियाँ संसद में नौटंकी कर के अस्तित्व में रहने की कोशिश करते हैं। अब किसान अपनी इच्छा के मुताबिक कहीं भी फसल बेच सकता है।