Tuesday, November 19, 2024
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कश्मीर में क्या हो रहा है? क्या हटने वाला है स्पेशल स्टेटस या तीन टुकड़ों में बँटेगा राज्य?

यह भी बताया जा रहा है कि पीएम मोदी बजट सत्र खत्म होते ही कश्मीर के संदर्भ में कोई ऑर्डिनेंस लेकर आ सकते हैं। बजट सत्र सात अगस्त को खत्म होने वाला है। अध्यादेश का मकसद होता है कि सरकार बिना संसद की अनुमति के कोई त्वरित निर्णय ले सकती है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ में 43% की कमी आई है और नए आतंकियों की भर्ती भी 40% गिरी है। पिछले साल के मुकाबले 2019 में जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर पार से घुसपैठ और आतंकी घटनाओं में 28% की गिरावट दर्ज हुई है, जबकि आतंकियों को मारने में 22% की बढ़ोतरी हुई है। साथ ही सेना के आतंकरोधी अभियान में 59% की वृद्धि हुई है। 14 जुलाई तक 126 आतंकी कश्मीर में मार गिराए गए थे।

सेना शुक्रवार को बताया था कि 83% आतंकियों का पत्थरबाजी का इतिहास होता है, 64% आतंकियों को सेना उनके आतंकी बनने के पहले साल में निपटा देती है, 7% तो पहले दस दिन में ही मारे जाते हैं। जाहिर है, सरकार ने जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई और हमारे सुरक्षाबलों ने बेहतरीन काम किया है।

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने बताया कि पिछले पाँच महीनों में घुसपैठ की कोई घटना नहीं हुई है। कुछ खबरों के मुताबिक सेना के अफसरों ने भी इस बात की पुष्टि की है। ऐसे में तो सैनिकों को वापस लेने की बात होनी चाहिए, क्योंकि खतरा घट रहा है फिर 38,000 सैनिकों को वहाँ भेजने की वजह क्या हो सकती है?

अमरनाथ यात्रा पर पाकिस्तानी आतंक का साया

अमरनाथ श्रद्धालुओं और पर्यटकों को तत्काल कश्मीर खाली करने का सरकारी फरमान सुनाया गया है। इस तरह श्रावण पूर्णिमा (15 अगस्त) को संपन्न होने वाली वार्षिक अमरनाथ यात्रा करीब 13 दिन पहले ही समाप्त कर दी गई है। इस बीच, सुरक्षा बलों ने यात्रा मार्ग से पाकिस्तान में बनी बारूदी सुरंग और बड़ी मात्रा में हथियार बरामद किए हैं।

लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों ने सुरक्षा बलों के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “खुफिया जानकारी मिली थी कि पाकिस्तान के आतंकवादी आईईडी का इस्तेमाल करके यात्रा को निशाना बना सकते हैं। इसके बाद खोजी अभियान चलाया गया था। इस दौरान भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए। इनमें पाकिस्तान आयुध फैक्टरी के ठप्पे वाली एक बारूदी सुरंग और अमेरिकी एम-24 स्नाइपर राइफल भी शामिल है।” ढिल्लों ने संबंधित स्थान का खुलासा नहीं किया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आईईडी का खतरा अंदरूनी भागों में अधिक है, नियंत्रण रेखा पर स्थिति कुल मिलाकर शांतिपूर्ण है।

एनआईटी वाली चिट्ठी

श्रीनगर के जिलाधिकारी डॉक्टर शाहिद चौधरी ने कहा कि अफवाहों के कारण सभी संस्थाओं को इससे सावधान रहने की सलाह दी गई है। किसी भी संस्थान को बंद करने का आदेश नहीं दिया गया है। एनआईटी की नोटिस महज गलतफहमी है।

स्कूलों को बंद करने की बातें

सोशल मीडिया पर शुक्रवार रात को एक चिट्ठी घूम रही थी जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) श्रीनगर ने अपने छात्रों से शनिवार सुबह तक घर लौट जाने को कहा था।
श्रीनगर के जिलाधिकारी (डीएम) डॉक्टर शाहिद चौधरी ने बाद में इसे मिसकम्युनिकेशन करार दिया।

जम्मू-कश्मीर प्रशासन का कहना है कि घाटी में ATM, स्कूल-कॉलेज से लेकर पेट्रोल पम्प पर भी माहौल सामान्य ही है। बेवजह की अफवाहें फैलाई जा रही।

पेट्रोल पंप, राशन दुकानों पर भीड़

श्रीनगर के डीएम चौधरी ने लोगों से कहा है कि जिले में जरूरत के सामानों का पर्याप्त भंडार उपलब्ध है, इसलिए वह किसी भी अफवाह पर ध्यान नहीं दें और सामानों की जमाखोरी से बचें। शहर के पेट्रोल पंप में भारी भीड़ को लेकर उन्होंने कहा कि यहाँ पर्याप्त मात्रा में पेट्रोल उपलब्ध है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘श्रीनगर में आवश्यक वस्तुओं जैसे खाना, पेट्रोल और दवाई पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। सड़कें खुली हुई हैं, इसलिए लोगों से आग्रह है कि वह अफवाहों पर ध्यान नहीं देकर सामानों की जमाखोरी से बचें।’’

सियासी हलचल

अफवाहों का बाजार तब तेजी पकड़ने लगा जब प्रशासन ने अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को जल्द ही घर वापस जाने का निर्देश दिया। आतंकी खतरे के मद्देनजर जम्‍मू-कश्‍मीर प्रशासन ने अमरनाथ यात्रा को समय से पहले खत्‍म करने की बात कही। लेकिन इससे जम्मू-कश्मीर के विपक्ष में ज्यादा भगदड़ और हलचल देखने को मिली है। 2 दिन के भीतर ही जम्मू-कश्मीर की सियासत भी गर्मा गई है।

विपक्षी दल आपात बैठक बुला रहे हैं। उनका भय जायज है, क्योंकि उन्हें अनुच्छेद 35-A को हटाने का भय सता रहा है। हालाँकि यह भी एक अफवाह मात्र है और सरकार की ओर से इस बारे में कोई भी बात नहीं की गई है। एक दिन पहले जहाँ पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात की] वहीं शनिवार (जुलाई 03, 2019) को पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला भी राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मिलने पहुँचे।

उमर अब्दुल्ला हों या फिर महबूबा मुफ़्ती हों, सभी लोग शुक्रवार से ही ट्विटर पर अचानक से सक्रिय हो गए हैं। उनका कहना है कि पिछले 24 घंटे में घाटी में जबरदस्त तनाव पैदा हो गया है।

अफवाहें या स्पेकुलेशन

अनुच्छेद 35-ए और 370 को हटाने की कोशिश: लेकिन इसके लिए सरकार को संसद की अनुमति तो लेनी होगी, या बताना तो होगा। यह मामला यूँ तो कोर्ट में है, लेकिन भाजपा के दोनों बार के मैनिफेस्टो में यह बात तो है।

अमित शाह और मोदी ने अपने बयानों और साक्षात्कारों में कई बार कहा है कि स्पेशल स्टेटस इस राज्य के विकास की राह को रोड़ा है। उमर अब्दुल्ला भी पीएम से मिल चुके हैं क्योंकि उन्हें भी 10,000 सैनिकों के भेजने का बाद ऐसा लगा कि स्पेशल स्टेटस जाने वाला है।

यह भी माना जा रहा है कि पीएम मोदी बजट सत्र के खत्म होते ही कश्मीर के संदर्भ में कोई ऑर्डिनेंस लेकर आ सकते हैं। बजट सत्र सात अगस्त को खत्म होने वाला है। अध्यादेश का मकसद होता है कि सरकार बिना संसद की अनुमति के कोई त्वरित निर्णय ले सकती है। सरकार को इससे समय मिल जाता है। उसे कानून में बदलने के लिए 6 सप्ताह के भीतर संसद का समर्थन चाहिए। साथ ही छः महीनों के भीतर संसद सत्र बुलाना जरूरी होता है।

दूसरी अफवाह यह है कि चूँकि इन दोनों को हटाने के लिए जम्मू कश्मीर विधानसभा का समर्थन चाहिए, और वो तो मिलने से रहा तो क्यों न इसे तीन टुकड़ों में बाँट दिया जाए। जिसमें कश्मीर और लद्दाख को यूनियन टैरिटरी बना दें और जम्मू को राज्य जहाँ भाजपा को बहुमत हासिल है।

तीसरी अफवाह यह है कि भाजपा सरकार हर पंचायत में तिरंगा लहराना चाहती है और उसके लिए यह इंतजाम है। साथ ही कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की जगह कश्मीर के लाल चौक में झंडा फहराएँगे।

चौथी अफवाह यह है कि सरकार कश्मीरी पंडितों को वापस ले जाना चाहती है। लेकिन इसमें उतना दम नहीं लगता, क्योंकि सैनिकों के बल पर अचानक से यह काम नहीं किया जा सकता।

अफवाहों में ‘सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स’ का अहम रोल

जम्मू-कश्मीर अक्सर चर्चा का विषय रहता है। इसके पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। सबसे ताजा प्रकरण ‘कुछ बड़ा होने वाला है’ को लेकर है। दरअसल, घाटी में सेना के भेजे जाने से लेकर स्कूल, बैंक बंद करने और सार्वजानिक स्थानों पर अफरा-तफरी होने की बातें सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिल रही हैं। ख़ास बात ये है कि भगदड़, अफरा-तफरी जैसी बातें सबसे ज्यादा बातें जम्मू-कश्मीर के सियासी दलों के नेता से लेकर JNU में बैठे कुछ फ्रीलांस प्रोटेस्टर्स के माध्यम से आगे बढ़ रही हैं।

हालाँकि प्रशासन लगातार स्पष्ट कर रहा है कि घाटी में बड़ी मात्रा में सेना भेजने से लेकर स्कूल-कॉलेज और भगदड़ आदि की ख़बरें मात्र अफवाह हैं और कश्मीर में सब कुछ सामान्य चल रहा है।

‘Clueless’ पत्रकारों का अफवाह फ़ैलाने में बड़ा योगदान

यह भी हक़ीक़त है कि पत्रकारों का एक समूह है जो आए दिन ज्यादा ही ‘Clueless’ होते जा रहा है, वह शासन-प्रशासन द्वारा कोई ‘गुप्त जानकारी’ नहीं मिलने की हताशा में सोशल मीडिया पर अपना प्रलाप बाँच रहे हैं।

फिलहाल अफवाहों पर यकीन ना कर के जम्मू-कश्मीर प्रशासन की बात पर ध्यान देना ज्यादा आवश्यक है। क्योंकि मीडिया और समाज का एक वर्ग ऐसा है जो भगदड़ और हड़बड़ी से ही अपनी रोटियाँ सेंकता आया है और वो चाहते हैं कि ‘डर का माहौल’ बना रहे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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