वर्ष 2022 में अपने जन्मदिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश स्थित कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। तब मीडिया और सोशल मीडिया में ये बड़ी बहस का मुद्दा बना था। जहाँ विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस ने इसका श्रेय लूटने की कोशिश की, वहीं लिबरल-वामपंथी गिरोह के पत्रकारों ने इसे गैर-ज़रूरी बता दिया। उन चीतों में से 9 की अब तक मौत हो चुकी है, जिनमें से 6 वयस्क थे और 3 शिशु। इसके बाद ये नैरेटिव चलाया जाने लगा कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ फेल हो गया है।
चीतों को नामीबिया से लाए जाने के समय जो लोग आलोचना कर रहे थे, उन्हें मौका मिल गया। इस साल विभिन्न बीमारियों के कारण चीतों की मौत का सिलसिला सा चल पड़ा। वहीं नामीबिया से जब और चीते मँगाए जाने की खबर आई तो लोग मीम बना कर मजाक उड़ाने लगे। वहीं कइयों ने निष्कर्ष निकाल लिया कि भारत का मौसम और वातावरण ही उनके लिए ठीक नहीं है। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ नदी, पहाड़, पत्थर जंगल, समुद्र और मैदान सब कुछ हैं – वहाँ इस तरह की बातें बचकानी हैं।
‘प्रोजेक्ट चीता’: विशेषज्ञों की निगरानी में हो रहा है काम
वो 17 सितंबर, 2022 का दिन था, जब जंगली जीवों के संरक्षण के क्रम में भारत ने देश में फिर से चीतों की जनसंख्या बढ़ाने का निर्णय लिया। चीते भारत से विलुप्त हो चुके थे। ये आज नहीं, बल्कि चीतों को दोबारा लाए जाने से 75 साल पहले हो हो गया था। चीता को धरती पर सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर कहा जाता है। चीते 100 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक की रफ़्तार से दौड़ सकते थे। साथ ही वो दौड़ते-दौड़ते तुरंत रफ़्तार बढ़ाने की क्षमता के भी धनी होते हैं।
भारत ने चीते इसीलिए नहीं लाए ताकि देश ये कह सके कि हमारे पास चीते हैं। बल्कि चीतों के संरक्षण के साथ-साथ उनकी जनसंख्या बढ़ाने के लिए ऐसा किया गया। उन्हें प्राकृतिक खजाने के रूप में समझा गया। इस कार्यक्रम के तहत नामीबिया से 8 और फिर फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए। कुल 20 चीते कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए। ये भारत के लिए पहली अंतरमहाद्वीपीय ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया थी। ऐसा नहीं है कि आनन-फानन में चुनावों या दिखावे के लिए ये सब किया गया।
‘प्रोजेक्ट चीता’ की निगरानी करने वालों में सरकारी अधिकारियों के अलावा वैज्ञानिक, वन्यजीवन वैज्ञानिक और पशुओं के डॉक्टर भी शामिल हैं। न सिर्फ भारत, बल्कि नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञों को भी इस प्रक्रिया में जोड़ा गया है। हर प्रक्रिया की सफलता का एक पैमाना होता है। ‘प्रोजेक्ट चीता’ की भी तात्कालिक, या यूँ कहें कि शॉर्ट टर्म सफलता के लिए 6 पैमाने तय किए गए थे, जिनमें से 4 पर ये परियोजना खरी उतरी है। पहले ही ये लक्ष्य रखा गया था कि लाए गए चीतों में 50% सर्वाइवल दर होना चाहिए।
इसमें ये परियोजना सफल रही है। दूसरा पैमाना था, ”होम रेंज की स्थापना करना। इकोलॉजी में जानवरों का ‘होम रेंज’ उसे कहते हैं, जहाँ वो स्वच्छंद होकर भोजन-पानी के लिए विचरण करते हैं और प्रजनन करते हैं। इसका अर्थ है, ये जानवर इसे अपना क्षेत्र समझने लगते हैं। इसके कैलकुलेशन का एक फॉर्मूला होता है, जो इकोलॉजिस्ट करते हैं। तीसरा उद्देश्य था – कूनो नेशनल पार्क में ये चीते प्रजनन करें। इसमें भी ‘प्रोजेक्ट चीता’ सफल रहा है और शिशु चीतों के जन्म हुए हैं।
चौथा फैक्टर है – आसपास के इलाके को फायदा पहुँचना। ये हुआ है। बहुत अच्छे से हुआ है। कूनो नेशनल पार्क में चीतों के आने के बाद शिवपुर और मोरेना जिलों के इलाकों में जमीन के दाम बढ़े हैं। चीतों को देखने के लिए कूनो नेशनल पार्क में पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है। इससे पार्क के आसपास रहने वालों लोगों के व्यवसाय चमके हैं और उन्हें रोजगार मिला है। चीतों को ट्रैक करने के लिए भी स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया गया है। जो लोग ‘प्रोजेक्ट चीता’ को असफल बता रहे हैं, वो इसकी चुनौतियों को कम कर के आँक रहे हैं।
कूनो नेशनल पार्क के आसपास जमीन के भाव काफी बढ़ गए हैं और निवेशक भी खूब आ रहे हैं। 9 चीतों की मौत के कारण तात्कालिक रूप से भले ही ये प्रक्रिया अब धीमी हो गई हो, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे फायदा होना ही है। रियल एस्टेट के दाम बढ़ने का अर्थ है कि निवेशक आ रहे हैं, कारोबार बढ़ रहा है। चीतों के आने की घोषणा के बाद से ही शिवपुर में जमीन के भाव 3 गुना बढ़ गए थे। शिवपुर जिला कुपोषण से पीड़ित था, ऐसे में वहाँ की अर्थव्यवस्था चमकने से जनता का फायदा है।
भारत में प्राचीन काल में मौजूद रहे हैं चीते, ये ‘विदेशी’ नहीं
एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में जानवरों को लेकर आ ना और फिर उनका संरक्षण करना बच्चों का खेल नहीं है। ऐसा थोड़े है कि भारत चीतों का घर नहीं रहा है। गुजरात और मध्य प्रदेश की गुफाओं में जो पेंटिंग हैं वो बताते हैं कि प्राचीन काल में भी चीते यहाँ रहते थे बड़ी संख्या में। मुग़ल बादशाह चीतों को लेकर शिकार पर जाते थे। अंग्रेजों के काल में बड़े पैमाने पर उनका शिकार हुआ। 19वीं सदी में उनकी संख्या 10,000 थी लेकिन कुछ ही वर्षों बाद वो विलुप्त हो गए।
बताया जाता है कि भारत के अंतिम स्वदेशी चीते का शिकार छत्तीसगढ़ के कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। ये पूरी तरह मानव समाज की ही गलती थी कि एक दुर्लभ जीव विलुप्त ही हो गया। एक ऐसा जीव जिसकी फुर्ती और बहादुरी की मिसाल दी जाती है। उसी गलती को भारत सुधारने की कोशिश कर रहा है। 20 चीतों को स्थानांतरित किया गया और इस प्रक्रिया में एक भी मौत नहीं हुई, ये भी एक बड़ी बात थी। चीतों की मौतों की दुःखद खबर के बीच सकारात्मक खबरें भी हैं।
इन चीतों में से अधिकतर भारतीय वातावरण में खुद को ढालने में सक्षम हो रहे हैं, यानी वो अपनी सामान्य गतिविधियों में रुचि ले रहे हैं – शिकार करना, क्षेत्र में घूमना-फिरना, अपने शिकार को मारने के बाद भोजन की सुरक्षा करना, तेंदुए-लकड़बग्घों जैसे अन्य मांसाहारी जानवरों का पीछा करने या उनसे उलझने से बचना, जंगल में अपना क्षेत्र सुनिश्चित करना, आपसी गुटबाजी में झगड़े करना, नर-मादा की जोड़ियाँ बनना, प्रजनन और मनुष्यों के साथ कोई टकराव न होना।
एक मादा चीते ने बच्चे को जन्म दिया तो कई रिकॉर्ड्स टूटे और 75 साल बाद ऐसा हुआ। 6 महीने का वो बच्चा अभी ठीक है, स्वस्थ है। उसका विकास भी ठीक से हो रहा है। ये बड़ी बात हमें नोट करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक कारणों से चीतों की कोई मौतें नहीं हुई हैं, जैसे – शिकार, तस्करी, जाल में फँसना, ज़हर दिया जाना, दुर्घटना, आपसी झगड़ा। इन वजहों से कोई मौत नहीं हुई। स्थानीय लोग ‘प्रोजेक्ट चीता’ को लेकर सहयोग कर रहे हैं, इसीलिए ये संभव हो पाया है।
चीतों को लाए जाने का क्रम जारी रहेगा। सैकड़ों वर्षों में जो गलती हमने बार-बार कर के भारत को चीता विहीन कर डाला है, वो एक झटके में नहीं सुधरेगी। ये किसी चमत्कार से नहीं होगा। यही कारण है कि अगले 5 वर्षों तक अफ्रीका से चीतों को लाए जाने का सिलसिला जारी रहेगा। हर साल एक दर्जन चीते लाए जाएँगे। ये एक लंबी प्रक्रिया है। सिर्फ कूनो नेशनल पार्क ही नहीं, अन्य वैकल्पिक व्यवस्थाएँ भी विकसित की जा रही हैं। जैसे, मंदसौर-नीमच का ‘गाँधी सागर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी’ और सागर, दमोह व नरसिंहपुर में स्थित ‘नौरादेही वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी’।
इसके लिए गाँधी सागर WLS में काम चल रहा है और इस साल के अंत तक क्वारंटाइन और अन्य व्यवस्थाओं को तैयार कर लिया जाएगा। चीतों को लेकर एक रिसर्च सेंटर और मैनेजमेंट ट्रेनिंग सेंटर भी बनेगा। यानी, ये प्रोजेक्ट लॉन्ग टर्म का लक्ष्य लेकर चलाया जा रहा है। भारत चीतों के संरक्षण में सफल होता है तो अन्य देश इसका अनुकरण करेंगे, भारतीय विशेषज्ञों की पूछ बढ़ेगी। कूनो स्थित सेसईपुरा में केंद्रीय और मध्य प्रदेश के वन्य जीवन मंत्रालयों के अधिकारी एक समारोह में भी शामिल हुए, जहाँ ‘प्रोजेक्ट चीता’ के 1 वर्ष पूरे होने पर ‘चीता मित्रों’ को प्रोत्साहित किया गया।
‘प्रोजेक्ट चीता’ के 1 साल: कूनो नेशनल पार्क में हुआ आयोजन
ये ‘चीता मित्र’ की चीतों की देखभाल कर रहे हैं और उन्हें समझने का प्रयास कर रहे हैं। हमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के प्रमुख और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी SP यादव की एक बात पर गौर करना चाहिए। इससे उन लोगों को जवाब मिल जाएगा, जो ये कह रहे हैं कि चीते मर रहे हैं तो और चीते क्यों लाए जा रहे हैं, या फिर जो लोग चीतों का मीम बना कर लिख रहे हैं – “अब बख्श दो”। अगर भारत का वातावरण चीतों के लिए एकदम प्रतिकूल होता तो कोई भी विशेषज्ञ उन्हें यहाँ लाने की सलाह ही नहीं देता।
SP यादव ने बताया कि कैसे दक्षिण अफ्रीका की 9 कोशिशें विफल रहीं और 200 चीतों की मौतें हुईं, तब जाकर वो चीतों के संरक्षण में सफल हुआ। सोचिए, भारत में अभी से हाय-तौबा मचाई जा रही है। 20 साल लगे दक्षिण अफ्रीका को, तब जाकर उसने ये कर दिखाया। फ़िलहाल कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए गए 14 चीते और एक शिशु हैं। 3 शिशुओं की मौत अत्यधिक गर्मी के कारण हुई है। दक्षिण अफ़्रीकी विशेषज्ञों ने कम्युनिकेशन गैप को लेकर सवाल उठाया था, लेकिन यादव ने इसे नकारते हुए कहा है कि निगरानी सही तरीके से की जा रही है।
भारत ने ‘International Big Cat Alliance’ भी बनाया है, ऐसे में भारत के लिए ये प्रतिष्ठा का विषय भी है। अप्रैल 2023 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के सफल 50 वर्ष पूरे होने पर इसकी घोषणा की गई। बाघ शेर, बर्फीले तेंदुए, तेंदुए, जैगुआर, पूमा और चीता – इन 7 कैट्स के संरक्षण के लिए ये अंतरराष्ट्रीय अलायंस बनाया गया। इसमें 97 देश शामिल हैं, जिनमें अधिकतर एशिया और अफ्रीका के हैं। भारत ने 100 मिलियन डॉलर के कोष की स्थापना के साथ ही इसकी शुरुआत की।
भारत की कंपनियाँ भी ‘प्रोजेक्ट चीता’ में सहयोग कर रही हैं। जैसे, ‘हीरो मोटोकॉर्प्स’ ने कर्मचारियों की सुविधा के लिए 50 मोटरबाइक दान में दिया। इससे जो फ्रंटलाइन कर्मचारी हैं, उनके आवागमन में सुविधा होगी और उनके समय की बचत भी होगी। वो तेजी से मूवमेंट कर सकेंगे। ‘प्रोजेक्ट चीता’ ने सिर्फ भविष्य के लिए सही है, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी इससे फायदा होगा। इसीलिए, ये जारी रहना चाहिए। चीतों के मरने को लेकर जो लोग जश्न मनाते हुए कूद रहे हैं कि भारत की किरकिरी हो गई, उन्हें इसकी संवेदनशीलता का अंदाज़ा नहीं है।
इतनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुँचना ठीक नहीं, भारत भी कर दिखाएगा
ऐसा नहीं है कि जो लोग आलोचना कर रहे उनमें छोटे स्तर के लोग ही शामिल हैं। भाजपा के ही सांसद वरुण गाँधी ने इसे क्रूरता करार देते हुए कहा कि ये असावधानी का सबसे बुरा प्रदर्शन है और हमें सिर्फ ‘स्थानीय पशु-पक्षियों’ के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। इस दौरान वो शायद भूल गए कि चीते भारत के ‘स्थानीय’ पशु ही रहे हैं। ऐसा नहीं होता तो हिन्दू धर्मग्रंथों में उनका जिक्र नहीं होता। नवरात्री के दौरान लगभग हर घर में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
ये तो हमें पता ही है कि देवी के 9 रूप बताए गए हैं, जिनमें तृतीया चंद्रघंटा है। उनका वाहन चिता ही वर्णित है। तस्वीरों में भी उन्हें चीते के साथ दिखाया जाता है। उन्हें असुरों का नाश करने वाली माना गया है, ऐसे में चीता जैसे फर्राटेदार, तेज, फुर्तीले, शक्तिशाली और शिकार में निपुण जानवर का उनका वाहन होना आश्चर्यजनक बात नहीं है। इससे पता चलता है कि सनातन में चीतों का महत्व है और भारत में उनकी अच्छी-खासी संख्या में मौजूदगी रही है। इसी तरह, अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी चीता का वर्णन है।
One year of Cheetah's return! 🐆🇮🇳
— Bhupender Yadav (@byadavbjp) September 17, 2023
One year ago, Kuno in Madhya Pradesh welcomed back one of India’s apex predators, the Cheetah, lost to habitat loss and hunting.
Join me in commemorating this historic day of Cheetah’s return.
Together, we can ensure they thrive in India… pic.twitter.com/4oElKSCo4D
जो भारत के वन्य कर्मचारी हैं, वो भी सीखते-सीखते ही सीखेंगे। प्रशिक्षण अलग बात है, अनुभव अलग। अभी कुछ चीतों को क्वारंटाइन में ही रखा गया है, जिन्हें चरणबद्ध तरीकों से रिलीज किया जाएगा। अफ्रीका से जो चीते लाए जा रहे हैं, उनमें पहले से भी कोई बीमारी हो सकती है जो बाद में पता चले। पहले चीते की मौत जिस रोग से हुई, वो उसे वहीं पनपा था। अधिकारियों और विशेषज्ञों ने एक्शन प्लान भी तैयार किया है। आने वाले चीतों और मौजूदा चीतों को उसी हिसाब से रिलीज किया जाएगा।