आज के भारत में, या ये कह लें कि मोदी सरकार के कार्यकाल में, बॉलीवुड के वरिष्ठ अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को अपने बच्चों के लिए डर लग रहा है। उन्हें नरसंहार और गृहयुद्ध का डर सता रहा है, क्योंकि उनके शब्दों में कहें तो देश में मुस्लिमों को भयभीत करने के प्रयास हो रहे हैं। उनकी नजर में चर्च-मस्जिद तोड़े जा रहे हैं, गाय की मौत मुद्दा बन रही है और ‘हिन्दू खतरे में है’ का झूठा नैरेटिव फैलाया जा रहा है। वो एहसान भी जता रहे हैं कि उनके पिता ने पाकिस्तान की जगह भारत को चुना और 20 करोड़ मुस्लिम आज भारत की, अपने परिवार की रक्षा कर रहे हैं।
इन सबके अलावा नसीरुद्दीन शाह मुगलों का महिमांडन रुक जाने से भी दुःखी हूँ। औरंगजेब की आलोचना क्यों हो रही है, इसका उन्हें गहरा दुःख है। उनकी नजर में कला, संगीत और साहित्य से लेकर कलाकृतियों वाले स्मारक तक मुग़ल ही भारत में लेकर आएँ। इतना ही नहीं, उनकी नजर में मुग़ल तो भारत निर्माता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्हें खासी चिढ़ है, क्योंकि अयोध्या और काशी का विकास उनकी नजर में ‘अपने व्यक्तिगत धर्म का खुला प्रदर्शन’ है।
नसीरुद्दीन शाह ने यहाँ तक आरोप लगा दिया कि गुजरात में हुए दंगों के लिए नरेंद्र मोदी (जो 2002 में वहाँ के मुख्यमंत्री थे) ने कभी माफ़ी नहीं माँगी, इसके उलट इस घटना से वो ख़ुशी महसूस करते हैं। मुग़ल उनकी नजर में आक्रांता नहीं, बल्कि ‘शरणार्थी’ हैं। प्रोपेगंडा पोर्टल ‘The Wire’ पर करण थापर के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कह डाला कि मुस्लिमों का नरसंहार हो रहा है। उन्हें इससे भी दिक्कत है कि पीएम मोदी क्यों मीडिया में आते हैं। साथ ही सवाल पूछते हैं कि अगर मंदिर तोड़े जाएँगे तो क्या होगा?
नसीरुद्दीन शाह को क्या 1984 में सिखों का नरसंहार याद है, जो कॉन्ग्रेस नेताओं के इशारे पर हुआ था और जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कह दिया था कि कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उनका इशारा उनकी माँ और प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गाँधी की हत्या की ओर था। अब नसीरुद्दीन शाह को ये सब कहाँ से याद होगा? उस साल तो वो ‘पार’ (शबाना आजमी के साथ), ‘मोहन जोशी हाजिर हों’ (दीप्ति नवल के साथ), ‘होली’ (आमिर खान अभिनीत फिल्म) और ‘कंधार’ (शबाना आजमी के साथ) जैसी फिल्मों में व्यस्त थे, जो उसी साल रिलीज हुईं।’
इतना ही नहीं, भारत में 80 के दशक में ‘समानांतर सिनेमा’ के स्तंभों में से एक माने जाने वाले नसीरुद्दीन शाह की उससे एक साल पहले भी 7 फ़िल्में आई थीं और इसके एक साल बाद भी उनकी 5 फ़िल्में रिलीज हुईं। इस तरह इन तीन वर्षों में उन्होंने 16 फ़िल्में की। उन्हें मस्त काम मिल रहा था, वो डिमांड में थे और पैसे भी आ रहे थे – इसीलिए सिखों का नरसंहार भी उनकी नजर में ठीक ही रहा होगा। अब स्थिति उलट है। 4 वर्षों (2018,19, 20 और 21) में उनकी 6 फ़िल्में ही आई हैं, वो भी सहायक किरदारों में, इसीलिए उन्हें कुछ भी ठीक नहीं लग रहा।
नसीरुद्दीन शाह की पिछली हिट फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर (2011)’ थी, जिसमें विद्या बालन और इमरान हाशमी जैसी फ़िल्मी हस्तियाँ थीं और ये सुपरहिट रही थी। इस तरह से पिछले एक दशक से नसीरुद्दीन शाह किसी हिट फिल्म का हिस्सा नहीं रहे हैं। हो सकता है कि इसकी खुन्नस भी वो मोदी सरकार और हिन्दुओं पर निकाल रहे हों। आजकल उन्हें अवॉर्ड्स भी नहीं मिल रहे, उनके मन में ये गम भी रहा होगा। ये सब कुछ उनके बयानों में स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है।
नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि मुगलों ने भारत को बनाया। अगर ऐसा है तो मौर्य वंश (जिसमें चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे पराक्रमी शासक हुआ), गुप्त वंश (जिसमें चन्द्रगुप्त और समुद्रगुप्त नाम के कुशल प्रशासक हुए), राजा हर्षवर्धन, चोल साम्राज्य (जिसमें राजेंद्र चोल और राजराज चोल जैसे योद्धा हुए), पंड्या वंश (महावर्मन राजसिम्हा और श्रीमारा श्रीवल्लभा) जैसे शासक हुए, विजयनगर साम्राज्य (कृष्णदेवराया और रामराया), मराठा साम्राज्य (छत्रपति शिवाजी और बाजीराव), मेवाड़ (महाराजा प्रताप और राणा सांगा) जैसे अनगिनत हिन्दू राजाओं और राजवंशों ने क्या किया?
भारतीय राजाओं, भारतीय सनातन धर्म और भारतीय इतिहास को लेकर नसीरुद्दीन शाह हिन्दुओं में ऐसी हीन भावना भरना चाहते हैं कि यहाँ के सभी लोग निकम्मे-नकारा थे और अरब से आए इस्लामी आक्रांताओं ने ही यहाँ के लोगों को रहना, खाना-पीना और जीना सिखाया। जिस औरंगजेब ने अनगिनत मंदिरें तोड़ीं और हिन्दुओं का कत्लेआम किया, उसकी आलोचना से उन्हें दुःख क्यों? आज चर्च-मस्जिद टूटने की झूठी बातें कर रहे नसीरुद्दीन शाह बताएँ कि जिन हिन्दुओं के 30,000 मस्जिदें ध्वस्त कर दी गईं उन्हें कैसा लगा होगा? ये तो सच्ची बात है और इतिहास में दर्ज है। खुद इस्लामी आक्रांताओं को इस पर गर्व था।
2002 के दंगे बड़े याद आ रहे हैं नसीरुद्दीन शाह को। वो तो हिन्दू-मुस्लिमों का संघर्ष था, जिसमें मस्जिदों से हिन्दुओं के कत्लेआम का ऐलान हुआ। न्यायपालिका, जनता की ‘अदालत’, सरकारी जाँच एजेंसियाँ और पुलिस – हर जगह से पीएम मोदी को क्लीन चिट मिला। लेकिन, गोधरा में 59 हिन्दुओं (जिनमें महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे) को ज़िंदा जला देने वाली घटना क्यों याद नहीं है उन्हें? इसके बाद जो हुआ, उसमें नमक-मिर्च-मसाला लगा कर तो उन्हें याद ही है।
नसीरुद्दीन शाह किस आधार पर कह रहे हैं कि मुस्लिमों का नरसंहार हो रहा है? कहाँ हो रहा है? अफगानिस्तान में तालिबान महिलाओं की आवाज़ कुचल रहा और विरोधियों की हत्याएँ कर रहा। जम्मू कश्मीर में इस्लामी आतंकी संगठन धर्म पूछ कर मार रहे। पाकिस्तान आतंकियों को पाल-पोष कर भारत भेज रहा। PFI भारत में दंगे की साजिश रच रहा। वामपंथी उग्रवाद सुरक्षा बलों और पुलिसकर्मियों की जानें ले रहा। फिर मुस्लिमों का नरसंहार कहाँ हो रहा? हर जगह तो हिन्दू ही पीड़ित हैं? कश्मीरी पंडित 30 वर्षों से अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं।
I want to settle in Naseeruddin Shah's Mumbai estate. I am quite cultured and Mr. Naseer can sing for me. He can call me refugee but I will claim at least half the estate after 25 years. https://t.co/a30QIme9E4
— Divya Kumar Soti (@DivyaSoti) December 29, 2021
नसीरुद्दीन शाह को गोहत्या से कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि हिन्दुओं की भावनाओं और संवेदनाओं का इस देश में कोई सम्मान नहीं होना चाहिए उनकी नजर में। जबकि 20 करोड़ मुस्लिम (जितनी पाकिस्तान, बांग्लादेश और नाइजीरिया की जनसंख्या है और ये आँकड़े जापान और रूस की जनसंख्या से डेढ़ गुना ज्यादा हैं) भारत में अल्पसंख्यक हैं और उन्हें दिन में 5 वक़्त भोंपू बजा कर हिन्दुओं के कान पकाने का अधिकार है। नसीरुद्दीन शाह CAA-NRC के खिलाफ आंदोलन स्थलों पर जम कर घूमे और आए दिन पीएम मोदी की आलोचना करते हैं, लेकिन साथ ही ये भी कह रहे कि इस देश में बोलने का अधिकार अब नहीं बचा। कैसे?
तभी तो कॉन्ग्रेस शासन में हुए नरसंहार उन्हें याद ही नहीं हैं और मोदी सरकार के कार्यकाल में जब सब ठीक है तो उन्हें मुस्लिमों के लिए समस्या नजर आ रही और अपने बच्चों के लिए डर लग रहा। अगर ऐसा ही है तो वो भारत में हैं ही क्यों? उनके पास पर्याप्त धन है, जिससे वो दुनिया के किसी भी देश में बस सकते हैं। पीएम मोदी की लोकप्रियता से उन्हें घबराहट है तो इमरान खान की ही जय-जयकार कर लें। हिन्दू अगर बयान भी दे दें तो उन्हें दिक्कत है और इस्लामी आतंकवादी कत्लेआम भी मचाएँ तो उनकी आलोचना से एक कौम भयभीत हो रही है। ऐसा ही है न?