Sunday, December 22, 2024
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चाटुकार अपूर्वानंद, कितना भी लगा लो पोछा नहीं धुलेंगे पप्पू के दाग पर हिंदी का प्रोफेसर होने के नाते ‘राम की शक्ति पूजा’ का तो रख लेते लाज

'राम की शक्तिपूजा' में बुजुर्ग ऋक्षपति जामवंत राम को सलाह देते हैं कि वो भी शक्ति की पूजा करें और उन्हें प्रसन्न कर के अपनी तरफ करें, यानी शक्ति अर्जित करें।

भारत में एक खास नस्ल है, जिसका कार्य है उनके आका द्वारा दिए गए अनाप-शनाप बयानों का येन-केन-प्रकारेण बहाव करना, भले ही इसके लिए तथ्यों को मटियामेट ही क्यों न करना पड़े या फिर हजार झूठ ही क्यों न बोलना पड़े। अब देखिए, मुंबई में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के समापन के दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कह दिया कि हिन्दू धर्म के एक शब्द है शक्ति, उनकी लड़ाई उसी शक्ति से है। भारत में प्राचीन काल से शक्ति की आराधना होती रही है, ऐसे में राहुल गाँधी के इस हिन्दू विरोधी बयान का विरोध होना स्वाभाविक है।

अब एक खास ब्रीड राहुल गाँधी के इस बयान के बचाव में भी उतर आया है। ताज़ा विवाद के बीच इसे ‘महिषासुर गिरोह’ कह सकते हैं। खुद को बुद्धिजीवी दिखाने वाली इस जमात का इतिहास ऐसा रहा है कि सोशल मीडिया में इनके द्वारा लिखे जाने वाले एक शब्द से भी पता चल जाता है कि इनका इशारा किस तरफ है। जैसे, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा ने ट्वीट किया, “अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति! (राम की शक्तिपूजा, निराला)।

पहले तो एक हिन्दी के प्रोफेसर के ट्वीट में त्रुटियाँ देखिए। कौमा के बाद उन्होंने कोई स्पेस नहीं दिया। उन्होंने इस ट्वीट के माध्यम से एक तरह से ये साबित करने का प्रयास किया है कि देवी शक्ति अन्याय का साथ देती हैं। यानी, अपूर्वानंद झा के लिए चण्ड-मुण्ड, शुम्भ-निशुम्भ, रक्तबीज और महिषासुर ही देवता हैं क्योंकि उनके हिसाब से देवी ने अन्याय का साथ देते हुए इन सबका संहार किया। आइए, DU प्रोफेसर के इस प्रोपेगंडा की तह तक जाते हैं।

“अन्याय जिधर, है उधर शक्ति” – अपूर्वानंद झा का प्रोपेगंडा

सबसे पहले ‘राम की शक्तिपूजा’ कविता के बारे में जानते हैं, जिसकी रचना 20वीं शताब्दी के महान छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने की है। ये बंगाली भाषा के 15वीं शताब्दी की लोकप्रिय रामकथा ‘कृत्तिवास रामायण’ पर आधारित है, जिसकी रचना कृत्तिवास ओझा ने की थी। इसमें एक जगह जिक्र है कि कैसे रावण पर शक्ति का आशीर्वाद देख कर श्रीराम ने शक्ति की आराधना करने की ठानी। देश, काल और समाज को ध्यान में रखते हुए निराला ने इसी को ‘राम की शक्तिपूजा’ के रूप में ढाला।

‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘कृतिवास रामायण’ में अंतर ये है कि निराला ने राम को एक आम आदमी के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने राम को भी एक आम आदमी की तरह संशय में पड़ने वाला व्यक्ति माना है, उन्हें भी निराशा होती है, वो भी आगामी परिणाम के पक्ष में आने या न आने को लेकर सोचते हैं। वो रावण के पक्ष में शक्ति का संतुलन देख कर खिन्न हैं। आइए, अब अपूर्वानंद झा ने जिन पंक्ति का जिक्र किया उसका संदर्भ देते हैं। उसके लिए उससे पहले और बाद की पंक्तियों को देखिए:

कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर
बोले रघुमणि—मित्रवर, विजय होगी न समर;
यह नहीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरीं पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण;
अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति! कहते छल-छल
हो गए नयन, कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,

इन पंक्तियों का अर्थ है कि भगवान राम जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है, एक आम आदमी की तरह वो कह रहे हैं कि ये सिर्फ नर-वानर बनाम राक्षस का युद्ध नहीं है बल्कि रावण ने महाशक्ति का भी आह्वान कर दिया है। राम रुंधे गले से कह रहे हैं कि अन्यायी रावण की तरफ शक्ति चली गई हैं। आगे वो “देखा, हैं महाशक्ति रावण को लिए अंक, लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक;” कहते हैं, मतलब वो महाशक्ति के अंक में रावण को देख कर निराश हैं और शक्ति को अपनी तरफ करना चाहते हैं।

ध्यान दीजिए, यहाँ राम ये नहीं कह रहे कि उन्हें शक्ति का विनाश करना है। वो ये भी नहीं कह रहे कि उनकी लड़ाई शक्ति से है। वो ये भी नहीं कह रहे कि शक्ति का उन्हें विनाश करना है। उन्हें बस शक्ति को अपनी तरफ करना है। रावण शिव का बहुत बड़ा भक्त था, विद्वान और तपस्वी था। कथा है कि उसने अपने सिर काट-काट कर शिव को अर्पित किए गए। रावण के तप के कारण ही शक्ति उसकी तरफ थीं। राम ये नहीं कह रहे हैं कि शक्ति हमेशा अन्याय के साथ होती है, वो उस स्थिति में एक आम मनुष्य की तरफ निराश होकर मनन कर रहे हैं।

‘राम की शक्तिपूजा’ में बुजुर्ग ऋक्षपति जामवंत राम को सलाह देते हैं कि वो भी शक्ति की पूजा करें और उन्हें प्रसन्न कर के अपनी तरफ करें, यानी शक्ति अर्जित करें। जामवंत कहते हैं, “हे पुरुष-सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण, आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर“। फिर राम को न सिर्फ शक्ति का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि शक्ति उनके शरीर में भी समा जाती है, एकाकार हो जाती है। महाशक्ति ने उन्हें “होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन!” कह कर आशीर्वाद दिया।

कौन है अर्बन नक्सल अपूर्वानंद झा?

अपूर्वानंद झा अर्बन नक्सल है, यानी कलम चला कर नक्सलवाद का काम करने वाला। उसने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक लेख लिख कर उमर खालिद को अपने बेटा बताया था। वही उमर खालिद, जिसे दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में हुए दंगों का मास्टरमाइंड माना है। फ़्रांस में आतंकियों द्वारा ‘सर तन से जुदा’ की घटनाओं के बाद उसने लिखा था कि ‘अल्लाहु अकबर’ और हत्याएँ एक साथ नहीं आते। जबकि दिल्ली दंगों में भीड़ ने यही नारा लगा कर हत्याएँ की थीं।

खुद अपूर्वानंद पर भी दिल्ली दंगों में हाथ होने का आरोप लग चुका है। UAPA के तहत गिरफ्तार दिल्ली दंगों की एक आरोपित गुलफिशा उर्फ़ गुल ने दिल्ली पुलिस की पूछताछ में कबूल किया था कि दंगों को भड़काने के पीछे प्रोफेसर अपूर्वानंद ही मास्टरमाइंड था। उसने बुर्कानशीं ख्वातीन की एक टीम तैयार की थी। उसने जामिया के छात्रों को टास्क दिया था कि वो विरोध प्रदर्शन के जरिए भारत सरकार को मुस्लिमों से भेदभाव करने वाला साबित करें। अपूर्वानंद झा हिन्दुओं को ‘बीमार समाज’ भी बता चुका है।

फिर भी, ताज़ा विवाद की बात करें तो एक प्रोफेसर से अपेक्षा की जाती है कि अगर वो कुछ बता रहा है तो उसके सन्दर्भ की भी बात करे, न कि भ्रम फैलाए। उसे अपनी गति का खूब पता है, तभी उसने रिप्लाइज भी ऑफ कर रखी है उस ट्वीट पर। यानी, उसे खूब पता है कि वो प्रोपेगंडा का प्रसार कर रहा है लेकिन ये तो बेशर्म ब्रीड है। इन्हें क्यों शर्म आने लगी भला। अब राहुल गाँधी का बचाव करने के लिए बुद्धि को ताक पर रखना ही पड़ेगा ना। अपूर्वानंद ने इसीलिए शक्ति को ही अन्यायी बता दिया, माँ दुर्गा का अपमान किया।

PM मोदी पर शक्ति का आशीर्वाद, ‘असुर’ की तरह व्यवहार कर रहा विपक्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि हमलोग शक्ति के आराधक हैं और 4 जून को फैसला हो जाएगा कि शक्ति का आशीर्वाद किस पर है। जबकि विपक्ष खुद को शक्तिहीन पाकर शक्ति को ही कोस रहा है। अब आपने गठबंधन नहीं बनाया, जन-सरोकार के मुद्दों को नहीं उठाया, हिन्दू धर्म का बार-बार अपमान किया, परिवारवाद को बढ़ावा दिया, सत्ता मिलने पर भ्रष्टाचार किया तो दोष शक्ति को क्यों? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने RSS संगठन, पार्टी और फिर बतौर मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री काम किया।

नरेंद्र मोदी ने उस परिवार से अपना सफर शुरू किया, जहाँ उन्हें स्टेशन पर चाय बेच कर गुजारा करना पड़ता था और उनकी माँ को दूसरों के घरों में बर्तन माँजने पड़ते थे। उन्होंने एक कमरे में अपनी अधिकतर ज़िन्दगी गुजारी है, वो भी दूसरों की। उन्होंने बतौर CM गुजरात को चमकाया, तब जाकर देश ने उन पर भरोसा जताया। जनता का विश्वास ही उनकी शक्ति है और इसी के बलबूते वो लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए आश्वस्त हैं।

जबकि विपक्ष ‘आसुरी शक्तियों’ का प्रदर्शन कर रहा है। नरेन्द्र मोदी, भाजपा और उनके समर्थक ही राम को लेकर आए हैं, अयोध्या में भव्य राम मंदिर बना है। विपक्षी दल इसका विरोध करते थे, अंत में उन्हें जनमानस के सामने झुकना पड़ा। जब मौका था, उन्होंने ऐसा नहीं किया। आज राम के सहारे ही कॉन्ग्रेस समर्थक बुद्धिजीवी राहुल गाँधी को सही साबित करने पर तुले हुए हैं। एक तरफ नरेंद्र मोदी के संघर्षों के तप की शक्ति है, दूसरी तरफ परिवारवाद और भ्रष्टाचार के साथ-साथ हिन्दू विरोधी सोच जहाँ सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया बता कर इसे खत्म करने की बात की जाती है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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