बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कॉन्ग्रेस पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि कॉन्ग्रेसी नेता बिजी हैं, गठबंधन पर कोई काम नहीं हो रहा है। नीतीश कुमार का साफ कहना है कि अभी गठबंधन को लेकर कोई बात नहीं हो रही है, न ही कोई काम चल रहा है, क्योंकि कॉन्ग्रेस के नेता पाँच राज्यों के चुनाव में व्यस्त हैं। चुनाव खत्म होने के बाद ही इस गठबंधन को लेकर कोई बातचीत होगी।
नीतीश कुमार ने खुद को सभी को साथ लेकर चलने वाला नेता बताया। वह गुरुवार (2 नवंबर 2023) को सीपीआई और वामदलों द्वारा पटना में आयोजित एक रैली में शामिल हुए। इस दौरान मंच से उन्होंने कॉन्ग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया। नीतीश कुमार ने कहा है कि अभी कॉन्ग्रेस पार्टी गठबंधन पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। उसका ध्यान सिर्फ 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव पर है।
नीतीश कुमार का ये बयान कुछ-कुछ अखिलेश यादव के बयान से मिलता जुलता है कि अभी तक इस गठबंधन को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। अखिलेश यादव ने एमपी विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस से मिली दुत्कार के बाद कहा था कि उन्हें अगर पता होता कि ये गठबंधन एमपी चुनाव के लिए नहीं है तो वो यहाँ बैठक के लिए आते ही नहीं। अब नीतीश कुमार ने भी कुछ ऐसी ही बात कही है।
कॉन्ग्रेस पर हमला बोलते हुए नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन से निकलने की बात तो नहीं कही, हाँ ये जरूर कह दिया कि वो सभी को लेकर चलना चाहते हैं। तभी सभी को एकजुट कर रहे हैं। उन्होंने खुद को सोशलिस्ट बताते हुए कहा कि सीपीआई से पुराना रिश्ता है। कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट को एक होकर आगे चलना है। अब एक बार पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म हो जाए, उसके बाद इस गठबंधन के भविष्य पर चर्चा होगी।
नीतीश कुमार के रोल को हाईजैक कर रहे राहुल गाँधी?
भाजपा के खिलाफ गठबंधन खड़ा करने में नीतीश कुमार का सबसे बड़ा रोल रहा, लेकिन मौका मिलते ही कॉन्ग्रेस ने उन्हें किनारे कर दिया। राहुल गाँधी ने पूरा गठबंधन हाईजैक कर लिया है। यहाँ तक कि इस गठबंधन को खड़ा करने वाले नीतीश कुमार से पूछे बिना ही गठबंधन का नामकरण I.N.D.I. Alliance कर दिया था। इस बात से नीतीश कुमार काफी नाराज हुए थे और गठबंधन की ओर से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिए बगैर ही लौट आए थे।
हालाँकि, उन्होंने नाराजगी की बातों को नकार दिया था, लेकिन उसके बाद से नीतीश कुमार के बयान बताते हैं कि उन्हें ही इस गठबंधन में कोई भाव नहीं दिया जा रहा है, जबकि उनके दम पर ही ये खड़ा हुआ। वहीं, अखिलेश यादव को साफ कह चुके हैं कि एमपी में उनके 40 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, जब लोकसभा चुनाव आएगा तब देखा जाएगा।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने भाजपा के खिलाफ सभी दलों को इकट्टा करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। उनकी मेजबानी में इस गठबंधन की घोषणा से पहले ही पटना में एक बैठक आयोजित की गई थी। इसके बाद बैठक मुंबई और फिर बेंगलुरु में हुई। इसी बैठक के दौरान उनकी मर्जी पूछे बगैर राहुल गाँधी ने गठबंधन के नाम की घोषणा कर दी थी, जिसके बाद गठबंधन की ओर से साझा बयान जारी किया गया था।
इस बयान में भी नीतीश कुमार को किनारे करने की झलक दिखी थी, जब उनके द्वारा एजेंडा के तौर पर शामिल कराई गई जातीय जनगणना की माँग पर सभी दल सहमत नहीं हो सके थे। बाद में साझे बयान के दौरान इस मुद्दे को ही गायब कर दिया गया। इसके बाद राहुल गाँधी ने गठबंधन की तरह ही जातीय जनगणना की माँग को भी हाईजैक करने की कोशिश की है और वो लगातार जातीय जनगणना पर मुखर होकर बयानबाजी कर रहे हैं।
इंडी गठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह!
इस गठबंधन का हिस्सा डीएमके पार्टी ने सनातन पर हमले किए, तब भी इंडी गठबंधन की ओर से उनका न तो समर्थन किया गया और न ही विरोध। ये जरूर हुआ कि उदयनिधि स्टालिन के बयान के बाद इंडी गठबंधन की भोपाल में जो रैली होने वाली थी, वो चुनावों की वजह से कॉन्ग्रेस के दबाव में रद्द कर दी गई। वहीं, आरजेडी के नेताओं की सनातन और हिंदू विरोधी बयानबाजी पर भी नीतीश कुमार समेत सभी दल खामोश रहे हैं।
इसके बाद अखिलेश यादव ने खुलेआम इस गठबंधन के खिलाफ बयान दिए तो अब नीतीश कुमार के तेवर भी सामने आ गए। इस बीच, अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया है कि वो इंडी गठबंधन में होकर भी उत्तर प्रदेश की 80 में से 65 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे। उन्हें किसी दल के साथ की जरूरत नहीं।
इसी तरह पंजाब से लेकर दिल्ली तक आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस की खींचतान सामने आ ही चुकी है। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में वामदलों के साथ काम करने को इच्छुक नहीं हैं। ऐसे में बहुत कम जगहें ऐसे बची हैं, जहाँ ये इंडी गठबंधन बिना विवादों के हों। ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा को रोकने के लिए बना इंडी गठबंधन शायद ही कोई कमाल कर पाए।