Saturday, November 23, 2024
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मुगलों को उसकी क्रूर सच्चाई के साथ पढ़ाएँ, अखंड भारत के महापराक्रमी नायकों का भी लिखें इतिहास: शत्रु और शौर्य का बोध जरूरी

मुग़ल इतिहास को पढ़ाया जाना जरूरी है लेकिन उसकी सच्चाई के साथ ताकि हमें शत्रु बोध बना रहे। मुग़ल इतिहास की क्रूर सच्चाई के साथ-साथ ही अखंड भारत के हमारे जिन महापराक्रमी और निपुण नायकों को इतिहास में सही तरह से उभार नहीं मिल सका, उनको आगे लाने की भी ज़रूरत है।

तल्ख़ी-ए-ज़हर अभी शामिल-ए-जाँ रहने दे
मुझ पे जो गुज़री है कुछ उस का निशाँ रहने दे

देख उजड़े हुए मंजर अभी दिल सोज़ नहीं
और कुछ रोज़ यूँही रंग-ए-ख़िज़ाँ रहने दे

पिछले एक हफ़्ते से एक विषय जो तथाकथित बुद्धिवादियों के विमर्श का केन्द्रीय विषय बना हुआ है, वह है NCERT द्वारा पाठ्य पुस्तकों से मुग़ल इतिहास का ग़ायब किया जाना। मैं इस बात से पूरी तरह आश्वस्त तो नहीं हूँ कि यह वाक़ई हुआ है क्योंकि मेरे पास इसकी पूरी आधिकारिक जानकारी नहीं है, जो भी जानकारी है उसका माध्यम मीडिया है।

इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकार काफ़ी आक्रोशित हैं और तमाम ‘काम’पंथी नेता, एक्टिविस्ट और तथाकथित पत्रकारों की एक जमात मुँह फुला रही है इस घटना पर। अगर देश के पहले मुनाफिक ‘मक्कारशिक्षामंत्री की आत्मा यदि कहीं होगी तो वह भी विषाद योग से ग्रस्त ज़रूर होगी कि उनका करा-धरा सब कुछ ख़त्म होने जा रहा है।

जिस एहसास-ए-कमतरी का भाव हिन्दुओं में जगाने के लिए यह सब किया गया था, वह समाप्त होने जा रहा है अब। तथाकथित बुद्धिवादियों का तर्क है कि पुस्तकों से ग़ायब कर दोगे तो क्या इतिहास मिट जाएगा? रवीश कुमार को तो जैसे ऑक्सीजन मिल गई है इस विषय के रूप में।

कुतुबमीनार, ताजमहल, लाल क़िले के बारे में अगली पीढ़ियाँ पूछेंगी तो क्या जवाब दोगे – यह सवाल है इन सभी तथाकथित बुद्धिवादियों का।

मेरा इस विषय में अलग विचार है कि अगर इनको वाक़ई ग़ायब कर दिया गया है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। अगर इनको ग़ायब कर दिया गया तो देश की एक बड़े आबादी की अगली पीढ़ी की सन्ततियाँ यह कैसे समझ पाएँगी कि कौन आक्रान्ता थे इस देश में और क्या कुकर्म किए यहाँ आकर? हमारे महान नायकों को नेपथ्य में धकेलने के षड्यंत्र कौन रच रहा था?

उनको यह कैसे पता चलेगा कि श्रीराम की जन्मस्थली को कलंकित करने वाला कौन था? योगेश्वर की जन्मस्थली के ध्वंस का कारक कौन था? राजा भोज जैसे शिल्प विशेषज्ञ द्वारा बनवाई गई जल संरचना भोजपाल ताल, जिसे अब भोपाल ताल कहते हैं, की बांध संरचना को ध्वस्त करने वाला क्रूर और जाहिल वह दैत्य कौन था, जिसके नाम पर होसंगाबाद शहर आज भी आबाद है? भोजपुर के विश्व विख्यात शिवालय को नष्ट करने वाला कौन था? तक्षशिला और नालंदा जैसे शिक्षा केन्द्रों ने किसके मन में ईर्ष्या के बीज प्रस्फुटित कर दिए और उसने अपनी कुंठा मिटाने की ख़ातिर जला दिया इनको?

ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं, जो आज की पीढ़ी के दिल में चुभन पैदा कर शत्रु बोध जगाने का काम करते हैं। ऐसे बहुत सारे प्रश्नों के कारण ही आज की पीढ़ी दोगुने उत्साह के साथ अपनी जड़ों को खोजने में अग्रसर है।

मेरा विचार यह है कि इनको ग़ायब न कर इनमें सुधार की ज़रूरत है।

अब तक इन आक्रान्ताओं के इतिहास को जो महिमामंडित कर पढ़ाया जा रहा था, मुग़ले-आज़म जैसी फ़िल्मों में दिखाया जा रहा था, उसके उलट इन आक्रान्ताओं की सच्चाई को पढ़ाने-दिखाने की ज़रूरत है।

यह जो पढ़ाया जाता है कि औरंगजेब टोपी सिलकर ख़र्चा निकालता था, यह पढ़ाया जाना चाहिए कि फ़क़ीरों को बुलवा कर उनको भी लूट लिया था।

यह पढ़ाया जाना चाहिए कि सत्ता के लालच में मुग़ल किस तरह भाइयों का भी कत्ल कर देते थे, जिस्मानी हवस में रिश्ते भूल जाते थे।

यह पढ़ाया जाना चाहिए कि किस तरह सालार मसूद को महाराजा सोहेल देव ने तलवार से काट डाला।

यह पढ़ाया जाना चाहिए कि कृष्ण देव राय का इतना भय था इन आक्रान्ताओं में कि छल से जीत जाने पर भी विश्वास नहीं हुआ इनको जीत का और कई घंटों बाद प्रवेश करने की हिम्मत जुटा सके।

मुग़ल इतिहास को पढ़ाया जाना जरूरी है लेकिन उसकी सच्चाई के साथ ताकि हमें शत्रु बोध बना रहे, ऐसा मेरा मानना है। मेरा ऐसा मानना इसलिए भी है ताकि भविष्य में ऐसी सम्भावना न बन सके कि कोई और आक्रान्ताओं फिर से ऐसी हरकत को दोहराने का साहस कर सके।

मुग़ल इतिहास की क्रूर सच्चाई के साथ-साथ ही अखंड भारत के हमारे जिन महापराक्रमी और निपुण नायकों को इतिहास में सही तरह से उभार नहीं मिल सका, उनको आगे लाने की भी ज़रूरत है। शत्रु बोध के साथ-साथ हमारे अंदर शौर्य बोध का चैतन्य भी बना रहे, समय की यह भी जरूरत है। असल इतिहास को दबा कर नहीं बल्कि पढ़ा कर ही आने वाली पीढ़ियों को सशक्त बनाया जा सकता है।

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