Sunday, November 17, 2024
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पॉवर ग्रिड फेल होंगे, कुत्ते डर गए, प्रदूषण हुआ: दिवाली को गाली देने वाले लोग, जिन्हें जमातियों का मजहब नहीं दिखता

किसी को पटाखों से दिक्कत हो गई तो किसी के कुत्ते-बिल्ली को डर लगने लगा। अभिनेत्री सोनम कपूर ने अपना 'कुत्ता कार्ड' खेला। जब लोगों ने उन्हें जवाब दिया तो वो कहने लगीं कि बेवकूफों से बहस नहीं करनी चाहिए। बाद में लोगों ने कहा कि वो सोनम से बहस नहीं करेंगे। इलेक्ट्रिसिटी के विशेषज्ञों ने पशु अधिकार कार्यकर्ता बनने के बाद तीसरे चरण में पर्यावरण प्रेमी बनने का ढोंग किया। अंत में हार कर सारी बहस प्रदूषण पर आकर रुक गई।

दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज़ में तबलीगी जमात का जमावड़ा लगा। स्पष्ट है, एक मस्जिद में एक के बाद एक मजहबी कार्यक्रम हुए और उसमें हज़ारों लोगों ने शिरकत की। मौलानाओं का भाषण हुआ, जिसमें अल्लाह, इस्लाम और सुन्नत की बातें करते हुए कोरोना पर मेडिकल सलाहों और सरकार के दिशा-निर्देशों को धता बताया गया। ये चीजें एक मस्जिद में चल रही थीं, जिसे खाली कराने के लिए ख़ुद एनएसए अजीत डोभाल को लगना पड़ा। अब कोई पूछे कि इसमें मजहब कहाँ से आ गया और किसने लाया तो जवाब स्पष्ट है। उन जमातियों ने, जिन्होंने इस्लाम और इस्लामिक कार्यक्रमों के कारण महामारी फैलाई।

क़रीब ढाई हज़ार लोग विभिन्न राज्यों में गए, जहाँ से वो कई अन्य के संपर्क में आए। इनमें से काफ़ी सारे चिह्नित हो गए हैं, कइयों की तलाश जारी है। जब पुलिस समुदाय विशेष बहुल इलाक़ों में उनकी तलाश में गई तो उन पर हमला किया गया। डॉक्टरों और नर्सों तक को नहीं बख्शा गया। आप बिहार के मधुबनी से लेकर मध्य प्रदेश के इंदौर तक के उदाहरण देख सकते हैं। मजहबी मोहल्लों में ही ऐसी घटनाएँ क्यों हुईं? पत्थरबाजी में कट्टरपंथी भीड़ ही क्यों शामिल थी? टिक-टॉक वीडियोज में इस्लाम का नाम लेकर ही क्यों इस महामारी को लेकर लोगों को भड़काया जा रहा है?

अस्पतालों में नमाज के नाम पर कौन लोग इकट्ठे हुए और सोशल डिस्टन्सिंग का पालन नहीं किया? इन सवालों के जवाब स्पष्ट होने के बावजूद कुछ लोगों ने ये गीत गाना शुरू कर दिया कि लोग कोरोना को समुदाय विशेष से क्यों जोड़ रहे हैं? मुनव्वर राणा ने कहा कि लोग कोरोना को इस्लाम से जोड़ रहे हैं। ‘द वायर’ की आरफा ने कहा कि तबलीगी जमात वालों का नाम लेकर उन पर निशाना साधना ठीक नहीं है। बचाव में अजीब-अजीब तर्क दिए गए। लिबरल गैंग के लोगों ने एक साथ आकर तबलीगी वालों को डिफेंड करने में ताकत लगाई।

सबसे बड़ी बात कि इसमें वही लोग शामिल थे, जिन्हें ‘9 बजे 9 मिनट’ में दीवाली ढूँढ ली और उसमें धर्म और हिंदुत्व घुसा कर पीएम मोदी के उस इनिशिएटिव का माखौल उड़ाया, जिसे देश-विदेश से समर्थन मिला। कुछ लोग सोशल मीडिया पर गिद्ध की तरह इसी ताक में बैठे थे कि कहीं से किसी घास-फूस में आग लगने तक की भी ख़बर आए तो उसे इससे ही जोड़ा जा सके। लेकिन, हुआ इसके एकदम उलट। 27 मंजिली एंटीलिया में रहने वाले अम्बानी परिवार से लेकर बेघर और बेसहारा ग़रीबों तक ने पीएम की एक अपील पर दीये जलाए। सोशल मीडिया के गिद्ध हाथ मलते रह गए।

इसके साथ ही पावर ग्रिड के नए-नए एक्सपर्ट जो पैदा हो गए थे, वो भी बिलों में छुप गए। ऐसी स्थिति में गिरोह विशेष ने सेलेब्रिटीज को आगे किया। किसी को पटाखों से दिक्कत हो गई तो किसी के कुत्ते-बिल्ली को डर लगने लगा। अभिनेत्री सोनम कपूर ने अपना ‘कुत्ता कार्ड’ खेला। जब लोगों ने उन्हें जवाब दिया तो वो कहने लगीं कि बेवकूफों से बहस नहीं करनी चाहिए। बाद में लोगों ने कहा कि वो सोनम से बहस नहीं करेंगे। इलेक्ट्रिसिटी के विशेषज्ञों ने पशु अधिकार कार्यकर्ता बनने के बाद तीसरे चरण में पर्यावरण प्रेमी बनने का ढोंग किया। अंत में हार कर सारी बहस प्रदूषण पर आकर रुक गई।

लेकिन, इस बीच राजदीप सरदेसाई जैसे लोग अपने गेम खेलते रहे। उन्होंने इसे ‘ब्लडी दीवाली’ कह दिया। क्या राजदीप सरदेसाई कहीं किसी बकरे को कटते हुए देखते हैं तो उनके मुँह से ‘ब्लडी ईद’ निकलता है? नहीं। हालाँकि, दोनों ही ग़लत हैं। कइयों ने न्यूट्रलिटी दिखाने के चक्कर में कहा कि उन्होंने ताली और थाली बजाने का समर्थन तो किया था लेकिन अबकी वो दीये नहीं जलाएँगे। इनमें सागरिका घोष भी थीं। यकीन मानिए, इन्होने ताली भी इसीलिए बजाई थी क्योंकि पीएम मोदी का जनसमर्थन देख कर इनके होश उड़ गए थे। ये अंत तक इस आशा में थे कि इस बार लोगों का समर्थन पूर्ववत नहीं मिलेगा लेकिन इनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया।

ट्विटर पर अब्दुल कादिर ने अपने बूढ़े अब्बा की एक तस्वीर ट्वीट कर के बताया कि वो 95 वर्ष के हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर मोमबत्ती जलाई। उनके अब्बा ने समुदाय विशेष से देशहित में पीएम मोदी के साथ क़दम से क़दम मिला कर चलने की अपील की। क्या ये भी हिंदुत्व है? अब्दुल कादिर और उनके अब्बा जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने जाति-पाती, धर्म-मजहब, अमीरी-ग़रीबी और राजनीति की सीमा से परे पीएम मोदी के इस अभियान में भाग लिया। लेकिन, वामपंथी इसे धर्म से जोड़ते रहे। अब आप समझ गए होंगे कि जमातियों से लेकर ‘9 बजे 9 मिनट’ तक, साम्प्रदायिकता का जहर किसने बोया।

अगर कुछ लोगों के घरों में पटाखे रखे हुए थे और उन्होंने फोड़ ही दिए तो इसमें किसी हिन्दू त्यौहार को गाली देने का क्या तुक बनता है? लॉकडाउन में कोई पटाखे ख़रीदने गया नहीं होगा और पटाखों की दुकानें खुली भी नहीं हैं, ऐसे में जाहिर है कि लोगों ने घरों में रखे पटाखे ही फोड़े। चंद लोगों ने अगर उत्साह में ग़लती कर भी दी तो उसकी तुलना उस गलती से की जा सकती है क्या, जिसने भारत में हज़ारों लोगों के बीच महामारी फैलाने का काम किया? क्या एक फुलझड़ी उड़ा देना और कुछेक हज़ार लोगों को कोरोना से संक्रमित कर देना एक तराजू में तौला जा सकता है? लिबरल गैंग यही कर रहा।

अरशद वारसी जैसे लोगों ने पूरे देश को ही ‘स्टुपिड’ बता दिया और कहा कई कोरोना से भी ज्यादा ज़रूरी है कि किसका इलाज ढूँढा जाए? आवाज़ उठाने वालों में अधिकतर वही सेलेब्रिटी हैं, जो आजकल बेरोजगार चल रहे हैं, जिनके दिन नहीं कट रहे हैं। कल को अगर कहीं इन्होने किसी बच्चे को पानी से खेलते हुए देख लिया तो मीडिया और सेलेब्रिटीज का ये गैंग इसे ‘ब्लडी होली’ कह कर पीएम मोदी को गाली देते हुए देश की पूरी जनता को ही बेवकूफ बताएगा। ये वही लोग हैं, जो ‘अर्थ ऑवर’ और क्रिसमस को ‘कूल’ मानते हैं। लेकिन, होली और दीवाली का नाम आते ही इनके मुँह पर गालियाँ आती हैं।

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने कहा है कि भारत कोरोना वायरस से काफ़ी सही तरीके से निपट रहा है। इजरायल से लेकर सार्क देशों तक ने पीएम मोदी की नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा की है। लोग घरों में बंद हैं, कई देशों में इसके कारण डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले भी आए हैं। ऐसे में जो हमारे लिए रिस्क ले रहे हैं, उन्हें धन्यवाद करने के लिए अगर लोग कुछ कर रहे हैं तो वामपंथी गैंग चिढ़ा क्यों हुआ है? इन चीजों को धर्म से जोड़ने वाले ये क्यों नहीं बता रहे कि जमाती किस मजहब के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे थे?

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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