पाकिस्तान में डॉ. रमेश कुमार माल्ही सूली पर लटकाए जा सकते हैं- इसलिए नहीं कि उन्होंने किसी की हत्या कर दी, किसी का बलात्कार कर दिया; इसलिए भी नहीं कि उन्होंने किसी भी प्रकार का देशद्रोह या किसी दहशतगर्दी की वारदात में हिस्सेदारी की हो। किसी नशीले पदार्थ के व्यापार में भी नहीं। उन्हें फाँसी पर इमरान खान का ‘नया पाकिस्तान’ केवल इसलिए लटका देगा क्योंकि उनके ख़िलाफ़ एक मौलवी ने आरोप लगा दिया है कि उन्होंने क़ुरान के पन्ने फाड़कर उसमें लपेटकर मौलवी को दवा दी थी।
पाकिस्तान का ईश निंदा कानून
पाकिस्तान का ईश निंदा कानून न केवल इस रूप में दमनकारी है कि इसके अंतर्गत महज़ कुछ शब्दों के लिए किसी की जान ले ली जा सकती है, बल्कि इस कानून के अनुपालन में भी कोई नियम-कायदा नहीं है। पाक के बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के किसी भी व्यक्ति के द्वारा शिकायत भर कर देना काफी है आपको सलाखों के पीछे पहुँचा देने के लिए। कहने को तो यह पाकिस्तान की सरकार द्वारा “मान्यता-प्राप्त” किसी भी पंथ के खिलाफ बोलने पर लगाया जा सकता है, लेकिन असलियत में यह केवल मुस्लिमों द्वारा गैर-मुस्लिमों को ‘सीधा’ करने के लिए इस्तेमाल होता है। यही आसिया बीबी के मामले में हुआ- उनकी पड़ोसिनों ने कहासुनी का बदला लेने के लिए उनके खिलाफ इस कानून के अंतर्गत शिकायत कर दी, जिसके लिए उन्हें पहले 8 साल मौत की सजा के डर में बिताने पड़े, फिर रिहा होते ही पाकिस्तान छोड़ कर कनाडा भागना पड़ा, और यही डॉ. माल्ही के साथ होता दिख रहा है।
पेशे से जानवरों के डॉक्टर रमेश कुमार माल्ही ने कुछ दिन पहले इलाके के ‘प्रभावशाली’ मुस्लिम परिवार के मवेशियों को देर रात देखने से मना कर दिया था। इसी के बाद उन पर यह केस हुआ, और वह जेल में ठूँस दिए गए। उनकी गिरफ़्तारी के बाद जिस इलाके में वह रहते थे (मीरपुर खास, सिंध का फुलादियों), वहाँ हिन्दुओं के खिलाफ दंगे भड़क गए और हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुन कर आग के हवाले कर दिया गया है।
हिंदुस्तान के छद्म-लिबरलों के लिए सबक
हिंदुस्तान के जिन छद्म-लिबरलों को यह देश पिछले पाँच सालों में ‘हिन्दू पाकिस्तान’, ‘भगवा तालिबान’, ‘असहिष्णु’ बनता दिख रहा है, उन्हें सच में एक बार पाकिस्तान का दौरा कर आना चाहिए। जाकर के वहाँ देखना चाहिए कि कैसे इस कानून में नरमी दिखाने का नाम लेते ही भीड़ सड़कों पर उतर आती है, दंगे-फसाद मच जाते हैं, सलमान तासीर और शाहबाज़ भट्टी को उनके ही सुरक्षाकर्मी केवल इसलिए मौत के घाट उतार देते हैं कि वह इस कानून के खिलाफ बोलने की हिमाकत किए थे। मुहम्मद बिलाल खान जहाँ सिर्फ इसलिए मार दिए जाते हैं क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान की सेना और आईएसआई की आलोचना कर दी थी। जिन्हें अपने देश भारत के कानून इतने दमनकारी लगते हैं कि लैला जैसी डिस्टोपिया बनाकर वह मुस्लिमों की प्रताड़ना दिखाना चाहते हैं, उन्हें केवल एक हफ़्ते पाकिस्तान में बिता कर आना चाहिए।
हिंदुस्तान में जितना क़ानूनी हक़ अभिव्यक्ति की आज़ादी को है, उससे ज्यादा केवल हमसे कहीं ज्यादा समय तक और परिपक्व ढंग से लोकतान्त्रिक शैली की सामाजिक संस्कृति अपना चुके यूरोपीय-अमेरिकी देशों में है। हमारे साथ या उसी समय के आस-पास आज़ाद हुए अधिकांश देशों, और खासकर पड़ोसियों पर नज़र डालें तो जेहन में पाकिस्तान का ईश-निंदा कानून, बांग्लादेश में नास्तिक/गैर-मुस्लिम ब्लॉगरों की इस्लाम के ख़िलाफ़ बोलने या लिखने पर हत्या, म्याँमार में लोकतंत्र और सैन्य शासन का ऑड-ईवेन दिखता है। और इस देश में जहाँ कमलेश तिवारी हज़रत मोहम्मद के खिलाफ बोल कर जेल में सड़ जाता है, वहीं मालदा-बशीरहाट में ममता बनर्जी मुस्लिम दंगाईयों को एक लड़के की फेसबुक पोस्ट पर आधा राज्य जला डालने के लिए आज़ाद छोड़ देतीं हैं; ‘सेक्सी दुर्गा’ फिल्म पर बुद्धिजीवी आँख-कान-मुँह बंद कर लेते हैं, और ‘हिन्दू आतंकवाद’ का शिगूफ़ा छेड़ने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी आज भी अपना प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख सकती है। इसलिए हर कदम पर हिंदुस्तान में इनटॉलेरेंस देखने वालों से गुज़ारिश है कि आस-पास देख लें, आपके हिन्दूफ़ोबिक यूटोपिया जितना तो अच्छा नहीं है, लेकिन वैसे हिंदुस्तान का लोकतंत्र काफी अच्छा है…