चेन्नई का स्टेला मैरिस कॉलेज। मद्रास यूनिवर्सिटी से संबद्ध लेकिन ऑटोनमस। कैथोलिक संस्था से जुड़ा हुआ। उच्चतर शिक्षा में सिर्फ लड़कियों के लिए बहुत प्रसिद्ध। यहीं कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और ‘युवा नेता’ (जो उन्होंने खुद कहा) आज मतलब 13 मार्च को गए हुए थे। लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र राहुल गाँधी के लिए दक्षिण भारत की यह पहली यात्रा है। युवा वोटरों से कॉलेज कैंपस में उन्होंने दिल खोलकर बात की। हँसते-टहलते सारे सवालों का जवाब दिया।
शुरुआत में ही उन्होंने कॉलेज की छात्राओं को सरल नहीं बल्कि कठिन सवाल पूछने की सलाह दी थी। छात्राओं ने भी बखूबी उनका मान रखा। राफेल, मोदी, बीजेपी आदि जैसे जिन मुद्दों पर राहुल गाँधी की ‘अच्छी’ पकड़ है, उन पर उन्होंने ‘शानदार’ जवाब दिए और खूब तालियाँ भी बटोरी। लेकिन विदेश से पढ़े होने के कारण जिन देशी मुद्दों से वो आजीवन अछूते रहे, उन सवालों पर डगमगा गए और फिर से अपने ‘चिर-परिचित’ नाम को सार्थक कर दिया।
LIVE: Congress President @RahulGandhi interacts with students at Chennai. #VanakkamRahulGandhi https://t.co/qB0MUXETYG
— Congress (@INCIndia) March 13, 2019
पूरा वीडियो अगर आप देखेंगे तो लगभग 37 मिनट 50 सेकंड पर खुशी नाम की छात्रा ने राहुल गाँधी से एक सवाल किया – comment on women about inequality and discrimination and how women will be benefited (महिलाओं को लेकर असमानता और भेदभाव के बारे में अपनी टिप्पणी दें और यह भी बताएँ कि महिलाओं को कैसे लाभान्वित किया जाएगा)। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने इस सवाल का जवाब लगभग ढाई मिनट (40:35) तक दिया। और इसी ढाई मिनट में उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया, जो नहीं कहा जाना चाहिए था। नहीं कहा जाना चाहिए था क्योंकि सवाल में कहीं भी बिहार-उत्तर प्रदेश नहीं था, फिर भी उन्होंने इसे जबरन घुसाया। क्यों? सिवाय राहुल के शायद ही कोई जान पाए। जो पूरा वीडियो नहीं झेल सकते हैं, उनके लिए सिर्फ वो हिस्सा भी है, जहाँ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने बिहार-यूपी का जिक्र किया है।
उत्तर भारतीय महिलाओं की हालत ख़राब
— Modi Bharosa (@ModiBharosa) March 13, 2019
राहुल गाँधी ने उत्तर भारतीयों का किया अपमान
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अंग्रेजी नस्ल की मानसिकता
सत्ता की आजादी तो 47 में ही मिल गई पर मानसिक आजादी शायद कॉन्ग्रेस को आज तक नहीं मिली है। ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति तो अंग्रेजों की थी। लेकिन उसे ढोते-ढोते दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत कर देना तो कोई कॉन्ग्रेस से ही सीख सकता है। और राहुल गाँधी तो ठहरे खैर इसके अध्यक्ष ही। इसलिए खुशी को जवाब देते हुए बोल गए कि उत्तर भारत में महिलाओं की स्थिति दक्षिण के महिलाओं के मुकाबले बहुत खराब है। बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाओं की स्थिति तो और भी दयनीय है। इसके बाद वो पॉलिटकली करेक्ट होते हुए आदर्शवाद की बातें करने लगे कि महिलाएँ पुरुषों से कम नहीं… 2019 में आरक्षण दूँगा और फलान-ढिमकान!
उत्तर बनाम दक्षिण वाली बात अगर एक बार होती तो शायद उसे जुबान का फिसलना मान कर माफ़ किया जा सकता था। लेकिन नहीं। राहुल ने बहुत ही शातिराने और राजनीति से प्रेरित होकर यह बात कही। कैसे? वीडियो के 52:50 मिनट से 54:35 मिनट तक का हिस्सा सुनिए। यहाँ सुष्मिता नाम की एक छात्रा को राहुल हेलो बोलकर उसका सवाल सुने बिना ही एक मिनट तक कुछ और ही बोलते रहे। फिर सुष्मिता को सॉरी बोल कर सवाल सुना। उसने पूछा – South India is going to play a major role for making government in 2019. If you come to power, what do you plan to do for the South India? (2019 में केंद्र में सरकार बनाने में दक्षिण भारत एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। अगर आप सत्ता में आते हैं, तो दक्षिण भारत के लिए क्या करने की योजना है)? इस पर एक बार फिर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत का राग छेड़ा। मोदी सरकार को उत्तर भारत की ओर ज्यादा ध्यान देने वाला बताया और खुद को ‘संपूर्ण भारत, एक भारत’ का समर्थक।
अध्यक्ष महोदय ही जब उत्तर-दक्षिण की बातें करने लगे तो छुटभैये नेता तो लाठी लेकर खड़े होंगे ही। ऐसा ही एक टटपुंजिया नेता (विधायक) है- अल्पेश ठाकोर। पिछले साल गुजरात के साबरकांठा जिले में एक बच्ची से बलात्कार के बाद राज्य में उत्तर भारतीयों, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर स्थानीय लोगों ने हमले किए थे। इस घटना के बाद वहाँ से इन दोनों राज्यों के लोगों का पलायन भी हुआ था।
जब टूटा था ‘दुर्गा’ का दंभ
सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से 1971 में मिली जीत पर तब देश की प्रधानमंत्री को दुर्गा का प्रतीक बताया था। लेकिन शायद वाजपेयी को भी नहीं पता होगा कि प्रतीक स्वरूप कहे गए शब्द को वह सच मान लेंगी और खुद को राजनीति का भी ‘दुर्गा’ मान बैठेंगी। पर हुआ वही। 77 आते-आते इंदिरा ने खुद को दुर्गा मान लिया था – अपराजेय दुर्गा। 77 में ही इस ‘अपराजेय दु्र्गा’ को जयप्रकाश नाम के एक ‘बिहारी’ ने बिहार के ही ऐतिहासिक गाँधी मैदान से ललकारा था और तोड़ा था ऐसा दंभ, जिसे राजनीतिक इतिहास में शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा। लेकिन राहुल गाँधी चूँकि विदेश से पढ़े हैं इसलिए अपनी दादी की कहानी से शायद वाकिफ नहीं होंगे।
दादी से थोड़ा आगे बढ़ें तो राहुल गाँधी के पिताजी भी कोई कम बड़े राजनेता नहीं थे। वजह चाहे भी जो भी रहा हो लेकिन 415 सांसदों के साथ प्रधानमंत्री बनने का सपना तो वर्तमान परिस्थिति में शायद मोदी भी न देख पाएँ। लेकिन राजीव गाँधी और कॉन्ग्रेस पार्टी ने यह करिश्मा कर दिखाया था। लेकिन 1989 आते-आते हुआ क्या? वीपी सिंह और चंद्रशेखर (दोनों ही उत्तर प्रदेश के लाल) ने राजीव गाँधी की सत्ता को पलट दिया था।
समस्याएँ तो हैं…
महिलाओं को लेकर बिहार में समस्याएँ तो हैं। कोई शक नहीं। लेकिन क्यों? कभी सोचा राहुल गाँधी आपने? मैं बताता हूँ। समस्याएँ हैं क्योंकि आपकी पार्टी ने सबसे अधिक समय तक बिहार में राज किया। राज किया मतलब सच में सिर्फ राज ही किया। थोड़ा सा भी काज करते तो महिलाओं की स्थिति जो एक सामाजिक समस्या है, को जरूर सुधार पाते। क्योंकि यह सुधरता है शिक्षा से, साक्षरता से, साधन से, संसाधन से… लेकिन इसके लिए कॉन्ग्रेस में आपके बाप-दादाओं (राजनीतिक तौर पर प्रतीक स्वरूप, सच में मत समझ लीजिएगा) को काज करना पड़ता, जो उनसे शायद संभव ही नहीं था।
इसलिए हे राहुल गाँधी! अगर सत्ता किसी भी हाल में चाहिए तो केजरीवाल बन जाइए। बीजेपी के साथ जुड़ जाइए। वो मना कर दे तो दोबारा कोशिश कीजिए। न सुने तो गिड़गिड़ाइये। लेकिन आपको खुदा का वास्ता! कृपया इस देश को उत्तर-दक्षिण में मत बाँटिए।