Sunday, September 1, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्देTanishq Vs गदर: सिनेमा हॉल पर 500 की भीड़ का पेट्रोल बम से हमला,...

Tanishq Vs गदर: सिनेमा हॉल पर 500 की भीड़ का पेट्रोल बम से हमला, पलट गई थीं शबाना आज़मी

“फायर” फिल्म पर हुए विवाद को लेकर शबाना आज़मी ने कहा था - “एक स्वस्थ समाज को विरोधाभासी विचारों का भी स्वागत करना चाहिए”। लेकिन जब मामला ग़दर का आया तो वो पलट गईं और कहने लगीं, “ये अफवाहों को प्रश्रय देती फिल्म है लेकिन...”

कुछ ही दिन पहले की बात है जब “कौन बनेगा करोड़पति” में स्वदेशी आन्दोलन के बारे में पूछा गया था। हमारा सामान्य ज्ञान भी कम है, और हम इतिहास के छात्र भी नहीं थे, तो जवाब हमें मालूम नहीं था। लेकिन, किन्तु, परन्तु, हमें ऐसे वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) सवालों को हल करने का एक दूसरा तरीका जरूर पता था। अगर सही जवाब पता हो तो सीधे वो बताया जा सकता है, लेकिन साथ ही अगर गलत जवाबों को काटते जाएँ तो अंत में जो बचेगा, वो सही जवाब होगा। तो हमने दूसरे वाले तरीके से सवाल हल करना शुरू किया।

“चंपारण सत्याग्रह” पर एक मित्र ने किताब लिखी है, इसलिए हमें पता था कि वो 1917 के दौर की घटना थी। पटना की प्रसिद्ध सप्त मूर्ति में “भारत छोड़ो” आन्दोलन के दौरान वीरगति को प्राप्त हुतात्माओं की मूर्तियाँ हैं, इसलिए हमें उसका भी पता था। सही जवाब 1906 ही हो सकता था। इसी “स्वदेशी आन्दोलन” की याद में भारत में 7 अगस्त 2015 से “राष्ट्रीय हथकरघा दिवस” भी मनाया जाता है। इस दौर में जब विदेशी कपड़ों का बहिष्कार शुरू हुआ तब अधिकांश भारतीय कैसी स्थिति में रहे होंगे? क्या वो बड़े अमीर थे? नहीं, भारत आर्थिक संकटों, फिरंगी शासन/शोषण, अकाल जैसी अनेकों समस्याओं से जूझ रहा था।

मिल के बने हुए कपड़े उन्हें सस्ते ही मिल जाते, मगर उसका बहिष्कार करके भारतीय लोगों ने स्वदेशी को अपनाया था। इसलिए आज जब कोई तथाकथिक लेखक/लेखिकाएँ कहते हैं कि “जिनकी स्वर्ण खरीदने की औकात ही नहीं, वो तनिष्क का बहिष्कार ना करें” तो भारत की उनकी समझ पर हँसी आती है। बात सिर्फ उनके बोलने तक ही रुकी रहती तो कोई बात नहीं थी। खुद को गाँधी की विरासत ढोने वाली पार्टी कहने वाले कॉन्ग्रेस के नेतागण भी एक अहिंसक सत्याग्रह के खिलाफ उतर आए। ये दोमुँहे साँप बताने लगे कि सही क्या है, गलत क्या है!

ऐसे कमजोर याददाश्त वाले लोगों की याददाश्त को दुरुस्त किया जाना भी जरूरी है। करीब बीस साल पहले (2001 में) एक फिल्म आई थी “गदर: एक प्रेमकथा”। वैसे तो इसे फिल्म के संगीत और बँटवारे पर बनी फिल्म होने के लिए भी याद किया जाता है, लेकिन “बाहुबली” के आने से पहले तक ये भारत में सबसे ज्यादा देखी गई फिल्म भी थी। फिल्म के मुख्य किरदार के रूप में सन्नी देओल का हैण्ड-पंप उखाड़ लेने वाला दृश्य लम्बे समय तक चर्चाओं का विषय रहा। इस फिल्म की कहानी एक सिख व्यक्ति के अपनी मुस्लिम पत्नी को वापस लाने की जद्दोजहद की कहानी है।

नायक सिख और नायिका सकीना होगी, तो जाहिर है विवाद तो होना ही था! भोपाल में एक स्थानीय कॉन्ग्रेसी नेता आरिफ मसूद ने पुलिस से मिलकर बताया भी था कि अगर इस फिल्म का प्रदर्शन जारी रहा तो लिली टॉकीज (भोपाल का वो इकलौता सिनेमाघर, जहाँ “ग़दर” दिखाई जा रही थी) को नेस्तोनाबूद कर दिया जाएगा। सिनेमाघर की सुरक्षा के लिए करीब सौ पुलिसकर्मी तैनात थे। उन पर करीब 500 की इस्लामिक भीड़ ने पेट्रोल बम और धारदार हथियारों से लैस होकर हमला कर दिया। वहाँ मौजूद कई वाहन जला दिए गए, एक पुलिसकर्मी का हाथ काट लेने की कोशिश हुई।

इतनी बड़ी, हथियारबंद इस्लामिक भीड़ को काबू में लेना मुश्किल था। आँसू गैस के गोले दागने पर भी पुलिस को पीछे हटना पड़ा। हमलावर इस्लामिक भीड़ को पीछे तब हटना पड़ा, जब सिनेमाघर के अन्दर बाहर चल रहे दंगों से बेखबर लोगों का शो ख़त्म हुआ। ये आठ सौ लोग जब बाहर आए, तब कहीं जाकर इस्लामिक दंगाइयों को खदेड़ा जा सका। मामला सीधे-सीधे दंगे का भी नहीं था। असल में इसका आरोपित आरिफ मसूद स्थानीय आरिफ अकील और पूर्व सांसद गुफरान आलम के हाथ से इस किस्म के हिंसक आंदोलनों की अगुवाई छीनना भी चाहता था

अहमदाबाद और गाँधीनगर में भी इस फिल्म को लेकर दंगे जैसा माहौल तैयार था। इस्लामिक भीड़ के हमले के डर से वहाँ के संगम थिएटर के मालिक ने पुलिस सुरक्षा माँगी। दो दिनों तक संगम थिएटर में फिल्म का प्रदर्शन बंद रहा और पुलिस सुरक्षा मिलने पर इसका प्रदर्शन फिर से शुरू किया जा सका। इस फिल्म के बारे में बोलते हुए लोग कैसे दोहरे मापदंड अपनाते हैं, उसका प्रदर्शन भी ‘इंडिया टुडे’ ने कर डाला था।

करीब-करीब उसी दौर में “फायर” फिल्म पर विवाद हुआ था जिस पर शबाना आज़मी ने कहा था “एक स्वस्थ समाज को विरोधाभासी विचारों का भी स्वागत करना चाहिए”। जब मामला ग़दर का आया तो वो पलट गईं और कहने लगी, “ये अफवाहों को प्रश्रय देती फिल्म है, मगर बन गई है तो दिखा दो”!

ये दोमुँहापन फिल्म इंडस्ट्री और तथाकथित “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के पैरोकारों के लिए कोई नई बात भी नहीं थी। तनिष्क के प्रचार के आने और फिर उसके वापस लिए जाने पर लोग ये भी दिखाने लगे हैं कि इसे बनाने वाले लोग कौन थे। हालाँकि, ये वीडियो अब यूट्यूब से हटा लिया गया है, मगर कई लोगों ने स्क्रीनशॉट सहेज लिए हैं।

संभव है कि इस प्रचार के मुद्दे को, “सांस्कृतिक उपनिवेशवाद” के पैरोकार, भारतीय लोगों को नीचा दिखने के लिए इस्तेमाल किया जाए। इस किस्म के औजारों के बारे में एडवर्ड सेड ने अपनी किताब “ओरिएण्टलिज्म” में विस्तार से लिखा है। लम्बे समय से इस किस्म के हिंसक और बौद्धिक आक्रमण झेलती भारतीय सभ्यता को अब इनका प्रतिरोध करना भी आ गया है।

बाकी विरोध दर्ज करवाना जारी रखिए, अगर खरीदार हम हैं तो व्यापारियों को खरीदारों की पसंद से चलना होगा। ग्राहक को देवता तो गाँधीजी भी कहा करते थे ना?

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Searched termsगदर Tanishq
Anand Kumar
Anand Kumarhttp://www.baklol.co
Tread cautiously, here sentiments may get hurt!

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

जनता की समस्याएँ सुन रहे थे गिरिराज सिंह, AAP पार्षद शहज़ादुम्मा सैफी ने कर दिया हमला: दाढ़ी-टोपी का नाम ले बोले केंद्रीय मंत्री –...

शहजादुम्मा मूल रूप से बेगूसराय के लखमिनिया का रहने वाला है। वह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है जो वर्तमान में लखमिनिया से वार्ड पार्षद भी है।

चुनाव आयोग ने मानी बिश्नोई समाज की माँग, आगे बढ़ाई मतदान और काउंटिंग की तारीखें: जानिए क्यों राजस्थान में हर वर्ष जमा होते हैं...

बिश्नोई समाज के लोग हर वर्ष गुरु जम्भेश्वर को याद करते हुए आसोज अमावस्या मनाते है। राजस्थान के बीकानेर में वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -