पंजाब कॉन्ग्रेस में चल रही कई महीने की राजनीतिक सरगर्मियों, असंतोष, गुटबाजी और मुलाकातों के बाद पार्टी हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। सिद्धू के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए गए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस फैसले के पहले दल के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पंजाब के लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की राय भी ली। दल के राष्ट्रीय नेतृत्व का यह कदम पहले से चल रहे विवादों का अंत करेगा या उन्हें नया मोड़ देगा, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल के लिए दल में चल रहा अंदरूनी विवाद कुछ दिनों के लिए शांत रहेगा, ऐसा माना जा रहा है। वैसे राजनीतिक जानकारों के एक धड़े की मानें तो हाईकमान का यह कदम प्रदेश कॉन्ग्रेस में दो पावर सेंटर को जन्म देगा और यह बात अगले वर्ष होनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए सही कदम नहीं है।
सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद अलग-अलग लोगों से आई प्रतिक्रिया प्रदेश में पहले से चल रहे राजनीतिक रस्साकशी को एक नए दृष्टिकोण से देखने के लिए बाध्य करती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि हाईकमान को दिए गए अपने मंतव्य में प्रदेश से आने वाले सांसद सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे। इसके साथ ही दस विधायकों का एक ग्रुप सार्वजनिक तौर पर न केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया, बल्कि इस ग्रुप ने हाईकमान से यह अनुरोध भी किया कि वह ऐसे महत्वपूर्ण मौके पर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का साथ दे। कैप्टन भी प्रदेश अध्यक्ष पद के विषय पर पहले से ही अपनी प्राथमिकताएँ जगजाहिर करते रहे हैं। उनका यह मानना रहा है कि पद के लिए सिद्धू का चुनाव समाज के अन्य वर्गों को गलत संदेश देगा। इन बातों को देखते हुए फिलहाल यही लग रहा है कि दल के भीतर विवाद शांत होने की जगह शायद नया मोड़ ले।
नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर के सिंह के बीच विवाद नया नहीं है। दोनों नेताओं के बीच की राजनीतिक रस्साकशी कई वर्षों से चली आ रही है। हाँ, नई बात है कॉन्ग्रेस हाईकमान का इस बार सिद्धू की ओर झुकाव। सिद्धू राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा के नज़दीक माने जाते रहे हैं। एक बात और है जिसे हाल के महीनों में सच माना जाने लगा है और वह है; राहुल गांधी में कैप्टन अमरिंदर सिंह के विश्वास का अभाव। ऐसे में सिद्धू के लिए इन बातों को आगे रखकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ सीधी राजनीतिक टक्कर लेना आसान हो जाता है। पर इसके साथ हाल के दिनों में शायद जो बात हाईकमान के लिए खतरे की घंटी साबित हुई वह थी सिद्धू की आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ बढ़ती नज़दीकियाँ जिन्हें उन्होंने अपने कई ट्वीट में जाहिर किया। ऐसा नहीं कि आम आदमी पार्टी के साथ सिद्धू की नज़दीकियाँ कोई नई बात है पर सिद्दू ने इस बार इन्हें दिखाने के लिए ऐसा समय चुना जिसकी वजह से ये बात कई और राजनीतिक घटनाओं और संयोगों के साथ सामने आई है।
Hon’ble Congress President Smt. Sonia Gandhi has appointed Shri Navjot Singh Sidhu as the President of the Punjab Pradesh Congress Committee with immediate effect. The party appreciates the contributions of outgoing PCC President, Shri Sunil Jakhar. pic.twitter.com/2lviyzwMuV
— Congress (@INCIndia) July 18, 2021
फिलहाल हाईकमान के राजनीतिक फैसले से ऐसा सन्देश जाता है कि कॉन्ग्रेस पार्टी पंजाब में अब भविष्य की ओर देख रही है। साथ ही सिद्धू की प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी काफी हद तक साफ़ सन्देश है कि हाईकमान सिद्धू में दल का भविष्य देख रहा है। प्रदेश के बाकी दलों में इस समय नेतृत्व की कमी साफ़ दिखाई दे रही है और कॉन्ग्रेस को लगता है कि शायद सिद्धू राजनीतिक दृष्टिकोण से इस समय सबसे विश्वसनीय नेता हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी किसी न किसी रूप में राजनीतिक तौर पर शिथिल पड़े हैं। व्यक्तिगत तौर पर भी उनकी छवि पहले जितनी ठोस नहीं दिखाई देती और इस समय इतनी कमज़ोर है कि सिद्धू खुले तौर पर उन्हें चुनौती देते हुए दिख रहे हैं। इस सब के ऊपर प्रदेश की राजनीति में जो खालीपन है उसमें कॉन्ग्रेस के लिए शायद सिद्धू दल के लिए भविष्य की राजनीति को नेतृत्व देने लायक लगते हैं और यही कारण है कि उनके प्रति दल इस समय आशावान दिखाई दे रहा है।
ये राजनीतिक फैसले और परिस्थितियाँ कैप्टन अमरिंदर सिंह को कहाँ ले जाती हैं? यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर शायद हमें जल्द ही मिले। सिद्धू को कैप्टन सशर्त प्रदेश अध्यक्ष मानने के लिए तैयार हो गए हैं पर यह स्थिति क्या हमेशा के लिए लागू हो पाएगी? राजनीतिक कद के लिहाज से कैप्टन अमरिंदर सिंह आज भी प्रदेश कॉन्ग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। ऐसे में वे सिद्धू या हाईकमान की हर बात वे आगे भी मंजूर करेंगे, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है। चुनाव में टिकट बँटवारे को लेकर किस तरह की रणनीति होगी? कौन सा ग्रुप मज़बूत रहेगा? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब आने वाले समय में शायद जल्द ही मिले। हाईकमान से मिली सह का सिद्दू के आत्मविश्वास पर कितना प्रभाव पड़ेगा और उनका राजनीतिक आचरण आगामी प्रदेश चुनाव में दल के लिए कितना सही रहेगा, ये ऐसे प्रश्न हैं जो राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी हैं और जिनका सामना दल और उसके नेताओं को जल्द ही करना ही होगा। फिलहाल तो यही लग रहा है कि हाईकमान के इस राजनीतिक फैसले से अंदरूनी विवाद पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुए हैं और उनको बस एक नया मोड़ मिला है।