महाराष्ट्र के मुंबई स्थित बांद्रा में मंगलवार (अप्रैल 24, 2020) को अचानक से प्रवासी मजदूरों की भारी भीड़ जुट गई। वो सभी वापस अपने घर जाने की बात कर रहे थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले ही कई राज्यों से बात कर के कहा था कि वो इन राज्यों के मजदूरों का ख्याल रखें, जिसके बाद उन्हें आश्वासन भी मिला था। अब अचानक से मजदूरों का यूँ इकठ्ठा हो जाना संदेह का विषय है क्योंकि महाराष्ट्र में पिछले 21 दिनों के लॉकडाउन में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। फिर अचानक से ऐसा कैसे हुआ?
ये सबकुछ दिल्ली की तर्ज पर होता दिख रहा है। दिल्ली में अचानक से रातों-रात बसों को लगाया गया और घोषणा की गई कि मजदूरों को यूपी सीमा तक छोड़ा जाएगा और वहाँ से वो अपने घर जा सकते हैं। उनके घरों की बिजली-पानी भी काट दी गई। इसके बाद तुरंत यूपी की कुछ घटनाओं को आधार बना कर आप नेता राघव चड्ढा ने ये आरोप लगाने में देरी नहीं की कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के इशारे पर पुलिस मजदूरों को पीट रही है और उन्हें दोबारा दिल्ली न जाने की हिदायत दे रही है। मुंबई में भी ऐसा ही हुआ।
उद्धव ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र कैबिनेट के सदस्य आदित्य ठाकरे ने ये आरोप लगाने में देरी नहीं की कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाए जाने के कारण ये स्थिति उत्पन्न हुई है। उन्होंने दावा किया कि लॉकडाउन की घोषणा के समय भी उनके पिता ने पीएम मोदी से दरख्वास्त की थी कि ट्रेनों को 24 घंटे और चलाने की अनुमति दी जाए, ताकि बाहरी मजदूर अपने घर जा सकें। गैर-मराठी लोगों के प्रति ठाकरे परिवार के रवैये का क्या इतिहास रहा है, ये किसी से छिपा नहीं है। सरकार में रहते हुए भी उन्होंने ऐसा ही किया।
Best CM wanted trains to run for 24 hours so that the entire purpose of lockdown could be defeated. IQ Level: Einstein.
— Prevention is cure than betterness (@attomeybharti) April 14, 2020
Also, your father had announced complete lockdown in Mumbai 4 days before the nationwide lockdown. Trains were running then. https://t.co/HudbV13RPA pic.twitter.com/rXgmCTI1Tc
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो पीएम मोदी से पहले ही अपने राज्य में लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दी थी। उन्होंने 30 अप्रैल तक के लिए ऐसा किया था। महाराष्ट्र के मजदूरों को इसकी भी ख़बर हुई होगी लेकिन कोई नहीं जुटा। इसके बाद जैसे ही मंगलवार को पीएम मोदी ने घोषणा की, इतनी बड़ी भीड़ जुट गई। कैसे? पिछले 5 दिनों से जो लोग शांत बैठे थे, उनके अचानक सड़कों पर आने के पीछे लोगों को भी बड़ी साज़िश दिख रही है। और हाँ, ये भीड़ बांद्रा मस्जिद के सामने जुटी। अब मीडिया को कहा जाएगा कि वो ये नहीं बताए क्योंकि इससे सेकुलरिज्म की भावनाओं को ठेस पहुँचने की आशंका है।
अचानक से मजदूरों का जुटना, उन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया जाना और फिर आदित्य का पीएम पर आरोप लगाना- ये सब के पीछे दिल्ली वाला मॉडल दिख रहा है। आनंद विहार में मजदूरों का भीड़ जुटना, लॉकडाउन के बावजूद बसों का चलना और फिर आप नेताओं का मोदी पर आरोप लगाना- यह सब तो हम देख ही चुके हैं। वो भी ये सब तब हो रहा है, जब मुख्यमंत्री ठाकरे ने ख़ुद प्रवासी मजदूरों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन दिया था। ठाकरे बताएँगे कि उनके लिए क्या व्यवस्था की गई? अगर व्यवस्था नहीं की गई तो ठाकरे का आश्वासन झूठा निकला। अगर सारी व्यवस्थाओं के बावजूद वो बाहर निकले तो आदित्य ने तुरंत मोदी पर आरोप कैसे लगा दिया?
घोषणा की गई थी कि 10 रुपए में मिलने वाले ‘शिव भोजन स्कीम’ के तहत अब मात्र 5 रुपए में खाना दिया जाएगा। अगर ये योजना चालू थी तो लोग वहाँ से भागने को बेचैन क्यों हुए? इस योजना के 163 सेंटर पूरे राज्य भर में स्थापित किए जाने की जानकारी दी गई थी। यहाँ दो विरोधाभाषी बातें हैं। पहली, आदित्य का ये कहना कि उनके पिता प्रवासी मजदूरों को अपने घर भेजना चाहते थे। दूसरा, उद्धव का ये कहना कि महाराष्ट्र में प्रवासियों की देखभाल की जाएगी और वो जहाँ हैं, वहीं रहें। कौन सही है? पिता या पुत्र? दोनों ही सरकार में शामिल हैं। अब वही आदित्य ठाकरे दोबारा बयान देते हुए कह रहे हैं कि केंद्र इस मामले में राज्य की पूरी मदद कर रहा है ताकि मजदूर अपने-अपने घर जा पाएँl यानी, अपने बयान में विरोधाभाष।
So @OfficeofUT extends Maharashtra lockdown till 30th April, 5 days before @narendramodi does. No crowds gather in 5 days. Suddenly, after Modiji’s speech a massive crowd gathers at Bandra mosque in a matter of minutes. How? @AUThackeray then promptly blames central govt!
— Shefali Vaidya. (@ShefVaidya) April 14, 2020
ये भी तो सोचिए कि 24 घंटे और ट्रेनें चलतीं तो फिर लॉकडाउन का मतलब ही क्या रह जाता? लाखों लोग महाराष्ट्र से यूपी-बिहार लौटते और वहाँ समस्याएँ खड़ी हो जातीं, उनके क्वारंटाइन के लिए सरकारें शायद ही व्यवस्था कर पाती। फिर दूसरे कई राज्यों के लोग भी अपने-अपने गृह-प्रदेश में लौटना चाहते। फिर तो लॉकडाउन का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। क्या उद्धव यही चाहते थे कि ट्रेनें चलें और लॉकडाउन के बीच अराजकता का माहौल पैदा हो? महाराष्ट्र और मुंबई में कोरोना को रोकने में नाकाम सिद्ध हुए सीएम ने अपनी ग़लतियों को ढकने के लिए ऐसा किया?
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने भाजपा को धोखा देकर ख़ुद सीएम बनने की लालच में कॉन्ग्रेस और एनसीपी का दामन थामा। उस दौरान आरोप लगे थे कि 50-50 वाले फॉर्मूले पर अड़ने के पीछे राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दिमाग था। प्रशांत किशोर के साथ उद्धव की बैठकें भी हुई थीं। दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की चुनावी रणनीति भी उन्होंने ही बनाई थी, ये छिपा नहीं है। ऐसे में ये सवाल तो उठेगा कि दिल्ली मॉडल का मुंबई में दोहराया जाना कहीं प्रशांत किशोर के शरारती दिमाग का तो खेल नहीं? भाजपा को बदनाम करने के लिए भाजपा-विरोधी सरकारों का उपयोग करना एक रणनीति हो सकती है।
आज मुंबई की स्थिति ख़राब है और कोरोना आपदा के बीच महाराष्ट्र मिस-मैनेजमेंट का सबसे बड़ा हब बन कर उभर रहा है। अकेले महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के 2455 मामले हैं। केवल मुंबई की ही बात करें तो यहाँ कोरोना के 1540 मरीज हैं, जितने किसी राज्य में भी नहीं हैं। ठाकरे ने बेशक बॉलीवुड से ट्वीट करवा के ये दिखाया कि वो बेस्ट सीएम हैं लेकिन उर्वशी रौतेला ने जैसे ही बताया कि सभी सितारों को बने-बनाए ट्वीट्स दिए गए थे, पूरी साज़िश की पोल खुल गई। ऐसे में कुछ तो होना चाहिए था, जिससे उद्धव सरकार की नाकामी ढके। ये उद्धव ही नहीं बल्कि शरद पवार और कॉन्ग्रेस का भी सवाल जो ठहरा। देश में कोरोना से जितनी मौतें हुई हैं, उनमें से 44% मौतें सिर्फ़ महाराष्ट्र में हुई हैं।
I’m getting abused by usual suspects. But can they answer this
— Vikas Pandey (@MODIfiedVikas) April 14, 2020
1. They are being placated in the name of Allah. They are cheering too.
2. MH govt had already extended till April 30. What extra did Modi ji do?
3. Meeting in front of Masjid.
Nothing but conspiracy!
#bandrastation https://t.co/8SeJ7M7GBy
साथ ही क्या इस भीड़ का ताल्लुक किसी मजहब से है, ये देखना इसीलिए ज़रूरी होता है क्योंकि वहाँ पर अल्लाह का नाम लेते हुए बातें की जा रही। एक व्यक्ति भीड़ को कहता दिख रहा है कि ये अल्लाह की तरफ़ से है और वो बार-बार अल्लाह का नाम लेकर समझा रहा है। अगर वो सारे मजदूर हैं तो जाहिर है कि उसमें हर जाति-मजहब के लोग होंगे। अगर ऐसा नहीं है तो फिर मस्जिद के सामने उनका जुटना और अल्लाह का नाम वहाँ पर गूँजने के पीछे कहीं तबलीगी जमात की निजामुद्दीन वाली घटना के दोहराव की साज़िश तो काम नहीं कर रही है? वहाँ समझाया जा रहा है कि मक्का-मदीना बंद है, काबा बंद है और मस्जिदें बंद हैं, इसीलिए वो स्थिति को समझें।
अंततः महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस पूरी घटना पर चिंता जताई। कुछ लोगों का यह भी सवाल है कि अगर ये मजदूर घर जाने के लिए जमा हुए हैं तो इनके हाथों में थैले या बैग वगैरह क्यों नहीं हैं? भीड़ मस्जिद के पास ही क्यों जमा हुई और अल्लाह का नाम लेकर समझाने के पीछे क्या तुक है? महाराष्ट्र में 30 अप्रैल तक का लॉकडाउन पहले से ही घोषित था तो आज हंगामा क्यों हो रहा है? ये तीन बड़े सवाल हैं, जिन्हें पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी उठाया है। अब इस पर उद्धव ठाकरे को जवाब तो देना ही पड़ेगा। पुलिस कह रही है कि वहाँ जुटे लोग मोदी के लॉकडाउन से नाख़ुश थे, तो क्या वो महाराष्ट्र सरकार के लॉकडाउन से ख़ुश थे?