कल रात से अरुंधति रॉय फिर से चर्चा में हैं। चर्चा में रहना ही तो नक्सलियों का जीवनध्येय होता है, चाहे सही बात के लिए रहें, या देशविरोधी बयानों के लिए। ताजा समाचार यह है कि इन्होंने नौ महीने पहले जो बेहूदगी की थी उसका विडियो फिर से वायरल हो रहा है और लोग दोबारा इन्हें लताड़ रहे हैं। ये विडियो 2 जून, 2011 को यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिन्स्टर के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, ह्यूमैनिटीज़ एंड लैंग्वेजेज के तत्वावधान में आयोजित एक लेक्चर का हिस्सा है। यहाँ यह बात भी गौरतलब है कि इसी साल उनकी तीन ‘नॉन-फिक्शन’ किताबें आई थीं जिनके नाम ‘ब्रोकन रिपब्लिक: थ्री एस्सेज़’, ‘वाकिंग विद कॉमरेड्स’ और ‘कश्मीर: द केस फॉर फ्रीडम’ हैं।
कथित विडियो में आप अरुंधति रॉय को यह कहते सुन सकते हैं कि अंग्रेजों के जाने के बाद भारत ने एक तरह से उपनिवेशवाद ही किया है और आज तक भारत के लोग भारतीय सेना की बर्बरता झेल रहे हैं। रॉय ने आगे यह कहा कि हर जगह के कबीलाई लोग, एवम् समुदाय विशेष और ईसाई भारतीय राष्ट्र के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं। आजादी के बाद भारत ने इन सारे राज्यों को उपनिवेश बना लिया और वो अपनी आजादी के लिए संघर्षरत हैं। ये कहते हुए रॉय ने कश्मीर से शुरुआत की और पंजाब, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, गोवा होते हुए तेलंगाना और हैदराबाद तक पहुँच गई। साथ ही, रॉय ने बिना झिझक के यह भी कहा कि इस तरह की बर्बरता तो पाकिस्तान की फौज भी नहीं करती। आगे इन्होंने बताया कि अपर कास्ट हिन्दू राष्ट्र लगातार युद्ध की स्थिति में रहा है।
Shame on Arundhati Roy! I used to have huge respect for her, but not anymore! Not only is she insulting my India, she is praising the Pakistani army which, apart from directly supporting terrorism in India, also killed 3 million of its own people during the 1971 Bangladeshi war! pic.twitter.com/Xx794FmC1M
— Shama Mohamed (@drshamamohd) August 26, 2019
अब इस धूर्त महिला ने माफी माँगी है कि आठ साल पहले जो विडियो आया था, उसमें कुछ बातें जो उसने कही थीं वो गलत और मूर्खतापूर्ण है। लेकिन जो माफी माँगी गई है वो इस बात पर है कि बलूचिस्तान और बंग्लादेश के लोगों द्वारा लताड़ने पर माँगी है जहाँ उन्होंने बताया कि पाकिसाानी सेना ने बलात्कार से लेकर हवाई बमबारी तक अपने ही लोगों पर की है, और आज भी करती है।
‘द प्रिंट’ को दिए गए बयान में रॉय ने कहा कि उस विडियो क्लिप में वह जो भी कहती दिख रही हैं, वो उनकी सोच, विचारों और रचनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वे लोगों से किसी बातचीत के दौरान कही अपनी बातों बजाय अपने लिखे पर विश्वास करने की सलाह देती है। वह कहती हैं अगर इस विडियो क्लिप से कोई भी कन्फ्यूजन पैदा हुआ है तो वह माफ़ी माँगती हैं। अरुंधति रॉय ने कहा:
“पाक फौज बलूचिस्तान में जो कुछ भी कर रही है या बांग्लादेश में उसने जो नरसंहार किया- इस बारे में मेरी राय कभी भी अस्पष्ट नहीं रही है। मैंने इस बारे में काफ़ी कुछ लिखा है। हिन्दू राष्ट्रवादी मेरे पुराने विडियो क्लिप को निकाल कर हंगामा मचा रहे हैं। जिसने भी मुझे पढ़ा है वो इन बातों पर एक सेकंड के लिए भी विश्वास नहीं करेगा। नैतिक रूप से पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में से कोई भी एक-दूसरे से बढ़ कर नहीं है। भारत में अभी फासिज्म का वातावरण तैयार हो रहा है। जो इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है, उसे बदनाम होने, ट्रोल किए जाने, जेल में भेजे जाने और पिटाई किए जाने का डर है।”
रॉय जैसों की नौटंकी चलती रहेगी क्योंकि भारतीय सेना न तो आज वो सब कर रही है जो इसने आठ साल पहले कहा, न ही आठ साल पहले कर रही थी। ये नक्सलियों, वामपंथी लम्पटों, छद्मबुद्धिजीवियों और गरीबों की रीढ़ पर लात रख कर, उनके घर के कमाने वालों के नरसंहार करने वाले नक्सली आतंकियों के हिमायतियों की पूर्वनिर्धारित, राष्ट्रविरोधी योजना का हिस्सा है जहाँ अगर कोई परपेचुअल वॉर, यानी सतत युद्ध की स्थिति में है तो यही हैं जो भारत को टुकड़ों में बाँटने की मंशा रखते हैं।
एक कुत्सित प्रयास है जहाँ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जा कर फर्जी बातें बता कर भारतीय सेना को किसी तानाशाही सुरक्षाबल की तरह दिखाया जा रहा है जो भारत के हर जिले में युद्ध लड़ रही है। आपको एक मंच मिलता है, सामने माइक है और बाल में हाथ घुमाते हुए, आप कुछ भी बोलती हैं, एक्सेंटेड अंग्रेजी है ही, आपको बुकर प्राइज मिल चुका है तो लेजिटिमेसी का अभाव भी नहीं है। ऐसे लोग इतने घाघ और बेगैरत होते हैं कि किताब बेचने के लिए ये अपना जमीर, अगर हो तो, सहजता से बेच देते हैं।
ऐसा इसलिए होता है कि सामने जो अंग्रेजी जनता बैठी हुई है वो इन्हें दोबारा सवाल नहीं पूछती। वो अपने ही दादाओं के कुकर्म भूल चुकी है तो उसकी अपनी ग्लानि को छुपाने के लिए ये मसाला काफी है कि भारतीय सेना तो अंग्रेजों से भी बुरा बर्ताव कर रही है। लेकिन, तथ्य और अरुंधति रॉय के मौखिक दस्त से निकली टुटपुँजिया बातों में बहुत अंतर होता है। ये अतिसार अरुंधति रॉय इसलिए सार्वजनिक तौर पर कर सकती हैं क्योंकि कुछ लोगों को उल्टी और दस्त से निकले अपशिष्ट पदार्थ ही सुगंधित और सुरूचिपूर्ण लगते हैं।
क्या आपको इंग्लैंड के दस जगहों का भी नाम पता है? क्या आपको अमेरिका के दस जगहों का नाम पता है? अब मैं आपको पाँच रैंडम जगहों का नाम लेकर यह कहने लगूँ कि इग्लैंड की सेना लगातार बाहर से आए लोगों पर अत्याचार कर रही है, अमेरिका में ट्रम्प के खिलाफ बोलने वालों को हर दिन जेलों में भरा जा रहा है। आप सोचेंगे कि आप इंटरनेट पर सर्च कर लेंगे लेकिन तभी आप पर मैं परमज्ञान की बिजली का आघात यह कह कर कर दूँगा कि मीडिया में ये बातें आती भी नहीं। इसका मतलब है कि आपको सिर्फ मेरी कही गई बातों पर ही विश्वास करना पड़ेगा।
आप विदेशी हैं, आपको भारत के नाम पर आज भी साँप और बाघ दिखा कर उसे बेकार-सा, स्लम में रहने वाले लोगों का देश दिखाया जाता रहा है। आप जब कहते हैं कि भारत तो चंद्रयान और मंगलयान भी भेज रहा है तो आपको ये चिरकुट विचारक यह कह कर रोक लेंगे कि वही तो स्टेट का प्रोपेगेंडा है कि एक-दो बड़ी चीजें कर लो, बाकी सब छुपा डालो। आपके हर सूचना के स्त्रोत पर ये नक्सली सवाल खड़े कर देंगे कि आपको तो जो भी मिल रहा है वो गलत ही है, और आप अंधेरे में जी रहे हैं।
इस तकनीक का अंग्रेजी या फ्रेंच नाम बता कर मैं भी, आपको अपनी बात में दो किलो वजन जोड़ कर, विश्वसनीय बना देता, लेकिन मुझे नहीं लगता कि तर्क और तथ्य को अंग्रेजी या फ्रेंच के मुहावरों या थ्योरी के नामों की जरूरत होती है। ये तरीका है इनका, बार-बार आजमाया हुआ, जहाँ आपके द्वारा संकलित हर ज्ञान को झुठलाना, उनके विचारों पर सवाल उठाने वाली पुस्तकों को खारिज करना, दूसरे पंथ के विचारकों का उपहास करना एक सुनियोजित और वांछित फलदायक रास्ता माना जाता है।
फासीवाद आ गया है, या तैयार हो रहा है?
आप यह तो देखिए कि यह गिरोह इसी बात पर ठीक से एक साथ नहीं हो पा रहा कि जिस फासीवाद की बात ये लोग दिन-रात, हर साँस और धड़कन में करते हैं, वो आ चुका है या ‘मोनिका… ओ माय डार्लिंग’ ही कर रहा है। एक आदमी रोज रात में कहता है कि यही तो फासीवाद है, दूसरी कह रही है कि फासीवाद का वातावरण तैयार किया जा रहा है।
फासीवाद का एक रूप तो अरुंधति जैसे छद्मलिबरलों ने अख्तियार कर लिया है जहाँ हर यूनिवर्सिटी या सार्वजनिक मंच पर ये विशुद्ध झूठ बोलते हैं, फिर इनका गिरोह सक्रिय हो जाता है और ऐसे दिखाता है कि ब्रो, अरुंधति रॉय ने बोला है ब्रो… ब्रो… समझ रहे हो ब्रो? अरुंधति फ्रीकिंग रॉय ब्रो! ये ब्रो-ब्रो इतना ज्यादा होने लगता है कि वो ब्रोहाहा कॉलेज के 22-25 साल के युवा विद्यार्थियों के लिए तथ्य का रूप ले लेता है।
प्रोपेगेंडा तुम फैला रही हो, झूठ बोल कर भीड़ को उन्मादी बनाना तुम्हारा काम है, किसी खास वर्ग के प्रति हिंसा फैलाने को उकसाना तुम्हारा काम है, और फासीवादी वो सरकार है जो इतनी कल्याणकारी योजनाएँ चला रही है कि सब्सिडी और सोशल वर्क के चक्कर में इकॉनमी पर धक्के झेल रही है, जिस पर बाद में तुम्हीं जैसे लोग गरियाते हैं। ये कितनी महीन धूर्तता है आप समझ नहीं सकते। आपको क्या लगता है कि पचास करोड़ लोगों के लिए आयुष्मान योजना का पैसा कहीं पड़ा हुआ था और वो आ गया? आखिर ऊपर चढ़ती अर्थव्यवस्था धीमी सिर्फ वैश्विक मंदी से ही हुई है या फिर लगातार लोककल्याणकारी योजनाओं में पैसे लगाने का भी असर पड़ा है?
आपको ये बातें कोई नहीं बताता। अम्बानी का स्टॉक ऊपर जाए तो आसानी से कह देते हैं कि क्रॉनी कैपिटलिज्म चल रहा है, नीचे जाए तो कहते हैं कि लोगों के रोजगार जा रहे हैं। फिर सरकार अगर कॉरपोरेट को बैंक से लोन राइट ऑफ कराए, किसी तरह की सहायता दे तो वापस सरकार पूँजिपतियों की जेब में चली जाती है, और अगर जेट एयरवेज डूबता रहे, सरकार कुछ न करे तो कहेंगे कि हजारों लोगों का रोजगार जा रहा है। पहले सोच लीजिए कि कहना क्या चाहते हैं।
यही धूर्तता इन वामपंथियों को हर जगह से भागने पर मजबूर कर रही है। ये दोनों तरफ से बैट पकड़ कर छक्के मारने की फिराक में रहते हैं। आप इनकी करामातें देखिए कि ये कब-कब संवेदनशील होते हैं। आप याद कीजिए कि चुनावों के समय मीडिया हिट जॉब करते हुए इन्होंने कैसी-कैसी खबरें प्लांट की और साल भर बाद वो मीडिया वाले कोर्ट से लताड़ पा रहे हैं कि ये सनसनी फैलाने वाली बेहूदी पत्रकारिता है। उस समय लगातार प्राइम टाइम में ‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार कहने वाले ‘घोघो रानी कितना पानी’ कहते हुए अब ‘आदा-पादा’ खेल रहे हैं।
चोर की दाढ़ी में तिनका
हिन्दी में एक कहावत है कि ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’। अब अरुंधति जी की दाढ़ी तो है नहीं, लेकिन घुँघराले बालों में परजीवी अमरलत्ती के कुछ तिनके जरूर फँसे हैं। ये तिनके किसी वैसे पेड़ पर अपनी दसियों जड़ो से पोषण पाते उस परजीवी लता के हैं जो बेचारा दिन-रात अपने लिए ऊर्जा जुटाता है, फल और फूल बनाता है, लेकिन ये अमरबेल उसे सोखता जाता है, खुद को हरा रखता है।
वामपंथी और नक्सली कुछ ऐसे ही लोग हैं। ये गरीबों की बात करते हैं और गरीबों की ही हत्याएँ भी करते हैं। इनके हरे रहने के लिए उन लाखों किसानों और करोड़ों गरीबों की वो कहानी ज़रूरी है जहाँ एक निरीह किसान के ऊपर आर्मी जवान की बंदूक तनी हुई हो, और वो अपनी टेढ़ी-मेढ़ी उँगलियों से नमस्कार की मुद्रा में क्षमायाचना करता दिखे। आप भी द्रवित हो जाएँगे लेकिन सत्य यह है कि ऐसा नहीं होता। वो बंदूक अगर तनती भी है तो वो किसी नक्सली की ही होती है जो जंगलों के आदिवासियों, गरीब किसानों पर तनती ही नहीं, गोली भी उगलती है अगर वो किसान वैसा न करे जैसा वो चाहते हैं।
ये जो तिनका है, वो अरुंधित रॉय जैसे लोगों पर चल रहे केस का भी हो सकता है। बात यह है कि 1999 से ही श्री प्रदीप किशन और अरुंधति जी ने पंचमढ़ी के बरियाम झील के किनारे एक ‘वेकेशन होम’ बनाया। ये जंगल की जमीन थी, आदिवासियों की जमीन थी। उन्हीं आदिवासियों की जिस पर रॉय साहिबा किताबें लिखती रहती हैं। 2010 में कोर्ट ने इसे गैरकानूनी करार दे दिया। इस घर के पास जब पंचमढ़ी को टूरिस्ट अट्रेक्शन आदि बनाने के लिए होटल खोलने के प्रस्ताव आए तो सरकार की कमिटी में श्री प्रदीप किशन जी थे और उन्होंने कहा कि ‘लोग’ नहीं चाहते कि लालची पूंजीवादी लोग यहाँ आएँ।
ये बात और है कि ये ‘लोग’ कौन थे, वो सबको पता है। अब आप ही बताइए कि झील का किनारा हो, जंगल की हरियाली हो, फिर आदिवासियों की जमीन पर पूँजीवादी दखल की बात लिखने में तो फर्स्ट हैंड एक्सपीरिएंस आएगा ना! आप नहीं समझेंगे क्योंकि आपकी पूरी दुनिया दिन का दाल और रात की रोटी जुटाने में जाती है।
आप ही बताइए कि ये अगर फासीवाद-फासीवाद नहीं चिल्लाएगी तो फिर इसके जैसों पर चल रहे केस में जब फैसला आएगा तो कोर्ट के जजों को ब्राह्मणवादी, पितृसत्तात्मक और अपर कास्ट हिन्दू बोल कर लोग कैसे खारिज करेंगे? कोर्ट तो वही सही होता है न जो चार बजे सुबह में भी बाईस साल की कानूनी लड़ाई के बाद फाँसी पर चढ़ाए जा रहे आतंकी के लिए खुले। लोकतंत्र की रक्षा तो कोर्ट तभी तक करता है न जब इस गिरोह के पक्ष में फैसले जाते हों। बाकी टाइम तो कोर्ट मोदी की जेब में और अमित शाह के गले में लटक कर चुम्मियाँ देता रहता है।
इसलिए तुम दंगा करते रहो साथी…
अरुंधति रॉय आज ट्रोल हो रही हैं तो इन्हें दर्द उठ रहा है। ट्रोलिंग से आपका बहुत ज्यादा नुकसान होगा भी तो थोड़ी देर आप परेशान हो सकती हैं। लेकिन आप उन बातों को तौलिए कि किसी राष्ट्र की अनुशासित सेना पर पूरे देश में हर जगह युद्ध करने वाली बर्बर सेना होना का आरोप लगाने से उसकी छवि का क्या होता है। आप उस बात को तौलिए जहाँ एक लेखिका प्रपंच गढ़ते हुए, स्वयं को भारत की अस्सी करोड़ गरीब आबादी का प्रतिनिधि मान कर यह बोलने लगती है कि उन्हें सताया जा रहा है। आप इस बात को तौलिए जहाँ ये स्वघोषित वीरांगना लोगों को यह बताती है कि भारत का पूरा उत्तरपूर्व, कश्मीर, गोवा, हैदराबाद और तेलंगाना इस देश से अलग होने की लड़ाई लड़ रहा है।
हम वाकई बहुत नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। हमें हर दिन ऐसे झूठे लोगों का मुँह बंद करने की ज़रूरत है। क्योंकि इनका प्रयास और प्रपंच सतत चलता रहेगा। अगर इन प्रपंचों को लगातार काटा नहीं गया तो ये देश नक्सली आतंकियों की लाल पट्टी के रक्त से लाल हो जाएगा। ये लोग हर दिन दंगे भड़काना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि दलित लोग सड़कों पर आ कर सवर्णों को उस पाँच हजार साल के अत्याचार के नाम पर काट दें जिसका सबूत इतिहास की किसी किताब में नहीं मिलता। ये चाहते हैं कि यूपी का कट्टरपंथी तलवार लेकर बगल के घर के हिन्दू को इसलिए काट दे क्योंकि मोदी हिन्दू है और कश्मीर को केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया है।
ये नहीं चाहते कि देश का अल्पसंख्यक या दलित स्वयं अपने दिमाग से सोचे। ये चाहते हैं कि वो इनके अजेंडे का सैनिक बने और आगजनी करते हुए, दंगे करते हुए कारसेवकों की बॉगी में आग लगा दे, या आंदोलन के नाम पर 11 लोगों की हत्या कर दे ताकि ये अपने वेकेशन होम में, झील की तरफ देखते हुए, बिल्ली की आँत से होते हुए उसके मलद्वार से बाहर आई दुनिया की सबसे महँगी कॉफी की घूँट लेते हुए कह दें कि सामाजिक न्याय हो रहा है, आंदोलन सफल हो रहा है, तुम लड़ते रहो साथी, हम तुम्हारे साथ हैं।