कॉन्ग्रेस के नेता राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से देश के राजा-महाराजाओं पर लगातार ओछी टिप्पणी करते आ रहे हैं। वे उन राजा-महाराजाओं के इस देश के निर्माण में दिए गए योगदान को अपने पूर्वजों- पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी की तरह ही भूल गए हैं। यही कुछ ऐसी बातें हैं, जिसने राहुल गाँधी को राजनीति का जोकर साबित कर दिया है और वे पिछले तीन दशक से इस तमगे को ढो रहे हैं।
राहुल गाँधी ये बातें अपने मन से बोल रहे हों, इसकी संभावना बेहद कम है, क्योंकि उन्हें वर्तमान की उतनी समझ नहीं है तो इतिहास की समझ क्या ही होगी। राहुल गाँधी को राजनीति का जोकर साबित करने में उनके सलाहकारों की बड़ी भूमिका नजर आ रही है, जो उन्हें कुछ इस तरह के मुद्दे थमा रहे हैं जो कॉन्ग्रेस की ताबूत में आखिरी कील साबित होते हुए नजर आ रही है। इन्हीं में से एक है भारत के राजा-महाराजाओं पर ओछी टिप्पणी।
पिछले दिनों राहुल गाँधी ने 6 नवंबर 2024 को विभिन्न समाचार पत्रों में ‘समान अवसर की माँग करता व्यापार जगत’ शीर्षक से एक लेख लिखा। इसके पहले ही पैराग्राफ में उन्होंने लिखा, “ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की आवाज अपनी व्यापारिक शक्ति से नहीं बल्कि अपने शिंकजे से कुचली थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के राजा-महाराजाओं को डराकर-धमकाकर और उन्हें घूस देकर भारत पर राज किया।”
राहुल गाँधी का लेख यह उनकी इतिहास की समझ को दर्शाता है। हालाँकि, इस लेकर भाजपा एवं अन्य दलों ने राहुल गाँधी पर खूब निशाना साधा, लेकिन क्षत्रियों संगठनों ने उनकी समझ को समझकर इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी। आजादी के बाद सत्ता में आते ही अधिनायकवादी रवैया अपनाने वाली कॉन्ग्रेस की इस नई-नवेली पीढ़ी से इसकी अपेक्षा तो की ही जा सकती है।
इससे पहले अप्रैल 2024 में राहुल गाँधी ने कहा था, “राजा-महाराजा गरीबों को लूटा करते थे। उन्हें जो चीज पसंद आ जाती थी, उस पर कब्जा कर लिया करते थे।” तब पीएम ने कहा था कि राहुल गाँधी ने राजाओं-महाराजाओं को लुटेरा बताकर भारत की विरासत का अपमान किया है। पीएम ने कहा था, “तुष्टिकरण की आदत कॉन्ग्रेस को नवाबों, निजामों, सुल्तानों और बादशाहों के अत्याचारों को लेकर ऐसा ही बोलने से रोकती है।”
पीएम मोदी ने कहा था, “कॉन्ग्रेस औरंगजेब के घोर अत्याचारों को भूल गई है, जिसने हमारे हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया था। शहजादे (राहुल गाँधी) उसके और अन्य लोगों के बारे में बात नहीं करते, जिन्होंने हमारे तीर्थ स्थलों को नष्ट कर दिया… उन्हें लूट लिया… हमारे लोगों को मार डाला…। कॉन्ग्रेस अब उन पार्टियों के साथ गठबंधन कर रही है, जो औरंगजेब का महिमामंडन करती हैं।”
दरअसल, उत्तराधिकार में मिली राजनीति वाले राहुल गाँधी भूल जाते हैं कि राजा-महाराजा इस देश की धरोहर हैं। यहाँ की विरासत का हिस्सा हैं। भारत की प्राचीन संस्कृति का हिस्सा हैं। भारत की विरासत को नकारना हिंदू संस्कृति को नकारना है और राहुल गाँधी लगातार इस संस्कृति को नकारते आ रहे हैं। राहुल गाँधी राजा-महाराजा की बात तो करते हैं, लेकिन बादशाहों-नवाबों की बातें नहीं करते।
कॉन्ग्रेस का इतिहास रहा है अधिनायकवादी
कॉन्ग्रेस पर कब्जा: कॉन्ग्रेस का भारतीय संस्कृति एवं उसके महत्वपूर्ण अध्याय का हिस्सा रहे राजा-महाराजाओं से खानदानी नफरत है। यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस और उसके नेता अधिनायकवादी चरित्र को जी भरकर जिए हैं। आजादी से पहले 1939 में जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष चुने गए तो पंडित नेहरू को यह बात नहीं पची। वह महात्मा गाँधी के बेहद करीबी थे। उन्होंने महात्मा गाँधी को आगे करके नेताजी बोस को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। ये चरित्र है कॉन्ग्रेस का।
महाराजा हरि सिंह से घृणा: पंडित नेहरू को भी राजा-महाराजाओं से घृणा थी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह को बदनाम करने के लिए शेख अब्दुल्ला का भरपूर साथ दिया। भारत में विलय करने के लिए बार-बार नेहरू को सूचित करने वाले हरि सिंह की बातों पर पंडित नेहरू ने कभी ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पाले में चला गया।
याद रहे, महाराजा हरि सिंह के पूर्वज महाराजा गुलाब सिंह ने एक पैदल सैनिक के रूप में अपनी मातृभूमि के लिए सेवाएँ दी थीं और बाद में वे जम्मू-कश्मीर के शासक बने थे। हरि सिंह ने कश्मीर में शुद्रों को मंदिर में प्रवेश की सबसे पहले इजाजत दी थी। उनके शिक्षा के लिए प्रबंध किया था। हालाँकि, नेहरू को विकास आदि से क्या मतलब था, उन्हें तो राजनीति करनी थी।
भारत में विलय के सिंध के प्रस्ताव को खारिज किया: इतना ही नहीं, अपनी अकड़ में मस्त पंडित नेहरू ने सिंध के शासक के भारत में सम्मिलित होने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। उन्हें प्रधानमंत्री बनने की इतनी जल्दी थी कि वे भारत का जल्द से जल्द विभाजन करके किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए तमाम तरीके अपनाए। इसके लिए उन्होंने वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन तक का सहारा लिया।
पंडित नेहरू ने विलय करने वाले रियासतों के प्रमुखों का समझौता तोड़ा: स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही कुछ रियासतों को छोड़कर देश के राजा-महाराजाओं ने भारत में विलय का ऐलान कर दिया था। कई लोगों ने देश के निर्माण में अपनी सेना से लेकर संपत्ति और लाखों एकड़ भूमि तक दान दी। यह सब कुछ बिना किसी लालच के किया गया था।
उस दौरान नेहरू ने कहा था कि इन राजाओं के साथ एक समझौता किया था कि उनका राजप्रमुख का पद बरकरार रहेगा। हालाँकि, नेहरू ने इन समझौते तोड़ते हुए 1956 में राजाओं के राजप्रमुख का पद छीन लिया। इससे जयपुर के महाराजा के साथ-साथ अन्य राजा काफी खिन्न हो गए और नेहरू के असली चरित्र को पहचान गए।
जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह की रहस्यमय मौत: जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह कॉन्ग्रेस और नेहरू से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उन्होंने देश के पहले आम चुनाव 1952 में मारवाड़ क्षेत्र से कॉन्ग्रेस को धाराशायी कर दिया। इस क्षेत्र के 26 सीटों में से एक भी सीट कॉन्ग्रेस को नहीं मिली। इसके बाद वे कॉन्ग्रेस और नेहरू के निशाने पर आ गए। 26 जनवरी 1952 को एक प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई। इस मौत को लेकर आज भी कॉन्ग्रेस पर सवाल उठाए जाते हैं।
इंदिरा गाँधी में भी अधिनायकवादी रवैया
राष्ट्रपति पद की गरिमा का मर्दन: पंडित नेहरू ने अपनी विरासत को कॉन्ग्रेस के किसी अन्य नेता को नहीं, बल्कि अपनी बेटी इंदिरा गाँधी को सौंपी। पंडित नेहरू की तरह ही इंदिरा गाँधी अधिनायकवादी रूख के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने राजा-महाराजाओं को मिलने वाले ना सिर्फ प्रिवी पर्स को खत्म को किया, बल्कि कई नजदीकियों की विरोध की राजनीति करने पर उनका सार्वजनिक जीवन तक खत्म करवा दीं।
इंदिरा गाँधी ने इस देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की गरिमा को खंडित किया। ज्ञान जैल सिंह के राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने उस पद की गरिमा का ध्यान तक नहीं रखा। इंदिरा गाँधी का अधिनायकवादी कुछ ऐसा रवैया था, उनके खिलाफ चंद्रशेखर सिंह को छोड़कर कोई बोलने तक को तैयार नहीं था।
ज्ञानी ज़ैल सिंह ने तो एक बार यहाँ तक कह दिया था कि अगर इंदिरा गाँधी कहें तो वो सड़क पर झाड़ू लगाने को भी तैयार हैं। कहा जाता है कि राष्ट्रपति से मिलने के लिए इंदिरा गाँधी कभी नहीं जाती थीं, लेकिन जरूरत पड़ने पर ज्ञानी जैल सिंह को बुलवा लेती थीं। इस वह पद के साथ-साथ सामान्य शिष्टाचार का भी पालन नहीं करती थीं।
आपातकाल: राहुल गाँधी आज संविधान की किताब लेकर घूम रहे हैं और मोदी सरकार को लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि उनकी ही दादी ने इस देश से लोकतंत्र खत्म करने की कोशिश की। इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगातार जनता के अधिकारों को रौंद दिया। हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और घोर यातनाएँ दी गईं, जो कभी अंग्रेज भारतीयों को दिया करते थे।
संजय गाँधी का समानांतर सत्ता: इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमंत्री थीं, लेकिन उनके छोटे बेटे संजय गाँधी देश में समानांतर सरकार चलाते थे। यह लोकतंत्र के सर्वथा विरूद्ध है। कहा जाता है कि अधिकारियों एवं मंत्रियों तक की नियुक्ति में भी उनका बड़ा दखल होता है। कई योजनाओं को वो जबरन लागू करवाते थे। संजय गाँधी के अधिनायकवादी रुख को लेकर कई घटनाएँ हैं।
जबरन नसबंदी: ये संजय गाँधी ही थे, जिन्होंने देश में जनता को विश्वास में लिए बिना हजारों लोगों का जबरन नसबंदी करवा दिया था। साल 1976 के सितंबर महीने में उन्होंने देश भर में पुरुष नसबंदी का करवाने का आदेश दिया। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि एक साल में 60 लाख से ज्यादा लोगों की जबरन नसबंदी की गई, जिनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्गों तक शामिल थे।
झुग्गियों पर जबरन बुलडजोर चलवाया: संजय गाँधी का रवैया इतना तानाशाही था कि ‘उनका वचन ही शासन’ था। उनके मन में जो आ जाता उसे लागू हो जाता। आपातकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली की झुग्गियों पर बुलडोजर चलाने का निर्देश दिया। दिल्ली के तुर्कमान गेट पर खुद खड़े होकर उन्होंने बुलडोजर चलवाया। लोगों ने विरोध किया था तो उन पर गोलियाँ चलवाई गईं, जिनमें दर्जनों लोग मारे गए।
इस पुलिस फायरिंग में कितने लोग मारे गए, इसका सही आँकड़ा आज भी लोगों के पास नहीं है। उस दौरान कॉन्ग्रेस के भी कई नेता उस घटनास्थ पर मौैजूद थे। उस समय मीडिया को इस इवेंट को कवर करने की इजाजत नहीं दी गई थी। ऐसा कुछ तानाशाही रुतबा था संजय गाँधी का, जो उन्हें इंदिरा गाँधी से विरासत में मिली थी।
इंदिरा गाँधी और उनके उत्तराधिकारियों ने विरोधियों को खत्म करने के लिए हर हथकंडे अपनाए
महाराजा प्रवीर भंजदेव की हत्या: कॉन्ग्रेस की आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ बस्तर के महाराजा प्रवीर भंजदेव खुलकर खड़े हो गए। उन्होंने आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय को असहनीय बताया। वे कॉन्ग्रेस से अलग लगातार चुनाव जीत रहे थे। उनका प्रभाव कई विधानसभा सीटों पर था। इससे नाराज होकर कॉन्ग्रेस की सरकार ने 1966 में पुलिस फायरिंग में उनकी हत्या करवा दी।
उन्होंने नौ आदिवासियों को विधानसभा भेजकर उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लेकर आए थे। उस समय मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा थे। कहा जाता है कि राजा प्रवीर भंजदेव को 25 गोलियाँ उनके महल में मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उनके परिवार की अनुमति के बिना उनके शव को जला दिया गया था। उनके परिवार के सदस्यों को आमंत्रित तक नहीं किया गया था।
महारानी गायत्री देवी का उत्पीड़न: जयपुर की महारानी गायत्री देवी एक समय इंदिरा गाँधी की सहेली हुआ करती थीं, लेकिन इंदिरा गाँधी के तानाशाही रवैये ने महारानी को उनका विरोधी बना दिया। 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल महारानी गायत्री देवी ने विरोध किया था। इसके बाद इंदिरा ने आयकर विभाग से राजघराने की आय और संपत्ति की जाँच का आदेश दिया।
इंदिरा गाँधी ने सेना भेजकर राजस्थान में उनके महल की खुदाई कराकर कई ट्रकों में उनकी संपत्तियों को निकाला लिया गया। यहाँ तक महारानी गायत्री देवी को इंदिरा गाँधी ने तिहाड़ जेल में डलवा दिया और वह 6 महीने तक यहाँ रहीं। बाद में इंदिरा गाँधी से व्यवहार से दुखी होकर राजमाता के नाम से विख्यात गायत्री देवी ने राजनीति ही छोड़ दी।
भरतपुर के महाराजा और सीटिंग MLA का पुलिस एनकाउंटर: 20 फरवरी 1985 को भरतपुर के महाराजा और सीटिंग निर्दलीय MLA राजा मान सिंह को राजस्थान तत्कालीन कॉन्ग्रेस मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने पुलिस एनकाउंटर में हत्या करवा दी थी। कहा जाता है कि माथुर के सामने डीग से राजा मान सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इससे माथुर नाराज थे।
माथुर के समर्थक कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने डीग के किले पर लगा राजशाही झंडा उतारकर कॉन्ग्रेस का झंडा लगा दिया था। इस हरकत से राजा मान सिंह नाराज हो गए और अपनी जीप से माथुर की चुनावी सभा में जा पहुँचे। उन्होंने माथुर के हेलीकॉप्टर में टक्कर मार दी। इसके बाद उनके खिलाफ FIR दर्ज करवाकर माथुर ने उनका पुलिस एनकाउंटर करा दिया।
राजा-महाराजाओं ने जो इस देश को अपना सर्वस्व दिया
इस देश की आजादी का इतिहास सिर्फ 1947 से नहीं शुरू होता। इस देश का इतिहास 700 ईस्वी से पहले भी शुरू होता है, जब मुस्लिम आक्रमण की शुरुआत नहीं हुई थी। बप्पा रावल से लेकर महाराणा प्रताप ने विदेशी आक्रांताओं से मुकाबला किया और इस देश के जनमानस को सुरक्षित रखा। राहुल गाँधी भले ही राजा-महाराजाओं को गाली दें, लेकिन इस देश के कण-कण में उनका त्याग और बलिदान छिपा है।
जब देश आजाद नहीं हुआ, तब भी राजाओं ने अपनी प्रजा के लिए जो काम किए, वो आज भी चमत्कार से कम नहीं है। कॉन्ग्रेस की सरकार 70 साल में देश के लोगों के पीने के लिए स्वच्छ जल नहीं उपलब्ध करा पाई, लेकिन राजा-महाराजाओं ने एक-एक मील पर कुँआ, तालाब, बावड़ी, नहर, धर्मशालाएँ आदि बनवाए, ताकि प्रजा को बेसिक चीजों की कमी ना हो।
आज गरीब मर जाए, लेकिन उसे हर चीज में टैक्स देना होता है। राजा-महाराजाओं के काल में कभी भूख से मौत नहीं होती थी। अकाल के समय राजा-महाराजा अपने गोदाम खोल देते थे और जनता को तब तक भोजन उपलब्ध कराते थे, जबकि अगली बार फसल ना हो जाए। लगान एवं मालगुजारी उस साल माफ कर दी जाती थी। आज आधुनिक उपकरण होने के बावजूद एक पूल 2 महीने में गिर जाता है।
शायद राहुल गाँधी ने इस देश के इतिहास एवं मिट्टी की गंध को महसूस करने की कोशिश नहीं की। इसी देश में राजा-महाराजाओं ने असंभव को संभव करके दिखाया है। रेगिस्तान में गंग नहर बनाने का काम कोई प्रजापालक ही कर सकता है। कहा जाता है कि पानी को संचित करने और उस साल आए भयंकर अकाल में लोगों को रोजगार देने के लिए गंग नहर का निर्माण शुरू हुआ था और राजा गंगा सिंह खुद इसमें हाथ बँटाते थे।
इसी तरह अकाल में रोजगार देने के लिए मारवाड़-राठौर राजवंश के महाराजा उम्मेद सिंह ने अपनी उम्मेद भवन महल का निर्माण शुरू करवाया था। यह महल सन 1943 में बनकर तैयार हुआ था। जब यह बना था, तब यह दुनिया के सबसे बड़े राजपरिसरों में से एक था। इसी तरह मध्य प्रदेश के कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने 1924 के अकाल के समय कोरिया पैलेस का निर्माण कराया, ताकि लोगों को रोजगार मिले।
इससे पहले यह राजपरिवार मिट्टी के घरों में रहता था। इस पैलेस के निर्माण से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला। इसकी पहली मंजिल का काम लगभग सात साल बाद यानी 1930 में पूरा हुआ। इसके बाद राजपरिवार के सदस्य महल में रहने आ गए। इससे पहले राजपरिवार के सदस्य बैकुंठपुर स्थित धौराटीकरा में मिट्टी के बने घर में रहते थे। 1942 में फिर से अकाल पड़ा दो मंजिला पैलेस बनने के बाद ऊपर कुछ कमरे और बनवाए गए।
भारत के इतिहास में ऐसी लाखों कहानियाँ भरी पड़ी हैं। बस राहुल गाँधी को इनकी जानकारी नहीं है। जब देश आजाद हुआ था तो इन्हीं राजाओं ने लाखों एकड़ भूमि सरकार को मुफ्त में दी थी। इतना ही नहीं जब भूदान आंदोलन शुरू हुआ तो लोगों को इन्हीं राजाओं ने जमीनें दान दीं। आज उन्हीं दान की हुई जमीनों पर भारत के विकास की नींव खड़ी है, लेकिन राहुल गाँधी में उसे देखने की दूरदर्शिता नहीं है।
अपनी प्रजा के लिए पहले के राजाओं की क्या सोच थी, इसका उदाहरण जोधपुर नरेश महाराज हनुवंत सिंह की सरदार पटेल के साथ एक घटना से समझा जा सकता है। सन 1949 में जब सरदार पटेल अपने सहोयगी वीपी मेनन के साथ जोधपुर के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर के लिए पहुँचे तो उन्होंने कहा जोधपुर की जनता को खाने की दिक्कत ना हो ऐसे में भारत यहाँ, खासकर अकाल के समय में अनाज की आपूर्ति की ज़िम्मेदारी लेगा।
इसके साथ ही जोधपुर को काठियावाड़ से रेल द्वारा जोड़ा जाएगा, ताकि जोधपुर में व्यापार फल-फूल सके। इसके लिए सरदार पटेल और मेनन तैयार हो गए। इसी दौरान युवा हनवंत सिंह ने पेन वाली अपनी रिवॉल्वर मेनन की करके चेतावनी देते हुए कहा कि अपनी बात से पीछे हटने का अब रास्ता नहीं बचा है। इसी दौरान माउंटन बेटन वहाँ आ गए और महाराजा ने आग्रह किया तो उन्होंने अपनी पिस्तौल नीचे कर दी।
राहुल गाँधी को ना इतिहास की जानकारी और संस्कृति की समझ
राहुल गाँधी ने इस देश की जनता, उसकी संस्कृति से लेकर उसके व्यवहार को समझने की कोशिश नहीं की। ना ही एलीट वर्ग में पैदा हुए मोतीलाल नेहरू से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी ने ऐसी कोशिश की। इन लोगों ने इस देश की निरीह जनता को जैसे चाहा, वैसे हाँका। कभी जातियों में बाँटा तो कभी धर्म की राजनीति की और समाज में भेदभाव पैदा किया।
कॉन्ग्रेस की राजनीति कभी देश को जोड़ने वाली रही ही नहीं। देश की आजादी से पहले वह मुस्लिमों से अलग रूख अपनाकर सांप्रदायिक राजनीति की। जब देश आजाद होकर बँटवारा हो गया तो जाति की राजनीति की और 70 सालों तक इस देश को गरीब लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा और खुद घोटाले पर घोटाले करके मलाई खाते रहे।
बिजली-पानी-सड़क-स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी बुनियादी चीजों का समाधान शुरूआती 2 दशक में पूरे हो जाने चाहिए थे, लेकिन कॉन्ग्रेस के नेताओं पर अधिनायकवाद का ऐसा नशा सवार था कि वे अपने विरोधियों को निपटाने पर तुले थे और देश की जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया। आज राहुल गाँधी इस देश के कण-कण में विद्यामान राजा-महाराजाओं को क्रूर बताने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।
राहुल गाँधी अपने पूर्वज पंडित नेहरू और इंदिरा गाँधी के ही रास्ते पर ही जा रहे हैं, जिन्हें आम लोगों से नफरत थी। देश के लोगों के काम करने वालों से नफरत थी। जैसे कि महाराज प्रवीर भंजदेव इसके उदाहरण हैं। कॉन्ग्रेस को जी-हजूरी करने वाले दरबारियों से घिरे रहने की आदत सी थी। राहुल गाँधी आज भी जमीन पर उतरने के बजाय अपने दरबारियों के सलाह पर बयान दे रहे हैं। यह उनकी पार्टी की विनाश का संकेत है।