आज कल राजीव गाँधी चर्चा में आ गए हैं। चर्चा में वो गलत कारणों से आए, जैसा कि वो अपनी असमय मृत्यु के बाद अक्सर आते रहे हैं। साल के दो दिनों को छोड़ दिया जाए, वो भी कॉन्ग्रेस के कार्यकाल के, तो राजीव गाँधी सिख हत्याकांड से लेकर, क्वात्रोची, एंडरसन, शाहबानो, रामजन्मभूमि, बोफ़ोर्स, भोपाल गैस कांड आदि के लिए हमेशा चर्चा में बने रहते हैं।
मोदी ने एक रैली में उन्हें ‘भ्रष्टाचारी’ कह दिया और कॉन्ग्रेस के कई लोगों के साथ, उनके समर्थकों को भी बुरा लग गया। उसके बाद मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा छिड़ गई कि राजीव गाँधी कितने महान थे और देश के लिए उन्होंने क्या-क्या किया था। बताया जाने लगा कि राजीव गाँधी ये थे, और राजीव गाँधी वो थे।
हालाँकि, ये मोदी का वार नहीं, पलटवार था जो कि राहुल, प्रियंका और कॉन्ग्रेस के लगातार ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के बाद आया था। कॉन्ग्रेस का दुर्भाग्य देखिए कि जो नारा इन्होंने इस लोकसभा चुनाव के लिए इस बार अपना मुख्य नारा बनाया है, वो भी चोरी का है। कल ही ट्विटर पर एक विडियो घूम रहा था जिसमें 1989 के चुनावों के विश्लेषण के दौरान पत्रकार वीर साँघवी दूरदर्शन पर बता रहे हैं कि बंगाल में ‘राजीव गाँधी चोर है’ का नारा वामपंथी लगा रहे हैं।
During the 1989 election results, Vir Sanghvi was asked by @PrannoyRoyNDTV on Doordarshan as to who would form the Government.
— Chowkidar Shahul Hameed (@ShahulAhm) May 5, 2019
Sanghvi explains how he thinks the CPI(M) a predominantly Bengal Party ran on the rhetoric of #RajivGandhiChorHai
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ये वही वामपंथी हैं जिनकी मदद से कॉन्ग्रेस ने सरकार चलाई है। और अब वही वामपंथी एक बार फिर कॉन्ग्रेस की मदद ‘चोर’ वाले नारे के माध्यम से मदद कर रहे हैं।
ख़ैर, इसी चर्चा के दौरान लोग बताने लगे कि राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद इस तरह की बातें गलत हैं। फिर कॉन्ग्रेस ख़ानदान को एक शहीदों के परिवार की तरह दिखाया जाने लगा। उसके बाद कुछ तस्वीरें फैलाई जाने लगीं कि कैसे राहुल गाँधी अपने पिता की छाती से चिपक कर रो रहे थे जब उनकी दादी, यानी श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई थी।
किसी बच्चे का अपने पिता से चिपक कर इस तरह से रोना एक सहज बात है। क्योंकि हर व्यक्ति कहीं न कहीं अपने परिवार के सदस्य के साथ भावुक तौर पर जुड़ा होता है, और ऐसे मौक़ों पर ऐसे भाव नैसर्गिक हैं। उसके बाद तस्वीरें आईं कि कैसे राहुल गाँधी अपने पिता की अर्थी का कंधा दे रहे थे। राजीव गाँधी की हत्या से जुड़ी तमाम बातें सोशल मीडिया पर दिखाई जाने लगीं।
लेकिन इससे साबित क्या होता है? ये तो सामान्य-सी बात है कि किसी की मृत्यु हुई है और वो प्रधानमंत्री है, तो ऐसी तस्वीरें तो होंगी ही। इसका राजीव गाँधी की नीतियों, उनके द्वारा किए घोटाले और अपराधियों को मदद पहुँचाने की बातों से कोई वास्ता नहीं। उनकी हत्या की गई, हत्यारों को सजा मिली। लेकिन हत्या हो जाने से वह इन अपराधों से मुक्त नहीं हो जाते।
इन तस्वीरों का दूसरा पहलू यह है कि वही सोशल मीडिया योद्धा इन तस्वीरों को दिखा रहे हैं जो मोदी द्वारा अपनी माताजी के पाँव छूने में दिखावा ढूँढ लाते हैं। वो हर ऐसे मौक़े पर कहते हैं कि आखिर कौन अपनी माँ के पैर छूता है तो कैमरामैन लेकर चलता है। वो हर बार मोदी का अपनी माताजी से मिलने को ऐसे दिखाते हैं जैसे मोदी अपनी माताजी को भुना रहा हो वोटों को लिए।
हम उस दौर में जी रहे हैं जब हर हाय प्रोफाइल व्यक्ति की एक्सक्लूसिव तस्वीर की एक क़ीमत होती है। मोदी जैसे व्यक्ति की हर मूवमेंट पर चुनावों के दौरान ख़बर बनती है। मोदी चाहे, या न चाहे, उनका इस बात में कुछ नहीं चलता। इसी में एक बात और है कि अगर मोदी मीडिया को अपने साथ आने से, या दूर से भी फोटो लेने से मना कर दे तो यही मोदी हिटलर हो जाएगा और लोग कहेंगे कि मोदी के हाथों में जो डब्बा था उसमें पंद्रह हजार करोड़ के दो नए नोट थे, जो उसने चुपके से अपनी माताजी को दे दिया।
मीडिया को आप फोटो लेने से नहीं रोक सकते। मीडिया को आप फोटो दिखाने से नहीं रोक सकते। मीडिया का काम है ऐसा करना। इसलिए, दक्षिणपंथियों ने यह सवाल नहीं उठाया कि क्या राजीव गाँधी अपनी माताजी की हत्या के बाद कैमरामैन लेकर चल रहे थे और उन्हें कह रखा था कि ज्योंहि राहुल रोए, तस्वीरें ले लेना। क्योंकि वामपंथियों, छद्म-लिबरलों और दक्षिणपंथियों में यही फर्क है।
ऐसा नहीं होता कि कोई ऐसे मौकों पर तस्वीर लेने का निर्देश देता हो। प्रधानमंत्री की हत्या हुई, पूरे देश की मीडिया उस समय भी, अपने सीमित संसाधनों के साथ वहाँ मौजूद थी और तस्वीरें ली जा रही थीं। आज तो साधन असीमित हैं। आज तो पाँच सौ मीटर दूर से आप तस्वीरें ले सकते हैं, न रील ख़र्च करने का झंझट, न उसे डिलीट करने का। फिर भी मोदी को लेकर एक घृणित कैम्पेन चलता है मानो एक पीएम का अपनी माँ के पैर छूना दिखावा हो जाता है।
चुनावों के इस दौर में हम सब अपनी मर्यादा भूल गए हैं। नेता भी, जनता भी, मीडिया भी। हमने खम्भे पकड़ रखे हैं और चोर को साधु बनाने के लिए जोर लगा रहे हैं, कोई साधु को चोर बनाने का जुगाड़ लगा रहा है। बहुत कम ऐसे हैं जो दोनों बातों को, उन समयों के संदर्भ में रखकर तार्किकता से देखते हैं।
राजीव गाँधी की हत्या हमारे देश पर एक हमला था, लेकिन राजीव गाँधी एक भ्रष्ट व्यक्ति भी थे। दोनों दो बातें हैं, और दोनों सही हैं। उसी तरह हर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ समय बिताने का हक़ है, तस्वीरें लेने का हक़ है, शेयर करने का हक़ है। हम में से वो व्यक्ति भी मोदी का मजाक उड़ाता है जो दिन भर में अपने खाने की प्लेट से लेकर, अपने प्रेमी-प्रेमिका की तस्वीरों और पाउट वाले सेल्फी तक अपना दिन निकाल देता है।
इसलिए हम क्या करते हैं, क्यों करते हैं, जो करते हैं, उसका संदर्भ क्या है, ये सब जान कर ही किसी बात पर कमेंट या चर्चा करेंगे तो बेहतर होगा।