शाहीन बाग़ का आंदोलन शुरू तो हुआ था सीएए विरोध के नाम पर लेकिन जिन भी नेताओं ने इसको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन दिया था, उनके लिए अब ये गले की फाँस बनता दिख रहा है। योजना तो थी कि यहाँ तिरंगा लहरा कर और संविधान का पाठ करके देशभक्ति का जी भर दिखावा किया जाए। लेकिन हुआ क्या? इस कथित आंदोलन के मुख्य साज़िशकर्ता शरजील इमाम ने ही कह दिया कि संविधान से मुस्लिमों को कोई उम्मीद नहीं है और इनका बस इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
आम आदमी पार्टी की स्थिति इस मामले में साँप-छुछुंदर वाली हो गई है। जहाँ एक तरफ उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कह दिया कि वो शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हैं, कॉन्ग्रेस ने इस उपद्रव का सीधा समर्थन न करते हुए मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह जैसे नाकारा नेताओं को भेज कर हवा का रुख समझने की कोशिश की। सिसोदिया ने तब इसका समर्थन किया, जब वहाँ के स्थानीय लोग काफ़ी परेशान दिख रहे हैं। उन्होंने एक दिन सड़क पर निकल कर आंदोलनकारियों के बारे में बताया कि वो पिकनिक मना रहे हैं, बिरयानी खा रहे हैं।
क्रोनोलॉजी समझिए। नंबर एक: कॉन्ग्रेस नकारा नेताओं को शाहीन बाग़ भेज कर हवा का रुख समझने का प्रयास करती है। नंबर दो: सिसोदिया शाहीन बाग़ के उपद्रवियों का समर्थन करते हैं। नंबर तीन: केजरीवाल कहते हैं कि भाजपा नेताओं को वहाँ जाकर लोगों को मनाना चाहिए क्योंकि लोगों को दफ्तर जाने-आने और बच्चों को स्कूल जाने-आने में परेशानी हो रही है। नंबर चार: अमित शाह केजरीवाल को घेरते हुए शाहीन बाग़ पर उनसे सवाल पूछते हैं। नंबर पाँच: अरविन्द केजरीवाल सरकार से कहते हैं कि वो शरजील इमाम को गिरफ़्तार करे। ये थी इस कथित आंदोलन पर पक्ष-विपक्ष की पूरी क्रोनोलॉजी।
#JustIn – I stand with the people of Shaheen Bagh : Delhi Dy CM Manish Sisodia. pic.twitter.com/iFJg0X36uO
— News18 (@CNNnews18) January 23, 2020
अरविन्द केजरीवाल शरजील को गिरफ़्तार करने की बात करते हैं लेकिन कन्हैया कुमार मामले में कार्यवाही में देरी करते हैं। दिल्ली सरकार फाइलों को दबा देती है। केजरीवाल इतने बुरे फँसे हैं कि एक दिन पहले जिनके डिप्टी ने शरजील के आंदोलन का समर्थन किया था, वो उसी शरजील को गिरफ़्तार करने की बात कर रहे हैं। कारण क्या हो सकता है? घटनाओं की क्रोनोलॉजी के बाद अब जरा इसका कारण जानने का प्रयास करते हैं। देखिए:
- जनता समझ चुकी हैं कि शाहीन बाग़ में आंदोलन के नाम पर बिरयानी खा कर लोग पिकनिक मना रहे हैं।
- शरजील इमाम, अरफ़ा खानम और इमरान प्रतापगढ़ी जैसों के बयानों ने असली मंसूबों को जगजाहिर कर दिया है।
- वहाँ लोगों को परेशानी हो रही है। आश्रम क्षेत्र में 70,000 अतिरिक्त गाड़ियों के बढ़ जाने के कारण लम्बा ट्रैफिक जाम लग रहा है।
- कॉन्ग्रेस शाहीन बाग़ का खुल कर समर्थन नहीं कर रही, इससे आम आदमी पार्टी आशंकित है। आंदोलन संदिग्ध हो चुका है।
- सीएए के बहाने भाजपा ने अनुच्छेद 370 को फिर से ज़िंदा किया है और राम मंदिर मामले की भी पार्टी बात कर रही है।
उपर्युक्त कारणों से अरविन्द केजरीवाल को लग गया है कि शाहीन बाग़ आंदोलन से उन्हें जो उम्मीदें थी, उसने नकारात्मकता का रूप लेकर उनके ख़िलाफ़ ही माहौल बनाना शुरू कर दिया है। विदेशी फंडिंग और इस्लामी कट्टरपंथियों के लगातार आ रहे भड़काऊ बयानों से ‘सरजी’ डर गए हैं और जिस शाहीन बाग़ को उन्होंने फूलों की माला समझ कर अपने गले में लगाया था, वो अब उनके गले की फाँस बन चुका है। जिस दिल्ली में उन्होंने ख़ुद की एकतरफा जीत का माहौल बनाया था, वहाँ भाजपा ने जबरदस्त वापसी की है। आंतरिक सर्वे में पार्टी को 40 सीटें आती दिख रही हैं।
कुछ दिनों से अरविन्द केजरीवाल ने सेना के ख़िलाफ़ न बोलने की रणनीति अपनाई हुई थी। वो भी ख़ुद को लिबरल राष्ट्रवादी दिखाना चाह रहे थे। लेकिन, सीएए के ख़िलाफ़ जगह-जगह हुए प्रदर्शनों से दिल्ली के मुखिया ने समझ लिया कि ये जनांदोलन है और इसे जनता का रुख समझ कर आम आदमी पार्टी ने बड़ी ग़लती कर दी। अब जामिया उपद्रव की पोल खुल गई। वहाँ आयशा-लदीदा की ब्रांडिंग की कोशिश फेल हो गई। एक के बाद एक इस्लामी कट्टरवादी जब बिल से बाहर निकले, उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से आप सुप्रीमो को ही डसना शुरू कर दिया।
जनता को पता चल चुका है कि हाथों में संविधान लेने वाले संविधान को गाली देते हैं। पब्लिक जान चुकी है कि नेहरू-आंबेडकर की बात करने वाले गाँधी जी को गाली देते हैं। लोग समझ चुके हैं कि संवैधानिक संस्थानों की शुचिता की बात करने वालों ने न्यायालय को मुस्लिमों का दुश्मन बताया है। आम आदमी को मालूम हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का अटेंशन पाने के लिए वहाँ 90 साल की महिलाओं और 20 दिन की बच्ची को प्रदर्शन का चेहरा बनाया जा रहा है। जनसमूह को ज्ञात हो गया है कि शरीयत लागू करने वालों और खलीफा राज की बात करने वालों ने सीएए प्रदर्शन का चोला ओढ़ लिया है।
शरज़ील ने असम को देश से अलग करने की बात कही।ये बेहद गंभीर है।आप देश के गृह मंत्री हैं। आपका यह बयान निकृष्ट राजनीति है।आपका धर्म है कि आप उसे तुरंत गिरफ़्तार करें।उसे ये ऐसा कहे दो दिन हो गए। आप उसे गिरफ़्तार क्यों नहीं कर रहे? क्या मजबूरी है आपकी? या अभी और गंदी राजनीति करनी है? https://t.co/UTVv9noFVo
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 27, 2020
असल में ‘सरजी’ का क्या दोष? वो तो राजनीतिक फसल काटने पहुँचे थे लेकिन उन्हें भी इसका भान नहीं था कि उनके पार्टी के ही अमानतुल्लाह ख़ान से भी ज्यादा कट्टरवादी इस आंदोलन को हाईजैक कर लेंगे। एक वीडियो सामने आया था। इसमें शरजील इमाम के समर्थक अमानतुल्लाह ख़ान से कह रहे हैं कि वो शरजील को बोलने दें। अमानतुल्लाह भी इस आंदोलन का चेहरा नहीं बन पाया। इस्लामी कट्टरपंथी होते हुए भी अमनतुल्लाह तक को जिस भीड़ ने स्वीकार नहीं किया, उसके नेतृत्वकर्ता केजरीवाल को क्या भाव देंगे? अमानतुल्लाह फेल, केजरीवाल फेल।
अब देखना ये है कि जिस शाहीन बाग़ को दिल्ली में माहौल बनाने के लिए लगातार शह दिया गया, उससे पल्ला छुड़ाने के लिए और क्या-क्या गलतियाँ करते हैं आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल। शाहीन बाग़ में जिस तरह से दीपक चौरसिया जैसे पत्रकार के साथ बदसलूकी हुई और सुधीर चौधरी के ख़िलाफ़ नारेबाजी हुई, ये स्पष्ट हो चुका है कि ये साधारण आंदोलन नहीं है। इसके पीछे काफ़ी ऐसे लोग हैं, जो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। पत्रकारों से जो लोग डर रहे हैं, वहाँ दाल में जरूर कुछ काला है।
एक और बात याद रखिए, गिरोह विशेष के पत्रकारों के साथ वहाँ अच्छा व्यवहार हुआ है। रवीश कुमार सरीखों ने आंदोलन को अच्छी कवरेज दी। वो वहाँ गए तो उन्हें पलकों पर बिठाया गया। जनता सब देख रही है। अरविन्द केजरीवाल को लग गया है कि दिल्ली का चुनाव अब एकतरफा नहीं रहा। पलड़ा काफ़ी तेज़ी से कहीं और झुक रहा है।