Saturday, November 16, 2024
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जो ट्रम्प के साथ हुआ, वो भारत में हिन्दुओं के साथ भी हो सकता है: फेसबुक-ट्विटर को सामानांतर सरकार बनने से रोकिए

भारत में तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। विदेशी तकनीकी कंपनियाँ अब भारत में ये तय करने लगी हैं कि किसी दंगे में पीड़ित हिन्दुओं को उनका पक्ष रखने की अनुमति देना है या नहीं, या फिर जम्मू कश्मीर को लेकर भारतीय राष्ट्रवादियों को जगह देनी है या नहीं। आज आम लोगों और छोटे सेलेब्स के साथ खेल रहा ट्विटर या फेसबुक कल को....

अब फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी राजनीतिक मामलों में एक पक्ष बनने लगे हैं, लोगों के राजनीतिक और वैचारिक पसंदों और नापसंदों पर मुहर लगाने या नकारने का ठेका लेकर घूम रही हैं और यहाँ तक कि ये भी तय कर रही हैं कि किस नेता के समर्थकों को उनकी सेवाएँ इस्तेमाल करने का अधिकार है और किन्हें नहीं। जो आज अमेरिका में वहाँ के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ हो रहा है, वो कल को भारत में भी उसी स्तर पर हो सकता है।

बल्कि भारत में तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। विदेशी तकनीकी कंपनियाँ अब भारत में ये तय करने लगी हैं कि किसी दंगे में पीड़ित हिन्दुओं को उनका पक्ष रखने की अनुमति देना है या नहीं, या फिर जम्मू कश्मीर को लेकर भारतीय राष्ट्रवादियों को जगह देनी है या नहीं। आज आम लोगों और छोटे सेलेब्स के साथ खेल रहा ट्विटर या फेसबुक कल को बड़े नेताओं तक पहुँच सकता है और चुनाव से पहले कंटेंट्स के माध्यम से इसे प्रभावित कर सकता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति को विश्व का सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता है। जब उसके साथ सिलिकन वैली की प्राइवेट कंपनियाँ ऐसा कर सकती हैं तो भला दूसरे देशों में उनके लिए ये कौन सा बड़ा काम है? इसके लिए सबसे पहला कदम होता है – जो देश जितना बड़ा और गहरा लोकतंत्र है, उसके लचीलेपन का उतना ही फायदा उठाओ। उदाहरण के लिए मान लीजिए आज चीन फेसबुक को वहाँ अनुमति दे देता है।

इसके बाद फेसबुक चीन के नियम-कानूनों और वहाँ की सत्ताधारी पार्टी के संविधान के हिसाब से चलने लगेगा। लेकिन, यही फेसबुक भारत में यहाँ के नियम-कायदों का फायदा उठा कर अपना वामपंथी एजेंडा चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। जुलाई 2009 में शिनजियांग में हुए एक दंगे में फेसबुक पर वहाँ के स्वतंत्रता एक्टिविस्ट का साथ देने का आरोप लगा था, जिसके बाद उसे वहाँ से निकाल बाहर किया गया।

ट्विटर पर भारत में राष्ट्रवादियों और वामपंथी विचारधारा के विरोधियों को शैडो बैन करने के आरोप लगते रहे हैं। कंगना रनौत ने भी ये आरोप लगाया था। इसके तहत लोगों की ट्वीट्स की रीच को कम कर दिया जाता है, जिससे एन्गेजमेन्ट कम हो जाता है। कंगना रनौत की बहन रंगोली चंदेल के हैंडल को सस्पेंड कर दिया गया। वो एसिड अटैक पीड़िता हैं और अक्सर बॉलीवुड के बड़े नामों को एक्सपोज करने के लिए जानी जाती थीं।

जनवरी 2019 में भारत की एक संसदीय समिति ने ट्विटर को समन भी किया था। इस मामले में अधिवक्ता ईशकरण सिंह भंडारी ने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिल कर उन्हें ज्ञापन सौंपा था। उन्होंने ध्यान दिलाया था कि ट्विटर ‘Downranking’ सिस्टम के जरिए एक एल्गोरिदम अपना कर राष्ट्रवादी विचारधारा के ट्वीट्स को नीचे रखता है। वो जिस टॉपिक या ट्रेंड को नापसंद करता है, उसे गायब ही कर दिया जाता है।

अंत में उन एकाउंट्स को सस्पेंड ही कर दिया जाता है, जो ट्विटर की विचारधारा से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते हों। इसी तरह जम्मू कश्मीर में भी भारत के खिलाफ कई हैंडल्स बना कर दुष्प्रचार फैलाया जा रहा था। सरकार के संज्ञान में आने के बाद मजबूरी में ट्विटर को उन हैंडल्स को सस्पेंड करना पड़ा। इनके जरिए न सिर्फ आतंकी विचारधारा फैलाई जा रही थी, बल्कि इस्लामी कट्टरवाद और जिहाद को लेकर पाकिस्तानी एजेंडा चलाया जा रहा था।

हाल ही में हमने देखा था कि कैसे ट्विटर ने अपने लोकेशन में लद्दाख को चीन का हिस्सा बताया था। लोगों ने जब इसे लेकर आपत्ति जताई, तब जाकर इसे ठीक किया गया। अमेरिका में तो कई वर्षों से ये सब हो रहा है। चुनाव से पहले ट्विटर और फेसबुक द्वारा बायडेन के बेटे हंटर को लेकर प्रकाशित एक लेख को सेंसर कर दिया गया था, जिसमें उन पर पोर्न वीडियो और स्ट्रिप क्लब में एक रात में लाखों रुपए खर्च करने के आरोप लगे थे।

इसी तरह विकिपीडिया के एक सीनियर एडिटर ने दिल्ली दंगों के मामले में हिन्दुओं को पीड़ित न दिखाने के लिए उन्हें ही इसके लिए दोषी बता दिया। फ़रवरी 2020 के अंतिम हफ़्तों में दिल्ली में हुए दंगों में इस्लामी कट्टरवाद को छिपाने के लिए बहुसंख्यकों को दोषी बताया गया। विकिपीडिया के इस कदम को लेकर विवाद हुआ तो उस एडिटर को रिटायर कर दिया गया। लेकिन, दुनिया भर में इन दंगों को लेकर उलटा ही नैरेटिव बन गया।

इसी तरह फेसबुक भी इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहा है। अकेले अप्रैल से जून के 2020 के बीच में फेसबुक ने 2.25 करोड़ हेट कंटेंट्स होने का दावा किया है, लेकिन वो किस किस्म के थे – इस पर दी गई सफाई अस्पष्ट है। केंद्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी इस मामले में फेसबुक को पत्र लिखना पड़ गया था। उन्होंने माना था कि चुनाव से पहले दक्षिणपंथी विचारधारा को जम कर दबाया गया।

उन्होंने फेसबुक पर अफवाहों के जरिए चुनाव को प्रभावित करने के आरोप लगाए थे। इन सबसे यही पता चलता है कि जो सत्ता में है और जिसके हाथ में सारी शक्तियाँ हैं वो भी इन तक जायंट्स के सामने कब बेसहारा हो जाए, कहा नहीं जा सकता। पेटा या एमनेस्टी जैसी संस्थाएँ जो करना चाहती हैं, फेसबुक, ट्विटर और विकिपीडिया वही काम कर रहे हैं। अंतर यही है कि ये कमर्शियल हैं, इनके पास अथाह पैसा है और इनकी पहुँच काफी दूर तक है।

यूपीए काल में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए के लिए कोई योजना नहीं बनी और इंस्पेक्टर राज के कारण कंपनी खोलना बड़ा ही दुष्कर कार्य था, जो आज सिंगल विंडो सिस्टम से चलता है। इससे 10 सालों में भारत टेक स्टार्टअप्स के मामले में खासा पीछे चला गया। हाँ, आईटी बूम हुआ ज़रूर, लेकिन यहाँ के प्रतिभाओं ने विदेश जाकर या विदेशी कंपनियों में काम करना चुना, क्योंकि खुद का कुछ करने के लिए देश में वो इकोसिस्टम ही नहीं था।

इसी बीच अमेरिका से निकलते इन कंपनियों ने पूरी दुनिया को एक तरह से अपने वश में करना शुरू कर दिया। शायद ही कोई ऐसा देश हो, जहाँ इन सोशल नेटवर्किंग कम्पनीज पर पक्षपात के आरोप न लगे हों। हाल में हमने देखा कि किस तरह टिक-टॉक ने चीन विरोधी कंटेंट्स को सेंसर किया और इस्लामी कट्टरवाद को बढ़ावा दिया। कमोबेश यही कार्य हेलो एप ने भी किया। फ़िलहाल दोनों ही प्रतिबंधित हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प पर शिकंजा कसने में अब तो गूगल भी सामने आ गई है। उसने उस पार्लर एप को प्ले स्टोर से हटा दिया है, जहाँ ट्रम्प समर्थकों ने बहुतायत में अकाउंट बनाए थे। भारत में भी गूगल ने ऐसे प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसी गूगल के प्ले स्टोर पर खालिस्तानी एजेंडे वाला ‘रेफेरेंडम 2020’ एप्लिकेशन धड़ल्ले से डाउनलोड हो रहा था। सरकार की आपत्ति के बाद इसे हटाया गया। सीएम अमरिंदर सिंह ने इस एप को लेकर केंद्र से शिकायत की थी।

इन उदाहरणों को देख कर ‘हमाम में सब नंगे’ वाली कहावत फिट बैठती है। ये वही ट्विटर है, जिसके माध्यम से ईरान के मुल्ला-मौलवी से लेकर पाकिस्तानी कट्टरपंथी तक नकारात्मकता फैलाते हैं, लेकिन कभी उन पर कार्रवाई नहीं की गई। ये वही फेसबुक है, जिस पर हिंदू देवी-देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरों के एकाउंट्स बने हुए हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं होती। लेकिन, वामपंथी एजेंडे के खिलाफ इन्हें कुछ भी बर्दाश्त नहीं।

इसीलिए, भारत में लोगों को और सरकार को सावधान रहने की ज़रूरत है। कब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चुनावों में पक्षपात कर के माहौल बनाने में सफल होने लगें, कहा नहीं जा सकता। ये सब मिल कर कब हिन्दू साधु-संतों की तस्वीरों को कट्टर और वेद-पुराणों के कोट्स को अन्धविश्वास बताने लगे, कहा नहीं जा सकता। कब ये जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान और लद्दाख को चीन का हिस्सा बनाने के लिए अभियान चलाने लगें, कहा नहीं जा सकता।

एक विकल्प ये हो सकता है कि इन सभी के भारतीय विकल्पों को बढ़ावा दिया जाए। लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसी माँग करते रहे हैं क्योंकि हर एक योजना और अभियान को जन आंदोलन में तब्दील करने की क्षमता रखने वाले पीएम मोदी जब ऐसे किसी एप पर साइनअप करेंगे तो करोड़ों उनके पीछे जाएँगे। लेकिन, गुणवत्ता और कार्यक्षमता के मामले में ये विश्व स्तरीय होना चाहिए। इसके लिए यहाँ के प्रतिभाओं को उत्साहित किया जाए।

जिस दर से भारत में दक्षिणपंथियों और ज्यादा फॉलोवर्स वाले वामपंथ विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा है, उससे साफ़ है कि इन सोशल मीडिया कंपनियों का ये अभियान भारत में भी शुरू हो गया था। ये धीमे जहर की तरह हैं, जो एक बार में एक कदम लेकर आगे बढ़ते जाते हैं और कल को कब ये सामानांतर सरकार की तरह नियम-कानून चलाने लगें, कहा नहीं जा सकता। व्हाट्सप्प भी नई नीति लेकर आया है, लेकिन आधार को लेकर हंगामा करने वाले प्राइवेसी एक्सपर्ट्स शांत हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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