उत्तर प्रदेश में जिला परिषद चुनावों में भाजपा को मिली विजय के पश्चात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू दिए। इन बातचीत के दौरान उनका आत्मविश्वास झलक रहा था। लगभग हर विषय पर हमेशा बेबाक बोलने वाले योगी आदित्यनाथ ने इस बार भी अपनी बातें उसी बेबाकी के साथ रखीं। उन्होंने विकास आधारित राजनीति, आगामी चुनावों में विपक्ष की संभावित रणनीति, हाल ही में सार्वजनिक हुआ संगठित धर्म परिवर्तन के खेल के साथ और विषयों पर अपने विचार रखे। उनकी ये बातचीत न सिर्फ सही समय पर हुई बल्कि उनके समर्थकों तथा भाजपा कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास के लिए आवश्यक भी थी।
अगले वर्ष जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें उत्तर प्रदेश प्रमुख है। शायद यही कारण है कि हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में केंद्रित और टूलकिट आधारित प्रोपेगेंडा के सहारे मुख्य रूप से दो बातें आगे रख कर एक बड़ा तूफान खड़ा करने का प्रयत्न किया गया। पहली बात; मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच तथाकथित असहमति और मतांतर की और दूसरी बात; प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कोरोना की दूसरी लहर में उनकी तथाकथित असफलता।
राज्य नेतृत्व और दल के राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच तथाकथित मतान्तर की बात के साथ ही यह भ्रम पैदा करने का प्रयास किया गया कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रहा है और आगामी विधानसभा चुनावों में किसी और नेता को आगे रखकर चुनाव लड़ना चाहता है। प्रोपेगेंडा के शोर में यह प्रश्न डूब गया कि इतने बड़े प्रदेश में चार वर्षों तक एक मजबूत नेता की अगुवाई में सफल सरकार चलाने के बाद किस दल का केंद्रीय नेतृत्व ऐसा करना चाहेगा?
पर ऐसी अफवाह का कारण शायद यह है कि इसे फैलाने वाले कान्ग्रेसी और उनकी सहायक मीडिया अब तक राष्ट्रीय दलों की कार्य पद्धति भूल चुके हैं या फिर उनकी सोच कॉन्ग्रेस के इस पुराने दर्शन पर आधारित हैं जिसमें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने 1970 के बाद से किसी क्षेत्रीय नेता को फलने फूलने नहीं दिया। एक कारण और भी है कि पिछले लगभग तीन दशकों से क्षेत्रीय दलों की राजनीति और संगठन का आदी रहा उत्तर प्रदेश का राजनीतिक विमर्श राष्ट्रीय दलों की कार्य प्रणाली से दूर हो चुका है। ऐसे में जब कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी कहते हैं कि भाजपा उत्तर प्रदेश में किसी और नेता को आगे रखकर चुनाव लड़ना चाहती है तो इस बात पर आश्चर्य नहीं होता।
पिछले सात वर्षों में, खासकर मीडिया केंद्रित राजनीतिक विमर्श में लोगों ने भाजपा समर्थकों और कार्यकर्ताओं को आए दिन मीडिया हेडलाइंस और सूत्रों के हवाले से फैलाए गए फेक न्यूज़ पर बार-बार अधीर होते देखा है। मेरे विचार से यह बात टूलकिट प्रोपेगेंडा चलाने वालों को उत्साहित करती है और वे यह मान कर चलते हैं कि ऐसा करके समर्थकों और कार्यकर्ताओं के मन में भ्रम और रोष पैदा करना आसान है।
यह एक कारण है कि विपक्ष बार-बार भ्रम की स्थिति बनाकर किसी न किसी तरह का लाभ उठाने की कोशिश करता रहता है और इस बार भी रणनीति कुछ अलग नहीं रही। पर इस प्रोपेगेंडा का परिणाम भी वही हुआ जो अभी तक खड़े किए गए अन्य का हुआ था। मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की असफलता को लेकर खड़ा किया गया प्रोपेगेंडा अधिक दिनों तक नहीं चला। कोरोना की दूसरी लहर से फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई कोशिशें लोगों के सामने थीं। एक मुख्यमंत्री के तौर पर योगी काम करते दिखाई दिए और उनकी सरकार प्रभावशाली ढंग से कोरोना की दूसरी लहर पर नियंत्रण पाने में सफल रही। देशी और विदेशी मीडिया के प्रोपेगेंडा के बावजूद उनके प्रशासन ने धीरज के साथ काम किया।
केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनके मतभेद की अफवाह की काट के लिए उन्होंने संवाद का सहारा लिया। उन्होंने जो किया वह राजनीति में नेताओं के लिए एक सीख बन सकती है। एक नेता के राजनीतिक यात्रा में जब दल, समर्थक और कार्यकर्ताओं के बीच किसी भी तरह का भ्रम पैदा हो तो उसे दूर करने के लिए संवाद से अच्छा और कुछ नहीं, इस बात को समझते हुए सीएम योगी ने दोतरफा संवाद का रास्ता अपनाया और काफी हद तक सफल भी दिखे। दिल्ली में राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ संवाद हो या फिर प्रदेशीय संगठन से, वे सफल दिखाई दे रहे हैं।
मीडिया के साथ बातचीत में हर प्रश्न का उत्तर देना एक नेता का कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी और योगी इस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से उन्होंने राजनीतिक सरगर्मियों के केंद्र में खुद को रखा है, उसे देखते हुए लगता है जैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव का बिगुल फूँक दिया गया है। जिला परिषद चुनावों के बाद से विपक्ष की ओर से आने वाली प्रतिक्रिया अभी तक रूटीन पॉलिटिकल एक्सरसाइज जैसी ही लगी है। समाजवादी पार्टी की ओर से भाजपा पर प्रशासन के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया जिसे सामान्य प्रतिक्रिया से आगे जाकर नहीं देखा जा सकता। हाँ, इस बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने मुलाकात की फोटो सार्वजनिक की है। इससे क्या संदेश मिलता है, उस पर बहस शायद जल्द ही शुरू हो।
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राज्य नेतृत्व और दल के राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच तथाकथित मतान्तर की बात के साथ ही यह भ्रम पैदा करने का प्रयास किया गया कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रहा है और आगामी विधानसभा चुनावों में किसी और नेता को आगे रखकर चुनाव लड़ना चाहता है।
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