Sunday, November 17, 2024
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राजनीति में नया नहीं है ‘स्पोर्ट्स कोटा’, लेकिन कॉन्ग्रेस का पटका पहनने को बजरंग पुनिया-विनेश फोगाट ने चले जो दाँव उससे खेल-खिलाड़ी की साख पर लगा बट्टा

अगर कल को किसी खिलाड़ी के साथ खेल क्षेत्र में कुछ भी गलत होता है और वो सामने आकर अपनी बात रखता है तो क्या कोई बिन सबूत के यकीन कर पाएगा कि ये कोई राजनीति नहीं थी, लोग तो उस खिलाड़ी जो वास्तविक में पीड़ित होगा उसे भी शक की निगाह से देखेंगे, उसमें राजनीति खोजेंगे, उस पर सवाल खड़े करेंगे।

विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के राजनीति में एंट्री को लेकर लंबे समय से लग रही अटकलें आज (6 सितंबर 2024) सच साबित हो गईं। दोनों पूर्व खिलाड़ियों ने कॉन्ग्रेस का हाथ आखिरकार आज थाम ही लिया है। ये दोनों कोई पहले खिलाड़ी नहीं है जिन्होंने खेल करियर के बाद राजनीति में कदम रखा हो।

पहले भी खिलाड़ी राजनीति में आते रहे हैं, अलग-अलग पार्टियाँ ज्वाइन करके राजनीति करते रहे हैं, अपना एक दूसरे से विरोध जताते रहे हैं… लेकिन इन दोनों की कॉन्ग्रेस में एंट्री पर बात करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इन्होंने यहाँ तक आने के लिए जो ‘राजनैतिक पैंतरेबाजी’ की है उससे कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

साल 2023 की शुरुआत में 18 जनवरी को जब विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया समेत 30 पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने बैठे थे तो पूरा देश इनके साथ खड़ा था। सबके लिए प्रदर्शनस्थल पर बैठे प्रदर्शनकारी वो खिलाड़ी थे जिन्होंने समय-समय पर देश का नाम रौशन किया। उस समय इन्होंने यौन उत्पीड़न का मुद्दा उठाते हुए कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी।

18 जनवरी को ये प्रदर्शन शुरू हुआ था और 19 जनवरी को ही केंद्र सरकार में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस पर संज्ञान लेते हुए खिलाड़ियों को मिलने बुला लिया था। उन्होंने आश्वासन दिया था कि वो इस मामले में कार्रवाई करेंगे लेकिन खिलाड़ियों ने उस समय किसी की नहीं सुनी और धरना चालू रखा। 21 जनवरी तक जब ये लोग जिद्द पर अड़े रहे तो फिर खेल मंत्री ने फिर इन्हें बुलवाया। इनसे बातचीत की। इन्हें समझाया और एक समिति का गठन हुआ।

21 जनवरी जब प्रदर्शन खत्म हुआ तो ऐसा नहीं था कि सरकार वादे को भूल गई हो… 23 जनवरी को ही खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ (WFI) और उसके अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के धरने के बाद मैरी कॉम के नेतृत्व में एक ओवरसाइट समिति बनाई। इस समिति को कुश्ती महासंघ के कामकाज को देखने की जिम्मेदारी दी गई। साथ ही ऐलान किया कि WFI के अध्यक्ष अपने पद पर काम नहीं करेंगे।

अप्रैल में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी, वहीं मीडिया ने अपनी खबरों में बताया कि बृजभूषण शरण सिंह निर्दोष पाए गए हैं। पहलवानों ने इन खबरों को नकारते हुए दोबारा अपना प्रदर्शन शुरू कर दिया और किसी की कोई बात नहीं सुनी। उन्होंने अपने समर्थकों को बताया कि बृजभूषण सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं जबकि उस समय तक बृजभूषण शरण सिंह को उनके पद से हटाया जा चुका था।

21 अप्रैल फिर प्रदर्शन शुरू हुआ। पहलवानों ने बताया कि ये प्रदर्शन पूरी तरह गैर-राजनीतिक है और वो लोग सिर्फ और सिर्फ खिलाड़ियों के हक की लड़ाई को लड़ रहे हैं। हालाँकि देखते ही देखते इसमें खाप नेता, किसान नेता और राजनीतिक पार्टियों की शिरकत होने लगी। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कई नेताओं और खाप नेताओं ने प्रदर्शनकारी पहलवानों से मुलाकात की और अपना समर्थन दिया। 29 अप्रैल को बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई लेकिन पहलवान प्रदर्शनकारी अपना प्रदर्शन करते रहे। बताया जाने लगा कि वो लोग जंतर-मंतर पर बैठ प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन दिल्ली पुलिस उनकी बुनियादी जरूरत जैसे खाना-पानी पर रोक लगा रही है। 28 मई को खबर आई कि अब प्रदर्शनकारी संसद भवन की तरफ जाएँगे।

देश ने चूँकि साल 2021 में किसान प्रदर्शन के वक्त 26 जनवरी को लाल किले की तरफ प्रदर्शनकारियों की हिंसा देखी थी इसलिए संसद भवन की बात आने पर उन्हें रोका गया। इस दौरान पहलवानों और पुलिस के बीच हाथापाई भी हुई। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उनका सामान जंतर-मंतर से हटा दिया। 2 दिन बाद विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया ने एक नया पैंतरा आजमाया। ये पैंतरा अपने मेडल हरिद्वार में प्रवाहित करने का था। बाद में मेडल प्रवाहित नहीं किए गए पर ये हल्ला हर जगह हुआ कि पहलवान कितने ज्यादा आहत हैं कि वो अपनी कमाई को बहाने जा रहे थे।

कई राजनैतिक हस्तियों ने इस पूरे प्रदर्शन की आड़ में अपनी राजनीति खेली, बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों को लाकर सीधे मोदी सरकार से जोड़ दिया गया। तमाम तरह के लांछन लगाए गए, उनपर सवाल उठाए गए, मगर बावजूद इसके केंद्र सरकार खिलाड़ियों के लिए, इनके बेहतर प्रदर्शन के लिए, इन्हें सुविधाएँ मुहैया कराने पर काम करती रही। ट्रेनिंग से लेकर खेल के बजट तक में कोई कसर नहीं छोड़ी गई कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाने से पहले इन्हें कोई कमी हो।

पीटी उषा खुद इनसे मिलने प्रदर्शनस्थल एक बार गईं लेकिन वहाँ पहलवानों के समर्थकों ने उनके साथ बदसलूकी की। पीटी उषा के साथ हुई अभद्रता कोई अकेला मामला नहीं था। प्रदर्शनकारियों ने इस मुद्दे का इतना राजनीतिकरण कर दिया था कि 2021 के हालात देखने के बावजूद कहा गया कि दिल्ली में सारे ट्रैक्टर लेकर आ जाओ। इसके अलावा जिस प्रदर्शन को पहलवान प्रदर्शनकारी गैर-राजनीतिक बताते रहे थे वहाँ ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी जैसे नारे लगाए जा रहे थे। पुलिस ने खुद कहा था कि उन्होंने पहलवानों को 38 दिन सारी सुविधा दी, फिर भी उस जगह को अखाड़ा बनाकर खेला जाता रहा।

यौन उत्पीड़न प्रदर्शन के नाम पर 2023 से लेकर अब तक आगे क्या-क्या हुआ ये हर मीडिया में हैं और ये सवाल भी कि क्या ये सब राजनीति के लिए हो रहा है? आज विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया ने कॉन्ग्रेस में शामिल होकर उन सवालों का जवाब जरूर दे दिया है, लेकिन राजनीति में करियर शुरू करने के लिए उन्होंने जो रास्ता अपनाया है उसके कारण भविष्य में खेल-खिलाड़ियों की साख पर गंभीर सवाल पैदा हो सकता है।

राजनीति में आना या न आना खिलाड़ी की अपनी इच्छा होती है। पहले भी तमाम खिलाड़ी राजनीति में आते रहे हैं और भविष्य में भी आएँगे। उनमें से शायद कोई विधायक बने, कोई सांसद बने, कोई मंत्री बने या संभव है कोई प्रधानमंत्री भी बन जाए… लेकिन इन लोगों ने जिस तरह से एक यौन शोषण के मामले को आधार बनाकर अपनी राजनीति खेली है उसने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या देश की आम जनता इस तरह उठाए गए मुद्दों पर आगे विश्वास कर पाएगी। अगर कल को किसी खिलाड़ी के साथ खेल क्षेत्र में कुछ भी गलत होता है और वो सामने आकर अपनी बात रखता है तो क्या कोई बिन सबूत के यकीन कर पाएगा कि ये कोई राजनीति नहीं थी, लोग तो उस खिलाड़ी जो वास्तविक में पीड़ित होगा उसे भी शक की निगाह से देखेंगे, उसमें राजनीति खोजेंगे, उस पर सवाल खड़े करेंगे।

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