थोड़े ही दिन पहले एक वीडियो वायरल होने लगा। वैसे तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मानें तो “वायरल” बीमारियाँ होती हैं इसलिए ये बड़ी बुरी चीज़ हैं, लेकिन जनता की ओर से सोचें तो ऐसा नहीं लगता। आमतौर पर जो चीज़ें वायरल होती हैं, वो सत्ता की ऐंठन सुधारने के काम ही ज्यादा आती है। दीपावली के अवसर पर उत्तर प्रदेश से निकले इस वीडियो का भी ऐसा ही असर हुआ था।
पुलिसकर्मी जिस पटाखा विक्रेता को किसी गंभीर अपराधी की तरह उसकी छोटी सी बेटी के सामने ही मारते-पीटते, घसीटते, लिए जा रहे थे, उस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान चला गया। बच्ची के मन में पुलिस के लिए कहीं दुर्भावना बैठ ना जाए, इसलिए तुरंत कार्रवाई हुई। यूपी पुलिस के बड़े अधिकारी बच्ची से मिलने उसके घर पहुँचे, मामले का निपटारा हुआ। वो यूपी थी और ये बिहार है, इसलिए स्वाभाविक ही है कि दोनों जगहों में अंतर होगा।
इसी वजह से, बिहार के मुंगेर में पुलिसिया बर्बरता का वीडियो जब चुनावों के बीच ही आया तो उस पर शोर नहीं मचा। एक अजीब सी चुप्पी साध ली गई। जनता की इस चुप्पी का मतलब भी बिलकुल साफ़ था। मतदान के पहले ही चरण में हुई इस घटना ने अपने व्यापक प्रभाव छोड़े। मुंगेर में उस वक्त जो एसपी तैनात थीं, वो जदयू के एक कद्दावर नेता की सुपुत्री हैं। चुनाव के जब नतीजे आए तो जिन 124 सीटों पर जदयू ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से उसे केवल 43 पर जीत हासिल हो पाई।
इसके बाद भी क्या नई सरकार बनने के बाद मुंगेर में दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान हुए इस गोलीकांड की जाँच होगी? इसकी संभावना तो नहीं लगती। ये संभावना इसलिए नहीं लगती क्योंकि जदयू के मुखिया नीतीश कुमार ने जब मंत्रालय बाँटने शुरू किए तो शिक्षा मंत्रालय उठाकर मेवालाल चौधरी को दे दिया गया। मेवालाल चौधरी पर आरोप है कि कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर का वीसी रहते हुए साल 2012-2013 में 161 सहायक प्राध्यापक और कनीय वैज्ञानिकों की नियुक्ति में उन्होंने जमकर मेवे खाए थे।
यहीं पर भवन निर्माण में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी उन पर मौजूद हैं। नियुक्ति घोटाले में फरवरी 2017 में IPC 409, 420, 467, 468, 471 और 120B के तहत मुक़दमा दर्ज किया हुआ है। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें 2017 में निलंबित भी किया था। उस दौर में पूर्व उप-मुख्यमंत्री और तब केवल भाजपा नेता रहे सुशील मोदी ने भी उनको हटाए जाने और जाँच को लेकर काफी शोर मचाया था।
मुख्यमंत्री जी का स्पष्ट निर्देश है कि पुलिस हर किसी से संवेदनशीलता से पेश आए, मुख्यमंत्री जी ने सभी वरिष्ठ अधिकारियों को रात में ही पटाखा कारोबारी के परिवार के बीच जाने के आदेश दिए,मुख्यमंत्री जी की पहल से इस परिवार की दीपावली खुशहाल और यादगार हो गई। pic.twitter.com/bgG0rPvKam
— Shalabh Mani Tripathi (@shalabhmani) November 13, 2020
मेवालाल चौधरी के पासपोर्ट को जब्त करवाए जाने के लिए भी सुशील मोदी ने कार्रवाई करवाई थी। अब सुशील मोदी भाजपा की ओर से उप-मुख्यमंत्री नहीं है लेकिन पता नहीं कब फिर से मेवालाल चौधरी का निलंबन गायब हुआ और वो पार्टी की तरफ से मंत्री भी बन गए। राजभवन के निर्देश पर हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस ने नियुक्ति घोटाले की जाँच की थी। इस जाँच के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई लेकिन मेवालाल चौधरी को अदालत से जमानत मिल गई थी।
शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी की पत्नी और पूर्व विधायक रही नीता चौधरी की आग से झुलसने के 5 दिन बाद मौत हो गई थी। उस मामले को भी नियुक्ति घोटाले से जुड़ा हुआ माना जा रहा था। पूर्व आईपीएस अमिताभ दास ने डीजीपी एसके सिंघल को इस मामले की जाँच को लेकर चिट्ठी लिखी है। ये राजद के लिए सरकार को घेरने का अच्छा मौका है। मंत्रिमंडल का गठन होते ही इस किस्म की स्थिति के सामने आने से नीतीश कुमार जैसे सधे हुए राजनीतिज्ञ के लिए भी मुश्किलें बढ़ी हैं।
कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि उनके साथी भाजपा ने जान-बूझकर नीतीश के लिए ये स्थिति खड़ी की है। मेवालाल को लेकर उनकी साँप-छुछुंदर सी हालत करने के पीछे भाजपा का अपनी स्थिति मजबूत करना भी एक वजह हो सकता है। फ़िलहाल ऐसा माना जा रहा है कि 110 में से 74 सीटें जीत लेने वाली भाजपा सरकार चलाने में बेहतर स्थिति में आना चाहती है। फ़िलहाल तो ये समझ में आता है कि नियुक्ति से लेकर निर्माण तक में घोटाले करने वालों को मंत्रालय दिए गए हैं।
जिन पर भाजपा के सुशील मोदी ही आरोप लगा रहे थे, जाँच करवाने की बात कर रहे थे, उन्हें भाजपा के ही समर्थन से मंत्री बना दिया गया है। ऐसे में जो अनैतिक या पुलिसिया जुल्मों के अभियोग सरकार बहादुर पर लगते रहे हैं, उनकी जाँच की कैसी संभावना? जिसकी विधायक रह चुकी पत्नी की संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो जाए और कोई जाँच नहीं हो, उसके सत्ता में आने के बाद किस चीज़ पर कौन निष्पक्ष जाँच करेगा?
ये कोई बिना वजह नहीं था कि बाहुबली नेता अनंत सिंह सीधे टीवी इंटरव्यू में ही “प्रेम दिवस (₹&) की सरकार है” कह बैठते हैं। अगर सोचें कि क्या आपराधिक मामलों और पुलिस के काम काज की बिहार में वैसी ही जाँच होगी, जैसी पड़ोस के उत्तर प्रदेश में दिखी? तो इन सब के बीच हमें राजद के टिकट पर मोकामा से जीते बाहुबली विधायक अनंत सिंह के सरकार के काम काज पर की गई टिप्पणी ही याद आती है। “प्रेम दिवस” की जाँच होगी!