मनीष सिसोदिया रामलला के दर्शन करने अयोध्या पहुँच गए। महत्वपूर्ण घोषणा है, खासकर इसलिए क्योंकि यही सिसोदिया श्री राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर नहीं बल्कि विश्वविद्यालय चाहते थे। अब जबकि राम मंदिर निर्माण का कार्य चल रहा है, “मंदिर वहीं बनाएँगे पर तारीख नहीं बताएँगे” जैसे व्यंग्यात्मक नारे अब नहीं सुने जाएँगे। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर संघर्ष और अदालती लड़ाई किसने लड़ी, यह जगजाहिर है। दशकों तक चले आंदोलन का विरोध किस-किस स्तर पर हुआ और किसने-किसने किया, ये तथ्य भी अब इतिहास के दस्तावेजों का हिस्सा बन चुके हैं।
प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में माँ सरयू के घाट पर उत्तर प्रदेश की ख़ुशहाली का संकल्प … pic.twitter.com/Ws75eMi9lg
— Manish Sisodia (@msisodia) September 13, 2021
सत्तासीन सेक्युलर राजनीतिक दलों ने कब और क्या-क्या किया, उसका जिक्र राजनीतिक तौर पर हमेशा होता रहेगा। कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाने से लेकर चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करने तक, सारे तथ्य सरकारी दस्तावेज में समा चुके हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को अदालती कार्रवाई में कैसे दरकिनार करने की कोशिशें हुईं, यह भी किसी से नहीं छिपा। सर्वोच्च न्यायालय में मुक़दमे की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव तक रोकने की सिफारिश किसने की, वह भी अब ऐतिहासिक दस्तावेजों का हिस्सा है। कौन श्री राम जन्मभूमि स्थल पर विश्वविद्यालय चाहता था, कौन अस्पताल और कौन स्मारक, यह आने वाले कई दशकों तक याद किया जाएगा।
श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर जिन लोगों ने विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय बनवाने की इच्छा जाहिर की थी उनमें आम आदमी पार्टी के नेता प्रमुख थे। मनीष सिसोदिया का एक वीडियो आज भी जब तब चलने लगता है जिसमें वे मंदिर की जगह एक विश्वविद्यालय बनाने की इच्छा जाहिर करते हुए देखे जाते हैं। पार्टी के अन्य नेता भी समय-समय पर श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर न बनाए जाने की इच्छा जाहिर कर चुके थे। यह सब उस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के नाम पर तब किया गया जब सेकुलरिज्म फैशन में था और सब फैशनेबल दिखना चाहते थे। यहाँ तक कि अंतिम प्रयास के रूप में श्री राम जन्मभूमि न्यास पर जमीन घोटाले का निराधार आरोप लगाने में भी नहीं हिचके।
अब फैशन बदल गया है और साथ-साथ सिसोदिया और केजरीवाल भी। श्री राम जन्मभूमि के मुक़दमे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव आए तब अरविन्द केजरीवाल ने खुद को विधानसभा में दिल्ली के बुजुर्गों का श्रवण कुमार घोषित कर दिया और यह वादा किया कि उनकी सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद दिल्ली के हर बुजुर्ग को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ स्थल के दर्शन फ्री में करवाएगी। अब उत्तर प्रदेश में चुनाव आ रहे हैं तो मामला दिल्ली सरकार से आगे जाकर पार्टी और उसके नेताओं तक पहुँच गया है। यही चुनाव का मौसम है जो सिसोदिया को अचानक रामलला की याद आ गई है और वे अयोध्या जा तो रहे हैं पर उनके लिए जाने से अधिक महत्वपूर्ण जाते हुए दिखना है।
अब आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिए उत्तर प्रदेश में एंट्री मन ही मन “प्रविसि नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कोसलपुर राजा” के गायन से शुरू होती है। अभी तक मन में चल रहे इस गायन की आवाज़ जल्द ही मुँह से निकलेगी। चुनाव आ रहे हैं तो मन ही मन गायन करने वाले बाकायदा समूह बनाकर अयोध्या काण्ड का पाठ करेंगे। केजरीवाल श्रवण कुमार बनेंगे। सिसोदिया और संजय सिंह भी कुछ न कुछ बन लेंगे। इन्हें देखकर भारत भर को वीर सावरकर का वह वक्तव्य याद आयेगा कई; यदि जनेऊ पहनने से वोट मिलेंगे तो कॉन्ग्रेसी सूट के ऊपर जनेऊ धारण करने लगेंगे।