सर कटी मुर्गी की तरह यहाँ-वहाँ भागकर रोजाना अपने लिए नया आशियाना तलाशते नवजोत सिंह सिद्धू के लिए बेहूदा बयानबाजी कर चर्चा में आना कोई नई बात नहीं है। नवजोत सिंह सिद्धू अपनी जनसभाओं में केन्द्र की मोदी सरकार और भाजपा पर खूब हमलावर रहे हैं। हालाँकि, कॉन्ग्रेस में जाने के बाद सिद्धू भले ही भाजपा की आलोचना कर रहे हों, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब भाजपा को अपनी ‘माँ’ बताने वाले सिद्धू का कई साल तक भारतीय जनता पार्टी के साथ ‘बेटे’ जैसा जुड़ाव रहा था। लेकिन, पार्टी बदलते ही सिद्धू ने ‘माँ’ को ‘गाली’ देनी शुरू कर दी है।
‘राजपरिवार’ और ‘राजमाता’ को खुश करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में कल बाचाल नवजोत सिंह सिद्धू ने घटियापन का एक और कीर्तिमान अपनी फर्जी शायरी की किताब में जोड़ लिया है। ट्विटर पर ‘राजमाता’ सोनिया गाँधी और सबसे बुजुर्ग पार्टी के चिरयुवा अध्यक्ष राहुल गाँधी की तस्वीर लगाकर घूमने वाले सिद्धू ने अपने इस बयान से साबित कर दिया है कि चापलूसी और चमचागिरी में वो अब कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को भी कड़ी टक्कर देने में सक्षम हैं।
सबसे ताजा और पिछले बयानों जितना ही वाहियात बयान नवजोत सिद्धू ने कल ही अपने ट्विटर एकाउंट के जरिए दिया है। खुद को अभिजात्य दिखाने के चक्कर में नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए अपनी निम्नस्तरीय मानसिकता का परिचय देते हुए ‘फिलहाल’ कॉन्ग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “एक गलत वोट आपके बच्चों को चायवाला, पकौड़ेवाला या चौकीदार बना सकता है।”
घृणित अभिजात्य मानसिकता ही चायवाले और चौकीदारों से नफरत करना सिखाती है
कॉन्ग्रेस राजपरिवार की छत्रछाया में आते ही अभिजात्य मानसिकता का परिचय देते हुए, किसी भी दूसरे व्यक्ति को अपने से नीचे रखना, उसके सामाजिक परिवेश के आधार पर उसे अपमानित करना और उसे लज्जित महसूस करवाना सिद्धू ने सीख लिया है। इस तरह से राजपरिवार का प्रिय बनने का पहला चरण उन्होंने अच्छी तरह से पास कर लिया है।
नवजोत सिंह सिद्धू का यह बयान उन्हें चर्चा का विषय तो बना देता है, लेकिन ऐसा करते ही वो एक बार फिर तमाम कॉन्ग्रेस नेताओं की तरह ही नरेंद्र मोदी की सजाई हुई ‘पिच’ पर बल्लेबाजी करते नजर आते हैं। कॉन्ग्रेस पिछले 5 सालों में लगातार यही गलती दोहराती नजर आई है। नरेंद्र मोदी ने आम जनता के बीच स्वाभाविक रहकर, उसे सहज महसूस करवाकर उसका हृदय जीता है। जबकि, इसके ठीक उलट, सत्तापरस्त कॉन्ग्रेस लगातार अपने मूर्खतापूर्ण बयान और गुलाम मानसिकता की वजह से आत्मघाती गोल करती रही।
मसलन, नरेंद्र मोदी ने जब रोजगार के लिए पकौड़े बेचने वाले का उदाहरण दिया, तब पूरा नेहरुवियन सभ्यता का इकोसिस्टम पकोड़े बनाकर अपने परिवार का पेट भरने वालों को तुच्छ और हास्य का विषय बनाने में मशगूल हो गया था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को चौकीदार बताया, तब कॉन्ग्रेस चौकीदारों के ही विरोध में खड़ी हो गई और नेपाल से लेकर अपने ही देश के भीतर नस्लीय भेदभाव जैसी टिप्पणियाँ कर अपनी ही बुजुर्ग पार्टी के ताबूत में आखिरी कीलें ठोकती देखी गई। हो सकता है कि कॉन्ग्रेस की नजरों में दलाली करना, भूमि घोटाला करना और बोफोर्स घोटाला करना ही सर्वश्रेष्ठ रोजगार हों, लेकिन क्या मात्र यह तर्क उन्हें अन्य गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों के रोजगार का उपहास करने का अधिकार देने के लिए काफी है?
सामंतवादी कॉन्ग्रेस अभी औपनिवेशिक मानसिकता की गुलामी में जी रही है
निसंदेह नवजोत सिंह सिद्धू ने पकौड़ेवाला और चौकीदारों का बयान अपने पूरे होशोहवास में कॉन्ग्रेस राजपरिवार की नजरों में दुलारा बनने के लिए ही दिया है। सिद्धू अच्छे से जानते हैं कि कॉन्ग्रेस को किस स्तर की ‘जी हजूरी’ से खुश किया जा सकता है। पकौड़ेवाला, चायवाला और चौकीदार का उपहास बनाकर सिद्धू ने कॉन्ग्रेस की उसी प्राचीन प्रणाली में जान फूँक दी है, जो कॉन्ग्रेस की पहचान रही है। यह पहचान है, सामंतवादी मानसिकता और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से सीखा गया सामाजिक और जातिगत नस्लभेद। ऐसा कर के कॉन्ग्रेस बहुत आसानी से हमेशा ही आम जनता से खुद को एक उचित दूरी पर स्थापित कर देती है और लोग महसूस करना भी शुरू कर देते हैं कि नेता ऐसा ही होता है।
BJP को अपनी माँ बताने वाले सिद्धू कॉन्ग्रेस में जाकर दे रहे माँ की गाली, दुखद!
एक समय ऐसा भी था जब घटिया बयान देकर स्वयं को राजनीति में स्थापित करने का सपना देखर रहे सिद्धू भाजपा को अपनी माँ बताते थे और उसके खिलाफ जाने वाले को ‘घृणित’ नजर से देखते थे। शायद तब भाजपा में रहते हुए पार्टी नेतृत्व की चापलूसी कर, उन्हें अपनी माँ बता देना सिद्धू की तत्कालीन रणनीति रही हो और आज भी वो उसी फॉर्मूले पर काम करना चाह रहे हैं।
उस समय नवजोत सिंह सिद्धू एक जनसभा में कह रहे थे, “भारतीय जनता पार्टी मेरी माँ है, भारतीय जनता पार्टी मेरी जननी है, मेरा स्वाभिमान है, मेरी पहचान है और जो मेरी माँ की पीठ में छुरा घोंपेगा, उसे वोट डालना गोमाँस खाने के बराबर है।”
सिद्दू, ये आपके लिए ?? जनता के विशेष आग्रह पर खोज के लाया हूँ.. @sherryontopp जरूर देखें !!
— Arnab Goswami (@ArnabSpeaks_) April 21, 2019
pic.twitter.com/WsBrOlwNcn
सिद्धू के रूप में कॉन्ग्रेस के पास एक खिसियाया हुआ फूफा और बढ़ गया है
सिद्धू राजनीति के उस खिसियाए हुए फूफा जैसे बनकर रह गए हैं, जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ अटेंशन की चॉइस होती है। बीते दिनों पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर कॉन्ग्रेस का दामन थाम लिया था। उसके बाद से वो बदहवास स्थिति में अक्सर अपने बयानों में भाजपा पर हमलावर रहे हैं। लेकिन हमला कर कॉन्ग्रेस परिवार की नजरों में बने रहने की कोशिशों में सिद्धू पूरी तरह से नस्लीय टिप्पणी पर ही उतर आए हैं।
पुलवामा आतंकी हमले में पाकिस्तान जैसे आतंकवाद की फैक्ट्री को ‘मासूम’ बताने और आतंकवाद को मजहब से एकदम अलग बताकर सोशल मीडिया पर गाली खाने वाले सिद्धू को ये समझना होगा कि नरेंद्र मोदी वर्तमान में राजनीति का पर्याय बन चुके हैं और उन्हें ऐसा बनाने में सिद्धू जैसे ही टुटपुँजिया ट्रॉल्स का महत्वपूर्ण योगदान है। वास्तविकता तो यह भी है कि मोदी को अपमानित करने के लिए जिस स्तर तक विपक्ष के नेता प्रतिदिन गिर रहे हैं, वो उनकी मानसिक वेदना को ही स्पष्ट करता है। यह वेदना विपक्ष में समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा उन्हें नकार दिए जाने से दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है और अभी देखना बाकी है कि आम चुनाव के नतीजों के दिन यही विपक्ष बेहूदगी और घटियापने का कौन-सा नया कीर्तिमान पेश करता है। तब तक… “ठोको-ठोको ताली!”