प्रधानमंत्री मोदी ने जब-जब लाल किले से बोला है तो वो महज अपने सरकार की उपलब्धियाँ ही नहीं गिनाते बल्कि उनके भाषण में सारे मंत्रालयों के लिए अगले साल की प्राथमिकताएँ भी शामिल होती हैं। उनके भाषणों से सार्वजनिक अभियानों ने सफलता पाई हैं। इनमें ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, ‘स्वच्छता अभियान’, ‘सिलिंडर सब्सिडी छोड़ो’ जैसे अभियान शामिल हैं। इस बार के भाषण में प्लास्टिक से लेकर जल संरक्षण और जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे शामिल रहे।
हर भारतीय जानता है कि बड़ी जनसंख्या और कम संसाधन हमारे देश की हर समस्या की जड़ है। यह एक बिगड़ा हुआ अनुपात है जो कि किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं है। आप स्कूल बनाइए, कम पड़ जाएँगे; कॉलेज बनाइए, कम पड़ जाएँगे; हॉस्पिटल बनाइए, कम पड़ जाएँगे; सब्सिडी देते रहिए, लोग पैदा होते रहेंगे; योजनाएँ बनाइए, पैसे कम पड़ जाएँगे; हर ढाँचा हमेशा ही सीमा से ज्यादा लोड उठाता रहेगा और समय से पहले टूट जाएगा…
आप चाहे शिक्षा की गुणवत्ता की बात कीजिए या स्वास्थ्य सेवाओं की, जड़ में जनसंख्या कहीं न कहीं आती ही है। क्योंकि बच्चे उतने ही होने चाहिए जितने पाले जा सकें, न कि उन्हें हमने ऊपर वाले की नेमत समझ कर पैदा तो किया ही, पलने भी छोड़ दिया जबकि इसमें ऊपर वाले का कोई हाथ नहीं। बच्चों को हम पैदा करते हैं, और हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें एक बेहतर जीवन स्तर उपलब्ध कराएँ।
बेहतर जीवन स्तर से मतलब है: पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य। एक परिवार में जितने सदस्य बढ़ेंगे, आमदनी विभाजित होगी। चाहे सरकार से ही सब्सिडी क्यों न मिले, संख्या बढ़ते ही वो बँटेगा ही। एक बच्चे को पढ़ाना, उसे पालना, शिक्षित करना, और भविष्य के लिए तैयार करना, तीन बच्चों को पढ़ाने, पालने, शिक्षित करने और नौकरी योग्य बनाने की अपेक्षा आसान है। और, ये बात मैं भारतीय समाज की विषमताओं को देखते हुए कर रहा हूँ जहाँ, वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो हम एक लोअर मिडिल इनकम देश हैं।
गरीबी और परिभाषा के हिसाब की गरीबी
भारत में 95% लोग या तो गरीब हैं, या बहुत गरीब। ये परिभाषा मैं किसी कमिटी के ‘बीस रुपए प्रतिदिन’ पर नहीं बता रहा। वो टेक्निकल बात है कि आदमी जिंदा है। वो गरीबी नहीं, सर्वायवल है, जिंदा रहना है। उसे सिर्फ भोजन मिल रहा है। गरीबी यह भी है कि आपके सर पर छत नहीं, शिक्षा नहीं, स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं, आपकी आशाओं की पूर्ति के साधन नहीं हैं।
आपका जीवन एक संघर्ष है, आप परिवार चला रहे हैं, आपके बच्चे में काबिलियत है लेकिन पैसों के कारण वो पढ़ नहीं पा रहा, आपका जीवन बच सकता है लेकिन आप दवाई नहीं खरीद पा रहे। इस दायरे में आपको यह जानना चाहिए कि भारत की एक प्रतिशत जनता के पास देश का 73% पैसा है। मतलब, बाकी के 27% में 99% जनसंख्या का काम चलता है। सिर्फ 9 करोड़ ऐसे हैं जिनकी आमदनी ₹2.5 लाख से ज़्यादा है। इसमें से दो करोड़ लोग टैक्स के दायरे में नहीं आते।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम एक गरीब देश हैं और हर टैक्स अदा करने वाले पर चार लोग और आश्रित होंगे। आमदनी सीमित हो, और बच्चे ज्यादा, तो उसके जीवन स्तर पर बिलकुल असर पड़ेगा। ऊपर के पाँच प्रतिशत लोग दस बच्चे भी पाल लेंगे, लेकिन नीचे के लोगों के पास एक बच्चे को भी ठीक से पालने का सामर्थ्य नहीं है। अगर आप उन्हें इस दुनिया में ला रहे हैं तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि ऊपर वाले पर फेंकने की बजाय उन्हें एक बेहतर जीवन दें।
जब प्रधानमंत्री ने इस पर बोला तो चिदंबरम जैसे घोषित विरोधियों ने भी इसका स्वागत किया। कोई भी विवेकशील व्यक्ति इसका स्वागत ही करेगा। हर वो व्यक्ति जो हमारी और आपकी तरह निम्न मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखता है, जिसने अपने माँ-बाप को लगातार मेहनत करते देखा है, खुद कम खा कर, कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ाया है, पड़ोस के लोगों को बच्चों को न पढ़ा पाने का दर्द महसूस करते देखा है, वो जानता है कि जनसंख्या कितनी बड़ी समस्या है।
हर साल लाखों बच्चे बीटेक करके निकलते हैं, एमबीए पढ़ते हैं, पत्रकारिता करते हैं, यूपीएससी के लिए बैठते हैं, और हर साल उनके चयनित होने का, नौकरी पाने की संभावना कम होती जाती है। हर साल एक नौकरी पर आवेदकों की संख्या बढ़ती जाती है। हर व्यक्ति को एक ही तरह की नौकरी नहीं दी जा सकती, लेकिन बीटेक की डिग्री ले कर सड़क बनाने में जुटना भी तो अच्छी बात नहीं है। सरकार चाह कर भी इस तरह के रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर सकती।
ऐसे में भविष्य को ध्यान में रखते हुए, जनसंख्या पर नियंत्रण एक बेहतर कदम है। हम चीन की तरह नीति नहीं बना सकते क्योंकि हम एक लोकतंत्र हैं। लोगों तक ज्यादा बच्चों के होने से आने वाली समस्याओं पर जागरूकता ला कर ही इस पर काबू किया जा सकता है।
ओवैसी की दिक्कत और मुस्लिमों की हालत
अगर गरीबी रेखा की ही बात करें तो मुस्लिम लोगों में 25.4% लोग तेंदुल्कर कमिटी की गरीबी रेखा से नीचे हैं। मुस्लिम घरों की आय देश की औसत आय से सात प्रतिशत नीचे है। शिक्षा की बात करें तो 14% जनसंख्या वाले मुस्लिमों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों में उनका प्रतिशत 4.4 है। सच्चर कमिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेकेंडरी स्कूल जाने वाले मुस्लिम बच्चों में से आधे बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। यही रिपोर्ट हमें यह भी बताती है कि 25 स्नातक (अंडर ग्रेजुएट) विद्यार्थियों में से सिर्फ एक, और 50 परास्नातकों (पोस्ट ग्रेजुएट) में सिर्फ एक विद्यार्थी इस्लाम मजहब का होता है। 2011 के आँकड़ों के हिसाब से मात्र 2.75% मुस्लिम बच्चे ग्रेजुएट हैं। मुस्लिम लड़कियों का हाल और भी बुरा है।
एक जगह यह भी पढ़ा कि मुस्लिमों को आरक्षण और ‘फेयर रिप्रेंजेंटेशन’, यानी उचित प्रतिनिधित्व दे कर इस विषमता को पाटा जा सकता है। पढ़ाई में फेयर रिप्रेंजेंटेशन कैसे दिया जाए? जबकि इस्लामी स्कूल हैं, कॉलेज भी हैं। ये सुविधा एससी और एसटी समुदायों को हासिल नहीं। वो इसलिए नहीं है क्योंकि ऐसे कॉलेज और स्कूल का मतलब है कि आप उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए उन्हें बाकी स्कूल-कॉलेजों में ही पढ़ने का विकल्प दिया जाता है।
लोग यह नहीं सोचते कि अगर हर परिवार में कम बच्चे होंगे तो परवरिश में बेहतरी आएगी, बच्चे को स्कूल में पढ़ाना सहज हो सकेगा। चाहे वो परिवार हिन्दू हो, या मुस्लिम, कम बच्चे का सीधा मतलब है, उसका हिस्सा बढ़ना। उसे स्कूल छोड़ना नहीं पड़ेगा। उसे बचपन से ही बाल मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। उसे परिवार में बचपन से ही आमदनी का स्रोत बनने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा। उसके जीवन का स्तर सुधरने की संभावना है।
लेकिन ओवैसी जैसे लोग इन बातों को कॉन्सपिरेसी बता कर, चिल्लाते हुए कि ये विदेशियों की साजिश है, अपने मजहब के लोगों के उस प्रचलित विश्वास को बल देते हैं कि सरकार पोलियो के ड्रॉप में नपुसंकता की दवाई मिला रही है। उन्हें हर बात एक साजिश लगती है कि सरकार मुस्लिमों की जनसंख्या पर नियंत्रण करते हुए, उन्हें गायब कर देना चाहती है।
जबकि, ये एक तथ्य है कि मुस्लिमों की वृद्धि दर हिन्दुओं से हमेशा ज़्यादा रही है। किसी सरकार ने उन्हें गायब करने की बात नहीं की। ये बात हर व्यक्ति को समझनी चाहिए कि बच्चे पैदा करना और उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना उस बच्चे पर अत्याचार है। आप लगातार बच्चे भी पैदा करेंगे, आपके पास साधन भी नहीं हैं, और फिर आप सरकार को ही अपनी दुर्गति के लिए कोसेंगे, यह तो मूर्खता है। ये मूर्खता इसलिए है कि सरकार आपको चावल और गेहूँ तो दे सकती है, आरक्षण से शायद स्कूल में भी दाखिला दे दे, लेकिन उसके बाद हर जगह संभावनाओं की कमी होती जाती है।
ओवैसी के ट्वीट और रीट्वीट
राजनीति आपसे बहुत कुछ करवाती है। राजनीति में अपना स्वार्थ अगर सर्वोपरि हो तो फिर आप स्टेज से मुस्लिमों की बेहतरी की बात करते हैं, लेकिन उसके भीतर ‘किसी भी हद तक गिरते जाने’ का ध्येय वाक्य रहता है। ओवैसी जैसों की राजनीति अपने ही समुदाय को डरा कर रखने पर है। कश्मीर के मुस्लिमों की स्थिति से भले ही उत्तर प्रदेश के मुस्लिमों का कोई वास्ता नहीं, लेकिन ओवैसी उन्हें यह बता देगा कि आज कश्मीर के मुस्लिमों का ‘हक’ छीना गया, कल तुम्हारा छीन लेगा। भले ही उत्तर प्रदेश के मुस्लिमों का वो ‘हक’ क्या है, ये न तो ओवैसी बताता है, न वो भीड़ वापस पूछती है।
इसीलिए, मुस्लिमों को हिन्दुओं का दुश्मन बना कर रखना महबूबा, ममता, अब्दुल्ला, अखिलेश, लालू, ओवैसी जैसे स्वघोषित मजहबी नेताओं का स्वार्थ साधता है। ये हमेशा भीम-मीम से लेकर तमाम अदरक-लहसुन करते रहते हैं। और सबके केन्द्र में यही बात होती है कि देखो हिन्दू तुमको काटने की तैयारी में है, तुम्हारे बकरीद का बकरा छीन लेगा, तुम्हें अब बच्चे पैदा नहीं करने देगा, तुम्हारे बच्चों को नपुंसक बना देगा।
जबकि वास्तवकिता यही है कि पाँच साल हो गए, कोई हिन्दू तलवार लेकर सड़कों पर नहीं दौड़ा, लेकिन मुस्लिम एक झूठे डर के कारण हिंसक होते गए। उन्होंने काँवड़ियों पर पत्थरबाजी की, उनकी गाड़ियों पर हमले किए, रामनवमी के जुलूस पर पत्थर फेंके, दुर्गा के पंडालों पर ईंट फेंके। ये सब तब से ज़्यादा हुआ है जबसे इन नेताओं ने मोदी और भाजपा के नाम पर मुस्लिमों को उकसाना शुरू किया। आप सर्च कर लीजिए कि काँवड़ियों पर पत्थरबाजी किस साल से शुरू हुई, और 2019 में इतनी ज़्यादा क्यों हो रही है। आप खोजिए जा कर कि हिन्दुओं के मंदिरों पर चढ़ाई करना और उन्हें तोड़ने की घटनाएँ अचानक से आम कैसे हो गई हैं।
जवाब है मजहब के नेताओं की स्वार्थसिद्धी की बलि चढ़ता मुस्लिम समुदाय। ओवैसी ने प्रधानमंत्री की इस बात को बेकार सोच का नतीजा कहा, और कहा कि ये दूसरों के जीवन में दखलंदाजी करने जैसा है। उसके बाद उसने कुछ ट्वीटों को रीट्वीट किया जिसमें अमेरिका भारत की जनसंख्या पर नियंत्रण की बात कर रहा था।
Majority of India is young & productive, but this advantage will only last till 2040@PMOIndia is clueless about what how to utilise this advantage, so he’s coming up with discarded & intrusive ideas of governance that shirk his own responsibilityhttps://t.co/ac7oZL7NiF
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 15, 2019
ओवैसी पढ़े-लिखे आदमी हैं, और मुस्लिम जनता उनकी आलोचना पर सीधे गाली दे कर ‘तूने ओवैसी साहब को ऐसा कहा कैसे’ से शुरू करते हुए बताते हैं कि लिखने वाला उनके चरणों की धूलि भी नहीं है। लेकिन वो बेचारे यह नहीं जानते कि ओवैसी को अपनी राजनीति दिखती है, मुस्लिमों के जीवन स्तर से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वो ये बात बखूबी जानते हैं कि छोटे भाई को खुल्ला छोड़ कर, शेरवानी पहन कर वो जब तक मोदी के विरोध में दिखेंगे, मुस्लिम उन्हें बंगाल में भी वोट देंगे।
यही कारण है कि मोदी की सही बात भी इन्हें खराब लगती है। हर बेहतर कदम में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ साजिश की बात ले आने वाले ओवैसी यह भूल रहे हैं कि 15% मुस्लिम आबादी, देश की दूसरी बड़ी बहुसंख्यक आबादी, इस देश की सच्चाई है। इसे यहाँ से कोई नहीं हटा सकता। जिन्हें हटना था, वो पाकिस्तान में हैं। बेहतर यही होगा कि वो अपने आप को मुस्लिम कम और भारतीय नागरिक ज़्यादा समझें, जिसे भारतीय संविधान ने बराबरी का अधिकार दिया हुआ है। यही उनकी बेहतरी का रास्ता है।
वरना, नेता आते-जाते रहेंगे और अपनी रैलियों की भीड़ के लिए बच्चे पैदा करने को उकसाते रहेंगे। इसका हासिल कुछ नहीं होता। ओवैसी के लिए हर मुस्लिम महज एक वोट है, जिसके सहारे वो अपनी राजनीति चमकाना चाहता है। और इसे चमकाने के लिए वो किसी भी हद तक गिरता रहेगा। लालू इसका बेहतर उदाहरण है जिसने अपने वोटबैंक के लिए पूरी जनसंख्या को अशिक्षित और गरीब रखा, ताकि वो न तो दुनिया को जान सकें, न ही उसकी धूर्तता को समझ सकें। यही कारण है कि बिहार आज की तारीख में सबसे ज़्यादा गरीबी, अशिक्षा और बीमारी झेल रहा है।
भारत के मुस्लिम जितनी जल्दी अपने नेताओं को समझ लेंगे, उतना ही बेहतर होगा क्योंकि अपने समर्थन के लिए ओवैसी को एक दुश्मन, यानी मोदी चाहिए, जो कि बाय डिफॉल्ट पूरे इस्लाम का दुश्मन हो जाता है, और फिर वो दुश्मन जो भी बात कहे, उसका ‘मुँहतोड़ जवाब दिया ओवैसी साहब ने’ के चक्कर में ओवैसी एक दिन मानव विष्ठा का फेसपैक लगा कर, आँखों पर खीरा-टमाटर रखे मुस्लिमों को विश्वास दिलाता रहेगा कि मोदी ने जो कहा है कि मल त्यागने के बाद पानी डालना चाहिए, वो गलत है क्योंकि उसे चेहरे पर लगाने से चमक आती है। पसंद आपकी, आप क्या करना चाहते हैं।