जोमैटो ने कुछ दिन पहले ज्ञान दिया था कि ‘भोजन का कोई मजहब नहीं होता’ और फिर तुरंत ही धर लिए गए थे कि समुदाय विशेष ने अगर उनसे ‘हलाल मांस ही चाहिए’ की बात की, तो कहने लगे कि उनकी सेवा में वो हमेशा तत्पर हैं। समस्या यह नहीं है कि एक कंपनी ख़ास मजहब को हलाल मांस दे रही है, बल्कि समस्या यह है कि वो हिन्दुओं को ज्ञान देने से नहीं चूकती।
ये सब इसलिए क्योंकि हिन्दुओं को इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो कौन-सा मांस खा रहे हैं। जिन्हें फर्क पड़ा, तो उन्हें ‘बिगट’, ‘कम्यूनल’, ‘असहिष्णु’ और पता नहीं क्या-क्या कह दिया गया। क्योंकि बहुसंख्यकों का न तो कोई धर्म है, न उनकी भावना आहत होती है। ये भावना और धर्म सैकड़ों सालों से आतंक झेल रही है, मंदिर टूटते देख रही है, काँवड़ियों पर पत्थरबाजी झेल रही है, लेकिन फर्क नहीं पड़ता। फर्क नहीं पड़ता फिर भी हम ही इन्टॉलरेंट हो जाते हैं।
ये मसला दो धर्मों का नहीं है। यूज़र का नाम होता है, उसके हिसाब से उसे हलाल परोसते रहो। जिसको खाना है खाए। मुझे समस्या नहीं है इससे। लेकिन हाँ, कोई ऐसा करने के बाद ढाई किलो ज्ञान भी दे दे, तो लगता है कि ऐसी बातों पर बोलना ज़रूरी है कि कम्यूनल तो तुम हो जो जानबूझकर ऐसे कई धर्मों के लोगों की धार्मिक आस्था पर हमला बोल रहे हो जो हलाल मांस नहीं खाते।
आज मैक्डोनल्ड्स इंडिया ने सीधे शब्दों में बताया कि पूरे भारत में उनके हर रेस्तराँ में सिर्फ और सिर्फ हलाल मांस ही मिलता है। सीधा अर्थ यह है कि गैर-मुस्लिमों की आस्था उनके लिए मायने नहीं रखती। अब अगर आप हलाल की व्याख्या पढ़ेंगे तो उसकी एक पूरी प्रक्रिया है, जिसमें जानवर/पक्षी को काटने से लेकर, पैकेजिंग तक में सिर्फ और सिर्फ उसी विशेष सम्प्रदाय वाले ही शामिल हो सकते हैं। मतलब, इस पूरी प्रक्रिया में, पूरी इंडस्ट्री में एक भी नौकरी गैर-मुस्लिमों के लिए नहीं है। ये तो हर नागरिक को रोजगार के समान अवसर देने की अवधारणा के खिलाफ है।
All our restaurants have HALAL certificates. You can ask the respective restaurant Managers to show you the certificate for your satisfaction and confirmation. (2/2)
— McDonald’s India (@mcdonaldsindia) August 22, 2019
यहाँ सबसे ज़्यादा गलत बात जो है वो यह है कि हिन्दुओं ने इन बातों पर कभी भी आवाज नहीं उठाया, लेकिन फिर भी वो हमेशा इस चर्चा में दूसरे सिरे पर ही खड़े कर दिए गए। चूँकि, यहाँ व्यक्ति सहिष्णु है, तो उसकी इसी सहिष्णुता का लाभ उठाकर उसे असहिष्णु कह दिया गया कि वो सम्प्रदाय विशेष की आस्था का आदर नहीं कर रहा! जबकि, हिन्दुओं ने तो ऐसा कभी नहीं कहा कि दूसरे मजहब वालों को झटका मांस खिला दो। वो तो आज इस बात पर सवाल कर रहे हैं कि तुम्हारे व्यवसाय में सबसे ज़्यादा लाभ पहुँचाने वाले समुदाय की आस्था पर तुमने कभी ध्यान क्यों नहीं दिया?
क्या वो इसलिए कि तुम्हें भी पता है कि हिन्दुओं को इन बातों से न तो फर्क पड़ा है, न पड़ेगा। इस मामले की दूसरी बात जो है वो यह है कि अब इस बात पर जिन हिन्दुओं ने सवाल किया है, उन्हें मानवता का दुश्मन से लेकर, घृणा फैलाने वाला, दूसरे समुदाय से भेदभाव करने वाला, साम्प्रदायिक और पता नहीं क्या-क्या कह दिया जाएगा। जबकि एक ने भी यह नहीं कहा कि सम्प्रदाय विशेष को हलाल देना बंद कर दो।
अगर आज किसी को ये बात पता चली कि मैक्डोनल्ड्स सिर्फ हलाल मांस वाला भोजन ही बेच रहा है, तो उसे यह कहने का पूरा हक है कि वो इस जानकारी के मिलने के बाद से झटका मांस ही खाना चाहेगा। ये उसकी धार्मिक आस्था और निजी स्वतंत्रता का मुद्दा है। जैसे सम्प्रदाय विशेष की आस्था का ख्याल रखा जाता है, वैसे ही रेस्तराँ इन लोगों के लिए रेस्तराँ मैनेजर के पास झटका का भी सर्टिफिकेट देने की व्यवस्था करे। जिसको झटका चाहिए वो लेगा। जिसको हलाल से दिक्कत नहीं वो वैसे ही खाएगा।
निजी तौर पर मुझे हलाल या झटका से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन किसी को पड़ता है तो वो अपने अधिकारों के दायरे में है। वो अपनी माँग के कारण कम्यूनल और दंगाई नहीं हो जाता क्योंकि सिर्फ हलाल दुकान से ही मांस लेने वाले ‘शांतिप्रिय’ कम्यूनल या दंगाई नहीं हो जाती। वो उसकी पसंद है वो कहाँ से मांस ले, कैसे पकाए, कैसे खाए।