Sunday, November 17, 2024
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2024 से पहले ‘डरा हुआ मुसलमान’ नैरेटिव गढ़ने की कोशिश भर ही नहीं, BBC की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के हैं खतरे बड़े

एक आम मुस्लिम जो सामान्य आदमी की तरह अपना जीवन जी रहा होता है, प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाले अचानक उसे उसकी मुस्लिम पहचान के बारे में बताने लगते है और अंततः यही उसकी एकमात्र पहचान बन जाती है और यह अक्सर कट्टरता की ओर पहला कदम होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते हुए बीबीसी ने एक प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री बनाई है। इसका मकसद यह प्रचारित करना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने मुस्लिमों को मरने के लिए छोड़ दिया था। 59 कारसेवकों को मुस्लिम भीड़ द्वारा ट्रेन में जलाने की घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे। प्रतिबंध के बावजूद कुछ राजनीतिक समूह और इस्लामी छात्र संगठन इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग कर रहे हैं। विश्वविद्यालयों में स्क्रीनिंग हो रही है, जिनमें कुछ केंद्र सरकार द्वारा भी संचालित हैं।

ब्रिटिश सरकार के पैसे पर आश्रित बीबीसी का यह डॉक्यूमेंट्री 2024 आम चुनावों पहले पीएम मोदी को ‘मुस्लिम विरोधी’ दिखाने का एक प्रयास है। हमेशा की तरह भारत के विपक्षी नेता राजनीतिक फायदे के लिए इस डॉक्यूमेंट्री का इस्तेमाल कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं की इस हरकत से पता चलता है कि उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि वे मोदी को अपने दम पर नहीं हरा सकते हैं। इसके बदले वे 2024 में मोदी को हराने के लिए ‘डरा हुआ मुसलमान’ नैरेटिव को विदेशी मदद से आगे बढ़ा रहे हैं।

लेकिन यह मामला राजनीति से इतर भी है, जिससे हमें चिंतित होना चाहिए। यह कट्टरपंथ के प्रति मुस्लिम युवकों के रूझान को भी प्रदर्शित करता है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के पीछे स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (SIO) के सदस्य थे। SIO के सदस्य CAA विरोधी प्रदर्शनों के लिए भीड़ जुटाने में शामिल रहे हैं, जिसके कारण फरवरी 2020 में दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगे हुए थे। SIO के सदस्यों में से एक आसिफ तन्हा पर दिल्ली में हिंसा का मामला दर्ज किया गया था।

1981 में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के अलग होने के बाद, 1982 में जमात-ए-इस्लामी ने SIO की स्थापना की। 2008 में लाइव मिंट ने अपनी रिपोर्ट में इन दोनों संगठनों के बीच संबंध को कुछ इस तरह बताया था, वे भले सगे भाइयों की तरह हों लेकिन उनके सिद्धांतों और कार्यों में भिन्नता दिखती है। सरकारी कार्रवाई के बाद सिमी काफी हद तक भूमिगत हो चुका है, जबकि SIO उभर रहा है। वह इस्लाम को कट्टरवांद और हिंसा के रूढ़िवादी लीक से बाहर ले जा रहा है। उसका मिशन इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर छात्रों, मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों के सहयोग से शांतिपूर्ण तरीके से भारत का पुनर्निर्माण करना है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने बताया कि SIMI छिपकर अपनी गतिविधियों में लगा है और फंड जुटा रहा है। इसमें कहा गया था कि संगठन को किसी भी स्थिति में ‘भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने के मकसद’ को पूरा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। केंद्र ने बताया था कि SIMI के हर नए सदस्य को ‘इस्लामी शासन की स्थापना’ के लिए काम करने की शपथ दिलाई जाती है। केंद्र ने यह भी कहा था कि वह न केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता को अस्वीकार करता है, बल्कि भारत और भारत के संविधान के खिलाफ भी भड़काता है।

अब ये लोग ऐसे प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में संलिप्त हैं जो न केवल एकतरफा, बल्कि तथ्यात्मक तौर पर भी गलत है। पूर्वाग्रह पर आधारित है। भले भारत एक लोकतांत्रिक देश है और सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन इसके नाम पर युवाओं को इस तरह की डॉक्यूमेंट्री दिखाना इसका एक स्याह पक्ष है।

2016 में दिल्ली पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद (JEM) के तीन आतंकवादियों के खिलाफ दायर चार्जशीट में एक अदालत को बताया था कि उन्हें गुजरात और मुजफ्फरनगर दंगों के वीडियो दिखाए कर आतंकवादी गतिविधियों के लिए तैयार किया गया था। JEM प्रमुख मौलाना मसूद अजहर से प्रेरित हो वे आतंकी संगठन में शामिल हुए थे। JEM के एक आतंकवादी साजिद ने स्वीकार किया था कि जब दिसंबर 2015 में कट्टरपंथी युवकों और आतंकी बनने की इच्छा रखने वाले लोग एक घर में मिले थे, तो उन्हें ‘गुजरात दंगों और मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान मुसलमानों के उत्पीड़न’ के बारे में बताया गया था।

साजिद ने तब सुझाव दिया था कि प्रशिक्षु आतंकवादियों को मौलाना मसूद अजहर की तकरीरों को सुनना चाहिए। ये तकरीर राम जन्मभूमि पर स्थित विवादित ढाँचे ‘बाबरी मस्जिद’ के विध्वंस का बदला भारत में हिंसक जिहाद से लेने के बारे में थे। इनमें भारत में मुसलमानों पर तथाकथित अत्याचार और कश्मीर की ‘मुक्ति’ की भी बात की गई थी। मौलाना मसूद अजहर के इन वीडियो ने प्रशिक्षु आतंकियों को जिहाद के लिए उकसाया था।

दंगों के वीडियो की स्क्रीनिंग मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने को लेकर किया गया था। मुस्लिम छात्र संगठन ऐसे प्रोपेगेंडा वीडियो विशेष तौर पर दिखाते हैं जिसमें ‘मुस्लिम उत्पीड़न’ का रोना होता है।

ऑपइंडिया ने पहले बताया था कि कैसे 2002 के गुजरात दंगों के वीडियो का भी जबरन धर्म परिवर्तन के लिए इस्तेमाल किया गया था। ऑपइंडिया से बात करते हुए, आदिवासी वसावा समुदाय के एक सदस्य प्रकाश वसावा (बदला हुआ नाम) ने बताया था कि उसे इस्लाम में परिवर्तित होने का लालच दिया गया था। वसावा ने जबरन धर्मांतरण रैकेट के आरोपितों में से एक हाजी फेफड़ावाला के बारे में बताया था, “हमें बताया गया कि गोधरा कांड में असल में (पीएम) मोदी और (एचएम) शाह ने ट्रेन के अंदर मुस्लिमों को जिंदा जला दिया था और दावा किया गया कि हिंदुओं को मार दिया गया था। उन्होंने हमें बताया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थल पर कोई मंदिर नहीं था और यह हमेशा एक मस्जिद रहेगा।”

ऐसे समय में जब ध्रुवीकरण चरम पर है, प्रोपेगेंडाबाज, इस्लामवादी और ‘भारत के टुकड़े’ करने का इरादा रखने वाली ताकतें, ‘पत्रकारिता’ की आड़ में सांप्रदायिक कलह फैलाने में सबसे आगे हैं, ये एकतरफा दुष्प्रचार आग में घी डालने का ही काम करता है। एक आम मुस्लिम जो सामान्य आदमी की तरह अपना जीवन जी रहा होता है, प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाले अचानक उसे उसकी मुस्लिम पहचान के बारे में बताने लगते है और अंततः यही उसकी एकमात्र पहचान बन जाती है और यह अक्सर कट्टरता की ओर पहला कदम होता है।

(मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए निरवा मेहता के इस लेख को आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। इसका हिंदी अनुवाद राहुल आनंद ने किया है।)

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Nirwa Mehta
Nirwa Mehtahttps://medium.com/@nirwamehta
Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.

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