देश की राजधानी में पुलिस अलर्ट पर है। सड़कों पर ट्रैफिक रेंग रही है। आम आदमी परेशान है। यह स्थिति ‘दिल्ली चलो’ नाम के मार्च से उत्पन्न हुई है। कथित किसान खेत-खलिहान छोड़कर हरियाणा की सीमा पर पुलिस से भिड़ रहे हैं ताकि वे दिल्ली की तरफ बढ़ सके।
कृषि और किसानों की खुशहाली के नाम पर चल रहे इस तमाशे में प्रधानमंत्री को धमकी दी जा रही है। उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिराने की बात हो रही है। खालिस्तान के समर्थन में पोस्टर दिख रहे हैं। आम चुनावों से पहले किसानों के नाम पर देश में अराजक स्थिति पैदा करने की कोशिश हो रही है। इन साजिशों को काॅन्ग्रेस सहित विपक्षी दलों का भी समर्थन हासिल है।
यदि कृषि क्षेत्र में मोदी सरकार के कार्यों पर गौर करें तो इस तथ्य को और बल मिलता है कि इस तमाशे का मकसद किसानों का भला कम, राजनीति ज्यादा है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने। के बाद से देश का कृषि बजट करीब 5 गुना बढ़ा है। 10 साल में खाद्यान्नों का उत्पादन रिकाॅर्ड स्तर पर पहुँच गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 62.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। खाद सब्सिडी तीन गुना हो चुका है। किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं के जरिए कृषकों तक सीधे पैसा पहुँचाया जा रहा है।
सीधे-सरल शब्दों में कहें तो मोदी सरकार के 10 साल में किसानों की खुशहाली के लिए ढेर सारे काम हुए हैं। जमीन पर उनका असर भी दिखता है। यही कारण है कि किसानों के नाम पर बखेड़ा करने की इन कोशिशों का असर कुछ खास क्षेत्र तक सीमित है। इन कथित किसानों को आम लोगों का समर्थन नहीं मिल रहा है।
मोदी सरकार में MSP में हुआ बड़ा बदलाव
सरकार द्वारा जिन मूल्यों पर किसानों की फसल खरीदी जाती है, उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कहते हैं। हर फसली वर्ष में सरकार इन मूल्यों के विषय में घोषणा करती है। पंजाब के किसान मुख्य रूप से धान और गेँहू उगाते हैं। यदि इनके ही समर्थन मूल्य की बात की जाए तो वर्ष 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए थे, तब देश में धान का MSP ₹1310, जबकि गेँहू MSP ₹1475 था।
अब अगर वर्तमान मूल्यों की बात की जाए तो इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। फसली सीजन 2023-24 के लिए सरकार ने धान और गेँहू का MSP क्रमशः ₹2183 और ₹2200 रखा है। यह 2014 में ₹1310 और ₹1475 हुआ करता था। ऐसे में अगर 2014 से तुलना की जाए तो धान के MSP में 66.6% जबकि गेँहू के MSP में लगभग 50% की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ इन्हीं फसलों के दामों में बढ़ोतरी हुई है। अन्य फसलों पर भी सरकार ने धान दिया है।
धान और गेँहू के अलावा बाजरा, मक्का और अरहर जैसी प्रमुख फसलों की MSP मोदी सरकार ने बढ़ाई है। बाजरे के MSP में सरकार ने 2014 से अब तक कुल 106% की बढ़ोतरी की है। यह 2014 में ₹1500 हुआ करता था, अब यह बढ़कर ₹3180 हो चुका है। अरहर दाल का MSP 2014 में ₹4300 हुआ करता था जो अब बढ़कर ₹7000 हो चुका है। यानी इसके MSP में 62% की बढ़ोतरी हुई है। इससे स्पष्ट है कि केंद्र सरकार MSP के मुद्दे पर काफी गंभीर है। इस दिशा में 10 साल में 62.5% की औसतन वृद्धि देखने को मिली है।
मोदी सरकार में सरकारी खरीद 30 फीसदी बढ़ी
ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार ने सिर्फ MSP बढ़ाई है, बल्कि वह लगातार MSP की दरों पर खरीदी जाने वाली फसलों की मात्रा भी लगातार बढ़ाती आई है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट बताती है कि 2014-15 के दौरान सरकार ने MSP पर 761 लाख मीट्रिक टन फसल खरीदी थी। यह 2022-24 में यह आँकड़ा बढ़ कर 1062 लाख टन हो चुका है। इसका अर्थ है कि इस दौरान देश में फसलों की सरकारी खरीद में लगभग 30% की बढ़ोतरी हुई है। इस बढ़ोतरी का सीधा फायदा किसानों को हुआ है।
मोदी सरकार में खाद सब्सिडी तिगुनी
केंद्र सरकार ने MSP बढ़ाने और उस पर ज्यादा अन्न खरीदने के साथ ही साथ खेती की लागत घटाने पर भी ध्यान दिया है। केंद्र सरकार लगातार खाद और बीज पर सब्सिडी बढ़ाती आई है। एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार किसानों को ₹73,067 करोड़ की खाद सब्सिडी दिया करती थी। यह वर्ष 2022-23 में बढ़ कर ₹2.54 लाख करोड़ पहुँच गई।
खाद सब्सिडी बढ़ने के साथ ही देश में खाद का उत्पादन भी अधिक हो रहा है। यूरिया के ही उत्पादन को देखा जाए तो वर्ष 2014 में यह 225 लाख टन था, अब बढ़ कर 284 लाख टन हो चुका है। देश में नैनो यूरिया का भी उत्पादन हो रहा है।
कृषि बजट पाँच गुना, किसान सम्मान निधि भी
वर्ष 2014 के बाद से अब तक कृषि बजट भी पाँच गुना हो चुका है। वर्ष 2013-14 में UPA सरकार ने कृषि क्षेत्र को ₹29,687 करोड़ दिए थे। यह 2024-25 के अंतरिम बजट में बढ़कर ₹1.27 लाख करोड़ हो गया है। यानी इन दस वर्षों में कृषि के लिए दिए जाने वाले पैसे में 436% की वृद्धि हुई है। सरकार ने कृषि बजट बढ़ाने के साथ ही किसान सम्मान निधि जैसी योजना लाकर उन्हें सीधा लाभ भी दिया है। इस योजना के तहत सरकार हर किसान को ₹6000 प्रतिवर्ष देती है।
A decade of Agricultural Excellence!
— DD News (@DDNewslive) February 15, 2024
In the financial year 2024-25, MoA&FW was allotted ₹ 1,27,469.88 crores—a five-fold increase over the ₹ 29,687 crores allotted for the fiscal year 2013–14.#AnnadataKaSamman @AgriGoI pic.twitter.com/HupNXe7taJ
आँकड़े बताते हैं कि फरवरी 2019 में से अब तक इसके अंतर्गत किसानों को ₹2.82 लाख करोड़ सीधे उनके खाते में सरकार दे चुकी है। इस योजना के तहत देश के 11 करोड़ से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं। पंजाब में भी इस योजना का लाभ 8.5 लाख किसानों को दिया जा रहा है।
कॉन्ग्रेस-आप के शासन में पंजाब बेपटरी
पंजाब को भारत के अग्रणी अन्न उत्पादक राज्यों में गिना जाता रहा है। हालाँकि, बीते कुछ वर्षों से यह तस्वीर बदल रही है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा खाद्य उत्पादन के लिए जारी किए गए आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि अन्न उत्पादन में पंजाब में 2017-18 के बाद से वृद्धि ही नहीं हुई है। पंजाब में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें धान और गेहूँ में यह स्थिति स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।
यह बात ध्यान देने वाली है कि पंजाब में 2017 में ही सरकार बदली थी और अकाली-भाजपा गठबंधन को हराकर कॉन्ग्रेस सत्ता में आई थी। इसके बाद 2022 में फिर आम आदमी पार्टी ने कॉन्ग्रेस को बेदखल कर दिया। दोनों पार्टियों पर राज्य के कुप्रबन्धन और किसानों को गुमराह करने के आरोप लगते रहे हैं।
किसानों के प्रदर्शन पर राजनीति हावी
इस बार के किसानों के प्रदर्शन को किसान आन्दोलन 2.0 बताया जा रहा है। पिछली बार हुए एक मुद्दा किसान कानूनों का था। वर्तमान में ऐसा कोई भी मुद्दा उनके सामने नहीं है। किसानों के यूनियन द्वारा रखी गई माँगे भी स्पष्ट नहीं हैं। उलटे बीच-बीच में खालिस्तान की माँग हो रही है।
इसी प्रदर्शन से किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल का एक बयान भी सामने आया है, जहाँ वह प्रधानमंत्री मोदी के ग्राफ को नीचे लाने की बात कर रहे हैं। इस बयान के बाद प्रश्न उठ रहे हैं कि यदि यह किसानों का प्रदर्शन है और अपनी माँगें मनवाने के लिए किया जा रहा है तो फिर इससे प्रधानमंत्री मोदी के ग्राफ का क्या लेना-देना है?
मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गए बदलावों से यह स्थिति भी स्पष्ट है कि देश में किसानों की हालत में बदलाव आया है। ऐसे में प्रदर्शन के पीछे के राजनैतिक हितों के होने और उन्हें साधने के प्रयासों से इनकार नहीं किया जा सकता।